केंद्र का वार्षिक बजट नहीं बल्कि सरकार के पिछले पांच सालो के कार्य का बखान अधिक था

Pahado Ki Goonj

नई दिल्ली,मोदी सरकार 2 द्वारा प्रस्तुत बजट , वार्षिक बजट नहीं बल्कि सरकार के पिछले पांच सालो के कार्य का बखान अधिक था और जिसमे तीन राज्य में होने वाले विधान सभा चुनावो के मतदाताओं को आकर्षित करनी वाले वक्तव्य ज्यादा थे । क्योंकि अंतरिम बजट पहले ही आ चूका था , और अप्रत्यक्ष कर के सुझाव अब वित्त मंत्रालय से हट कर जीएसटी कौंसिल के परिक्षेत्र में आ गया है अतः वर्तमान बजट में सरकार के पास कुछ ज्यादा करने के लिए नहीं था ।
कॉर्पोरेट कर 25% जो अभी तक 250 करोड़ के कारोबार वाली कंपनियों को उपलब्ध था ,उसकी सीमा बढ़ा कर 400 करोड़ कर दी गयी है जिससे लगभग 99.37% कम्पनिया लाभान्वित हो जाएगी । यह आश्चर्य का विषय है किं खुदरा व्यापार जो अक्सर सांझेदारी फर्म के माध्यम से होता है उस पर अभी भी 30% की दर से आयकर लगता है । यदि कंपनी करदाता पर रियायती दर से आयकर लगता है तो खुदरा व्यापारी की सांझेदार फर्म पर भी 25% दर से आयकर लगना चाहिए । फेडरेशन ऑफ़ आल इंडिया व्यापार मंडल लम्बे समय से यह मांग उठा रहा है ,जिसपर सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया ।
कारोबार हेतु बैंक से 1 करोड़ के ज्यादा नगद निकलने पर 2% श्रोत पर कर कटौती का फेडरेशन ऑफ़ आल इंडिया व्यापार मंडल अपना विरोध प्रकट करता है । कारोबार में नगद जमा करना एवं निकलना एक आम गतिविधि है , इस पर सरकार को पुनः विचार करना चाहिए ।
डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा देने हेतु बैंक द्वारा भुगतान में कटौती को समाप्त करनी की फेडरेशन ऑफ़ आल इंडिया व्यापार मंडल की मांग को स्वीकार करने पर फेडरेशन ने सरकार का धन्यवाद किया है । बजट के अंतर्गत 50 करोड़ तक के कारोबारी के ऊपर डिजिटल पेमेंट से भुगतान लेने पर कटौती न होने का फेडरेशन ऑफ़ आल इंडिया व्यापार मंडल स्वागत करता है और आशा करता है किं सम्बंधित बैंक बिना किसी परेशानी के व्यापारियों को यह सुविधा प्रदान करेंगे । हालाँकि यह सरकार का कदम उचित प्रतीत नहीं होता किं डिजिटल पेमेंट लेने से कोई व्यापार अब आकार नहीं कर सकता जैसा धारा 269SU के अंतर्गत नवंबर 2019 से प्रस्तावित किया गया है । ऐसा न करने पर 5000 रूपए प्रतिदिन की पेनलिटी बिलकुल अनुचित है जिस पर सरकार को पुनः विचार करना चाहिए । भारत के प्रत्येक स्थान पर डिजिटल भुगतान सेवा का आधारिक संरचना उपलब्ध ही नहीं है तो व्यापारी डिजिटल भुगतान सेवा कैसे प्रदान करेगा ? सरकार को सोचना चाहिए ।
खुदरा व्यापारियों को 59 मिनट में ऋण उपलब्ध कराने की योजना का फेडरेशन ऑफ़ आल इंडिया व्यापार मंडल स्वागत करता है परन्तु यह योजना कितना असली जामा पहन पाएगी इस पर कुछ शंका अवश्य है । क्योंकि इसी प्रकार की योजना लघु उद्योग के लिए भी है परन्तु उसका पूरा लाभ लघु उद्योगों को नहीं मिल पा रहा है ।और लघु उद्यमी पोर्टल से ऋण स्वीकृत कराने के बाद भी बैंको के चक्कर काट रहे है 

जिसप्रकार सरकार ने लाभु एवं माध्यम उद्योगों के लिए ऋण के ब्याज में 2% कटौती हेतु 350 करोड़ की व्यवस्था की है ,उसी प्रकार खुदरा व्यापारी हेतु भी ऋण के ब्याज में कटौती हेतु उचित व्यवस्था करनी चाहिए थी ।
सिंगल ब्रांड खुदरा में वर्तमान सरकार द्वारा 100% विदेशी निवेश की अनुमति प्रदान की थी और यह शर्त लगाई थी किं इन विदेशी करोबार्यो को 30% सामान भारतीय उत्पादक से क्रय करना होगा । 2019 के बजट में सरकार ने इस प्रावधान को आसान करने की बात की है । यह स्वदेशी एवं मेक इन इंडिया की भावना के पूर्णतः विपरीत है ।
माननीया वित्त मंत्री जी ने अपने बजट भाषण में निजी उद्योगों की अर्थव्यवस्था की मजबूती की बात तो कही परन्तु मंदी एवं ऑनलाइन के कारण खुदरा व्यापार की कमजोर हुए अर्थव्यवस्था पर कुछ भी संज्ञान नहीं लिया , जिसपर फेडरेशन अपना अफ़सोस जाहिर करता है । यदि सरकार अपना पांच ख़राब डॉलर की अर्थव्यवस्था का लक्ष्य पूरा करना चाहती है तो उसे खुदरा व्यापारी की अर्थव्यवस्था भी मजबूत करनी होगी , अन्यथा सरकार का यह महत्वकांशी लक्ष्य पूरा होने में संदेह है ।
व्यक्तिगत करदाता कारोबारी या HUF के अंतर्गत अब कर कटौती का प्रावधान भी आ गया जो अभी तक किसी विशिष्ट दशा में लगता था । अब यदि कोई व्यक्तिगत करदाता कारोबारी या HUF, 50 लाख से ऊपर कोई भी भुगतान करते है तो उस पर 5% श्रोत पर कर काटना होगा ।
बजट में प्रस्तावित किया गया है किं 5 करोड़ वार्षिक से कम टर्नओवर वाले कारोबारियों को त्रिमासिक जीएसटी रिटर्न फाइल करनी है। फेडरेशन का यह प्रश्न है किं जीएसटी के अंतर्गत खरीद पर यदि किसी विक्रेता व्यापारी ने सरकार को कर जामा नहीं किया तो क्रेता व्यापारी को इनपुट क्रेडिट कैसे मिलेगा ? वर्तमान में जीएसटी में सबसे बड़ी परेशानी यही है जिसका सरकार ने कोई समाधान नहीं सुझाया । व्यापारी जीएसटी के असंगतिपूर्ण अनुपालन से पीड़ित है और सरकार को इस दिशा में आवश्यक कदम उठाने चाहिए
सोना एवं बहुमूल्य धातु पर ड्यूटी 2.50 प्रतिशत बढ़ा कर 12:50 प्रतिशत करना गलत निर्णय है इससे छोटे एवं मध्यम वर्गीय सोना चांदी के कारोबारी एवं अन्य धातुओं के व्यापारियों का मनोबल गिरेगा साथ ही साथ इन धातुओं की महंगाई भी बढ़ेगी और छोटे एवं मध्यम वर्गीय व्यापारियों का व्यापार मंदी के दौर में जाएगा ,अनैतिक कारोबार को बढ़ावा मिलेगा जबकि भारत देश में सोना एक करेंसी के रूप में इस्तेमाल होता है ना की भारत में यह विलासिता की वस्तु है क्योंकि गरीब परिवार मध्यमवर्गीय परिवार अपनी सीमित बचत से सोना एवं उससे निर्मित जेवर खरीदता है और समय दर समय आवश्यकता पड़ने पर उसे भेजता है उसे गिरवी रखकर अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है भारत में इसे विलासिता की वस्तु मानना उचित नहीं है पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली के द्वारा इसे विलासिता की वस्तु मानकर 10 परसेंट तक ब्यूटी बढ़ाई गई थी जिसे अब और बढ़ा दिया गया है जो कि भारत के साढे 3 करोड़ छोटे एवं मध्यम वर्गीय सराफा और स्वर्णकार व्यापारियों के लिए उचित निर्णय नहीं है।
माननीया वित्त मंत्री जी ने अपनी सरकार के कार्यकर्मो द्वारा लात फीता शाही को समाप्त करने की बात की है । वास्तविकता में वर्तमान सरकार द्वारा लाल फीता शाही को बढ़ावा मिला है । जी एस टी अधिकारी बेलगाम व्यापारियों का उत्पीड़न कर रहे है , आयकर अधिकारी सर्च सुर्वे के नाम पर अवैध वसूली कर रहे है । बजट में व्यापारी उत्पीड़न को समाप्त करने हेतु सरकार ने कोई योजना पेश नहीं की , जिसपर फेडरेशन ऑफ़ आल इंडिया व्यापार मंडल को अफ़सोस है ।
कुल मिलकर यह बजट व्यापारियों में नयी ऊर्जा संचार करने में विफल है। और सरकार को व्यापारियों की मांग एकल बिंदु जी एस टी पर विचार कर मृतप्राय खुदरा व्यापार को पुनः जीवित करना चाहिए और अर्थव्यवस्था में खुदरा व्यापारियों की भूमिका का महत्त्व समझना चाहिए ।यह जनकारी वी. के. बंसल
राष्ट्रीय महामंत्री ने दी।

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