उत्तराखण्ड के देहरादून में 350 साल पुराना झंडा मेला आज से शुरू

Pahado Ki Goonj

देहरादून:उत्तराखण्ड के देहरादून में 350 साल पुराना झंडा मेला आज से शुरू,देहरादून में होली के पांचवे दिन गुरु राम राय के जन्म दिवस पर झंडा मेला शुरू होता है। ये मेला एक महीने तक चलता है।

इस साल श्री झंडे जी के मेले में कम से कम दस लाख लोग देश के पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश आदि राज्यों से पहुंचेंगे। आज से शुरू इस उत्सव में सबसे पहले सुबह 6 बजे दरबार साहिब के बाहर स्थित झंडे जी को उतारा जाता है और उसके बाद झंडे जी को दूध, दही और पवित्र गंगा जल से गुरु राम राय दरबार साहिब के महंत श्री देवेंद्र दास महाराज की मौजूदगी में झंडे जी को नहलाया जाता है। इसके बाद दोपहर 2 बजे के बाद झंडे जी के आरोहण की प्रक्रिया शुरू की जाती है और शाम को हजारों श्रदालुओं की मौजूदगी में झंडे जी को दोबारा स्थापित किया जाता है।

देहरादून का झंडा मेला आज से तकरीबन 350 साल पुराना है। इसके बारे में जो कथा प्रचलित है, उसके अनुसार सिक्खों के 7वें गुरु हरराय महाराज के जेष्ठ पुत्र गुरुराम राय बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी थे और जन्म के बाद से ही कई चमत्कार दिखाने शुरू कर दिए। कहा तो ये भी जाता है कि मुगल शासक औरंगजेब भी गुरु राम राय के चमत्कारिक शक्तियों के कारण उनके अनुयायियों में शामिल था। गुरु राम राय ने जब उत्तराखंड का रुख किया तो औरंगजेब ने टिहरी नरेश को जमीन देने का आदेश भिजवाया। टिहरी नरेश ने भी ख़ुशी-ख़ुशी मसूरी की तलहटी में 7 गांवों की जमीन गुरुराम राय को दान में दे दी। वर्ष 1675 में देहरादून के देहराखास गांव के पास गुरु राम राय ने डेरा डाला। कहा जाता है कि इन्हीं सात गांवों का विस्तार बाद में वर्तमान देहरादून बना। इसके बाद देहरादून में गुरु राम राय ने दरबार साहिब और अपना निशान झंडे जी को स्थापित किया।
गुरु राम राय ने जब देहरादून में दरबार साहिब की स्थापना की तो उसी समय दीन, दुखियों और गरीबों के सेवा शुरू कर दी। यहां साझा चूल्हा बनाया गया।एक ऐसी परंपरा शुरू की गयी कि जहां कोई भी आए वो भूखा ना जाए। देहरादून में तब से लेकर आज तक साझा चूल्हा गरीबों और जरूरतमंदों के लिए लंगर चला रहा है। वर्तमान में मेला शुरू होने के बाद करीब 7 जगहों पर लंगर चलाये जा रहे हैं। देहरादून का विस्तार भी उन सात गांवों से बहुत अधिक बढ़ गया है पर, 350 वर्ष पुराने झंडे जी आज भी गुरु राम राय का इतिहास याद दिलाते हैं।इसके दर्शनों के लिए देश-विदेश से देहरादून पहुंचे हजारों श्रद्धालु आज दोपहर 2 बजे के बाद झंडे जी का आरोहण शुरू होगा। इसके बाद 4 बजे लाखों श्रदालुओं की मौजूदगी में झंडे जी महाराज को प्रतिस्थापित किया जाएगा।आज से देहरादून का पूरी दुनिया में प्रसिद्ध ऐतिहासिक झंडा मेला शुरू हो रहा है। तकरीबन 350 साल पुराने झंडे मेले के इतिहास में ही देहरादून के जन्म की कहानी जुड़ी है। देहरादून में होली के पांचवे दिन गुरु राम राय के जन्म दिवस पर झंडा मेला शुरू होता है। ये मेला एक महीने तक चलता है। इस साल श्री झंडे जी के मेले में कम से कम दस लाख लोग देश के पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश आदि राज्यों से पहुंचेंगे। आज से शुरू इस उत्सव में सबसे पहले सुबह 6 बजे दरबार साहिब के बाहर स्थित झंडे जी को उतारा जाता है और उसके बाद झंडे जी को दूध, दही और पवित्र गंगा जल से गुरु राम राय दरबार साहिब के महंत श्री देवेंद्र दास महाराज की मौजूदगी में झंडे जी को नहलाया जाता है। इसके बाद दोपहर 2 बजे के बाद झंडे जी के आरोहण की प्रक्रिया शुरू की जाती है और शाम को हजारों श्रदालुओं की मौजूदगी में झंडे जी को दोबारा स्थापित किया जाता है। आगे झंडे जी और देहरादून का इतिहास भी जानिये..
देहरादून का झंडा मेला आज से तकरीबन 350 साल पुराना है। इसके बारे में जो कथा प्रचलित है, उसके अनुसार सिक्खों के 7वें गुरु हरराय महाराज के जेष्ठ पुत्र गुरुराम राय बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी थे और जन्म के बाद से ही कई चमत्कार दिखाने शुरू कर दिए। कहा तो ये भी जाता है कि मुगल शासक औरंगजेब भी गुरु राम राय के चमत्कारिक शक्तियों के कारण उनके अनुयायियों में शामिल था। गुरु राम राय ने जब उत्तराखंड का रुख किया तो औरंगजेब ने टिहरी नरेश को जमीन देने का आदेश भिजवाया। टिहरी नरेश ने भी ख़ुशी-ख़ुशी मसूरी की तलहटी में 7 गांवों की जमीन गुरुराम राय को दान में दे दी। वर्ष 1675 में देहरादून के देहराखास गांव के पास गुरु राम राय ने डेरा डाला। कहा जाता है कि इन्हीं सात गांवों का विस्तार बाद में वर्तमान देहरादून बना। इसके बाद देहरादून में गुरु राम राय ने दरबार साहिब और अपना निशान झंडे जी को स्थापित किया।
गुरु राम राय ने जब देहरादून में दरबार साहिब की स्थापना की तो उसी समय दीन, दुखियों और गरीबों के सेवा शुरू कर दी। यहां साझा चूल्हा बनाया गया.. एक ऐसी परंपरा शुरू की गयी कि जहां कोई भी आए वो भूखा ना जाए। देहरादून में तब से लेकर आज तक साझा चूल्हा गरीबों और जरूरतमंदों के लिए लंगर चला रहा है। वर्तमान में मेला शुरू होने के बाद करीब 7 जगहों पर लंगर चलाये जा रहे हैं। इस समय 5लाख से ज्यादा लोगों को भोजन रोज खिलाया जाता है।साथ ही व्यापारियों की ओर से भंडारे की व्यवस्था की गई है। सबसे बड़ी बात यह है कि इतना बड़ा मेला क्षेत्र में कोई अव्यबस्था नही होती है।यह गुरू महाराज की कृपा है साथ उनके पद चिन्हो पर श्री महंत देवेंद्र दास महराज आगे बढ़ रहे हैं।उनके द्वारा उत्तर भारत का सबसे बड़ा  अति आधुनिक चिकित्सालय का संचालन किया जा रहा है। शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए अनेकानेक अभिनव प्रयोग को कार्यक्रम में समलित करने के लिएकार्य किया जारहा है। यह मेला विश्व स्तर पर अपनी जान पहिचान बनाने के लिए जाना जाता है।

देहरादून का विस्तार भी उन सात गांवों से बहुत अधिक बढ़ गया है पर, 350 वर्ष पुराने झंडे जी आज भी गुरु राम राय का इतिहास याद दिलाते हैं।

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