मोदी सरकार में बड़े अखबार पत्रकारिता का अपना धर्म के विपरीत दिशा में काम कर लोकतंत्र को कमजोर कर रहें है

Pahado Ki Goonj

मोदी सरकार में बड़े अखबार पत्रकारिता अपना धर्म के विपरीत दिशा में काम कर लोकतंत्र को कमजोर कर रहें है। आप किसी बड़े अखबार को पूरा पढ़ कर देखें तो तस्वीर साफ होजाएगी कि बड़े अखबार हमारे लिए बहुत कुछ नहीं छाप रहे हैं।सरकार ने इन 5सालो में 556 लाख करोड़ रुपये बड़े उद्योगपति लोगों के माफ कर दिया क्यों किया किसी किसी अखबार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का साक्षात्कार इतने धन की बर्बादी का नहीं किया साथ ही टीवी चैनलों ने अपने कार्यक्रम में डिबेट कर  जनता को नहींं   दिखा कर नहीं बताया। अखबार ने दो पेेेज पर फोलियो प्ररकाशित कर अपना रूप बताया है।कि हमारे लिए सब कुछ माफ है?इन वोटरों ने तो 15 लाख रुपये मिलने के लिये वोट 2014 में किया था जो तब से आज की वोट डालने तक बदन को ढक नहीं पाए तब शर्म से माथा झुक जाता है पत्रकारिता करने वालों को कर गुजारी करने पर

नोटबन्दी का फैसला इकैले मोदी का था उससे लाईन में 110 आदमी मरवाने का काम मोदी ने किया जब इतना बड़ा खजाना जनता का इन लोटरों को लुटाने लगे तो  बैंक की लाईन में मरने वालों को 15-15 लाख रुपये दिलाने के लिए  बहस करते ,साक्षात्कार ,डिबेड कराते तो पत्रकारिता का धर्म निभाने का काम करते।आज के जागरण में अम्बानी की कम्पनी का 11लाख करोड़ रुपये का लाभः फ़ोटो सहित प्रकाशित किया गया है जब उनको इतना बड़ा लाभ होरहा हैं तो उनका ऋण के लिए जनता का रुपये को क्यों दिया गया उसे वापिस लौटने के लिये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आदेश देना चाहिए इस पर  बहस टीवी चैनलों को करने की आवश्यकता है

इतनी बड़ी रकम अपने प्रधानमंत्री जी माफ इन लुटेरों की करदी तो जो अपने 15 लाख रुपये खाते में डालने के लिए जगह जगह भाषण देने के बाद जनता की वोट को लूटा उस वायदे को पूरा करने में 6लाख करोड़ में जनता का रुपये बांटा जाता ।परन्तु लोटरों के लिये सरकार काम कर रही उद्योगों को लगाने में जमीन, ऋण, बिजली, टैक्स अनुदान के साथ साथ कई तरह की सुभिधाएँ दी गई है उन्होंने झूठे आकड़ो के आधार पर इन रुपयो से दूसरे जगह ,अन्य देश में करोबार कर लिया ।भारत को लूटने के लिए सरकार को तैयार कर दिया।

इन 5सालों में125 हजार किसानों ने आत्महत्या की है उनको 15 लाख रुपये देने के लिए किन किन टीवी चैनलों ने व बड़े अखबार के प्रकाशकों ने साक्षात्कार लिया है।बेरोजगारी को दूर करने के लिए कब मीडिया में बहस हुई।

अखबार, टीवी चैनलों के लिए जनता के मुद्दे गौण होगये हैं वह अपने मूल उद्देश्य से भटक गया है आज देश को खतरा मीडिया से होने लगा है। वह देश के शहीदों के बलिदान से प्राप्त लोकतंत्र को बेचने के लिए इस राज में काम करने वाले गुलाम बना दिये गए हैं।जितना मीडिया गिरगाय है सायद उतना भारत में कोई ओर नहीं गिरसक ता यह अखबार पढ़ने वाले लोगों का कहना है।

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