देहरादून,प्रजा के सुख में राजा का सुख निहित है, अर्थात जब प्रजा सुखी अनुभव करे, तभी राजा को संतोष करना चाहिए। प्रजा का हित ही राजा का वास्तविक हित है। वैयक्तिक स्तर पर राजा को जो अच्छा लगे, उसमें उसे अपना हित न देखना चाहिए, बल्कि प्रजा को जो ठीक लगे, यानी जिसके हितकर होने का प्रजा अनुमोदन करे, उसे ही राजा अपना हित समझे।
यह कौटिल्य द्वारा रचित अर्थशास्त्र में वर्णित राजधर्म से संबंधित श्लोक-
प्रजासुखे सुखं राज्ञः प्रजानां च हिते हितम् ।
नात्मप्रियं हितं राज्ञः प्रजानां तु प्रियं हितम् ।।
है। उत्तराखंड पीसीएस एसोसिएशन के अध्यक्ष ललित मोहन रयाल ने इस श्लोक का जिक्र उस पत्र में किया है, जिसमें उत्तराखंड शासन को पीसीएस संवर्ग के अधिकारियों की कुछ समस्याओं और मांगों की जानकारी दी गई है।
उनका कहना है कि राज्य में अन्य संवर्गों के अधिकारियों को पीसीएस संवर्ग के वरिष्ठ पदों पर तैनाती दी गई है। मनमाने तरीके से नियुक्तियां की जा रही हैं और कुछ विभागों से तो पीसीएस संवर्ग के अधिकारियों को बाहर करने की प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया जा रहा है।
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पत्र में कहा गया है कि इन दो दशक में कुछ विभागों से सुनियोजित तरीके से पीसीएस सेवा के सदस्यों को एलिमिनेट करने की प्रवृत्ति देखी गई है। आजादी के छह दशकों तक सामान्यज्ञ अधिकारी सभी विभागों में मौजूद रहे हैं। समूचे उत्तर भारत में अभी भी यह व्यवस्था विद्यमान है, केवल उत्तराखंड अपवाद होता जा रहा है, यह पीसीएस सेवा के हितों पर सीधे-सीधे कुठाराघात है। व्यवस्था में निजी नापसंदगी के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए। कार्मिक, गृह, वित्त, मुख्यमंत्री सचिवालय, राज्यपाल सचिवालय, विधान सभा सचिवालय।
इस बीच एक और गलत प्रवृत्ति और देखने में आई है, प्राधिकरण, नगर निगम, मंडी परिषद, नगर मजिस्ट्रेट, अपर जिलाधिकारी, जीएमवीएन, यूकाडा (उत्तराखंड सिविल एविएशन डेवलपमेंट) कार्यालयों में कनिष्ठ लोगों को पदस्थापित किया जा रहा है, जबकि उनसे वरिष्ठ लोग परगना अधिकारी के दायित्वों का निर्वहन कर रहे हैं। जाहिर सी बात है, इस तरह की तैनातियों के चलते फील्ड में काम करते समय कमान/हायरार्की की समस्या पैदा होती है।

 

इस तरह की ‘पिक एंड चूज‘ प्रवृत्ति व्यवस्था के लिए ही नहीं वरन् लोकतंत्र के लिए भी घातक है। ज्येष्ठता सूची का गठन करते हुए ‘हार्ड एंड फास्ट‘ पर अमल किया जाना चाहिए। निजी पसंद नापसंदगी की तैनातियां राजशाही में तो हो सकती है, लोकशाही में इस तरह की तैनातियों के लिए कोई स्थान नहीं। इसका तत्काल निराकरण किया जाए।
8900, 8700, 7600 एवं 6600 ग्रेड पे/वेतनक्रम के पद काफी समय से रिक्त हैं, अर्ह अधिकारी लम्बे समय से जो उनका ‘ड्यू’ बनता है उसकी बाट जोह रहे हैं। कोर्ट केसेस के नाम पर कोई कार्यवाही नहीं की जा रही है। जहां तक संघ को जानकारी है, किसी सक्षम न्यायालय से इस आशय का कोई स्थगन आदेश या कोई निर्णय मौजूद नहीं है।
न जाने किन अज्ञात कारणों से पात्र अधिकारियों का आईएएस में इंडक्शन नहीं किया जा रहा है, न ही उन्हें पीसीएस सेवा में देय वेतनमान के लाभ दिए जा रहे हैं। यह दोहरी मार अंततः राज्य के लिए ही अहितकारी होगी।

 

साफ सुथरी छवि एवं रिकार्ड वाले अधिकारियों के साथ अगर इस तरह का बर्ताव हो रहा हो तो उनके मन में क्या गुजरती होगी। आधे-अधूरे वेतनमानों पर काम करने से और पद अनुरूप पदस्थापना न होने से संवर्ग के अधिकारियों का मनोबल गिर रहा है। कमजोर मनोबल के साथ कोई संवर्ग कैसे अपना सर्वश्रेष्ठ दे सकता है।
आईएएस संवर्ग में पदोन्नत कोटा के 36 पदों में से 20 पद, वर्ष 2013 से रिक्त चले आ रहे हैं। इतनी बड़ी संख्या में रिक्तियां होने से जहां एक ओर पीसीएस संवर्ग के अधिकारियों के हित प्रभावित हो रहे है, वहीं दूसरी ओर आईएएस संवर्ग में पद रिक्त होने से राज्य की प्रशासनिक क्षमता सीमित हुई है।
विभिन्न आयोगों में सचिव का पद। निर्विवाद रूप से सचिव का पद राज्य सिविल सेवा संवर्ग का इन्हेरेंट पद रहा है। कतिपय आयोगों में अन्य सेवाओं के लोगों को भी सचिव बनाया जा रहा है। वहीं उनके अधीन उम्रदराज पीसीएस अधिकारियों को नियुक्ति दी जा रही है।

 

सचिवालय में पीसीएस संवर्ग के प्रवेशी अधिकारियों के लिए  उपसचिव/संयुक्त सचिव के पदों का प्रावधान किया जाए। इससे जहां एक ओर सचिवालय प्रशासन में मजबूती आएगी, वहीं दूसरी ओर नवप्रवेशी अधिकारियों को नीति निर्धारण के लिए दक्ष बनाया जा सकता है।
फील्ड स्तरीय अधिकारी लम्बे समय से खटारा गाड़ियों से काम चला रहे हैं। समकक्ष पुलिस अधिकारियों को स्कॉर्पियो जैसी मजबूत गाड़ियां अनुमन्य की गई है, वही परगना अधिकारी दूसरे विभागों से खींची गई खटारा गाड़ियों में ड्यूटी कर रहे हैं। जिस अनुपात में हमारे अधिकारियों से श्रेष्ठ प्रदर्शन की उम्मीदें रहती हैं, उसके लिए कम-से-कम समतुल्य अधिकारी के बराबर भौतिक साधन तो दिए ही जाने चाहये।  समय सबसे बड़ा धन  की  बर्बादी से जहां कार्य प्रभावित होरहे हैं वहीं लोकवित्त का नुकसान प्रदेश को उठाना पड़ रहा है जिससे अधिकारियों के साथ साथ जनता का मनोबल  गिर तेजी से गिर रहा है ।राज्य  के विकास में असुंतलन पैदा होरहा है।