नागरिकता संशोधन विधेयक के खिलाफ असम में विरोध तेज, एएएसयू ने बुलाया बंद

Pahado Ki Goonj

नई दिल्ली। नागरिकता संशोधन विधेयक के लोकसभा में पास होने के बाद असम में विरोध प्रदर्शन देखने को मिल रहा है। असम में ऑल असम स्टूडेंट यूनियन ने डिब्रूगढ़ में नागरिकता संशोधन विधेयक के खिलाफ धरना दिया। इस दौरान वहां प्रदर्शन कर रहे छात्रों ने टायर भी जलाए। इसके अलावा इस विधेयक के पास होने के खिलाफ नॉर्थ ईस्ट स्टूडेंट ऑर्गनाइजेशन (छम्ैव्) और ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन ने 12 घंटे का बंद भी बुलाया है। जिसके बाद गुवाहाटी में मंगलवार को दुकाने नहीं खोली गईं। बता दें कि नागरिकता संशोधन विधेयक सोमवार देर रात 12 बजे लोकसभा में पारित हो गया। मैराथन 12 घंटे चली बहस के बाद हुए मतदान में विधेयक के पक्ष में 311 जबकि विरोध में 80 वोट पड़े। अब यह विधेयक राज्यसभा में पेश किया जाएगा। ससे पहले विपक्ष के जोरदार विरोध के बीच गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि मुस्लिमों का इस बिल से कोई वास्ता नहीं है। यह विधेयक कहीं से भी असंवैधानिक नहीं है और अनुच्छेद-14 का उल्लंघन नहीं करता। यह केवल पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान के पीड़ित अल्पसंख्यकों को सुरक्षा देने के लिए लाया गया है। इस बिल को लेकर कांग्रेस समेत कुछ विपक्षी पार्टियां पहले से लामबंद थी और विरोध कर रही थी। विधेयक के लोकसभा में पास होने के बाद कांग्रेस के नेता शशि थरूर ने कहा कि आज हमारे संविधान के लिए एक काल दिन है क्योंकि जो हुआ वह असंवैधानिक था। स्पष्ट रूप से यह मुस्लिम समुदाय को टारगेट करता है, यह बहुत ही शर्मनाक है। वहीं विधेयक पर चर्चा के दौरान गृहमंत्री अमित शाह ने विपक्ष के आरोपों पर जवाब देते हुए कहा कि भारत में धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं हो रहा है। उन्होंने कहा कि देश में शरणार्थियों के संरक्षण के लिए पर्याप्त कानून हैं।अमित शाह ने 1950 में हुए नेहरू-लियाकत समझौते का जिक्र करते हुए कहा कि इसे पूर्ण रूप से लागू ही नहीं किया गया। उन्होंने दोहराया कि यदि धर्म के आधार पर देश का विभाजन नहीं किया गया होता तो विधेयक की जरूरत नहीं पड़ती। गृह मंत्री ने कहा कि 1947 में पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की आबादी 23ः थी, जो 2011 में 3.7ः रह गई। बांग्लादेश में 1947 में अल्पसंख्यकों की आबादी 22ः थी जो 2011 में कम होकर 7.8ः रह गई। जबकि 1951 में देश में 9.8ः मुस्लिम थे जो बढ़कर 14.23ः हो गए हैं।

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