प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को देश की जीडीपी और रोजगार बढ़ाने के लिए कृषि छेत्र को बढ़ावा देने की आवश्यकता को देखते हुए 16लाख करोड़ के कार्पस फ़ंड बनाने कीआवश्यकता है

Pahado Ki Goonj

 भारत विश्व की सबसे बड़ी आवादी का दूसरा देश है। देश में युवा  65% हैं  जो ज्यादातर बेरोजगार है ।फीर भी यहाँ

के छोटे लोग बैंकों  रुपये जमा करते हैं ।उस धन को बड़े लोग ऋण लेकर देश को लूट लेते हैं ।इन लोगो से

बैंकों की हालत ऐसी हो गईं हैं जैसे कृष्ण भगवान ने गोपियों के नहाते समय कपड़े छिपा कर दी थी।

हां बड़े उद्योगपति बैंकों से कर्जा लेकर कम्पनियों का दिवाला निकाल कर, लिए गये ऋण को दूसरे नाम के उद्योगों में लगाते हैं, विदेश में भाग जाते हैं।वहीं किसान ऋण लेकर उन रुपयों से खेत मे दिन रात मेहनत कर फसल तैयार कर उसको सरकार को देकर 3 ,4 साल तक पैसे के लिए तरसते हैं।बैंक से उन फसल के लिए ,लिये गये रूपये का 3,4 साल का व्याज भारी पड़ जाता है।  किसानों को ऋण देने में व्याजदर  कम हमें करने की आवश्यकता है।साथ ही सरकार को फसल के रुपये पर व्याज देना चाहिए।

देश मे युवाओं की सबसे बड़ी फ़ौज है जो बेरोजगारी की मार झेल रही है।उनको काम देने के लिए कृषि आधरित कार्यक्रम  ही सरल एवं सुगम है।उनको लाभः  देने के लिए कार्यक्रम बनाने की आवश्यकता है

देश मे कोई भी सरकार आये किसानों को प्राथमिकता देने के लिए 16लाख करोड़ का कार्पस फंड के लिए प्रति वर्ष 4लाख करोड़ जमा कर उसके व्याज से उनको प्रोत्साहित किया जा सकता है । उसमें किसी भी सरकार को बदलने का अधिकार नहो  इच्छा शक्ति का परिचय देकर कानून बनाया जाय।

इसके लिए देश की सभी मण्डियों, से धन इकट्ठा किया जा सकता है। देश मे युवाओं की सबसे बड़ी फ़ौज को का देने के लिए कृषि आधरित कार्यक्रम है।

कृषि आधारित उद्योगों का सामाजिक दायत्व का बजट उक्त फ़ंड के लिए लिया जाय । प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने जैसे उद्योग के कार्पस फंड से सौचालय बनाये हैं ।

उसी प्रकार,मोदी सरकार को किसानों व उनके साथ काम करने वाले लोगों के लिए कार्पस फ़ंड बनाने के लिए इच्छा शक्ति जगाने की आवश्यकता है।ताकि देश के किसानों उनके साथ काम गैरों को हर वर्ष आर्थिक सहायता प्रदान की जासके ।

भारत में इजरायल के लोगों की भांति खेती को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।देश की 70%आबादी के लिए कार्य योजना आदि काल से कृषि पशुपालन रहा है।उसी से देश सोने की चिड़िया बना। कृषिको बढ़ावा देने के लिए कार्य करने की जरूरत है । भारत की जनसंख्या को देखते हुए छोटा सा देश डेनमार्क बर्फ में प्रकृति के द्वारा  दीगई  समस्या से इच्छा शक्ति की ईमानदारी से डेरी उधोग से कमाई करता है ।भारत कृषि प्रदान देश होने के बाबजूद किसान व्यवहारिक नीति के अभाव में आत्महत्या के लिए मजबूर है ? इसके लिए नीति आयोग को सोचना चाहिए है

जिस रफ्तार से देश में बेरोजगारी बढ़ा दी गई है ।बेरोजगार आत्महत्या कर रहे हैं । उसको देखते हुए देश मे रोजगार को बढ़ावा देने की ओर सरकार को जीडीपी बढ़ाने के लिए किसानों को संसाधन देने के लिए 50% सब्सिडी देने की आवश्यकता है। उत्तराखंड देहरादून से प्रकाशित होने वाले पहाड़ों की गूंज समाचार पत्र ने किसानों को फसल के नुकसान होने पर ₹ 50000 /हेक्टेयर छति पूर्ति और ₹30000 रुपये /प्रोत्साहन देने के लिए समय समय पर किसानों की पीड़ा को कम करने का एक स्वछ आंदोलन चलाते हुए अल्प प्रयास जारी है। जिसके फलस्वरूप दिल्ली अरविंद केजरीवाल सरकार ने उसका संज्ञान लियाहै। वहां फसल के नुकसान होने पर ₹ 50000 प्रतिपूर्ति वर्ष2015-16 में देना सुरु किया है उत्तराखंड में हरीश रावत सरकार ने अपने संसाधनों से ₹1500 देना सुरु किया ।

वर्ष2019 से किसानों को नरेन्द्र मोदी सरकार ने ₹ 6000 किसान सम्मान निधि को 3 किस्तों देनी सुरु किया है। उत्तराखंड में

त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार ने किसानों को पहाड़ों की गूंज में समाचार पत्र के 22जुलाई 2017 के संपादकीय का संज्ञान लेते हुए चकबंदी का एलान कियाहै। उसके लिए केंद्र सरकार को  15साल के लिए बजट देने की आवश्यकता है। तभी उत्तराखंड का पलायन रूक सकता है।वहीं पत्र ने सहकारिता के माध्यम से ₹ 5%ब्याज को 2% करने के लिए आवश्यकता बताया है ।उस समाचार के संज्ञान से मुख्यमंत्री ने निर्णय लेकर किसानों को 2% व्याज दर ऋण देने का कार्य कर राहत देने का काम किया है।उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्यों में किसानों के लिए 3लाख रुपये एकड़ ऋण देने के लिए नीति से कार्य करने आवश्यकता है।

समाचार पत्र के द्वारा चलाये आंदोलन की मुहिम का अल्प समर्थन किया है।केंद्र सरकार  ने अपने स्तर से फसल की छति पूर्ति न देकर बीमा कंपनीयों को बढ़ावा देकर किसानों का हित समाप्त करने का काम किया है।बीमा कम्पनी कमा रही है किसान ठगा जा रहा है। किसानों को बढ़ावा देने से जहां बेरोजगारी दूर होगी वहीं दुनिया की भूख मिटाने वाले किसानों की मेहनत से देश की जीडीपी बढ़ेगी ,पशुपालन होगा। हमारे देश के नीति आयोग को कानून का सहारा ,सहयोग लेने के बजाय उसमें व्यवहारिक्ता को बढ़ावा देने के लिए काम आवश्यकता होती है।उसको समझने, करने के लिए इच्छा शक्ति जगाने की आवश्यकता अधिकारियों को 

करहुए देश को बढ़ना है ।उन्होंने ज्ञान प्राप्त कर नोकरियों में आने के लिए प्रयास किया है वह देश के विकास में सफलता की ऊंचाई तक पहुचाने के लिए काम आएगी।एक सीधी सी बात अनपढ़ किसान की समझ में आने लगती है कि कर्म करने के लिए इच्छा शक्ति की आवश्यकता पड़ती है तभी वह जनवरी रात्रि की ठंड मई जून की गर्मी को सहन करते हुए काम पर लगा रहता है। सरकार के अधीन नोकरियों में ज्ञान पाकर आते हैं ।उनका ज्ञान का लाभ लोकतंत्र की सरकार की जनता को तभी मिलेगा जब वह कर्म करेगा। जिस रफ़्तार से सरकार के द्वारा क्रांतिकारी परिवर्तन करने का काम किया जा रहा है।उससे कुछ लोग अरब पति होगये है ।देश में रोजगार देने ,पलायन रोकने ,अपराध रोकने के प्रयास को देखते हुए देश के वास्तविक गावँ के विकास को बढ़वा देने के लिए नीति आयोग को गावँ के कृषि आधारित योजनाओं को किसानों की बात सुनकर बनाने की आवश्यकता है।उनके अनुभव का लाभ में दुनिया का सबसे बड़ा बैज्ञानिक किसान है जो देश की भूख मिटाने के लिए भयंकरसूखे,ओला वृष्टि,अन्य कारणों से फसल का नुकसान झेलते हुए खेती से जुड़ा रहता है।जबकि प्रयोगशाला में काम करने वाले लोगों को जनता के धन से वेतन दिया जाता है पर वह बजट न होने पर प्रोजेक्ट को बन्द कर देता है। वह कुछ समय के लिए अपने वेतन में महीने के रविवार की वेतन भी ख़र्च करें तो देश को शोधकर्ताओं की मेहनत का ज्यादा लाभः बजट मिलने से पहले मिलेगा। बजट के अभाव में अरबों रुपए देश में शोध के अधूरे बजट में नष्ट हो जाते हैं।वहीं दूसरी ओर जबकि किसान को पता है कि फसल किसी कारण बच भी गई तो सही दाम पर बिकती नहीं है फिर 6 माह बीज रखने,6 फसल तैयार करने में फिर सरकार को उधार देकर 3,4 साल तक रुपये नहीं मिलने से परिवार को कई परेशानियों से झूझना पड़ता है ।उसकी उन्नति रूक जाती है।दूसरी तरफ सरकारी कर्मचारियों को महीने का वेतन तो सरकार से मिलता ही है ।सालभर में बोनस अलग से है।वह सरकार कर्जे लेकर देती है ।किसानों को तीन साल तक कोई पैसा फसल का नहीं मिलता है। तो इस प्रकार की बिसमता सरकार पैदा कर  ,आदमी से आदमी भेद भाव करने लग रहा है।एक प्रकार की सामाजिक खाई सरकार की ओर पैदा की जाती है ।फिर भी किसान वह अपने कर्म करता है। देश के नेताओं, अधिकारियों को रोजगार देने के लिए इनोवेशन करने वाले किसानों को प्रोत्साहन देने के साथ साथ उनके अनुकरण करते हुए योजनाओं को व्यवहारिक बनाने की आवश्यकता है।साथ ही उनको जो देश में काम करनेवाले ngo हैं ।उनको  भी राजस्थान या अन्य सफल किसानों के पास जाकर कार्य करने की देखने समझने की आवश्यकता है ।

इसलिए दिल्ली में बैठे नीति आयोग को देश की जीडीपी बढाने की मूल जड़ जमीन से किसानों सीधे खाते में लाभ देने में जन हित है। उसके लिए अन्य देश की नजीर लेकर कार्य करने की आवश्यकता है। फिर देश का किसान अपने फसल के रुपये के लिए 4 साल तक ईनतजार करता रहता है। उनकी परेशानी को दूर करने देश में रोजगार ,पलायन रोकने के लिए 3 साल में कार्पस फ़ंड बना कर किसानों को प्राथमिकता दी जासकती है।देश की जवान युवाओं की फ़ौज बेरोजगारी की मार झेल रही है उसको श्रम से जोड़ने के काम के लिए नीति आयोग को  3 वर्ष में किसानों की मेहनत से देश की जीडीपी 3 से16 पर पहुंचा ने में सफलता मिल जाएगी।नीति सरकार को बना कर देश को वास्तविक रोजगार को बढ़ाने में स्थाई सफलता प्राप्त होगी।

देश की जीडीपीऔर रोजगार बढ़ाने के लिए कृषि छेत्र को बढ़ावा देने की आवश्यकता को देखते हुए नीतिआयोग को दिल्ली से 300 km राजस्थान के जयपुर जिले में गुड़ा कुमावतान गावँ में किसान खेमाराम चौधरी जैसों की तकनीकी और अपने ज्ञान का तालमेल को बढ़ाने देने के लिए सीखने के साथ साथ 16लाख करोड़ के कार्पस फ़ंड बनाने कीआवश्यकता है।

राजस्थान के गुड़ा कुमावतान के किसान खेमाराम चौधरी (45 वर्ष) का जज्बे को सलाम

खेती किसानी के मामले में इजरायल को दुनिया का सबसे हाईटेक देश माना जाता है। वहां रेगिस्तान में ओस से सिंचाई होती है, दीवारों पर गेहूं, धान उगाए जाते हैं, भारत के लाखों लोगों के लिए ये एक सपना ही है। इजरायल की तर्ज पर राजस्थान के एक किसान ने खेती शुरू की और आज उनका सालाना टर्नओवर सुन कर आप उनकी तारीफ किए बिना नहीं रह पाएंगे।

दिल्ली से करीब 300 किलोमीटर दूर राजस्थान के जयपुर जिले में एक गांव है गुड़ा कुमावतान। ये किसान खेमाराम चौधरी (45 वर्ष) का गांव है। खेमाराम ने तकनीकी और अपने ज्ञान का ऐसा तालमेल भिड़ाया कि वो लाखों किसानों के लिए उदाहरण बन गए हैं। आज उनका मुनाफा लाखों रुपए में है। खेमाराम चौधरी ने इजरायल के तर्ज पर चार साल पहले संरक्षित खेती (पॉली हाउस) करने की शुरुआत की थी।

आज इनके देखादेखी आसपास लगभग 200 पॉली हाउस बन गये हैं, लोग अब इस क्षेत्र को मिनी इजरायल के नाम से जानते हैं। खेमाराम अपनी खेती से सलाना एक करोड़ का टर्नओवर ले रहे हैं।

सरकार की तरफ से इजरायल जाने का मिला मौका

राजस्थान के जयपुर जिला मुख्यालय से लगभग 35 किलोमीटर दूर गुड़ा कुमावतान गांव है। इस गाँव के किसान खेमाराम चौधरी (45 वर्ष) को सरकार की तरफ से इजरायल जाने का मौका मिला। इजरायल से वापसी के बाद इनके पास कोई जमा पूंजी नहीं थी लेकिन वहां की कृषि की तकनीक को देखकर इन्होंने ठान लिया कि उन तकनीकाें को अपने खेत में भी लागू करेंगे।

सरकारी सब्सिडी से लगाया पहला पॉली हाउस

चार हजार वर्गमीटर में इन्होने पहला पॉली हाउस सरकार की सब्सिडी से लगाया। खेमाराम चौधरी गाँव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, “एक पॉली हाउस लगाने में 33 लाख का खर्चा आया, जिसमे नौ लाख मुझे देना पड़ा जो मैंने बैंक से लोन लिया था, बाकी सब्सिडी मिल गयी थी। पहली बार खीरा बोए करीब डेढ़ लाख रूपए इसमे खर्च हुए।

चार महीने में ही 12 लाख रुपए का खीरा बेचा, ये खेती को लेकर मेरा पहला अनुभव था।” वो आगे बताते हैं, “इतनी जल्दी मै बैंक का कर्ज चुका पाऊंगा ऐसा मैंने सोचा नहीं था पर जैसे ही चार महीने में ही अच्छा मुनाफा मिला, मैंने तुरंत बैंक का कर्जा अदा कर दिया। चार हजार वर्ग मीटर से शुरुआत की थी आज तीस हजार वर्ग मीटर में पॉली हाउस लगाया है।”

मिनी इजरायल के नाम से मशहूर है क्षेत्र

खेमाराम चौधरी राजस्थान के पहले किसान थे जिन्होंने इजरायल के इस माडल की शुरुआत की थी। आज इनके पास खुद के सात पॉली हाउस हैं, दो तालाब हैं, चार हजार वर्ग मीटर में फैन पैड है, 40 किलोवाट का सोलर पैनल है। इनके देखादेखी आज आसपास के पांच किलोमीटर के दायरे में लगभग 200 पॉली हाउस बन गये हैं।

इस जिले के किसान संरक्षित खेती करके अब अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। पॉली हाउस लगे इस पूरे क्षेत्र को लोग अब मिनी इजरायल के नाम से जानते हैं। खेमाराम का कहना है, “अगर किसान को कृषि के नये तौर तरीके पता हों और किसान मेहनत कर ले जाए तो उसकी आय 2019 में दोगुनी नहीं बल्कि दस गुनी बढ़ जाएगी।”

मुनाफे का सौदा है खेती

अपनी बढ़ी आय का अनुभव साझा करते हुए बताते हैं, “आज से पांच साल पहले हमारे पास एक रुपए भी जमा पूंजी नहीं थी, इस खेती से परिवार का साल भर खर्चा निकालना ही मुश्किल पड़ता था। हर समय खेती घाटे का सौदा लगती थी, लेकिन जबसे मैं इजरायल से वापस आया और अपनी खेती में नये तौर-तरीके अपनाए, तबसे मुझे लगता है खेती मुनाफे का सौदा है, आज तीन हेक्टयर जमीन से ही सलाना एक करोड़ का टर्नओवर निकल आता है।”

खेमाराम ने अपनी खेती में 2006-07 से ड्रिप इरीगेशन 18 बीघा खेती में लगा लिया था। इससे फसल को जरूरत के हिसाब से पानी मिलता है और लागत कम आती है। ड्रिप इरीगेशन से खेती करने की वजह से जयपुर जिले से इन्हें ही सरकारी खर्चे पर इजरायल जाने का मौका मिला था जहाँ से ये खेती की नई तकनीक सीख आयें हैं।

इजरायल मॉडल पर खेती करने से दस गुना मुनाफा

जयपुर जिले के बसेड़ी और गुढ़ा कुमावतान गाँव के किसानों ने इजरायल में इस्तेमाल होने वाली पॉली हाउस आधारित खेती को यहां साकार किया है। नौवीं पास खेमाराम की स्तिथि आज से पांच साल पहले बाकी आम किसानों की ही तरह थी। आज से 15 साल पहले उनके पिता कर्ज से डूबे थे। ज्यादा पढ़ाई न कर पाने की वजह से परिवार के गुजर-बसर के लिए इनका खेती करना ही आमदनी का मुख्य जरिया था। ये खेती में ही बदलाव चाहते थे, शुरुआत इन्होने ड्रिप इरीगेशन से की थी। इजरायल जाने के बाद ये वहां का माडल अपनाना चाहते थे।

कृषि विभाग के सहयोग और बैंक के लोंन लेने के बाद इन्होने शुरुआत की। चार महीने में 12 लाख के खीर बेचे, इससे इनका आत्मविश्वास बढ़ा। देखते ही देखते खेमाराम ने सात पॉली हाउस लगाकर सलाना का टर्नओवर एक करोड़ का लेने लगे हैं। खेमाराम ने बताया, “मैंने सात अपने पॉली हाउस लगाये और अपने भाइयों को भी पॉली हाउस लगवाए, पहले हमने सरकार की सब्सिडी से पॉली हाउस लगवाए लेकिन अब सीधे लगवा लेते हैं, वही एवरेज आता है, पहले लोग पॉली हाउस लगाने से कतराते थे अभी दो हजार फाइलें सब्सिडी के लिए पड़ी हैं।”

इनके खेत में राजस्थान का पहला फैन पैड

फैन पैड (वातानुकूलित) का मतलब पूरे साल जब चाहें जो फसल ले सकते हैं। इसकी लागत बहुत ज्यादा है इसलिए इसकी लगाने की हिम्मत एक आम किसान की नहीं हैं। 80 लाख की लागत में 10 हजार वर्गमीटर में फैन पैड लगाने वाले खेमाराम ने बताया, “पूरे साल इसकी आक्सीजन में जिस तापमान पर जो फसल लेना चाहें ले सकते हैं, मै खरबूजा और खीरा ही लेता हूँ, इसमे लागत ज्यादा आती है लेकिन मुनाफा भी चार गुना होता है।

डेढ़ महीने बाद इस खेत से खीरा निकलने लगेगा, जब खरबूजा कहीं नहीं उगता उस समय फैन पैड में इसकी अच्छी उपज और अच्छा भाव ले लेते हैं।” वो आगे बताते हैं, “खीरा और खरबूजा का बहुत अच्छा मुनाफा मिलता है, इसमें एक तरफ 23 पंखे लगें हैं दूसरी तरफ फब्बारे से पानी चलता रहता है ,गर्मी में जब तापमान ज्यादा रहता है तो सोलर से ये पंखा चलते हैं,फसल की जरूरत के हिसाब से वातावरण मिलता है, जिससे पैदावार अच्छी होती है।”

ड्रिप इरीगेशन और मल्च पद्धति है उपयोगी

ड्रिप से सिंचाई में बहुत पैसा बच जाता है और मल्च पद्धति से फसल मौसम की मार, खरपतवार से बच जाती है जिससे अच्छी पैदावार होती है। तरबूज, ककड़ी, टिंडे और फूलों की खेती में अच्छा मुनाफा है। सरकार इसमे अच्छी सब्सिडी देती है, एक बार लागत लगाने के बाद इससे अच्छी उपज ली जा सकती है।

तालाब के पानी से करते हैं छह महीने सिंचाई

माराम ने अपनी आधी हेक्टेयर जमीन में दो तालाब बनाए हैं, जिसमें बरसात का पानी एकत्रित हो जाता है। इस पानी से छह महीने तक सिंचाई की जा सकती है। ड्रिप इरीगेशन और तालाब के पानी से ही पूरी सिंचाई होती है। ये सिर्फ खेमाराम ही नहीं बल्कि यहाँ के ज्यादातर किसान पानी ऐसे ही संरक्षित करते हैं। पॉली हाउस की छत पर लगे माइक्रो स्प्रिंकलर भीतर तापमान कम रखते हैं। दस फीट पर लगे फव्वारे फसल में नमी बनाए रखते हैं।

सौर्य ऊर्जा से बिजली कटौती को दे रहे मात

हर समय बिजली नहीं रहती है, इसलिए खेमाराम ने अपने खेत में सरकारी सब्सिडी की मदद से 15 वाट का सोलर पैनल लगवाया और खुद से 25 वाट का लगवाया। इनके पास 40 वाट का सोलर पैनल लगा है। ये अपना अनुभव बताते हैं, “अगर एक किसान को अपनी आमदनी बढ़ानी है तो थोड़ा जागरूक होना पड़ेगा।

खेती से जुड़ी सरकारी योजनाओं की जानकारी रखनी पड़ेगी, थोड़ा रिस्क लेना पड़ेगा, तभी किसान अपनी कई गुना आमदनी बढ़ा सकता है।” वो आगे बताते हैं, “सोलर पैनल लगाने से फसल को समय से पानी मिल पाता है, फैन पैड भी इसी की मदद से चलता है, इसे लगाने में पैसा तो एक बार खर्च हुआ ही है लेकिन पैदावार भी कई गुना बढ़ी है जिससे अच्छा मुनाफा मिल रहा है, सोलर पैनल से हम बिजली कटौती को मात दे रहे हैं।”

रोजाना इनके मिनी इजरायल को देखने आते हैं किसान

राजस्थान के इस मिनी इजरायल की चर्चा पूरे राज्य के साथ कई अन्य प्रदेशों और विदेश के भी कई हिस्सों में है। खेती के इस बेहतरीन माडल को देखने यहाँ किसान हर दिन आते रहते हैं। खेमाराम ने कहा, “आज इस बात की मुझे बेहद खुशी है कि हमारे देखादेखी ही सही पर किसानों ने खेती के ढंग में बदलाव लाना शुरू किया है। इजरायल माडल की शुरुआत राजस्थान में हमने की थी आज ये संख्या सैकड़ों में पहुंच गयी है, किसान लगातार इसी ढंग से खेती करने की कोशिश में लगे हैं।”

(साभार-गांव कनेक्शन)

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