कविता द्वारा पर्यायवाची शब्द एवं शब्द समूह के लिए एक शब्द

Pahado Ki Goonj

*कविता~~ द्वारा पर्यायवाची शब्द एवं शब्द समूह के लिए एक शब्द:—-*
—————————————-साभार

सोम सुधाकर शशि राकेश
राजा भूपति भूप नरेश
पानी अम्बु वारि या नीर
वात हवा और अनिल समीर
दिवा दिवस दिन या वासर
पर्वत अचल शैल महिधर
विश्व जगत जग भव संसार
घर गृह आलय या आगार

अग्नि पावक आग दहन
चक्षु नेत्र नयन लोचन
विषधर सर्प या नाग भुजंग
घोड़ा घोटक अश्व तुरंग
हिरन कुरग सुरभी सारंग
गज हाथी करि नाग मतंग
वस्त्र वसन अम्बर पट चीर
तोता सुआ सुग्गा कीर

दुग्ध दूध पय अमृत क्षीर
गात कलेवर देह शरीर
सिंह केशरी शेर मृगेन्द्र
सुरपति मघवा इन्द्र महेन्द्र
अमिय सुधा अमृत मधु सोम
नभ अम्बर आकाश व्योम
बन्दर वानर मर्कट कीश
भगवन ईश्वर प्रभु जगदीश

दानव राक्षस दैत्य तमीचर
कमल कंज पंकज इन्दीवर
असि तलवार खडग करवाल
आम्र आम सहकार रसाल
पुत्र तनय सुत बेटा पूत
कोयल कोकिल पिक परभूत
बेटी पुत्री सुता आत्मजा
यमुना कालिन्दी व भानुजा

रक्त लहू शोणित अरु खून
पुष्प सुमन गुल फूल प्रसून
गिरि पर्वत या पहाड़ धराधर
वारिद बादल नीरद जलधर
बिजली चपला तड़ित दामिनी
रात निशा शर्वरी यामिनी
भौंरा मधुकर षटपद भृंग
खग पक्षी द्विज विहग विहंग

मित्र सखा सहचर या मीत
घी घृत अमृत या नवनीत
रक्तनयन हारीत कबूतर
चोर खनक मोषक रजनीचर
अम्बुधि नीरधि या रत्नाकर
सूरज भानु सूर्य दिवाकर
सर तालाब सरोवर पुष्कर
आशुतोष शिव शम्भू शंकर
*वाक्यांश के लिए ‘एक शब्द’ कोश:—-*

प्रभु में हो विश्वास आस्तिक
न माने प्रभु वही नास्तिक

कभी न पहले अभूतपूर्व
शुभ कार्य का समय मुहूर्त

आसमान में उड़ते नभचर
पानी मे रहते हैं जलचर

धरती पर रहते हैं थलचर
जल-थल दोनों रहें उभयचर

स्थिर रहे वही स्थावर
रात में घूमे वही निशाचर

कम बोले वो है मितभाषी
मीठा बोले वो मृदुभाषी

साहस जिसमें वही साहसी
रण में मरता पाये वीरगति

बेहद अच्छा होता श्रेष्ठ
जितना चाहें वही यथेष्ट

माने जो उपकार कृतज्ञ
न माने उपकार कृतघ्न

कभी न बूढ़ा होय अजर
कभी मरे न वही अमर

जिसमें रस हो वही सरस
रस न हो तो है नीरस

धीरज न हो वही अधीर
सीमा न हो वही असीम

धन न हो तो है निर्धन
सब गुण सर्वगुणसम्पन्न

साथ पढ़े वो है सहपाठी
विद्या पाता है विद्यार्थी

चिन्ता में डूबा है चिन्तित
निश्चय न हो वही अनिश्चित

कठिनाई से मिलता दुर्लभ
आसानी से मिले सुलभ

आँख के आगे है प्रत्यक्ष
दिखे नहीं जो वो अदृश्य

हिंसा करने वाला हिंसक
रक्षा में रत है अंगरक्षक

सच प्यारा वो सत्यप्रिय
सबका प्रिय वो सर्वप्रिय

सहन न हो वो असहनीय
कहा न जाये अकथनीय

आने वाला है आगामी
दिल की जाने अंतर्यामी

जिसका पता न हो अज्ञात
मात-पिता न वही अनाथ

बहुत कीमती वो बहुमूल्य
परे मूल्य से वही अमूल्य

नहीं हो संचय अपरिग्रह
सच का आग्रह सत्याग्रह

बेहद बारिश है अतिवृष्टि
कम बारिश है अल्पवृष्टि

नहीं हो बारिश अनावृष्टि
ज्ञानी स्त्री होती विदुषी

खुद की हत्या आत्महत्या
न माने आदेश अवज्ञा

भेद न पायें वही अभेद्य
कानून के विरुद्ध अवैध

दिल से हो जो वही हार्दिक
सब लोगों के लिए सार्वजनिक

जुड़ा देह से वो है दैहिक
प्रतिदिन होता वो है दैनिक

पंद्रह दिन में वही पाक्षिक
वर्ष में एक बार वार्षिक

एक बार माह में मासिक
हफ्ते में एक साप्ताहिक

जहाँ मिलें भू-गगन क्षितिज
निज नूतन रचना मौलिक

जिसमें श्रद्धा वह श्रद्धालु
दया हो जिसमें वही दयालु

अपना हित ही सोचे स्वार्थी
शरण चाहता वो शरणार्थी

नहीं सामने वही परोक्ष
जल्दी खुश वो आशुतोष

ऊँची इच्छा महत्त्वाकाँक्षा
शुभ कामना शुभाकाँक्षा

जिसको न हो डर वो निर्भय
मौत को जीते वो मृत्युंजय

सम दृष्टि रखता समदर्शी
दूर की सोचे दूरदर्शी

जीवन-भर जीवनपर्यन्त
फूलों का रस है मकरन्द

अच्छी किस्मत वो खुशकिस्मत
बुरे भाग्य वाला बदकिस्मत

मांस खाये वो मांसाहारी
सब कुछ खा ले सर्वाहारी

सिर्फ खाये फल फलाहारी
रहे दूध पर दुग्धाहारी

कम खाये वो अल्पाहारी
उसे ही कहते मिताहारी

सब्ज़ी फल ले शाकाहारी
चले शीघ्रता से द्रुतगामी

जल से घिरा स्थल है द्वीप
तीन ओर जल वो प्रायद्वीप

मार्ग हेतु भोजन पाथेय
जो पदार्थ पी सकते पेय

पशु-समान बर्ताव पाशविक
श्रम बदले धन पारिश्रमिक

लज्जा न हो वो निर्लज्ज
पर्दे के पीछे नेपथ्य

नहीं विकार हो निर्विकार
नहीं विवाद वो निर्विवाद

नहीं कोई बाधा निर्बाध
न हो निज हित वो निःस्वार्थ

जिसका पति जीवित वो सधवा
जिसका पति मर जाये विधवा

आग समंदर की बड़वानल
वन की अग्नि है दावानल

जिसकी कोई न इच्छा निस्पृह
अनुचित आग्रह बने दुराग्रह

कुछ न उगले भूमि बंजर
कृषि हो अच्छी भूमि उर्वर

चार पैर वाला चौपाया
गायों का निवास गौशाला

अच्छे कुल का व्यक्ति कुलीन
काम में डूबा वो तल्लीन

जहाँ ढलें सिक्के टकसाल
हड्डियों का ढाँचा कंकाल

गीत गाये जो वो है गायक
नायक का दुश्मन खलनायक

कई रूप धरे बहुरूपिया
दिन का कार्यक्रम है दिनचर्या

दो में निष्ठा उभयनिष्ठ
जिस पर चिह्न लगा चिह्नित

स्थान बदलने वाला जंगम
नदी जहाँ से निकले उद्गम

जैसा कोई न वो अद्वितीय
इन्द्रियाँ वश में रखे जितेंद्रिय

पति-पत्नी का जोड़ा दम्पति
कविता रचता होता है कवि

जिससे प्रेम वही प्रेमास्पद
मीठा बोले वही प्रियंवद

नीति के अनुकूल वो नैतिक
वेदों से संबंधित वैदिक

अच्छा पढ़ा-लिखा सुशिक्षित
नीचे रेखा वो रेखांकित

रखी अमानत वस्तु धरोहर
मन को हर ले वही मनोहर

मन की इच्छा मनोकामना
माँग किसी से वही याचना

चार भुजाएं वही चतुर्भुज
बिना गुणों का वो है निर्गुण

छोटा भाई होता अनुज
जिसकी पत्नी मरे विधुर

दिन के सपने दिवास्वप्न
दुश्मन नष्ट करे शत्रुघ्न

तीन नयन वाला त्रिनेत्र
बड़ा उम्र में वो है ज्येष्ठ

पका हुआ जो वो परिपक्व
छूने योग्य न हो अस्पृश्य

करे इलाज जो वही चिकित्सक
नहीं पढ़ा हो वो है अनपढ़

जो पढ़-लिख ले वही साक्षर
नहीं हो अक्षर-ज्ञान निरक्षर

कम जाने वो है अल्पज्ञ
नही ज्ञान कुछ वो है अज्ञ

ज्ञान विशेष रखे विशेषज्ञ
ताक़त-भर है यथाशक्य

मर्म समझता वो मर्मज्ञ
सब कुछ जाने वो सर्वज्ञ

बहुविध ज्ञान वही बहुज्ञ
अच्छा बेटा वही सुपुत्र

भक्त पिता का पितृभक्त
व्यर्थ करे व्यय फिजूलखर्च

कोई शुल्क न वो निःशुल्क
जल्द नष्ट हो क्षणभंगुर

सलाह दे वो सलाहकार
परहित कार्य परोपकार

दोपहर से पहले पूर्वाह्न
दोपहर के बाद अपराह्न

फेंकें जो हथियार अस्त्र
हाथ रहे हथियार शस्त्र

पंद्रह दिन का समय पक्ष
निपुण कार्य में वही दक्ष

मना मरीज को खाद्य अपथ्य
किसी भी गुट में नहीं तटस्थ

कमी अंग में वो विकलांग
बोले अधिक वही वाचाल

गलती पर दुःख पश्चात्ताप
गहराई न पता अथाह

ज्ञान की इच्छा वह जिज्ञासु
सहन करे जो वही सहिष्णु

चले मार्ग में वही पथिक
गिन न पायें वो अगणित

नहीं जानता वो अनभिज्ञ
गुरु से सीखे वो है शिष्य

बदले सदा परिवर्तनशील
बीता समय कहलाये अतीत

हाथ में न हथियार निहत्था
महान आत्मा वही महात्मा

साध सकें न वही असाध्य
सिद्ध कठिनता से दुस्साध्य

गीत रचे वो गीतकार
गुजर-बसर करना निर्वाह

रचना करता वही रचयिता
केवल पति में राग पतिव्रता

सबसे आगे रहे अग्रणी
कमर का गहना वही करधनी

टाल सकें न वो अनिवार्य
छोड़ सकें न अपरिहार्य

खबरें भेजे संवाददाता
जिसे ज्ञान हो वो है ज्ञाता

बड़ा भाई होता है अग्रज
संस्कार जिसमें वो संस्कृत

रोजी-रोटी-कार्य आजीविका
छोटी उँगली है कनिष्ठिका

छोटी उँगली निकट अनामिका
बीच वाली उँगली मध्यमा

दर्पण-जल-छाया प्रतिबिम्ब
कमल-सा मुख है मुखारविंद

बहुत समय रहे चिरस्थाई
जिस पर जिम्मा उत्तरदायी

बहुत काल जिये चिरंजीवी
काम हो लिखना वो मसिजीवी

अपने पथ को छोड़े विचलित
निज स्थान से हटे विस्थापित

छपा हुआ जो वो है मुद्रित
जैसा उचित वही यथोचित

कथा स्वयं की आत्मकथा
रीति पुरानी वही प्रथा

कहा जो ऊपर उपर्युक्त
लगा आरोप वही अभियुक्त

हो अभ्यास वही अभ्यस्त
देश में निष्ठा देशभक्त

सौ का संग्रह बने शतक
दस वर्षों को कहें दशक

राजा से संबंधित शाही
दांव लगाकर खेलें बाजी

नहीं ठौर वो खानाबदोश
नहीं दोष तो है निर्दोष

शिक्षा देने वाला शिक्षक
शासन करने वाला शासक

कीड़े मारे कीटनाशक
मार सके जो वो है मारक

करे भलाई परोपकारी
आज्ञा माने आज्ञाकारी

भरे न जल्दी घाव नासूर
बहुत दूर हो वही सूदूर

विश्वास-योग्य विश्वासपात्र
अच्छा ग्रहीता वही सुपात्र

कठिन रास्ता होता दुर्गम
ममता न हो वो है निर्मम

जिसके पार दिखे पारदर्शी
साथ काम करता सहकर्मी

जो रथ हाँके वही सारथी
खुद पर काबू वही संयमी

चक्र हाथ में वो चक्रपाणि
नयन हिरन से वो मृगनयनी

टकराकर ध्वनि लौटे प्रतिध्वनि
पेट की अग्नि है जठराग्नि

सच बोले वो सत्यवादी
सब जगह वो सर्वव्यापी

जो हित चाहे वही हितैषी
हित-अनहित पहचाने विवेकी

बढ़-चढ़ बात अतिशयोक्ति
शुद्ध-आचरण-रीति संस्कृति

खाल सर्प की बने केंचुली
खुद पर निर्भर स्वावलंबी

ख़र्च करे कम वो मितव्ययी
दया बहुत वो दयानिधि

शरण में आया वो शरणागत
हाथी हाँके वही महावत

चुप रह देखे मूकदर्शक
पथ दिखलाता मार्गदर्शक

काम में तत्पर वो है कर्मठ
गोद लिया बेटा है दत्तक

छूने से फैले संक्रामक
घूमे यात्री वही पर्यटक

जिसका कोई न अर्थ निरर्थक
जिसमें तीर रखें वो तरकश

दुःख, भय से पीड़ित कातर
घूम-घूमकर जिये यायावर

उत्तर न दे सके निरुत्तर
होगा नष्ट वही है नश्वर

हानि न जिससे वही निरापद
जिसे देखकर डरें भयानक

अनादि अनंत वही है शाश्वत
जिस पर झगड़ा विवादास्पद

सिर्फ रेत हो वही मरुस्थल
जिसकी उपमा न हो अनुपम

रहा सदा से वही सनातन
हँसी दिलाता नाटक प्रहसन

जन्म हो फिर से पुनर्जन्म
अंत नहीं हो वही अनन्त….*कविता~~ द्वारा पर्यायवाची शब्द एवं शब्द समूह के लिए एक शब्द:—-*
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सोम सुधाकर शशि राकेश
राजा भूपति भूप नरेश
पानी अम्बु वारि या नीर
वात हवा और अनिल समीर
दिवा दिवस दिन या वासर
पर्वत अचल शैल महिधर
विश्व जगत जग भव संसार
घर गृह आलय या आगार

अग्नि पावक आग दहन
चक्षु नेत्र नयन लोचन
विषधर सर्प या नाग भुजंग
घोड़ा घोटक अश्व तुरंग
हिरन कुरग सुरभी सारंग
गज हाथी करि नाग मतंग
वस्त्र वसन अम्बर पट चीर
तोता सुआ सुग्गा कीर

दुग्ध दूध पय अमृत क्षीर
गात कलेवर देह शरीर
सिंह केशरी शेर मृगेन्द्र
सुरपति मघवा इन्द्र महेन्द्र
अमिय सुधा अमृत मधु सोम
नभ अम्बर आकाश व्योम
बन्दर वानर मर्कट कीश
भगवन ईश्वर प्रभु जगदीश

दानव राक्षस दैत्य तमीचर
कमल कंज पंकज इन्दीवर
असि तलवार खडग करवाल
आम्र आम सहकार रसाल
पुत्र तनय सुत बेटा पूत
कोयल कोकिल पिक परभूत
बेटी पुत्री सुता आत्मजा
यमुना कालिन्दी व भानुजा

रक्त लहू शोणित अरु खून
पुष्प सुमन गुल फूल प्रसून
गिरि पर्वत या पहाड़ धराधर
वारिद बादल नीरद जलधर
बिजली चपला तड़ित दामिनी
रात निशा शर्वरी यामिनी
भौंरा मधुकर षटपद भृंग
खग पक्षी द्विज विहग विहंग

मित्र सखा सहचर या मीत
घी घृत अमृत या नवनीत
रक्तनयन हारीत कबूतर
चोर खनक मोषक रजनीचर
अम्बुधि नीरधि या रत्नाकर
सूरज भानु सूर्य दिवाकर
सर तालाब सरोवर पुष्कर
आशुतोष शिव शम्भू शंकर
*वाक्यांश के लिए ‘एक शब्द’ कोश:—-*

प्रभु में हो विश्वास आस्तिक
न माने प्रभु वही नास्तिक

कभी न पहले अभूतपूर्व
शुभ कार्य का समय मुहूर्त

आसमान में उड़ते नभचर
पानी मे रहते हैं जलचर

धरती पर रहते हैं थलचर
जल-थल दोनों रहें उभयचर

स्थिर रहे वही स्थावर
रात में घूमे वही निशाचर

कम बोले वो है मितभाषी
मीठा बोले वो मृदुभाषी

साहस जिसमें वही साहसी
रण में मरता पाये वीरगति

बेहद अच्छा होता श्रेष्ठ
जितना चाहें वही यथेष्ट

माने जो उपकार कृतज्ञ
न माने उपकार कृतघ्न

कभी न बूढ़ा होय अजर
कभी मरे न वही अमर

जिसमें रस हो वही सरस
रस न हो तो है नीरस

धीरज न हो वही अधीर
सीमा न हो वही असीम

धन न हो तो है निर्धन
सब गुण सर्वगुणसम्पन्न

साथ पढ़े वो है सहपाठी
विद्या पाता है विद्यार्थी

चिन्ता में डूबा है चिन्तित
निश्चय न हो वही अनिश्चित

कठिनाई से मिलता दुर्लभ
आसानी से मिले सुलभ

आँख के आगे है प्रत्यक्ष
दिखे नहीं जो वो अदृश्य

हिंसा करने वाला हिंसक
रक्षा में रत है अंगरक्षक

सच प्यारा वो सत्यप्रिय
सबका प्रिय वो सर्वप्रिय

सहन न हो वो असहनीय
कहा न जाये अकथनीय

आने वाला है आगामी
दिल की जाने अंतर्यामी

जिसका पता न हो अज्ञात
मात-पिता न वही अनाथ

बहुत कीमती वो बहुमूल्य
परे मूल्य से वही अमूल्य

नहीं हो संचय अपरिग्रह
सच का आग्रह सत्याग्रह

बेहद बारिश है अतिवृष्टि
कम बारिश है अल्पवृष्टि

नहीं हो बारिश अनावृष्टि
ज्ञानी स्त्री होती विदुषी

खुद की हत्या आत्महत्या
न माने आदेश अवज्ञा

भेद न पायें वही अभेद्य
कानून के विरुद्ध अवैध

दिल से हो जो वही हार्दिक
सब लोगों के लिए सार्वजनिक

जुड़ा देह से वो है दैहिक
प्रतिदिन होता वो है दैनिक

पंद्रह दिन में वही पाक्षिक
वर्ष में एक बार वार्षिक

एक बार माह में मासिक
हफ्ते में एक साप्ताहिक

जहाँ मिलें भू-गगन क्षितिज
निज नूतन रचना मौलिक

जिसमें श्रद्धा वह श्रद्धालु
दया हो जिसमें वही दयालु

अपना हित ही सोचे स्वार्थी
शरण चाहता वो शरणार्थी

नहीं सामने वही परोक्ष
जल्दी खुश वो आशुतोष

ऊँची इच्छा महत्त्वाकाँक्षा
शुभ कामना शुभाकाँक्षा

जिसको न हो डर वो निर्भय
मौत को जीते वो मृत्युंजय

सम दृष्टि रखता समदर्शी
दूर की सोचे दूरदर्शी

जीवन-भर जीवनपर्यन्त
फूलों का रस है मकरन्द

अच्छी किस्मत वो खुशकिस्मत
बुरे भाग्य वाला बदकिस्मत

मांस खाये वो मांसाहारी
सब कुछ खा ले सर्वाहारी

सिर्फ खाये फल फलाहारी
रहे दूध पर दुग्धाहारी

कम खाये वो अल्पाहारी
उसे ही कहते मिताहारी

सब्ज़ी फल ले शाकाहारी
चले शीघ्रता से द्रुतगामी

जल से घिरा स्थल है द्वीप
तीन ओर जल वो प्रायद्वीप

मार्ग हेतु भोजन पाथेय
जो पदार्थ पी सकते पेय

पशु-समान बर्ताव पाशविक
श्रम बदले धन पारिश्रमिक

लज्जा न हो वो निर्लज्ज
पर्दे के पीछे नेपथ्य

नहीं विकार हो निर्विकार
नहीं विवाद वो निर्विवाद

नहीं कोई बाधा निर्बाध
न हो निज हित वो निःस्वार्थ

जिसका पति जीवित वो सधवा
जिसका पति मर जाये विधवा

आग समंदर की बड़वानल
वन की अग्नि है दावानल

जिसकी कोई न इच्छा निस्पृह
अनुचित आग्रह बने दुराग्रह

कुछ न उगले भूमि बंजर
कृषि हो अच्छी भूमि उर्वर

चार पैर वाला चौपाया
गायों का निवास गौशाला

अच्छे कुल का व्यक्ति कुलीन
काम में डूबा वो तल्लीन

जहाँ ढलें सिक्के टकसाल
हड्डियों का ढाँचा कंकाल

गीत गाये जो वो है गायक
नायक का दुश्मन खलनायक

कई रूप धरे बहुरूपिया
दिन का कार्यक्रम है दिनचर्या

दो में निष्ठा उभयनिष्ठ
जिस पर चिह्न लगा चिह्नित

स्थान बदलने वाला जंगम
नदी जहाँ से निकले उद्गम

जैसा कोई न वो अद्वितीय
इन्द्रियाँ वश में रखे जितेंद्रिय

पति-पत्नी का जोड़ा दम्पति
कविता रचता होता है कवि

जिससे प्रेम वही प्रेमास्पद
मीठा बोले वही प्रियंवद

नीति के अनुकूल वो नैतिक
वेदों से संबंधित वैदिक

अच्छा पढ़ा-लिखा सुशिक्षित
नीचे रेखा वो रेखांकित

रखी अमानत वस्तु धरोहर
मन को हर ले वही मनोहर

मन की इच्छा मनोकामना
माँग किसी से वही याचना

चार भुजाएं वही चतुर्भुज
बिना गुणों का वो है निर्गुण

छोटा भाई होता अनुज
जिसकी पत्नी मरे विधुर

दिन के सपने दिवास्वप्न
दुश्मन नष्ट करे शत्रुघ्न

तीन नयन वाला त्रिनेत्र
बड़ा उम्र में वो है ज्येष्ठ

पका हुआ जो वो परिपक्व
छूने योग्य न हो अस्पृश्य

करे इलाज जो वही चिकित्सक
नहीं पढ़ा हो वो है अनपढ़

जो पढ़-लिख ले वही साक्षर
नहीं हो अक्षर-ज्ञान निरक्षर

कम जाने वो है अल्पज्ञ
नही ज्ञान कुछ वो है अज्ञ

ज्ञान विशेष रखे विशेषज्ञ
ताक़त-भर है यथाशक्य

मर्म समझता वो मर्मज्ञ
सब कुछ जाने वो सर्वज्ञ

बहुविध ज्ञान वही बहुज्ञ
अच्छा बेटा वही सुपुत्र

भक्त पिता का पितृभक्त
व्यर्थ करे व्यय फिजूलखर्च

कोई शुल्क न वो निःशुल्क
जल्द नष्ट हो क्षणभंगुर

सलाह दे वो सलाहकार
परहित कार्य परोपकार

दोपहर से पहले पूर्वाह्न
दोपहर के बाद अपराह्न

फेंकें जो हथियार अस्त्र
हाथ रहे हथियार शस्त्र

पंद्रह दिन का समय पक्ष
निपुण कार्य में वही दक्ष

मना मरीज को खाद्य अपथ्य
किसी भी गुट में नहीं तटस्थ

कमी अंग में वो विकलांग
बोले अधिक वही वाचाल

गलती पर दुःख पश्चात्ताप
गहराई न पता अथाह

ज्ञान की इच्छा वह जिज्ञासु
सहन करे जो वही सहिष्णु

चले मार्ग में वही पथिक
गिन न पायें वो अगणित

नहीं जानता वो अनभिज्ञ
गुरु से सीखे वो है शिष्य

बदले सदा परिवर्तनशील
बीता समय कहलाये अतीत

हाथ में न हथियार निहत्था
महान आत्मा वही महात्मा

साध सकें न वही असाध्य
सिद्ध कठिनता से दुस्साध्य

गीत रचे वो गीतकार
गुजर-बसर करना निर्वाह

रचना करता वही रचयिता
केवल पति में राग पतिव्रता

सबसे आगे रहे अग्रणी
कमर का गहना वही करधनी

टाल सकें न वो अनिवार्य
छोड़ सकें न अपरिहार्य

खबरें भेजे संवाददाता
जिसे ज्ञान हो वो है ज्ञाता

बड़ा भाई होता है अग्रज
संस्कार जिसमें वो संस्कृत

रोजी-रोटी-कार्य आजीविका
छोटी उँगली है कनिष्ठिका

छोटी उँगली निकट अनामिका
बीच वाली उँगली मध्यमा

दर्पण-जल-छाया प्रतिबिम्ब
कमल-सा मुख है मुखारविंद

बहुत समय रहे चिरस्थाई
जिस पर जिम्मा उत्तरदायी

बहुत काल जिये चिरंजीवी
काम हो लिखना वो मसिजीवी

अपने पथ को छोड़े विचलित
निज स्थान से हटे विस्थापित

छपा हुआ जो वो है मुद्रित
जैसा उचित वही यथोचित

कथा स्वयं की आत्मकथा
रीति पुरानी वही प्रथा

कहा जो ऊपर उपर्युक्त
लगा आरोप वही अभियुक्त

हो अभ्यास वही अभ्यस्त
देश में निष्ठा देशभक्त

सौ का संग्रह बने शतक
दस वर्षों को कहें दशक

राजा से संबंधित शाही
दांव लगाकर खेलें बाजी

नहीं ठौर वो खानाबदोश
नहीं दोष तो है निर्दोष

शिक्षा देने वाला शिक्षक
शासन करने वाला शासक

कीड़े मारे कीटनाशक
मार सके जो वो है मारक

करे भलाई परोपकारी
आज्ञा माने आज्ञाकारी

भरे न जल्दी घाव नासूर
बहुत दूर हो वही सूदूर

विश्वास-योग्य विश्वासपात्र
अच्छा ग्रहीता वही सुपात्र

कठिन रास्ता होता दुर्गम
ममता न हो वो है निर्मम

जिसके पार दिखे पारदर्शी
साथ काम करता सहकर्मी

जो रथ हाँके वही सारथी
खुद पर काबू वही संयमी

चक्र हाथ में वो चक्रपाणि
नयन हिरन से वो मृगनयनी

टकराकर ध्वनि लौटे प्रतिध्वनि
पेट की अग्नि है जठराग्नि

सच बोले वो सत्यवादी
सब जगह वो सर्वव्यापी

जो हित चाहे वही हितैषी
हित-अनहित पहचाने विवेकी

बढ़-चढ़ बात अतिशयोक्ति
शुद्ध-आचरण-रीति संस्कृति

खाल सर्प की बने केंचुली
खुद पर निर्भर स्वावलंबी

ख़र्च करे कम वो मितव्ययी
दया बहुत वो दयानिधि

शरण में आया वो शरणागत
हाथी हाँके वही महावत

चुप रह देखे मूकदर्शक
पथ दिखलाता मार्गदर्शक

काम में तत्पर वो है कर्मठ
गोद लिया बेटा है दत्तक

छूने से फैले संक्रामक
घूमे यात्री वही पर्यटक

जिसका कोई न अर्थ निरर्थक
जिसमें तीर रखें वो तरकश

दुःख, भय से पीड़ित कातर
घूम-घूमकर जिये यायावर

उत्तर न दे सके निरुत्तर
होगा नष्ट वही है नश्वर

हानि न जिससे वही निरापद
जिसे देखकर डरें भयानक

अनादि अनंत वही है शाश्वत
जिस पर झगड़ा विवादास्पद

सिर्फ रेत हो वही मरुस्थल
जिसकी उपमा न हो अनुपम

रहा सदा से वही सनातन
हँसी दिलाता नाटक प्रहसन

जन्म हो फिर से पुनर्जन्म
अंत नहीं हो वही अनन्त….

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