देहरादून। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे मुलायम सिंह यादव रानीखेत को कभी भुला न सके। 1991 में अपने प्रखर समाजवादी साथी अधिवक्ता जसवंत सिंह की पुत्री के विवाह समारोह में पहुंचे मुलायम सिंह को काफी विरोध झेलना पड़ा था। उन्हें भाजपाइयों ने काले झंडे दिखाए। पुलिस को लाठीचार्ज तक करना पड़ा।
मगर राजनीति के धुरंधर मुलायम ने काले झंडे की टीस को भूलकर तीन वर्ष बाद रानीखेत को कई सौगातें दीं। उपमंडल मुख्यालय में पहली बार अपर जिलाधिकारी का पद सृजित कर दिल जीता। तो रानीखेत को पृथक जिले का दर्जा दिलाने पर सहमति भी जता दी थी। मगर उक्रांद के कौशिक समिति का हवाला दे 18 नए जिलों की मांग उठा दिए जाने से रानीखेत जनपद का मुद्दा समझौते में ही उलझ कर रह गया था।
बात 1991 की है। प्रखर समाजवादी नेता अधिवक्ता जसवंत सिंह बिष्ट ने पृथक पर्वतीय राज्य के गठन के लिए उत्तराखंड क्रांति दल से नाता जोड़ लिया था। मगर मुलायम सिंह यादव से उनकी नजदीकी कम न हुई। 1991 में समाजवादी जसवंत सिंह की पुत्री के विवाह समारोह में शामिल होने के लिए तत्कालीन सीएम मुलायम सिंह यादव तमाम कैबिनेट मंत्रियों को साथ लेकर रानीखेत पहुंचे। उनके स्वागत को जहां लोगों का जमावड़ा लगा था। वहीं भाजपाई विरोध में उतर आए थे। रिष्ठ कांग्रेसी व संस्कृति कर्मी कैलाश पांडे बताते हैं कि तहसील रोड पर मुलायम सिंह के काफिले को काले झंडे दिखा पथराव कर दिया गया। इस पर पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा। रानीखेत में तीन चार दिन बाजार भी बंद रहा। कर्फ्रयू जैसे हालात रहे। अलबत्ता, तत्कालीन सीएम मुलायम सिंह कड़वा अनुभव लेकर लखनऊ वापस लौट गए थे।
वरिष्ठ कांग्रेसी कैलाश पांडे कहते हैं कि समाजवादी व बाद में उक्रांद नेता रहे अधिवक्ता जसवंत सिंह बिष्ट की अगुआई में रानीखेत पृथक जिले के मसले पर 1994 में सर्वदलीय शिष्टमंडल सीएम मुलायम सिंह यादव से मिलने पहुंचा। रानीखेत से पहुंचे शिष्टमंडल को मुलायम ने हाथोंहाथ लिया। मुस्कराए और रानीखेत को नया जिला बनाने की बात पर बगैर देर किए सहमति दे दी। कैलाश पांडे बताते हैं कि तब उनके मन में काले झंडे दिखा विरोध को लेकर जरा भी नाराजगी नहीं झलकी, बल्कि जल्द ही रानीखेत दोबारा आने का आश्वासन भी दिया। मगर उक्रांद ने कौशिक समिति का हवाला दे सभी 18 जनपदों का मुद्दा उठा दिया। इससे रानीखेत जनपद की उम्मीदें धूमिल पड़ती गई।