जूना अखाड़ा प्रयाग में हमारा ये चैथा कुंभ है- महमूद लाईट वाले

Pahado Ki Goonj
आजकल भावनाएं बहुत जल्द आहत हो जाती हैं। इधर, किसी ने कुछ कहा नहीं कि उधर, अलां-फलां समुदाय की भावनाएं आहत हो गईं। भावनाएं इस करद आहत हो जाती हैं कि लोग एक-दूसरे की जान लेने पर उतारू हो जाते हैं। हिंन्दू-मुस्लमान के नाम पर तो राजनीति भी खूब होती है। टीवी चैनलों पर तक लाइव डिवेट में मारपीट भी हो चुकी है। लेकिन, इन सबके बीच कुछ बातें ऐसी भी हैं, जो यह भरोसा दिलाती है कि नहीं, अभी धर्मों के दिखावटी झगड़ों के बीच बहुत कुछ वास्तविक और वाजिब मौजूद है। कुंभ धार्मिक आस्था के साथ ही दुनिया के विभिन्नत हरके संत-समाज की एक साझी विरासत भी है। इस विरासत से जुड़ा बहुत कुछ जानने के लिए हर दिन न्यूज वेवसाइटों और रिसर्च पेपरों को पढ़ने का प्रयास रहता है। कुंभी के 50 दिनों में कम से कम 50 नई बातों को गंभीरता से जानने और समझने का लक्ष्य तय किया है। इसी खोज में आज बीबीसी की एक रिपोर्ट पढ़कर लगा कि इसे साझा करना चाहिए। पढ़ें
की रिपोर्ट
प्रयागराज में पहले शाही स्नान के साथ 15 जनवरी से कुंभ का आगाज हो चुका है। ये दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक मेला है। ये ऐसा मेला है, जिसमें देश और दुनिया करोड़ों श्रद्धालु बिना बुलाए ही पहुंच जाते हैं। कुंभ मेले में जूना अखाड़े के प्रवेश द्वारा के दाईं ओर श्मुल्ला जी लाइट वाले का बोर्ड देखकर किसी की भी उत्सुकता उन मुल्ला जी को जानने की हो सकती है जो लाइट वाले हैं। मुल्ला जी, यानी मुहम्मद महमूद हमें वहीं मिल गए। जिस ई-रिक्शा के ऊपर उनका ये छोटा-सा बोर्ड लगा था, उसी के ठीक बगल में रखी एक चारपाई पर बैठे थे। सिर पर टोपी और लंबी दाढ़ी रखे मुल्ला जी को पहचानने में जरा भी दिक्कत नहीं हुई।
नाम पूछते ही वो हमारा मकसद भी जान गए और तुरंत बगल में बैठे एक व्यक्ति को उठने का इशारा करके हमसे बैठने का आग्रह किया। 76 साल के मुहम्मद महमूद पिछले तीन दशक से कोई भी कुंभ या अर्धकुंभ नहीं छोड़ते हैं और कुंभ के दौरान डेढ़ महीने यहीं रहकर अपना व्यवसाय चलाते हैं। बिजली की फिटिंग से लेकर कनेक्शन तक जो भी काम होता है, मुल्ला जी की टीम ही करती है। जूना अखाड़े के साधु-संतों और महंत से उनकी अच्छी बनती है, इसलिए अखाड़े में उनके रहने के लिए टेंट की व्यवस्था की गई है।
मुहम्मद महमूद बताते हैं, प्रयाग में हमारा ये चैथा कुंभ है। चार हरिद्वार में हो चुके हैं और तीन उज्जैन में। हर कुंभ में मैं जूना अखाड़े के साथ रहता हूं और शिविरों में बिजली का काम करता हूं। अखाड़े के बाहर भी काम करता हूं जो भी बुलाता है। काम भी करता हूं, संतों की संगत का भी रस लेता हूं। दरअसल, मुहम्मद महमूद मुजफ्फरनगर में बिजली का काम करते हैं। शादी-विवाह में बिजली दुरुस्त करने का ठेका लेते हैं और अपने साथ कई और कारीगरों को रखा है जो इस काम में उनका हाथ बंटाते हैं।
कुंभ में भी उनके ये सहयोगी साथ ही रहते हैं और संगम तट पर टेंट से बने साधु-संतों और अन्य लोगों के आशियानों को रोशन करते हैं। यहां लोग उन्हें मुल्ला जी लाइट वाले के नाम से ही जानते हैं। मुहम्मद महमूद बताते हैं कि अखाड़ों से जुड़ने की शुरुआत हरिद्वार कुंभ से हुई, तीस साल से ज्यादा पुरानी बात है। उसी कुंभ में बिजली के काम से गया था और वहीं जूना अखाड़े के साधुओं से परिचय हुआ। फिर उनके महंतों के साथ बातचीत होती रही और ये सिलसिला चल पड़ा। उन्हें हमारा व्यवहार पसंद आया और हमें उनका।
जूना अखाड़ा भारत में साधुओं के सबसे बड़े और सबसे पुराने अखाड़ों में से एक माना जाता है। जूना अखाड़े के अलावा भी तमाम लोगों के शिविर में बिजली की कोई समस्या होती है तो मुल्ला जी और उनकी टीम संकट मोचक बनकर खड़ी रहती है। जूना अखाड़े के एक साधु संतोष गिरि बताते हैं, हम तो इन्हें भी साधु ही समझते हैं। साथ उठना-बैठना, रहना, हंसी-मजाक करना, और जिंदगी में है क्या ? बस ये हमारी तरह धूनी नहीं रमाते, सिर्फ बिजली जलाते हैं।
वहां मौजूद एक युवा साधु ने बताया कि मुल्ला जी की टीम में सिर्फ वही एक मुसलमान हैं, बाकी सब हिन्दू हैं। साधु ने कहा, हमने किसी से पूछा नहीं लेकिन धीरे-धीरे ये पता चल गया। शिविर में सिर्फ मुल्ला जी ही नमाज पढ़ते हैं, बाकी लोग नहीं। मुल्ला जी और उनके साथियों की भी अखाड़े के साधुओं से अच्छी दोस्ती है, जिसकी वजह से इन्हें अखाड़े में भी अपने घर की कमी नहीं महसूस होती। सभी लोग मेला समाप्त होने के बाद ही अपने घर जाते हैं। मुहम्मद महमूद के साथ इस समय पांच लोग हैं। उनमें से एक अनिल भी हैं जो सबके लिए खाना बनाते हैं। अनिल भी मुजफ्फरनगर के रहने वाले हैं। वो कहते हैं, मैं पूरे स्टाफ का खाना बनाता हूं। हम लोग यहां किसी कमाई के उद्देश्य से नहीं बल्कि समाजसेवा के उद्देश्य से आते हैं। कमाई इतनी होती भी नहीं। 
कमाई के बारे में पूछने पर मुहम्मद महमूद हंसने लगते हैं, कमाई क्या…कमाई तो कुछ भी नहीं है। रहने-खाने का खर्च निकल जाए, वही बहुत है। कमाने के मकसद से हम आते भी नहीं है। बस दाल-रोटी चल जाए, साधुओं की संगत अपने आप ही आनंद देने वाली होती है। और क्या चाहिए ? मुहम्मद महमूद कहते हैं कि मुजफ्फरनगर में रहते हुए वो कई अन्य त्योहारों मसलन, जन्माष्टमी, दशहरा इत्यादि पर भी बिजली का काम करते हैं। इसके अलावा मेरठ में होने वाले नौचंदी मेले में भी ये लोग अपने सेवाएं देते हैं।
Next Post

धार्मिक आस्था और ऐतिहासिक महत्व का गढ़वाल का कुम्भ माघ मेला

धार्मिक आस्था और ऐतिहासिक महत्व का गढ़वाल का कुम्भ माघ मेला उत्तरकाशी (मदन पैन्यूली)विश्वनाथ नगरी उत्तरकाशी के प्रसिद्ध माघ मेले (बाड़ाहाट कु थौलू) का आगाज 14जनवरी* से शुरू हो गया है,उत्तरकाशी के माघ मेले का अपना धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व है। *धार्मिक मान्यताओं में यह मेला महाभारत* काल से जुड़ा […]

You May Like