पितृ पक्ष या पितरपख, १६ दिन की वह अवधि है

Pahado Ki Goonj

देहरादून पितृ पक्ष या पितरपख, १६ दिन की वह अवधि है जिसमें हिन्दू लोग अपने पितरों को श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हैं और उनके लिये पिण्डदान करते हैं। इसे ‘सोलह श्राद्ध’, ‘महालय पक्ष’, ‘अपर पक्ष’ आदि नामों से भी जाना जाता है। पूर्वज पूजा की प्रथा विश्व के अन्य देशों की भाँति बहुत प्राचीन है। पितृ देवो भव। -इनसाइक्लोपीडिया

आज पूर्ण मासी तिथि से प्रारम्भ है
श्राद्ध” अपने पूर्वजों, अपने पितरों के प्रति अपनी श्रद्धा को व्यक्त करने की क्रिया का नाम है। हमारे पूर्वज अपने पितरों में इतनी श्रद्धा रखते थे कि मरने के बाद भी उन्हें याद और उनके सम्मान में यथायोग्य दान – पुण्य किया करते थे। अपने पितरों के प्रति यही श्रद्धान्जलि ही कालांतर में “श्राद्ध” कर्म के रूप में मनाई जाने लगी।
श्रद्धा तो आज के लोग भी रखा करते हैं मगर मूर्त माँ बाप में नहीं अपितु मृत माँ – बाप में। माँ – बाप के सम्मान में जितने बड़े आयोजन आज रखे जाते हैं , शायद ही वैसे पहले भी रखे गए हों। फर्क है तो सिर्फ इतना कि पहले जीते जी भी माँ – बाप को सम्मान दिया जाता था और आज केवल मरने के बाद दिया जाता है।
श्रद्धा वही फलदायी होती है जो जिन्दा माँ – बाप के प्रति हो अन्यथा उनके मरने के बाद किया जाने वाला श्राद्ध एक आत्मप्रवंचना से ज्यादा कुछ नहीं होगा। जो मूर्त माँ – बाप के प्रति श्रद्धा रखता है वही मृत माँ – बाप के प्रति “श्राद्ध” कर्म करने का सच्चा अधिकारी भी बन जाता है।

हम अपने पूर्वजों को तो श्राद्ध के दिनों में स्मरण करें ही साथ ही जो अभी हैं उनकी भी सेवा, सुश्रुषा ज़रूर करें।

श्राद्ध पक्ष में अपने पितरों के निमित धर्मिक स्थान  हरिद्वार,  प्रयागराज बारह ,ज्योतिर्लिंगों के स्थान ,गया काशी  आखिर में श्री बद्रीनाथ धाम में पितरों का श्राद्ध करने का विधान है । गंगा ,गाय  की पूजा दान करने का हिंदू धर्म  शास्त्रों में बताया गया है।

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