भगवान आदिदेव आशुतोष शिवशंकर भोलेनाथ नीलकंठ महादेव जी की जय 

Pahado Ki Goonj

भगवान आदिदेव आशुतोष शिवशंकर भोलेनाथ नीलकंठ महादेव जी की जय

*भगवान आदिदेव आशुतोष शिवशंकर भोलेनाथ नीलकंठ महादेव जी की श्रावण {सावन} में क्यों होती है पूजा और कैसे पड़ा इस महीने का नाम श्रावण {सावन}

शिवस्तुति

पशूनां पतिं पापनाशं परेशं गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम।
जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम।।

महेशं सुरेशं सुरारातिनाशं विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम्।
विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम्।।

गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं गवेन्द्राधिरूढं गुणातीतरूपम्।
भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गं भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम्।।

*शिवाकान्त शंभो शशाङ्कार्धमौले महेशान शूलिञ्जटाजूटधारिन्।*
*त्वमेको जगद्व्यापको विश्वरूप: प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप।।*

*परात्मानमेकं जगद्बीजमाद्यं निरीहं निराकारमोंकारवेद्यम्।*
*यतो जायते पाल्यते येन विश्वं तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम्।।*

*न भूमिर्नं चापो न वह्निर्न वायुर्न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा।*
*न गृष्मो न शीतं न देशो न वेषो न यस्यास्ति मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीड।।*

*अजं शाश्वतं कारणं कारणानां शिवं केवलं भासकं भासकानाम्।*
*तुरीयं तम:पारमाद्यन्तहीनं प्रपद्ये परं पावनं द्वैतहीनम ।।*

*भगवान आदिदेव श्री काशी विश्वनाथ आशुतोष शिव शंकर भोलेनाथ महादेव जी का पावन मास श्रावण {सावन} को शिव का महीना माना जाता है और पूरे महीने भगवान श्री शिवशंकर भोलेनाथ महादेव जी की आराधना भक्ति भावानुसारेण की जाती है। जिसमें रूद्राभिषेक के बाद बिल्वपत्र और भस्म चढ़ाने समेत कई परंपराए शामिल हैं, लेकिन ऐसा क्यों है? क्यों शिवजी को श्रावण {सावन} का महीना पसंद है और इस महीने का नाम श्रावण {सावन} कैसे पड़ा…? आइए समझते हैं भगवान श्री शिवशंकर भोलेनाथ नीलकंठ महादेव जी पूजा की परंपराएं और कथाओं से श्रावण {सावन}, दक्षिणायन में आता है। जिसके देवता शिव हैं, इसीलिए इन दिनों उन्हीं की आराधना शुभ फलदायक होती है। श्रावण {सावन} के दौरान बारिश का मौसम होता है। पुराणों के मुताबिक शिवजी को चढ़ने वाले फूल-पत्ते बारिश में ही आते हैं इसलिए श्रावण {सावन} में शिव पूजा की परंपरा बनी।*

*स्कंद पुराण में वर्णित भगवान आशुतोष शिव शंकर भोलेनाथ महादेव जी ने सनत्कुमार को श्रावण {सावन} महीने के बारे में बताया कि मुझे श्रावण {सावन} बहुत प्रिय है। इस महीने की हर तिथि व्रत और हर दिन पर्व होता है, इसलिए इस महीने नियम-संयम से रहते हुए पूजा करने से शक्ति और पुण्य बढ़ते हैं। इस महीने का नाम श्रावण {सावन} क्यों…? स्कंद और शिव पुराण के हवाले से जानकार इसकी दो वजह बताते हैं।*

*पहली वजह ~ इस महीने पूर्णिमा तिथि पर श्रवण नक्षत्र होता है। इस नक्षत्र के कारण ही महीने का ये नाम पड़ा।*

*दूसरी वजह ~ भगवान श्री आशुतोष शिव शंकर भोलेनाथ महादेव जी ने सनत्कुमार को बताया कि इसका महत्व सुनने के योग्य है। जिससे सिद्धि मिलती है, इसलिए इसे श्रावण {सावन} कहते हैं। इसमें निर्मलता का गुण होने से ये आकाश के समान है, इसलिए इसे नभा भी कहा गया है।*

*श्रावण {सावन} का महत्व बताते हुए महाभारत के अनुशासन पर्व में अंगिरा ऋषि ने कहा है कि जो इंसान मन और इन्द्रियों को काबू में रखकर एक वक्त खाना खाते हुए श्रावण {सावन} मास बिताता है, उसे कई तीर्थों में स्नान करने जितना पुण्य मिलता है।*

*भगवान आशुतोष काशी विश्वनाथ शिव शंकर भोलेनाथ महादेव जी के पावन श्रावण {सावन} मास की प्रचलित कथाएं ~*

*भारतीय पौराणिक धर्म शास्त्रों और पुराणों के मुताबिक भगवान आशुतोष काशी श्री काशी विश्वनाथ शिवशंकर भोलेनाथ महादेव जी ने श्रावण {सावन} मास में भगवती आदि शक्ति देवी पार्वती जी की परीक्षा ली थी।*
*देवी सती जी ने ही आदि शक्ति देवी पार्वती जी के रूप में दूसरा जन्म लिया था। इस जन्म में भी शिवशंकर भोलेनाथ नीलकंठ महादेव जी को पति के रूप में पाने के लिए वे कठिन तप कर रही थीं। शिवजी ने पहले सप्तर्षियों को परीक्षा के लिए भेजा। सप्तर्षियों ने आदि शक्ति देवी पार्वती जी के पास पहुँचकर शिवजी की बहुत बुराई की, उनके दोष गिनाए, लेकिन देवी पार्वती जी अपने संकल्प पर अडिग रहीं। इसके बाद आदिदेव महादेव जी खुद आए। उन्होंने देवी पार्वती जी को वरदान दिया और अंतर्धान हो गए।*

*तभी एक बच्चे की आवाज सुनाई दी आदि शक्ति देवी पार्वती जी जहाँ तप कर रही थीं, उसी के पास मौजूद तालाब में मगरमच्छ ने एक बच्चे का पैर पकड़ रखा था। भगवती देवी पार्वती जी वहाँ पहुँचीं और मगरमच्छ से बच्चे को छोड़ने को कहा। मगरमच्छ ने अपना नियम बताते हुए इनकार किया कि दिन के छठे पहर में जो मिलता है, उसे आहार बना लेता हूँI इस पर पार्वती जी ने पूछा इसे छोड़ने के बदले क्या चाहोगे? मगरमच्छ ने कहा, अपने तप का फल मुझे दे देंगी तो बालक को छोड़ दूँगा।*

*भगवती आदि शक्ति देवी पार्वती जी तत्काल तैयार हो गईं, पर मगरमच्छ ने उन्हें समझाया कि वे क्यों एक बालक के लिए अपने कठिन तप का फल दे रही हैं, लेकिन पार्वती जी ने दान का संकल्प किया। उनके ऐसा करते ही मगर का शरीर चमकने लगा। अचानक बच्चा और मगर, दोनों गायब हो गए और उनकी जगह भगवान श्री आशुतोष काशी विश्वनाथ शिव शंकर भोलेनाथ नीलकंठ महादेव जी प्रकट हुए। उन्होंने बताया कि वो परीक्षा ले रहे थे। चूंकि पार्वती जी ने अपने तप का फल शिव को ही दिया था, इसलिए उन्हें दोबारा तप करने की जरूरत नहीं रही।*

*कामदेव जी को भस्म किया ~*

*भगवान श्री आशुतोष काशी विश्वनाथ शिवशंकर भोलेनाथ महादेव जी को कामांतक भी कहते हैं। इसके पीछे कथा है कि तारकासुर ने भगवान ब्रह्माजी से दो वरदान पाए थे। पहला वरदान यह था कि तीनों लोकों में उसके समान ताकतवर कोई न हो और दूसरा शिव पुत्र ही उसे मार सके। तारकासुर जानता था कि देवी सती जी के देहांत के बाद शिवजी समाधि में जा चुके हैं, जिससे शिव पुत्र होना असंभव था। वरदान पाकर तारकासुर ने तीनों लोकों को जीत लिया। उसके अत्याचार से परेशान होकर देवता भगवान ब्रह्मा जी के पास गए।*

*उन्होंने देवताओं को वरदान के बारे में बताते हुए कहा कि केवल शिव पुत्र ही तारकासुर को मार सकता है, लेकिन शिवजी गहरी समाधि में हैं। हिमवान की पुत्री पार्वती जी शिवजी से विवाह के लिए तप कर रही हैं, लेकिन वे पार्वती की तरफ देखना भी नहीं चाहते, अगर महादेव पार्वती जी से विवाह कर पुत्र उत्पन्न करें, तभी इस दैत्य का वध संभव है।*

*तब देवराज इंद्र ने कामदेव से कहा कि वे जाकर शिवजी के मन में देवी पार्वती के प्रति अनुराग जगाएं। कामदेव ने पुष्पबाण ध्यानमग्न शिवजी पर चला दिया। अचानक इस विघ्न से शिवजी बेहद गुस्सा हुए और उन्होंने तीसरे नेत्र से कामदेव को भस्म कर दिया।*

*इस पर कामदेव की पत्नी रति ने शिवजी से प्रार्थना की कि वे उसके पति का जीवन वापस लौटा दें। शिव जी ने शांत होकर कहा, कामदेव की देह नष्ट हुई है, लेकिन उसकी आंतरिक शक्ति नहीं। “काम’ अब देह रहित होकर हर प्राणी के हृदय में रहेगा। वह कृष्णावतार के समय कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न के रूप में जन्म लेगा। तुम फिर उसकी पत्नी बनोगी। उस समय रति ने मायावती के रूप में जन्म लिया था।,*

*अशुभ से हुआ शुभ ~*

*नर्मदा नदी के किनारे धर्मपुर नाम का सुंदर नगर था। उसमें विश्वानर नाम का ब्राह्मण अपनी पत्नी सुचिस्मति के साथ रहता था। दोनों शिव भक्त थे और उन्होंने पुत्र पाने के लिए उनसे वरदान माँगा कि स्वयं भगवान शिव उनके पुत्र के रूप में जन्म लें।*

*भगवान आदिदेव श्री आशुतोष काशी विश्वनाथ शिवशंकर भौलेनाथ महादेव जी के वरदान से उनके यहाँ एक पुत्र का जन्म हुआ, जिसका नाम गृहपति था। जब बालक ग्यारह साल का था, तब देवर्षि नारद ने उसका हाथ देखकर भविष्यवाणी की कि साल भर के भीतर उसके साथ कुछ अशुभ होगा, जो आग से जुड़ा होगा। जब माँ-बाप ये सुनकर दुखी हुए तो बेटे ने उन्हें सांत्वना देते हुए कहा कि वे दुखी न हों, क्योंकि वह भगवान को प्रसन्न कर लेगा। इससे अनिष्ट टल जाएगा।*

*माता-पिता से आज्ञा लेकर वह शिव जी की नगरी काशी पहुँचा। वहाँ उसने देवी गंगा जी के मणिकर्णिका घाट पर स्नान किया और पूरे साल शिवलिंग की पूजा की। जब नारद मुनि द्वारा बताया अनिष्ट समय आया, तो देवराज इंद्र ने प्रकट होकर उससे वरदान मांँगने को कहा। बालक ने वरदान लेने से मना किया और कहा वो केवल भगवान शिवजी से ही वर प्राप्त करेगा।*

*ये सुनकर देवराज इंद्र बहुत गुस्सा हुए और उन्होंने इस बालक को सबक सिखाने के लिए वज्र उठा लिया। बालक ने भगवान शिव जी से रक्षा की याचना की। तभी शिवजी प्रकट होकर बोले- डरो मत। मैं तुम्हारी परीक्षा लेने के लिए इंद्र के वेश में आया था। मैं तुम्हें अग्नीश्वर नाम देता हूँ। तुम आग्नेय दिशा (दक्षिण-पूर्व दिशा) के रक्षक होगे। जो भी तुम्हारा भक्त होगा, उसको अग्नि, बिजली या अकाल मृत्यु का डर नहीं होगा। अग्नि को शिव जी का एक रूप कहते हैं। वो शिव जी का तीसरा नेत्र भी है।*

*आदिदेव भगवान आशुतोष शिवशंकर महादेव जी को नीलकंठ महादेव क्यों कहा जाता है ? ~*

*श्रावण {सावन} में भगवान आशुतोष काशी विश्वनाथ शिवशंकर भोलेनाथ नीलकंठ महादेव जी के पूजन के पीछे यह मान्यता है कि समुद्र मंथन के समय जब देवता और अमृत की तलाश में एक साथ आए थे। मंथन के दाैरान रत्न, आभूषण, पशु, देवी लक्ष्मी, धन्वंतरि समेत कई अन्य चीजें सामने आईं। हालांकि इस दाैरान हलाहल यानी कि घातक जहर का उद्भव भी हुआ। इस दाैरान जो भी इस जहर के संपर्क में आया वह नष्ट होने लगा। इस पर भगवान श्री ब्रह्मा जी और भगवान श्री विष्णुनारायण जी चिंतिंत हो गए। उन्होंने भगवान शिवजी से मदद मांँगी और विचार किया कि केवल वह ही इसे सहन कर सकते हैं। जनकल्याण के लिए भगवान शिवशंकर जी ने जहर को पीने का फैसला किया। जहर पीते ही उनका शरीर नीला पड़ने लगा। भगवान के पूरे शरीर में जहर फैलने से आदि शक्ति देवी पार्वती जी चिंतित होने लगी। इस दाैरान उन्होंने विष को शिवजी के गले में ही रोक दिया। इस घटना के बाद भगवान शिवशंकर जी को नीलकंठ महादेव जी भी कहा जाने लगा।*

*श्रावण {सावन} के महीने में भगवान आदिदेव आशुतोष काशी विश्वनाथ शिवशंकर भोलेनाथ नीलकंठ महादेव जी की आराधना और इस मंत्र का जाप सभी कष्टों से मुक्ति और भोले की भक्ति के लिए बेहद खास है। भोलेशंकर जी की उपासना और मंत्र के जाप से कष्टों को दूर कर महादेव जी प्रसन्न होते हैं तथा महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने से रोग और भय दूर हो जाते हैं। साथ ही आयु में भी वृद्धि होती है। महामृत्युंजय का जाप विपत्ति के समय में भी दिव्य ऊर्जा के कवच की सुरक्षा प्रदान करता है।*

*ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।*
*उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥*

*महामृत्युंजय मंत्र का भावार्थ ~*

*त्र्यम्बकं – इसका अर्थ है तीन आँखों {त्रिनेत्र} वाला, भगवान शिव की दो साधारण आँखें हैं और तीसरी आँख दोनों भौहों के मध्य में है। यही तीसरी आँख है। यह विवेक और अंतर्ज्ञान की आँख है। जब मनुष्य विवेक की दृष्टि से देखता है तो उसका अनुभव कुछ और ही होता है। इसके जाप से ही विवेक की दृष्टि आने लगती है।*

*यजामहे – इसका अर्थ यह है कि भगवान के प्रति जितना ज्यादा पवित्र भाव पाठ और जप के दौरान रखा जाएगा। उतना ही उसका प्रभाव बढ़ेगा। भगवान के प्रति सम्मान और विश्वास रखते ही प्रकृति की ओर देखने का नजरिया बदल जाता है। जब भी हम पूजा पाठ करते हैं तो कुछ विपरीत शक्तियाँ मन को हटाने का प्रयास करती हैं। लेकिन यदि इन शक्तियों के वेग को रोक लिया जाए तो ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है।*

*सुगन्धिं – भगवान शिव जी सुगंध के पुंज माने जाते हैं। जो मंगलकारी हैं। उनका नाम शिव है। उनकी ऊर्जा को यहाँ पर सुगंध कहा गया है। जब व्यक्ति अहंकारी, अभिमानी और ईर्ष्यालु हो जाता है तो उसके व्यक्तित्व से दुर्गंध आती है। लेकिन कुछ लोगों का व्यक्तित्व इतना आकर्षक होता है कि उनके निकट बैठने पर आपको सकारात्मक ऊर्जा {पॉजिटिव वाइब्स} आने लगती है। उनके बात करने का तरीका भी अच्छा लगता है। उनकी प्रसन्नता और उनकी सकारात्मकता से दूसरे चार्ज हो जाते हैं। वहीं कुछ दुखी लोग मिलते हैं। जो अपनी समस्याओं का बखान करने लग जाते हैं। जिससे मन नकारात्मक हो जाता है।*

*पुष्टिवर्धनम् – इसका अर्थ है आध्यात्मिक पोषण और विकास की ओर जाना। मौन अवस्था में रहते हुए आध्यात्मिक विकास अधिक हो जाता है। संसार में ईर्ष्या, घृणा, अहंकार आदि के कीचड़ में रहते हुए कमल की तरह ही खिलना होगा। आध्यात्मिक विकास से ही कमल की तरह खिला जा सकता है।*

*उर्वारुकमिव बंधनान् – इसका अर्थ है संसार में जुड़े रहते हुए भी भीतर से अपने इस बंधन को छुड़ाना। भगवान शिव से प्रार्थना करना कि मुझे संसार में रहते हुए आध्यात्मिक परिपक्वता प्रदान करें। जिस तरह नौकरी करने वाले ऑफिस में प्रमोशन और व्यापारी मुनाफे का हिसाब लगाते हैं। उसी तरह आध्यात्मिक प्रमोशन के बारे में भी विचार करना चाहिए।*

*मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् – आध्यात्मिक परिपक्वता आने का बाद मृत्यु के भय से मुक्ति मिल जाती है। हे प्रभु आपके अमृतत्व से कभी हम वंचित न रहें। जब यह भाव मजबूत हो जाएगा तब मृत्यु के भय से मुक्ति मिल जाएगी। भय वहीं तक होता है जहाँ आपको लगता है कि आप कुछ कर सकते हैं। लेकिन जो चीज आपकी पकड़ से बाहर हो उसे लेकर चिंता कैसी। शंकालु होना ही मोह है।*

*महामृत्युंजय मंत्र का ऐसे करें जाप ~*

*भगवान आदिदेव आशुतोष काशी विश्वनाथ शिव शंकर भोलेनाथ महादेव जी की मूर्ति या चित्र के सामने स्वच्छ आसन में पद्मासन की स्थिति में बैठकर रुद्राक्ष की माला से जाप करें। जाप करने से पहले सामने एक कटोरी में जल रखें। जाप करने के बाद उस जल तो पूरे घर में छिड़क दें। इससे हीन शक्तियों का प्रभाव नहीं पड़ेगा।*

*विश्वनाथ मम नाथ पुरारी।*
*त्रिभुवन महिमा बिदित तुम्हारी॥*
*चर अरु अचर नाग नर देवा।*
*सकल करहिं पद पंकज सेवा॥*

*भावार्थ ÷*

*भगवती आदिशक्ति माँ जगदंबा पार्वती जी ने आदिदेव आशुतोष काशी विश्वनाथ शिवशंकर जी से कहा – हे संसार के स्वामी, हे मेरे नाथ, हे त्रिपुरासुर का वध करने वाले, आपकी अनन्त महिमा तीनों लोकों में विख्यात है। चर, अचर, नाग, मनुष्य और देवता सभी आपके चरण कमलों की सेवा करते हैं।*

*सर्वे भवन्तु सुखिनः I*
*सर्वे सन्तु निरामया ॥*
*सर्वे भद्राणि पश्यन्तु ।*
*मा कश्चित् दुखःभाग भवेत् ॥*

*भावार्थ ÷*

*सभी सुखी होवे , सभी रोगमुक्त रहे , सभी मंगलमय के साक्षी बने और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े I*

*आप सभी शिवभक्त आत्मीयजनों को श्रावण {सावन} के पावन मास और श्रावण {सावन} के पहले सोमवार की हार्दिक दिल से शुभमंगलकामनाएँ और बधाईयाँ प्रेषित करता हूँI भगवान आदिदेव श्री आशुतोष काशी विश्वनाथ शिवशंकर भोलेनाथ नीलकंठ महादेव जी आप सभी के समस्त संकल्पित मनोरथ पूर्ण करें ऐसी मेरी हार्दिक दिल से शुभमंगलकामना हैंI*

हम श्रीरामचन्द्र जी के श्रीरामचन्द्र जी हमारे हैंI  सियाराम जी की जय

*आपका स्नेहित शुभाकांक्षी ÷*

*भूपेश कुड़ियाल, {श्रीरामचरणानुरागी}*

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