ब्रहमाण्ड़ की सर्वोपरि शक्ति विराजमान है दतिया में- रमाकान्त पन्त

Pahado Ki Goonj

?दतिया मध्य प्रदेश से लौटकर रमाकान्त पन्त                     *?ब्रहमाण्ड़ की सर्वोपरि शक्ति विराजमान है दतिया में* *?परमेश्वरी माई पीताम्बरा के दर्शन को देश व दुनियां से आते है भक्तजन? *?महाभारत काल के इतिहास की गाथा समेटे है,यह मंदिर?* *?यहां नही ली जाती है,झूठी सौगंध?* *?बनखण्डेश्वर मंदिर है,अटूट आस्था का केन्द्र?* *?शिशुपाल के मित्र दंतवक्र से जुड़ा है दतिया का इतिहास?* *?राष्ट्रगुरु पूज्यपाद अनन्तश्री की यादें महकती है,यहां के कण कण में*?* *?सत्य साधक  विजेन्द्र पाण्डेय गुरुजी के सानिध्य में दतिया पहुची भक्तों की टोली ने किये माई पीताम्बरी के दर्शन?**?*?जय माई पीताम्बरा?*  दतिया(मध्य प्रदेश)/राजेन्द्र पन्त’रमाकान्त’/मध्य प्रदेश में स्थित दतिया शहर का महत्व सम्पूर्ण भारत वर्ष की आध्यात्म की विरासत में अद्भूत व अतुलनीय है।ब्रहमास्त्र शक्ति की अधिष्ठात्री देवी माई पीताम्बरा का दरवार स्थित होनें के कारण दतिया को पावन धाम का दर्जा प्राप्त है।महाभारत काल की स्मृतियों को अपनें आंचल में समेटे दतिया धाम में माई पीताम्बरा के दर्शनों हेतु देश व विदेश से भक्तजनों की आवाजाही निरंतर लगी रहती है।नवरात्रियों के अवसरों पर तो यहां  माई के दर्शनों के लिए भक्तों का शैलाब उमड़ पड़ता है।माई पीताम्बरा के प्रति उनके भक्तों के हृदय में अटूट प्रेम झलकता है।* *?बीते मांह सत्य साधक  विजेन्द्र पाण्डे की अगुवाई में भक्तों की एक टोली डीडीहाट के मलयनाथ मन्दिर में गुरुजी की छत्तीस दिनो की साधना के अवसर पर हवन करने के पश्चात् यहां पहुचीं जिस टोली में माँ भद्रकाली मंदिर समिति के अध्यक्ष योगेश पंत,पूर्व दर्जा मन्त्री ललित पंत, माँ पीताम्बरी साधना एंव दिव्य योग ट्रस्ट के महासचिव हेमंत बोरा,शिव दत्त त्यागी,राजेश शुक्ला आदि मौजूद थे यहां भी गुरूजी ने एक रात्रि साधना की*?यहां पधारनें वाले भक्तजन बताते है,कि इस दरबार की महिमां विश्वास की मान्यताओं से परे है।यहां पहुंचकर  माई के दर्शन करना अपनें आप में परम शौभाग्य है।और बिना माँ की कृपा के यहां नही पहुचां जा सकता है।विश्वास के साथ अविश्वास भी है।लेकिन माई पीताम्बरा के प्रति लोगों की धारणा इससे परे है।माई का यह दरबार आनन्द का धाम है।अौर आनन्द का कोई विलोम नहीं है।इसलिए इस देवी के दरवार की महिमां का वर्णन शब्दों से परे हयहां यह उल्लेखनीय है,कि बगलामुखी देवी को ही पीताम्बरी देवी अथवा पीताम्बरा देवी कहा जाता है। यह देवी सृष्टि की दश महाविद्याओं में से एक मानी जाती हैं। तंत्रशास्त्र में इस देवी को विशेष महत्व दिया गया है। अपनी उत्पत्ति के समय यह देवी पीले सरोवर के ऊपर पीले वस्त्रों से सुशोभित अद्भुत कंचन आभा से युक्त थी। इसीलिए साधकों ने इस देवी को ‘पीताम्बरी’ अथवा ‘पीताम्बरा’ देवी के नाम से भी सम्बोधित किया है इस तरह यही बगलामुखी देवी पीताम्बरी देवी के रूप में जगत में पूजित, वन्दित एवं सेवित हैं।श्री राम पर भी इनकी असीम कृपा थी इसलिए इन्हें *?रामाप्रपूजिता भी कहा जाता है?भगवान श्री कृष्ण की आराध्या होनें के कारण ये केशवस्तुता भी कही जाती है*?*

एक पौराणिक प्रसंगाानुसार  जब दक्ष प्रजापति ने अपने यज्ञ में भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया तो सती अत्यधिक  क्रोधित हो उठी। सती के रौद्र रूप को देख कर भगवान शिव अत्यधिक विचलित हो गये और इधर-उधर भागने लगे। तब सहसा दशों दिशाओं में सती का विराट स्वरूप उद्घाटित हो गया। भगवान शिव ने जब देवी से पूछा कि वे कौन हैं, तो विराट स्वरूपा देवी सती ने दश नामों के साथ अपना परिचय दिया जो दश महाविद्याओं ने रूप में जगत प्रसिद्ध हुई।

*?एक अन्य पौराणिक कथानुसार ‘कृत’ युग में सहसा एक महाप्रलयंकारी तूफान उत्पन्न हो गया। सारे संसार को ही नष्ट करने में सक्षम उस विनाशकारी तूफान को देख कर  जगत के पालन का दायित्व संभालने वाले भगवान विष्णु चिन्तित हो उठे। श्री हरि ने सौराष्ट्र के हरिद्रा नामक सरोवर के किनारे महात्रिपुर सुन्दरी को प्रसन्न करने के लिए घोर तप आरम्भ कर दिया। भगवान के तप से प्रसन्न होकर तब उस श्री विद्या महात्रिपुर सुन्दरी ने बगलामुखी रूप में प्रकट होकर उस वातक्षोभ (विनाशकारी तूफान) को शान्त किया और इस तरह  संसार की रक्षा की।इसलिए इन्हें विष्णु चिन्ताहरणी भी कहा जाता है।ब्रह्मास्त्र रूपा श्री विद्या के अखण्ड तेज से युक्त मंगल चतुर्दशी की मकार कुल नक्षत्रों वाली रात्रि को ‘वीर रात्रि’ कहा गया है, क्योंकि इसी रात्रि के दूसरे पहर में भगवती श्री बगलामुखी देवी का आभिर्भाव बताया जाता है* यथा-

अथ वचामि देवेशि बगलोत्पत्ति कारणम्।

पुराकृत  युगे देवि वात क्षोभ उपस्थिते।।

चराचर विनाशाय विष्णुश्चिन्ता परायणः।

तपस्यया च संतुष्टा महात्रिपुर सुन्दरी।।

हरिद्राख्यं सरो दृष्ट्वा जलक्रीड़ा परायणा।

महाप्रीति हृदस्थान्ते सौराष्ट्र बगलाम्बिका।।

श्रीविद्या सम्भवं तेजो विजृम्भति इतस्ततः।

चतुर्दशी भौमयुता मकारेण समन्विता।।

कुलऋक्ष समायुक्ता वीररात्रि प्रकीर्तिता।

तस्या मेषार्धरात्रि तु पीत हृदनिवासिनी।।

ब्रह्मास्त्र विद्याा संजाता त्रैलोक्यस्य च स्तंभिनी।

तत् तेजो विष्णुजं तेजो विधानुविधयोर्गतम्।।

माँ त्रिपुर सुन्दरी के परम सुन्दर स्वरुप माई पीताम्बरी की साधना हेतु भी भक्त यहां समय निकालकर आते रहते है।आज के भौतिक युग में सर्वत्र द्वन्द एवं संघर्ष का वातावरण व्याप्त है। जीवन में उन्नति करने के लिए स्वस्थ स्पर्धा के स्थान पर ईर्ष्या, रागद्वेष और घृणा का  भाव अधिक प्रभावी है। परिणामस्वरूप हर तरफ अशान्ति, अभाव, लड़ाई-झगड़े  आपराधिक गतिविधियों तथा पापाचार का बोलबाला है। जनसामान्य में असुरक्षा का भाव घर गया है। अधिकांश लोग परेशान व विचलित हैं। ऐसी परिस्थिति में जो कोई भी सुख व शान्ति की इच्छा रखते हैं, वे अन्ततः माई पीताम्बरा के शरण में जाना ही श्रेयष्कर मानते हैं।

क्योकिं मॉ भगवती बगलामुखी ममतामयी हैं, करुणामयी हैं तथा दयामयी हैं। ऐसी विषम स्थितियों में भगवती बगलामुखी देवी की शरण ही सबसे सरल व प्रभावी मानी गयी है। शास्त्रों में कहा गया है-‘* *?बगलामुखी देवी की शरणागति भक्तों को सहारा व साहस प्रदान करती है तथा सभी प्रकार के संशयों, दुविधाओं एवं खतरों से निर्भय कर देती है। यह एक सर्वविदित मान्यता है कि मनुष्य को तभी शान्ति की अनुभूति होती है, जब वह अपनी सुरक्षा के प्रति आश्वस्त हो जाता है। प्रत्येक व्यक्ति की यह परम् अभिलाषा होती है कि उसे सामाजिक सुरक्षा, आर्थिक सुरक्षा तथा शत्रुओं से सुरक्षा प्राप्त हो।  शास्त्रकारों ने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए, विजय श्री का वरण करने के लिए तथा अपने प्रभाव व पराक्रम में बृद्धि करने के लिए भगवती बगलामुखी देवी की साधना को सर्वाधिक महत्वपूर्ण बताया है*?।

अनेक प्राचीन वैदिक संहिताओं तथा धर्म ग्रन्थों में महाविद्या बगलामुखी देवी के स्वरूप, शक्ति व लीलाओं का अत्यन्त विषद वर्णन मिलता है। उपनिषदों में जिसे ब्रह्म कहा गया है, उसे भी इस शक्ति से अभिन्न माना गया है। यानी ब्रह्म भी शक्ति के साथ संयुक्त होकर ही सृष्टि के समस्त कार्यों को कर पाने में समर्थ हो पाता है। इसीलिए तो शक्ति तत्व की उपासना, वंदना व साधना को मनुष्य मात्र के लिए ही नहीं अपितु देवताओं के लिए भी परम् आवश्यक बताया गया है। इसी शक्ति तत्व में नव दुर्गा तथा सभी दश महाविद्याएं समाहित हैं, जो सृष्टि के कल्याण के लिए अनेकानेक लीलाओं का सृजन करती हैं। दश महाविद्याओं में भगवती बगलामुखी को पंचम शक्ति के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त है। यथा-

**काली तारा महाविद्या षोडसी भुवनेश्वरी।

बाग्ला छिन्नमस्ता च विद्या धूमावती तथा।।

मातंगी त्रिपुरा चैव विद्या च कमलात्मिका।

एता दश महाविद्या सिद्धिदा प्रकीर्तिता।।

कृष्ण यजुर्वेद अन्तर्गत ‘काठक संहिता’ में मॉ भगवती बगलामुखी का बड़ा ही मोहक तथा सुन्दर वृतान्त मिलता है-

सभी दिशाओं को प्रकाशित करने वाली, मोहक रूप धारण करने वाली ‘विष्णु पत्नी’ वैष्णवी महाशक्ति त्रिलोक की ईश्वरी कही जाती है। इसी को स्तम्भनकारिणी शक्ति, नाम व रूप से व्यक्त एवं अव्यक्त सभी पदार्थों की स्थिति का आधार व  पृथ्वी रूपा कहा गया है। भगवती बगलामुखी इसी स्तम्भन शक्ति की अधिष्ठात्री दवी हैं।

बगलामुखी देवी को जन सामान्य ‘बगुला पक्षी’ के मुखाकृति वाली देवी समझ बैठते हैं, जबकि यह बगुला की मुखाकृति वाली देवी नहीं हैं। पुरातन ग्रन्थों में इस देवी को ‘बल्गामुखी’ अर्थात अखण्ड व असीम तेजयुक्त मुखमण्डल वाली देवी कहा गया है।

*?इस बात पर संशय की जरा भी गुंजाइश नहीं है कि भगवती बगलामुखी देवी की श्रद्धा व विश्वास के साथ आराधना करने वाले साधक अपने विरोधियों तथा प्रतिद्वदियों पर सदैव विजय प्राप्त करने में समर्थ हो जाते हैं और दुखियों के दुःख दूर करने में भी सक्षम हो जाते हैं। आमतौर पर असाध्य रोगों व संकटों से छुटकारा पाने के लिए, दूसरों को अपने अनुकूल बनाने के लिए, हर तरह की विघ्न बाधाएं  शान्त करने के लिए तथा नवग्रहों की शान्ति के लिए मॉ भगवती बगलामुखी का विधिपूर्वक किया जाने वाला अनुष्ठान अत्यधिक प्रभावशाली एवं तत्काल फलदायी माना गया है*?अनुष्ठान  या उपासना मत्र, तंत्र अथवा यंत्र किसी भी माध्यम से सम्पन्न  करने पर यह देवी त्वरित व चमत्कारिक फल प्रदान करती हैं। देवी के साधक यह भी कहते हैं कि साधना यदि मंत्र व यंत्र का प्रयोग करते हुए की जाये तो इसमें सर्वाधिक सुखद एवं विशेष प्रभाव की अनुभूति होती  है। फिर लोक कल्याण की भावना से की जाने वाली साधना का तो कहना ही क्या, देवी ऐसे साधकों पर शीघ्र ही प्रसन्न होकर मनोवांछित फल प्रदान करती हैं। इस सम्बन्ध में ग्रन्थकार कहते हैं-

* *?बगला सर्वसिद्धिदा सर्वान कामानवाप्नुयात’*? अर्थात देवी बगलामुखी का पूजन, वन्दन तथा स्तवन करने वाले भक्त की हर मनोकामना पूर्ण होती हैै।* *?भारतवर्ष के मध्य प्रदेश राज्य अन्तर्गत दतिया नगर में स्थित पीताम्बरा शक्ति पीठ, भगवती बगलामुखी देवी के प्रमुख शक्ति पीठों में से एक है। इसकी नींव  वर्ष 1920 में तत्कालीन महान  सन्त पूज्यपाद राष्ट्रगुरु अनन्त श्री स्वामी जी महाराज द्वारा लोक कल्याण के पावन संकल्प के साथ रखी गयी थी। यहीं से बगलामुखी देवी की साधना एवं पूजा-अर्चना पीताम्बरा स्वरूप में आरम्भ हुई और देखते ही देखते इस शक्तिपीठ की कीर्ति पूरे भारतवर्ष में फैल गयी और  वर्तमान में तो मॉ का यह प्रसिद्ध शक्तिपीठ दुनिया भर के समर्पित  साधकों के लिए एक महातीर्थ के रूप में लोक प्रसिद्ध है*।?दतिया स्थित भगवती पीताम्बरी माई के इस शक्तिपीठ  का पुरातन स्वरूप बड़ा ही आकर्षक, मनोहारी एवं परम शान्तिदायक था। नैसर्गिक वातावरण के बीच स्थित यह शक्तिपीठ तब चारों ओर से सघन वनों से घिरा हुआ था। आश्रम से लगे वन क्षेत्र में दिन के समय में भी अनेक वन्य जीव यत्र-तत्र निर्भय होकर विचरते रहते थे। ऐसे भी प्रशंग मिलते हैं जब हिंसक वन्य जीव आश्रम परिसर में आ कर शान्त भाव से घंटों बैठे रहते थे और महाराज के सानिध्य में मानो भक्ति का लाभ उठाते थे। हरे-भरे वृक्षों से आच्छादित आश्रम में नाना प्रकार के पक्षियों का मधुर कलरव यहां के दिव्य एवं मनोहारी वातावरण को और भी मोहक बना देता था। मन्द पवन के बीच रंग-विरंगे फूलों पर मंडराते भंवरों की गुंजन समूचे वातावरण में संगीत का अनुभव कराती प्रतीत होती थी। आश्रम में दूर-दूर से आकर सन्त-महात्मा एवं साधकगण नित्य ही शोभा पाते थे और पूज्यपाद अनन्त श्री महाराज जी के स्नेह,सानिध्य एवं मार्गदर्शन में मॉ भगवती पीताम्बरी देवी की कठोर व पवित्र साधना में रत रह कर अनेकानेक सिद्धियां अर्जित करते थे। सभी तरह की सिद्धियों में लोक कल्याण की पुनीत भावना सर्वोपरि रहती थी।आज भी शान्ति का यह स्वरुप यहां कायम है।* *?महाभारत कालीन दंतवक्र के नाम के आधार पर दतिया का नाम जगत में प्रसिद्व हुआ दंतवक्र राजा शिशुपाल के परम मित्रों में एक थे। पीठ में स्थित वनखंडेश्वर मंदिर अश्वथामा की तपोस्थली के रुप में प्रसिद्व है कहा जाता है माई पीताम्बरी के दरवार में स्थित इस देव दरबार में झूठी कसम खाना महाअनर्थ का सूचक माना जाता है।दतिया देश के बुंदेलखंड प्रांत का एक शहर है। ग्वालियर से कुछ ही किमी० की दूरी पर यू०पी० की सीमा पर स्थित दतिया मध्य प्रदेश का लोकप्रिय तीर्थस्थलों में सबसे महत्वपूर्ण है।झांसी से यहां की दूरी पन्द्रह किलोमीटर है।इस मन्दिर के आसपास तीर्थ स्थलों की लम्बी श्रृखंला मौजूद है।यहां का किला भी अपनी पुरातन ऐतिहासिकता का प्रमाण देता है।जैन धर्म के अनुनायियों का यह तपोक्षेत्रं माना गया है।उत्तराखण्ड़ के प्रसिद्ध सूर्य मन्दिर कटारमल व गुणादित्य की भांति ही दतिया क्षेंत्र का उनाव में स्थित मन्दिर प्रसिद्व है।आध्यात्म की इस पावन धरती पर कदम कदम पर धर्म व आस्था बिखरी हुई है*?

हनुमान मंदिर,शनि मंदिर मन्दिर प्रागंण में स्थित माई धूमावती का मन्दिर ,गोविन्द मंदिर और बिहारीजी मंदिर यहां के पावन मंदिर हैं।* *?यूं तो देश भर में माई पीताम्बरी के अनेकों मंदिर है।जिनमें नलखेड़ा व वैघनाथ के मंदिर भी खासे प्रसिद्व मन्दिर है।उत्तराखण्ड़ के तो पिथाैरागढ़ जिले के अन्तर्गत त्रिपुरा देवी बेरीनाग क्षेत्र में स्थित त्रिपुर सुन्दरी माई का मन्दिर,पिथौरागढ़ का उल्कादेवी मन्दिर,बागेश्वर का कुकड़ी माई मन्दिर, इनका स्वरूप माना जाता है।भीमताल के निकट महरा गाँव में नन्तीन महाराज द्वारा स्थापित माई पीताम्बरी का मन्दिर पुरातन महत्व की दृष्टि से बेहद रमणीक है*??केदार खण्ड़ में भी हिमालय के प्रसिद्ध बगंला क्षेत्र का वर्णन मिलता है।शिव पार्वती संवाद में भगवान शिव माता पार्वती को इस क्षेत्रं का महत्व बतलाते हुए कहते है।यह पृथ्वी का परमपूज्यनीय पावन व सिद्धियों को प्राप्त करनें वाला क्षेत्र है।

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