साइंटिफिक-एनालिसिस रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा करने वाले व उपस्थित सहभागीयों को कारावास होगी

Pahado Ki Goonj

 भ्रामक समाचार के सन्दर्भ में स्पष्टीकरण

रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा करने वाले व उपस्थित सहभागीयों को कारावास होगी!साइंटिफिक-एनालिसिस

कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर एक समाचार पत्र (दिनाङ्कित 3-1-2024, बुधवार, www.dainikjagran.com का प्रचारित किया जा रहा है जिसमें परमाराध्य परमधर्माधीश उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामिश्रीः

अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती ‘1008’ का वक्तव्य “अयोध्या श्रीराम मन्दिर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में नहीं सम्मिलित होंगे सनातन धर्म के सर्वोच्च धर्मगुरु, चार पीठों के जगतगुरु शंकराचार्य” शीर्षक से प्रकाशित किया गया है।

इस सन्दर्भ में ज्योतिर्मठ की ओर से हम ब्रह्मचारी प्रत्यक्चैतन्य मुकुन्दानन्द यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि ऐसा कोई वक्तव्य लिखित अथवा मौखिक रूप में परमाराध्य शङ्कराचार्य जी महाराज ने नहीं निर्गत किया है। यह सत्य है कि परमाराध्य प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में सम्मिलित नहीं हो रहे हैं पर इसका कारण उन्होंने स्वयं स्पष्ट करते हुए कहा है कि भारत की धरती से गौहत्या का कलंक मिटाकर गौमाता को राष्ट्रमाता घोषित करवाने के बाद वे राम मन्दिर का दर्शन करना चाहेंगे।

अतः सनातनधर्मी जनता से आग्रह है कि वे इस प्रकार के भ्रामक प्रचार से बचें। परमाराध्य शङ्कराचार्य जी के आधिकारिक सोशल मीडिया माध्यम 1008.guru से जो भी समाचार प्रकाशित हों उसे ही सही समझें।

मुकुन्दानन्दः
शिष्य प्रतिनिधि
परमाराध्य परमधर्माधीश ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामिव्रीः अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती ‘1008’
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रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपतराय जी के इस बयान पर पूज्यपाद ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानंदः सरस्वती ‘१००८’ की प्रतिक्रिया । 22 जनवरी के प्रतिष्ठा के पूर्व रामानन्द सम्प्रदाय को मन्दिर सौंपे ट्रस्ट – शंकराचार्य जी महाराज, वीडियो साथ है
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9 जनवरी 2024

*राम मंदिर रामानंद संप्रदाय का तो उन्हें सौंपें , चंपतराय को इस्तीफा देना चाहिए*

ज्योतिष्पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानंदः सरस्वती ‘१००८’

*हम प्रधानमंत्री मोदी के विरोधी नहीं बल्कि उनके हितैषी हैं।*

*रामानंद संप्रदाय की पहले उपेक्षा और अब उमड़ा प्रेम*

उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठ के जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानंद: सरस्वती जी महाराज ने कहा है कि यदि राम मंदिर रामानंद संप्रदाय का है तो मंदिर संप्रदाय को सौंप देना चाहिए। इसमें पूरे संत समाज को कोई आपत्ति नहीं होगी। कहा कि चंपत राय सहित सभी पदाधिकारियों को इस्तीफा देना चाहिए। शंकराचार्य जी ने कहा कि वे प्रधानमंत्री मोदी के विरोधी नहीं है , बल्कि उनके हितेषी हैं और इसलिए उन्हें सलाह दे रहे हैं कि वे शास्त सम्मत कार्य करें । विरोधी तो वे हैं जो उनसे अशास्त्रीय कार्य करवाकर उनके अहित का मार्ग खोल रहे हैं।

ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानंद: सरस्वती जी महाराज ने स्पष्ट करते हुए कहा कि शंकराचार्यों का अपना कोई भी मंदिर नहीं होता है। वे केवल धर्म व्यवस्था देते हैं। चंपतराय को जानना चाहिये कि शंकराचार्य और रामानन्द सम्प्रदाय के धर्मशास्त्र अलग अलग नहीं होते । उन्होने सवाल किया कि वे बतायें कि क्या रामानंद संप्रदाय अधूरे मंदिर में प्रतिष्ठा को शास्त्र सम्मत मानता है?

शंकराचार्य स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानंद: जी ने चंपत राय के बयान पर कहा कि पहले उपेक्षा और अब प्रेम उमड़ रहा है। रामानंद संप्रदाय के प्रति उनकी आस्था को इस बात से समझा जा सकता है कि रामानन्द संप्रदाय निर्मोही अखाडे के एक सदस्य को सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर रखा गया और दूसरे सदस्य को नाम मात्र का अध्यक्ष बनाकर बैठक के पहले दिन ही अभिलेखों में उनके हस्ताक्षर करने के अधिकार को भी छीन लिया गया था यह सर्वविदित तथ्य है।

ज्ञातव्य है कि यह बयान
ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानंदः सरस्वती ने राम मंदिर ट्रस्ट के सचिव चंपतरात के उस बयान के बाद दिए हैं जिसमें उन्होंने मीडिया से बातचीत में कहा कि *’राम मंदिर रामानंद संप्रदाय से जुड़े लोगों का है, शंकराचार्य शैव और शाक्त का नहीं’*
इस पर अपनी बात रखते हुए शंकराचार्य जी ने कहा यदि राम मंदिर रामानंद संप्रदाय से जुड़े लोगों का है तो इस मंदिर को प्रतिष्ठा से पूर्व रामानंद संप्रदाय से जुड़े लोगों को दे दिया जाना चाहिए। इस पर किसी को कोई आपत्ति नहीं होगी । इसके अलावा उन्होंने कहा कि चंपतराय के अलावा सभी पदाधिकारियों को इस्तीफा भी देना चाहिए ।

उन्होंने कहा कि चारों पीठों के शंकराचायों को कोई राग द्वेष नहीं है लेकिन उनका मानना है कि शास्त्र सम्मत विधि का पालन किये बिना मूर्ति स्थापित किया जाना सनातनी जनता के लिये अनिष्टकारक होने के कारण उचित नहीं है।

कहा कि पूर्व में तत्कालीन परिस्थितियां ऐसी थीं कि बिना मुहूर्त के ही राम जी की मूर्ति को सन 1992 में स्थापित किया गया था। लेकिन वर्तमान समय में स्थितियां अनुकूल है। ऐसे में उचित मुहूर्त और समय का इंतजार किया जाना चाहिए।

कहा कि आधे अधूरे मंदिर में भगवान को स्थापित किया जाना न्यायोचित और धर्म संम्मत नहीं है। शंकराचार्य ने कहा कि निर्मोही अखाड़े को पूजा का अधिकार दिए जाने के साथ ही रामानंद संप्रदाय को मंदिर व्यवस्था की जिम्मेदारी दी जानी चाहिए ।आगे पढ़ें 
 प्रीति परमारथ स्वारथु ।* *कोउ ना राम सम जान जथारथु ।।*

नीति, प्रीति, परमार्थ और स्वार्थ के जानकार हैं मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान रामचन्द्र 🙏

पूज्य शंकराचार्य जी के श्रीमुख से *सीता निर्वासन के इस वीडियो को सुनिए और सांझा करिए 🙏आगे पढ़ें 

 श्रीसीता जी का निर्वासन 🙏

नीति प्रीति परमारथ स्वारथु ।
कोउ ना राम सम जान जथारथु ।

नीति, प्रीति, परमार्थ और स्वार्थ के जानकार हैं मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान रामचन्द्र 🙏

पूज्य शंकराचार्य जी के श्रीमुख से *श्रीसीता जी के निर्वासन के इस वीडियो को सुनिए और सांझा करिए 🙏

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https://fb.watch/ptOkozKlnP/?mibextid=Nif5oz

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 साइंटिफिक-एनालिसिस

रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा करने वाले व उपस्थित सहभागीयों को कारावास होगी!

बाल्या नाम का चोर-लूटेरा मरा-मरा बोलने की निस्वार्थ अति से ईंसानी हत्याओं के अक्षम्य और कलंकित अपराधों का विनाश करके राम-राम मार्ग पर आ गया और महर्षी बाल्मिकी बनकर पुरी रामायण की रचना कर दी | अब इसी अति वाले मार्ग से राम-राम का राजनैतिक, सत्ता-लौलूपता व अपने-अपने निजी स्वार्थ की मंशा से इस्तेमाल या बोलने से मरा-मरा होने जा रहा लगता हैं | जिसमे सत्ता व हर कार्यक्षेत्र के दिग्गज भागीदारी बन रहे हैं और लोगों के द्वार-द्वार जाकर पीले चावल व न जाने क्या-क्या देकर इस प्राण-प्रतिष्ठा में न आने का निमंत्रण देते हुए अपने-अपने राम की पूजा, अपने-अपने स्तर पर अपनी सामाजिक औकात/हैसियत, धार्मिक विश्वास व आर्थिक रूप से जेब के वजन के अनुसार करवा के, प्रसाद बांटने का निर्लजता व अमर्यादा पूर्ण बोलकर राजनैतिक रूप से तीरस्कारीत, अपमानित करके अछूत बनाकर दूर किया जा रहा हैं । रामलला के मूल मानव रूप में प्राण लेने के “रामनवमी” वाले दिन को काल के कपाल से मिटाने व दिपावली जैसा उत्सव सदियों से चली आ रही परम्परा के विपरित बिना धन, स्वर्ण व उपहार दिये उल्टा चन्दा, दान और चढावा एक बार बाद में अयोध्या मन्दिर में आकर देने का आह्वान किया जा रहा हैं । एक मिनिट चौबीस सैकंड के मोहर्त में आम लोग लाईव टेलिकास्ट देखेंगे या न आने के निमंत्रण अनुसार पूजा-पाठ करेंगे | इन सभी राम भक्तों को मुहर्त पर पूजा-पाठ कर यश प्राप्त करने का अधिकार नहीं लगता हैं |

सनातन धर्म व हिन्दू धर्म एवं संस्कृति में पत्थर की मूर्ति को प्राण-प्रतिष्ठा के बाद जीवित माना जाता हैं | इसी आधार को वर्तमान भारत के मुख्य न्यायाधीश नें पुष्टि करते हुए कहां कि रामलला का मन्दिर बनाने का फैसला संविधान पीठ द्वारा पूर्ण बहुमत से लिया गया अर्थात संविधान में ऐसा लिखा हैं क्योंकि न्यायपालिकाओं के फैसले संविधान के अनुसार होते हैं, किसी एक धर्म के आधार पर नहीं और संविधान की मूल भावना में सभी धर्म और उनके सिद्धांतों को समान आदर की बात कहीं हैं । भारत वर्ष में मूर्ति पूजा विरोधी कई धर्म व समाज आज भी वर्षों से प्रचलन में हैं और स्कूली शिक्षा में पढाये जाते हैं | भगवान राम ने भी पुरे भू-भाग पर विजय पाने के लिए अश्वमेव यज्ञ में अपनी धर्मपत्नी जिसे माता लक्ष्मी का अवतार माना जाता हैं उसकी स्वर्ण मूर्ति बनवाई और बाद में उस मूर्ति के स्वर्ण को गरीबों में बांट दिया था और आज भी गणेश चतुर्थी व नवरात्रि में लाखों मूर्तियां बनाई जाती हैं और उन्हें बाद में नदी / तालाब / समुद्र के जल में विसर्जित कर दिया जाता है | इनकी स्थापना में शायद मंत्रों एवं पूजा-पाठ द्वारा प्राण-प्रतिष्ठान नहीं करी जाती लगती हैं। सभी रामयणों के आधार पर टेलिविज़न पर प्रसारित रामायण में सबने देखा कि भगवान राम सरयू नदी के जलमार्ग से अन्त में बैकुंठ धाम चले गये | इसके बाद उस समय उनके असली भक्तों ने यह मार्ग अपनाया | यहीं धर्म व परम्परा चल रही हैं इस कारण लोग कोरोना काल में अपने के शवों को सूखी नदियों की मिट्टी में दबा गये अन्यथा मन्दिरों के जीवित भगवान के पास छोड जाते |

अब उच्चतम न्यायालय के इस सर्वमान्य एवं अंतिम फैसले के अनुसार उस समय की रामलला मूर्ति जीवित थी उसमें प्राण मौजूद थे | अब नई मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा में पुरानी मूर्ति से प्राण निकाले जायेंगे या ट्रांसफर करे जायेंगे अन्यथा मन्दिर बनाने के आदेश से किसी को आपत्ति नहीं हैं।

यदि प्राण निकाले जायेंगे तो यह संविधान के अनुसार भगवान रामलला की हत्या का जघन्य अपराध हैं और ऐसा करने वालों को फांसी की सजा का प्रावधान हैं | इसके साथ हत्या के दौरान उपस्थित सभी लोग जो समर्थन व उत्साहवर्धन करेंगे वो भी रामलला की हत्या के सहभागी के रूप में कानूनन अपराधी होंगे, उनके लिए भी कठोर सजा का प्रावधान हैं |

अब यदि माना जाये की प्राणों को एक मूर्ति से निकालकर दुसरी मूर्ति में डाला जा रहा हैं तो फिर नई मूर्ति जो करिबन चौदह से पन्द्रह साल के बाल्यावस्था रूप की हैं उसे कानून के हिसाब से बोल, चलकर व बयान देकर बताना होगा अन्यथा यह संविधान और उसके कानूनों के अनुसार जादू-टोना करना, अंधविश्वास फैलाना, धर्म के आडम्बर से समाज व देश को बेवकूफ़ बनाने का कारावास वाला अपराध होता हैं । सुप्रीम कोर्ट के अनुसार पहले रामलला छोटे बच्चे थे अब तो किशोर हैं और विशेष अदालतें हर रोज बच्चों को भी उनके अपराध के लिए जेलों में भेज रही हैं चाहे बच्चा अन्धा, बहरा, व गूंगा ही क्यों ना हो, इसलिए मानवीय दृष्टिकोण से कानूनों की छांव में संविधान के अनुसार नई मूर्ति को अदालत में अपने जिन्दा होने की गवाही देनी पड़ेगी |

अब बात सनातन धर्म व वेदों पर आधारित सभ्यता और संस्कृति के अटल सत्य को माने तो बाल्या चोर से महर्षी बाल्मिकी बनने के मार्ग पर प्राण-प्रतिष्ठा करने वाले, सहायक और उपस्थित रहकर उत्साहवर्धन करने वालों को जाना चाहिए जिसमें अन्न, जल त्याग कर घोर तपस्या करने का विधान हैं | शास्त्रों के अनुसार एक बार असली व सच्चें रामभक्त को पता चल जाये की भगवान जीवित रूप में उसके सामने हैं वो ही जीवन-मरण का अन्तिम सार हैं वो मोह-माया, जात-पात, धन-दौलत, कुर्सी-सत्ता सबकुछ त्याग कर उस दिव्य प्रकाशित सच में समा जाता हैं नहीं तो भगवान के आदेश से वही सबकुछ छोड़ दिन-रात उनकी सेवा में लग जाता है या भगवान के कहने पर समाज का अधुरा काम न कि सत्ता का पूरा करने की जवाबदेही निभाता हैं। आजकल तो हर जगह व छोटी सी छोटी गुफाओं में कैमरे जा सकते हैं इसलिए जीवित पत्थर की मूर्ति जैसे ही आदेश देगी वो पुरी दुनिया को दिखा देंगे ताकि उसे कुर्सी के लिए अर्थात् जिम्मेदारी लेने के लिए वोट मांगने में अपना समय बर्बाद न करना पड़े |

रामलला प्राण-प्रतिष्ठा के बाद जैसे ही मूर्ति बोलेंगी उससे कई बड़े लक्ष्यों को पूरा करने के द्वार खुल जायेंगें जो आज की मानव सभ्यता के लिए बड़ी विकराल स्थिति बने हुए हैं। मंत्रों एवं मानवीय क्रिया-कर्मों से प्राण को निकाल कर इधर से उधर कर सकने वाले दिव्य महापुरूषों को जनता के मुंह के निवाले पर टैक्स के रूप में वसूले पैंसों से दुनिया के हर कौने-कौने मे भेजा जायेगा इसके लिए पुष्पक विमाननुमा आलीशान हवाई विमान हैं ताकि कोरोना वायरस को धूल चटाई जा सके | कोरोना वायरस जैसे ही किसी के प्राण हरेगा यह दिव्य महापुरूष उस प्राण को लेकर दुबारा उसके शरीर को सही करके प्राण डाल देंगे | भारत विश्वगुरु बन जायेगा, दुनिया उसे साष्टांग प्रणाम करेगी | दान, दक्षीणा, चन्दा मांगने का झंझट ही खत्म हो जायेगा क्योंकि ईलाज के नाम पर अस्पतालों में पैसा पानी की तरह बहाने वाली जनता सोने, चांदी, हारे, मोती व अमूल्य धातुओं के साथ आज के कागजी व प्लास्टिक नोटों की नदी बहा देगी | भारत अपना सारा कर्जा चुकाकर झुके शीर्ष को फिर खड़ा करके गर्व से चल सकेगा |

समय के चक्र या राजनैतिक इच्छाशक्ति व न्यायपालिका की मोहर एवं आदेश से जैसे ही रामलला बालिग व वोट देने लायक हो जायेंगें वो लोकतान्त्रिक रूप से हर विधानसभा व लोकसभा की सीट पर चुनाव लड़ने का पर्चा भर देंगे | यदि सभी सीटों पर चुनाव लड़ने पर चुनाव आयोग कानूनी अड़चन पैदा करेगा तो हर क्षेत्र के राम मन्दिर की मूर्ति चुनावी प्रत्याक्षी के रूप में पर्चा भर देगी आखिरकार संविधान के अनुसार प्राण-प्रतिष्ठा करी हुई मूर्ति जीवित होती हैं। इससे लोकतांत्रिक रूप से हिन्दू राष्ट्र की स्थापना हो जायेगी और गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, भूखमरी, अशिक्षा, महंगाई, जातिगत भेदभाव, लड़ाई-झगड़े, मनमुटाव, भेदभाव, टुटी सड़के, अस्पतालों की कमी, खानपान में मिलावट जैसी अनगिनत समस्याओं से मुक्ति मिल जायेगी | धर्म और शास्त्र तो यह कहता हैं कि एक व्यक्ति के त्याग से परिवार, एक परिवार के त्याग से गांव, एक गांव के त्याग से शहर, एक शहर के त्याग से राज्य व एक राज्य के त्याग से देश बचता हैं तो वह करना न्यायसंगत होता हैं । इसलिए रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा में आमंत्रित व मौजूद दिव्यपुरूष इस धर्म व शास्त्र मार्ग पर चलेंगे |

शैलेन्द्र कुमार बिराणी
युवा वैज्ञानिक

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देश को अशिक्षित लोगों से खतरा नहीं है बल्कि पढ़े लिखे मदान्ध विचारशुन्य जाहिलो से खतरा है.
सोचिए की मूर्खता किस हद तक हावी हो चुकी है की 🍊🍊 #शंकराचार्य तक को गालियां दे रहे.
ये कैसे नराधाम हिंदुओं का समूह है जो #हिन्दू_धर्म में सर्वोच्च धर्म गुरु के पद पर बैठने वाले शंकराचार्य गुरुओं का अपमान कर रहे.
#श्रीराम_मंदिर प्राण प्रतिष्ठा में चारों गुरुओं ने जाने से मना कर दिया क्योंकि उनके मुताबिक ” राम मंदिर में मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा शास्त्रों के अनुसार नहीं की जा रही है. गुरुओं का कहना है की पीएम मोदी द्वारा #रामलला की मूर्ति को स्पर्श करना ही मर्यादा के खिलाफ है.
ऐसे में वह मर्यादा पुरुषोत्तम की मर्यादा के उल्लंघन के साक्षी नहीं बन सकते…”
बस, मोदी जी के भक्त नाराज हो गए और गुरुओं को ही अपशब्द बोलने लगे हैं. bepende के  लौटे  जैसे  पत्रकार अछूत समझे जाने वाले चौथा स्तम्भ जिसका कोई चेहरा नहीं है  वहीं अपने देश की  बुराई करने मे अपना नाम दर्ज कर रहे हैं 

दरअसल, धर्म के नाम पर गला फाड़ने वाले
मूर्खों को धर्म का “क ख ग” भी नहीं मालूम.
ये इतने छिछले हैं की अपने ही धर्म का सत्यानाश कर रहे हैं.

इन गलीजों को ये मालूम ही नहीं की
हमारा #वैदिक धर्म ये कहता है की शंकराचार्य धर्मसम्राट का पद #शिव_अवतार भगवान आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित सत्य #सनातन_धर्म के आधिकारिक मुखिया की उपाधि है.

यह कोई #बौद्ध_पंथ में #दलाईलामा और #ईसाई_रिलीजन में #पोप कि तरह उक्त मानव समाज द्वारा निर्मित नहीं बल्कि स्वयं #ईश्वर_अवतार द्वारा स्थापित है.

समस्त हिन्दू धर्म इन्हीं चार मठों के दायरे में आता है –उत्तर में बद्री धाम का ज्योतिर्मठ, दक्षिण में श्रृंगेरी मठ, पूर्व दिशा में जगन्नाथ पुरी में स्थित गोवर्धन मठ और पश्चिम दिशा में द्वारका में स्थित शारदा मठ ….

भगवान कृष्ण ही चूंकि सर्वकालिक अखिल गुरू हैं.उन्होंने ही सनातन धर्म की प्रतिष्ठा हेतु भारत के इन चार क्षेत्रों में चार मठ स्थापित किये तथा शंकराचार्य पद की स्थापना करके उन पर अपने चार प्रमुख शिष्यों को आसीन किया था.

हार युग में एक ऋषि को यह उपाधि प्राप्त हुई है. सत्ययुग में वामन, त्रेतायुग में सर्व गुरू ब्रम्हर्षि वशिष्ठ और द्वापर के सर्वगुरू वेदव्यास थे. उनसे शास्त्रार्थ में पराजित श्री मंडन मिश्र पहले शंकराचार्य थे
तभी से इन चारों मठों में शंकराचार्य पद की परम्परा चली आ रही है. यह पद हिन्दू धर्म का सर्वोच्च गौरवमयी पद माना जाता है.

शंकराचार्य के दर्शन को अद्वैत वेदांत का दर्शन कहा जाता है. उन्होंने ही इस ब्रह्म वाक्य को प्रचारित किया था कि
“ब्रह्म ही सत्य है और जगत माया ‘
आत्मा की गति मोक्ष में है…”

पर जिसके लिए”माया” ही जगत है
और “असत्य ” ही उसका धर्म..
जिसकी “आत्मा” की गति “मोक्ष” की नहीं
बल्कि झूठ, दुराचार, घृणा, पाप और आडंबर है–
उसके अहंकार की राजनीति और स्वयं को ही “ब्रह्म” स्थापित करने की भूख ने आज हिंदू धर्म के इस सर्वोच्च पद की गरिमा को भी अपमानित करने का घोर #अधर्म किया है.

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