उत्तराखंड संस्कृति: जौनसार में अब भी जिंदा है पाण्डव कालीन संस्कृति और स्याणाचारी

Pahado Ki Goonj

उत्तराखंड संस्कृति: जौनसार में अब भी जिंदा है पाण्डव कालीन संस्कृति और स्याणाचारी

हिमाचल और उत्तराखण्ड की बीचों बीच अनूठी संस्कृति 

देहरादून, पहाडोंकीगूँज,महाभारत काल से लेकर 21वीं सदी तक दुनियां कहां से कहां पहुंच गयी, मगर उत्तराखण्ड और हिमाचल प्रदेश के गिरी वार और गिरि पार का एक जनजातीय क्षेत्र ऐसा भी है जो कि अपनी अनूठी संस्कृति के कारण हजारों सालों के अन्तराल के बावजूद हमें अपने अतीत की झलक दिखाता है। यद्यपि त्रिस्तरीय पंचायती राज के चलन में होने के कारण इस क्षेत्र में भी देश के अन्य भागों की तरह लोकतांत्रिक तरीके से गठित ग्राम पंचायतें संचालित होती हैं, फिर भी लोगों की अपनी संस्कृति के प्रति अटूट आस्था के चलते यहां आज भी स्याणाचारी प्रथा पंचायती राज से अधिक प्रभावी है।

 

यहां अन्य पंचायत चुनावों में धन बल या बाहुबल का प्रयोग न होकर क्षेत्रवासियों और स्याणाओं (ग्राम प्रमुख) की सहमति से ग्राम प्रधान चुने जाते हैं। इन स्याणा पदधारियों को सीधे महासू देवता का प्रतिनिधि माना जाता है, इसलिये उनके आदेश या फैसले की अवहेलना का मतलब देवता का अनादर माना जाता है। विशिष्ट संस्कृति के चलते जौनसार बावर गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 की धारा 91 के तहत (एक्सक्लूडेड और पार्शियली एक्सक्लूडेड एरियाज) एक्सक्लूडेड क्षेत्र रहा।

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