राखी के त्योहार के माहात्म्य की कथा

Pahado Ki Goonj

॥ मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचन्द्र जी की जय ॥ 

राखी के त्योहार के माहात्म्य की कथा

ॐ येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल॥

भावार्थ 

जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानदाता राजा बलि को बांधा गया था। उसी सूत्र से मैं तुम्हें बांधता हूं। हे रक्षे (राखी), तुम अडिग रहना। अपने रक्षा के संकल्प से कभी भी विचलित मत होना।

राखी के त्योहार का एक पौराणिक मंत्र है जिसे पूजा के समय पुरोहित और कलाई पर राखी बाँधते समय बहन बोलती हैं। यह मंत्र है- ‘येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबल: तेन त्वाम् प्रतिबद्धनामि रक्षे माचल माचल:।

राखी के इस मंत्र का अर्थ है- जिस रक्षासूत्र से महान  दानवेन्द्र राजा बलि को बांधा गया था, उसी रक्षाबंधन से मैं तुम्हें बांधता हूँ, जो तुम्हारी रक्षा करेगा। हे रक्षे! (रक्षासूत्र) तुम चलायमान न हो, चलायमान न हो।
हिन्दू धर्मशास्त्र के विद्वानों के अनुसार इसका अर्थ यह है “कि रक्षासूत्र बांधते समय ब्राह्मण या पुरोहत अपने यजमान को कहता है कि जिस रक्षासूत्र से दानवों के महापराक्रमी राजा बलि धर्म के बंधन में बांधे गए थे अर्थात् धर्म में प्रयुक्त किए गये थे, उसी सूत्र से मैं तुम्हें बांधता हूँ” यानी धर्म के लिए प्रतिबद्ध करता हूँ।

इसके बाद पुरोहित रक्षासूत्र से कहता है कि हे रक्षे तुम स्थिर रहना, स्थिर रहना।इस प्रकार रक्षा सूत्र का उद्देश्य ब्राह्मणों द्वारा अपने यजमानों को धर्म के लिए प्रेरित एवं प्रयुक्त करना है।
इस मंत्र से संबंधित कथा वामन पुराण, भविष्य पुराण,और विष्णु पुराण में मिलती है। राजा बली बहुत दानी राजा थे और भगवान विष्णु जी के अनन्य भक्त भी थे। एक बार उन्होंने यज्ञ का आयोजन किया। इसी दौरान उनकी परीक्षा लेने के लिए भगवान विष्णु जी वामनावतार लेकर आए और दान में राजा बलि से तीन पग भूमि देने के लिए कहा। लेकिन उन्होंने दो पग में ही पूरी पृथ्वी और आकाश नाप लिया।

इस पर राजा बलि समझ गए कि भगवान उनकी परीक्षा ले रहे हैं।
तीसरे पग के लिए उन्होंने भगवान का पग अपने सिर पर रखवा लिया। फिर उन्होंने भगवान से याचना की थी कि अब तो मेरा सब कुछ चला ही गया है, प्रभु आप मेरी विनती स्वीकारें और मेरे साथ पाताल में चलकर रहें।भगवान ने भक्त की बात मान ली और बैकुंठ छोड़कर पाताल चले गए। उधर भगवती देवी लक्ष्मी जी परेशान हो गईं। फिर उन्होंने लीला रची और गरीब महिला बनकर राजा बलि के सामने पहुँची।

राजा बलि नें महिला का गरीबी देखकर उन्हें अपने महल में रख लिया और बहन की तरह उनकी देखभाल करने लगा, श्रावण पूर्णिमा के दिन देवी लक्ष्मी जी ने जो एक गरीब महिला के रूप में थीं राजा बलि की कलाई में एक कच्चा धागा बांध दिया। राजा बलि ने उस गरीब महिला से कहा कि आपने बहन के तौर पर मेरी कलाई में यह रक्षासूत्र बांधा है तो मैं आपको कुछ देना चाहता हूँ, आपकी जो इच्छा हो माँग लीजिए, इस पर देवी लक्ष्मी जी अपने वास्तविक रूप में आ गईं और बोलीं कि आपके पास तो साक्षात भगवान हैं, मुझे वही चाहिए मैं उन्हें ही लेने आई हूँ। मैं अपने पति भगवान बैकुण्ठाधिपति विष्णु जी बिना बैकुंठधाम में अकेली हूँ। महिला की सच्चाई जानने के बाद भी राजा बलि धर्म के पथ पर कायम रहे और वचन के अनुसार राजा बलि ने लक्ष्मीनारायण भगवान विष्णु जी को माता लक्ष्मी जी के साथ पाताल लोक से जाने के लिए अपनी सहमति दे दी, वहाँ से जाते समय भगवान विष्णु जी ने राजा बलि को यह वरदान दिया कि वह हर साल चार महीने पाताल में ही निवास करेंगे। यह चार महीना चर्तुमास के रूप में जाना जाता है जो देवशयनी एकादशी से लेकर देवउठानी एकादशी तक होता है।

 

हर साल सावन मास की पूर्णिमा तिथि पर रक्षाबंधन का पावन पर्व मनया जाता है। इस साल 22 अगस्त, रविवार को रक्षाबंधन का पर्व मनाया जारहा है। हिंदू धर्म में रक्षाबंधन का बहुत अधिक महत्व होता है। इस दिन बहन भाई को राखी बांधती हैं और भाई बहन की रक्षा करने का वचन देता है। इस साल रक्षाबंधन का दिन बेहद शुभ है। इस बार 50 साल बाद शुभ योग का निर्माण हो रहा है।

रक्षाबंधन का पर्व इस वर्ष चार विशिष्ट योगों से परिपूर्ण है। पूरे 50 वर्ष बाद सर्वार्थसिद्धि, कल्याणक, महामंगल और  योग एक साथ बनेंगे। इससे पूर्व वर्ष 1981 में ये चारों योग एक साथ बने थे। इन चारों योगों से रक्षाबंधन का महात्म्य बढ़ गया है। इस मध्य भाई और बहन के लिए रक्षा बंधन की रस्म विशेष कल्याणकारी होगा।। हमारे त्योहार सद्भावना एवं प्यार के उपहार हैं बचपन की यादों का चित्रहार है रखी
हर घर में खुशियों का उपहार है राखी

भाई बहन का परस्पर विश्वास है राखी
रक्षा करने के लिए संकल्प है राखी
दिल का सकून और मीठा सा जज्बात है राखी
शब्दों की नहीं पवित्र दिलों की बात है राखी।

भूपेश कुड़ियाल 

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