कृषि मंत्री सुबोध उनियाल ने विभागीय बैठक में  खेती को प्रतिस्पर्धी बनाने के दिये निर्देश, अन्य खबरें

Pahado Ki Goonj
देहरादून,कृषि मंत्री सुबोध उनियाल ने ली समीक्षा बैठक में खेती को प्रतिस्पर्धी बनाने पर जोर देने के निर्देश दिये
देहरादून। प्रदेश के कृषि एवं उद्यान मंत्री सुबोध उनियाल ने विधान सभा सभाकक्ष में कृषि विभाग के विभिन्न शाखाओं के अधिकारियों के साथ समीक्षा बैठक की। बैठक में कृषि, उद्यान, रेशम, मत्स्य इत्यादि से जुड़े अधिकारियों के साथ नर्सरी एक्ट, जैविक खेती, कृषि और उद्यान विभाग के एकीकरण, खाद्य प्रसंस्करण और आई.एम.ए विलेज योजना पर विस्तृत चर्चा की गयी। इस दौरान नर्सरी एक्ट के प्रारूप पर विस्तृत चर्चा के दौरान अधिकारियों ने इसमें किये गये प्रावधानों से सदन को अवगत कराया, जिस पर मंत्री और सचिव कृषि एवं उद्यान आर. मीनाक्षी सुन्दरम ने स्थानीय किसानों के हित में आवश्यक परिवर्तन करते हुए उनको अधिकाधिक लाभ सुनिश्चित करवाने और खेती को प्रतिस्पर्धी बनाने पर जोर देने के निर्देश दिये। 
कृषि और उद्यान विभाग के एकीकरण पर चर्चा करते हुए पदों को बढ़ाने-घटाने, वर्गीकृत के निर्धारण, पदोन्नति के अवसर और सेवा नियमावली इत्यादि पर गहन मंथन किया गया। विभागों के एकीकरण पर चर्चा करते हुए बैठक में कृषि विभाग में अधिशासी अभियंता के पदों का भी प्रावधान रखने, चतुर्थ श्रेणी के सभी पद वर्तमान कार्मिकों के रिटायरमेंट तक प्रभावी रखने और उसके पश्चात, माली, नर्सरी हैल्पर इत्यादि पदों को आउटसोर्सिंग से रखने के प्रावधान पर सहमति व्यक्त की गयी। 
कृषि मंत्री ने आई.एम.ए. विलेज योजना को धरातल पर अमली जामा पहनाने और निर्धारित उदेश्यों की पूर्ति हेतु सचिव कृषि को नियमावली बनाने और इस सम्बन्ध में विभागीय बैठक करते हुए कार्य करने के निर्देश दिये। उन्होंने उद्यान विभाग से जुड़े अधिकारियों को सेब के काश्तकारों को आवश्यकतानुसार उचित गुणवत्ता की तथा पर्याप्त संख्या में सेब की पेटियाँ उत्तराखण्ड ब्राण्ड नाम से उपलब्ध कराने के निर्देश दिये। 
जैविक एक्ट पर चर्चा के दौरान अधिकारियों द्वारा अवगत कराया गया कि ड्राफ्ट पर न्याय विभाग से परामर्श लिया जा रहा है और उसी अनुरूप विभागीय स्तर पर चर्चा के उपरान्त उसको अंतिम रूप दिया जायेगा। कृषि मंत्री ने विभागीय अधिकारियों को जैविक उत्पादों की ब्रांडिग करते हुए उसका अधिक से अधिक प्रचार-प्रसार करने के निर्देश दिये। कृषि मंत्री ने इस अवसर पर अवगत कराया कि नर्सरी एक्ट में इस तरह के प्रावधन रखे गये हैं जिससे छोटी जोत का किसान भी नर्सरी लगा सकें साथ ही सरकारी नर्सरी को भी नर्सरी एक्ट के दायरे में लाया गया है। उन्होंने किसानों और काश्तकारों के कल्याण हेतु चलायी जा रही विभिन्न योजनाओं को कलस्टर(समूह) आधारित फोकस करने के निर्देश दिये जिससे किसी की उत्पाद की ब्राण्ड(पहचान) बन सके और  लोग उससे प्रेरित होकर उसके उत्पादन से जुड़ सकें। उन्होंने किसान सम्मान निधि योजना को भी महिलाओं पर अधिक फोकस करते हुए लाभ देने के निर्देश दिये। इस अवसर पर सचिव कृषि व उद्यान आर. मीनाक्षी सुन्दरम, अपर सचिव कृषि रामविलास यादव, राजेन्द्र सिंह, देवेन्द्र पालीवाल, निदेशक रेशम विभाग ए.के. यादव एवं अपर निदेशक कृषि के.सी. पाठक सहित अन्य विभागीय अधिकारी मौजूद थे।
सीमेन्स स्कॉलरशिप प्रोग्राम के लिए आवेदन आमंत्रित
देहरादून। इलेक्ट्रिफिकेशन, ऑटोमेशन और डिजिटलाइजेशन पर केंद्रित कंपनी, सीमेन्स लिमिटेड ने सीमेन्स स्कॉलरशिप प्रोग्राम का 7वाँ संस्करण लॉन्च किया है। जर्मनी की दोहरी शिक्षा प्रणाली पर आधारित यह प्रोग्राम इंडस्ट्री में युवाओं के टेक्नीशियन और इंजीनियर बनने की योग्यता को संवारता और निखारता है। इस स्कॉलरशिप प्रोग्राम की मदद से छात्र इंजीनियरिंग, रिसर्च और अनुसंधान या निर्माण क्षेत्र में अपना स्थायी कैरियर बना सकते हैं। इस प्रोग्राम के माध्यम से सीमेन्स अपनी मुख्य क्षमताओं जैसे नवीनतम तकनीक और अनुभव से लाभ उठाते हुए टेक्निकल एजुकेशन को बढ़ावा देकर समाज पर एक जबर्दस्त असर छोड़ना चाहता है। 
इस पहल के तहत सीमेन्स गरीबी और आर्थिक संसाधनों की कमी से जूझ रहे योग्य मेधावी छात्रों को वित्तीय सहायता प्रदान करेगा। सीमेन्स इन मेधावी बच्चों को इंडस्ट्री के तौर-तरीकों और आधुनिक ट्रेंड्स से भी परिचित कराएगा, जिससे उनके पूरे व्यक्तित्व का विकास होगा। इस स्कॉलरशिप प्रोग्राम में 4 साल का ग्रेजुएशन कोर्स कर रहे छात्र आवेदन कर सकते हैं। इस स्कॉलरशिप प्रोग्राम का 50 फीसदी हिस्सा लड़कियों के लिए आरक्षित है। 2019 में भारत के 23 राज्यों के 65 इंजीनियरिंग कॉलेज के 585 छात्र सीमेन्स के स्कॉलरशिप प्रोग्राम का हिस्सा बने हैं। इस स्कॉलरशिप प्रोग्राम से ग्रेजुएशन कोर्स करने वाले सीमेन्स स्कॉलर्स अपनी कम्युनिटी के लिए रोल मॉडल बनकर उभरे हैं। उन्होंने बहुत से छात्रों को इंजीनियरिंग को अपना करियर बनाने के लिए प्रेरित किया है। इस प्रोग्राम से छात्रों में इंडस्ट्री में नौकरी करने के लिए जरूरी योग्यता और क्षमता पनपती है। यहां स्टूडेंट्स को जॉब में मदद करने वाली सॉफ्ट स्किल्स सिखाई जाती हैं। इसके अलावा उन्हें इंडस्ट्री की मौजूदा जरूरतों के बारे में भी बताया जाता है। छात्रों के सर्वांगीण व्यक्तित्व विकास की पहल के तहत सीमेन्स उन्हें फंक्शनल और टेक्निकल ट्रेनिंग भी देता है। इसके अलावा छात्रों को फीस भरने और शैक्षिक भत्तों के रूप में वित्तीय मदद भी दी जाती है। स्कॉलर्स के पास अपने चार साल के ग्रेजुएशन कोर्स के दौरान व्यापक विकास योजना का लाभ भी रहता है। इस स्कॉलरशिप प्रोग्राम के लिए छात्रों को बेहद कठोर चयन प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है।
बिंदाल व रिस्पना नदियों के उफान पर होने से कई बस्तियों को खतरा
देहरादून,। बारिश के चलते नदियां, गदेरे उफान पर हैं। कई जगह बादल फटने जैसी घटनाएं भी सामने आई हैं। देहरादून के बीच से बहने वाली रिस्पना और बिंदाल नदियां भी उफान पर आ गई हैं। इससे इन नदियों के कैचमेंट एरिया में बसी बस्तियों पर खतरा मंडरा रहा हैं। 
मौसम विभाग ने अगले दो-तीन दिन राज्य में भारी बारिश का अलर्ट जारी किया है। आम तौर पर कूड़ेदान की तरह इस्तेमाल होने वाली रिस्पना नदी साल के इन चंद दिनों में नदी जैसी जैसी दिखती है। भले ही पानी मटमैला हो लेकिन इसका स्वरूप नदी का ही होता है। रिस्पना में पानी आने के बाद पुल के नीचे से गुजरने वाला रास्ता बंद हो गया और यहां से आने के लिए पहुंचे लोगों को अटकना जा पड़ा। पानी की ताकत का अंदाजा न होने की वजह से यह गाड़ी पानी में ही फंस गई। रिस्पना में अचानक पानी आ जाने की वजह से एक जानवर भी फंस गया था। दसेक मिनट की हिचक के बाद इसने किनारे पर जाने की कोशिश की तो रिस्पना इसे बहा ले गई। करीब आधे किलोमीटर तक वह बहता रहा, फिर इसकी कोशिशें रंग लाईं और ये पार निकल पाया। नैनीताल हाईकोर्ट रिस्पना के कैचमेंट एरिया में बसी इन अवैध बस्तियों को हटाने का आदेश दे चुका था। लेकिन वोटबैंक की खेती कहे जाने वाली इन बस्तियों को हटाने के लिए राज्य सरकार ने पिछले साल ही अध्यादेश लाकर तीन साल का समय ले लिया था।
मुख्य सचिव ने ‘लक्ष्य-2020‘ की समीक्षा की
देहरादून। मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह ने सचिवालय में ‘लक्ष्य-2020‘ की समीक्षा की। उन्होंने सम्बन्धित विभागों के अधिकारियों को ‘लक्ष्य-2020‘ के अन्तर्गत निर्धारित किए गए लक्ष्यों को समयबद्ध तरीके से पूर्ण करने के निर्देश दिए। विभागों से लक्ष्य 2020 के अन्तर्गत योजनाओं की विस्तार से जानकारी प्राप्त करते हुए उन्होंने प्रत्येक परिवार को गैस एवं बिजली कनेक्शन उपलब्ध कराने के निर्देश संबंधित विभागों को दिए। ताकि प्रदेश में कोई भी परिवार बिना गैस व बिजली कनेक्शन के न रहे। मुख्य सचिव ने राजस्व विभाग को भू-अभिलेख, नामांतरण एवं राजस्व न्यायालयों का पूर्ण डिजिटाइजेशन में तेजी लाने के निर्देश दिए। इस अवसर पर सचिव अरविन्द सिंह ह्यांकी ने बताया कि गंगा नदी में अनुपचारित अपशिष्ट गिरने से रोकने के लिए चिन्हित किए गए नालों के उपचार हेतु निर्धारित लक्ष्य निर्धारित समय में पूर्ण कर लिया जाएगा। इस अवसर पर सचिव भूपेन्द्र कौर औलख, अमित नेगी एवं अरविन्द सिंह ह्यांकी सहित सम्बन्धित विभागों के उच्चाधिकारी उपस्थित थे।
उत्तराखण्ड में हाथियों की सुरक्षा पर बड़ा सवाल, पिछले 19 सालो में ढाई सौ हाथियों की हो चुकी अकाल मौत
देहरादून। पहाड़ी राज्य उत्तराखण्ड का साठ प्रतिशत से भी अधिक भू-भाग वनों से घिरा है। जिसके चलते उत्तराखण्ड वन्यजीव संसार की दृष्टि से काफी संमृद्धशाली माना जाता है। किन्तु पिछले एक दशक से भी अधिक समय में मानव और वन्यजीव संघर्ष में कई वन्यजीव अपनी जान गंवा चुके है। उत्तराखण्ड का देहरादून व हरिद्वार के मध्य स्थित राजाजी नेशनल पार्क व रामनगर क्षेत्र में स्थित टाईगर रिजर्व पार्क एशियाई हाथियों का मुख्यवास स्थल माना जाता है। किन्तु पिछले दो दशको में हाथियों की अकाल मौत यह साबित कर रही है कि अब उत्तराखण्ड के क्षेत्र हाथियों के लिए असुरक्षित होते जा रहे हैै। साथ ही पिछले कुछ दिनों में लगातार  पांच गुलदारों की मौत ने भी वन विभाग के माथे पर डाले हुए है।
भले ही उत्तराखंड  हाथी समेत अन्य वन्य जीवों और बायोडायवर्सिटी के लिहाज से धनी माना जाता है। इस धरती का सबसे बड़े प्राणी की संख्या भी यहां अच्छी खासी है लेकिन आंकड़े बता रहे हैं कि देवभूमि हाथी की कब्रगाह बनती जा रही है। राज्य बनने के बाद से अब तक यहां चार सौ हाथियों की मौत हो चुकी है। इनमें से प्राकृतिक मौत सिर्फ डेढ़ सौ हाथियों को ही नसीब हुई है। उत्तराखंड में अभी 18 सौ से अधिक हाथी मौजूद हैं लेकिन चिंता यहां इनकी अकाल मृत्यु की बड़ी संख्या को लेकर भी है। साल 2000 से लेकर अभी तक मात्र डेढ़ सौ हाथी अपनी स्वाभाविक मौत मरे हैं बाकी करीब ढाई सौ हाथी करंट लगने, ट्रेन या रोड एक्सीडेंट होने या फिर शिकारियों के नापाक इरादों की वजह से मारे गए हैं। बीते 19 साल में सिर्फ बिजली के तारों की चपेट में आने से 37 हाथी मारे गए हैं और इतने ही हाथियों  की ट्रेन से कटकर मौत हुई है। इससे चिंतित भारतीय वन्य जीव संस्थान के वैज्ञानिक अब एक ऐसा सेसमिक सेंसर बनाने  के करीब पहुंच चुके हैं, जिससे रेलवे ट्रेक पर आने से पहले ही हाथियों की सूचना प्राप्त हो जाएगी। समस्या  सिर्फ रेलवे ट्रेक ही नहीं हैं, हाथियों के आने-जाने के जो पारंपरिक रास्ते यानि एलिफेंट कॉरीडोर थे, वहां हाईवे आदि का निर्माण भी एक बड़ी समस्या है। उत्तराखंड में ऐसे 11 हाथी कॉरिडोर हैं जिन पर अतिक्रमण कर दिया गया है। वर्ष 2017 की गणना के अनुसार उत्तराखंड में 1800 से अधिक हाथी मौजूद हैं। भौगोलिक रूप से उत्तराखंड का अधिकांश हिस्सा पर्वतीय है। मैदान के एक सीमित क्षेत्र में गजराज रहते हैं लेकिन यहां  आबादी का बढ़ता दबाव टकराव के रूप में सामने आ रहा है।
भूस्खलन को रोकने के लिए किए जा रहे उपचार कार्यों की समीक्षा की
देहरादून, मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से नैनीताल के बलियानाला क्षेत्र में हो रहे भूस्खलन को रोकने के लिए किए जा रहे उपचार कार्यों की समीक्षा की। मुख्य सचिव ने बलिया नाले में हो रहे भूस्खलन को रोकने के लिए किये जा रहे उपचार की प्रगति की विस्तार से जानकारी ली। उन्होंने बलिया नाला के उपचार हेतु शॉर्ट टर्म ट्रीटमेंट कार्य की धीमी गति पर नाराजगी व्यक्त करते हुए सुनियोजित तरीके से कार्यों में तेजी लाने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि इसकी रियल टाईम मॉनिटरिंग के साथ ही शॉर्ट टर्म और लॉन्ग टर्म उपचार कार्यों को आपसी सामंजस्य के साथ किया जाए। बलिया नाले के प्रभावितों के पुनर्वास कार्य एवं उनके लिए मूलभूत सुविधाओं की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए। इस अवसर पर सचिव श्रीमती भूपेन्द्र कौर औलख, अमित नेगी एवं  अरविन्द सिंह ह्यांकी सहित सम्बन्धित विभागों के उच्चाधिकारी उपस्थित थे। 
आठ अगस्त से बंद पड़ा है रुद्रप्रयाग-गौरीकुंड हाईवे
देहरादून। रुद्रप्रयाग-गौरीकुंड राष्ट्रीय राजमार्ग बांसवाड़ा, तिलवाड़ा,भीरी और जामू नर्सरी के समीप अवरूद्ध रहा। जिले में 20 संपर्क मोटर मार्ग भी बंद पड़े हैं। गौरतलब है कि ऑल वेदर रोड परियोजना के तहत निर्माणाधीन रुद्रप्रयाग-गौरीकुंड राष्ट्रीय राजमार्ग पर बांसवाड़ा भूस्खलन जोन नए सिरोहबगड़ के रूप में परेशानी का सबब बना हुआ है। बीते चार दिनों से पहाड़ी से भूस्खलन थमने का नाम नहीं ले रहा है। यहां जगह-जगह पर पानी का रिसाव होने से हालात और भी गंभीर हो रहे हैं। ऐसे में जहां केदारघाटी का जिला मुख्यालय से संपर्क कटा हुआ है। यहां जरूरी सामग्री की सप्लाई भी नहीं हो रही है। बीते आठ अगस्त की रात से गौरीकुंड हाईवे बांसवाड़ा में बंद पड़ा है। यहां पहाड़ी से रुक-रुककर पत्थर व मलबा निरंतर गिर रहा है, जिस कारण वाहनों का संचालन ठप है। यहां जगह-जगह पर पानी का रिसाव से कीचड़ जमा है, जिससे स्थिति और भी गंभीर हो रही है। 
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