उत्तराखंड के अधिकारियों, कर्मचारियों को दृढ़

Pahado Ki Goonj

देहरादून डॉ राजेन्द्र डोभाल बैज्ञानिक निदेशक प्रौद्योगिकी की पोस्ट आज देखकर प्रदेश के विकास के लिये प्रयोग शाला से खेत तक कार्यक्रम को बढ़ाने में उनका सरहनीय योगदान है।वह अपने लेखों से जहां जिज्ञासु की जिज्ञासा को और बढ़ाते हैं वहीं पलायन रोकने के लिये स्थनीय पेड़ पौधों के साथ साथ उत्तराखण्ड के खेतों में पैदा होने वाले ओषधीय गुणों से भरपूर फसल को पैदा करने के लिए प्रेरित करने में शिक्षाक भूमिका में है। उत्तराखंड के विकास के लिये लालायित होकरविकास के लिये उनकी इच्छा शक्ति का परिचय दिलाता है
विकास में इच्छा शक्ति का होना जरूरी है।। अधिकारी को ज्ञान है तब अधिकारी बना ।कर्म करना इच्छा पर निर्भर करता है ।मैं टिहरी जिला 20सूत्रीय कार्यक्रम क्रियान्वयन समिति के सदस्य के रूप काम करने कावर्ष1989 से मौका मिला तो जिला समिति की बैठकों में सभी विभागों की चर्चा होती बजट भी ज़िले का जाता ।मेरा हमेसा कुछ नया करने की इच्छा रहती है ।तो विकास की बात तो पलायन रोकने से होगा ।पन्त नगर विश्व विद्यालय ही इसमें अहम भूमिका निभा सकता है तो सबकी बात सुनकर मैने अपने छेत्र कोटलगावँ भदूरा बांध प्रभावित छेत्र में मेला करा ने की बात कह कर बैज्ञानिकों को बुलाने के लिये कहा जिला अधिकारी राजीव गुप्ता अब स्थानीय आयुक्त दिल्ली के हम आभारी हैं उन्होंने विश्व विद्यालय को मेले में आने को कह दिया।डॉ नॉटियाल निदेशक gbpu कैंपस रानिचोरी विश्व विद्यालय के रहे ।उन्होंने बड़ी इच्छा शक्ति से पूरे बैज्ञानिकों की टीम रिमोट एरिया में लाई वहाँ उनके साथ आये वैज्ञानिकों ने प्रदर्शन कार्य किसानों से बीज देकर कराया ।तब से पट्टी भदूरा बे मौसमी फसल की सब्जियां उगाई जारही है।1 खेत मे बन्द गोभी 68000 की भी किसान ने पैदा की है।पर उसके बाद छेत्र में बैज्ञानिकों को लैब टू लैंड कार्यक्रम कराने की कोई सामाजिक कार्यकर्ता जहमत नही उठान चाहता है।और करने वालों का साथ सरकारी कर्मचारियों से कम मिलते है।अधिकारियों को अब सेल्प हेल्प गुरूप के पास जाने की आवश्यकता है।उनको विस्वास में लेकर उनके लिये कार्यक्रम भेजा जाय कि फलाने दिन हम आएँगे क्यों कि जन प्रतिनिधि के पास इतना पैसा आरहा है कि उसको ओर ऐसे काम करने की फुर्सत कहाँ है।अब अधिकारी जनकारी होने पर ही बनते हैं कुछ फर्जी भी बाहरी हैं माहौल खराब करने को पर अब उत्तराखंड के मूल वासी ही अपनी इच्छा काम करने के लिये मारडेगा तो दूसरों को कैसे दोष दे सकते हैं।अछे घरके जिसके संस्कार होते है वह समाज मे कुछ जरूर करना चाहता है। ज्यादा तर लोग।उत्तरखंड में इच्छाओं को मारने वाले अपने मतलब के होगये तो विकास की बात सोचने के लिये एक आंदोलन की जरूरत है।

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