मां भगवती नन्दा  अद्भुत् रहस्यों की अलौकिक गाथा 

Pahado Ki Goonj

मां भगवती नन्दा  अद्भुत् रहस्यों की अलौकिक गाथा
बिन्दुखत्ता सहित अनेक भागों में यादगार मेलों का आयोजन
हर साल होती है,पूजा और बारह साल तक ताजा रहती है,राजजात यात्रा से जुड़ी यादें 

बदरीनाथ, नैनीताल समूचे उत्तराखण्ड़ में माँ नन्दा व सुनन्दा को समर्पित नन्दाष्टमी का पर्व बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है।गढ़वाल मण्डल के साथ साथ कुमाऊँ मण्डल में भी इनकी पूजा धूमधाम के साथ विभिन्न स्थानों में सम्पन होती है।अनेक स्थानों पर मेलों का आयोजन होता है।खासतौर से बदरीनाथ , बिन्दुखत्ता व नैनीताल में बड़े मेले आयोजित होते है।जिसमें हजारों श्रद्वालुजन भाग लेते है।इस बार भी यह मेला यादगार रहा।गौरतलब है कि माँ नन्दा की पूज्यनीयता यहां प्रधान है। ’’नन्दा,नन्दप्रिया,निद्रा,नृनुता नन्दनात्मिका!नर्मदा नलिनी नीला नीलकण्ठ समाश्रया !!…………….मां भगवती नन्दा की महिमा अपरम्पार है, अनन्त नामों से भक्तों का कल्याण करने वाली मां नन्दा ही भगवान नीलकण्ठ महादेव की आश्रयरूपा है, देवभूमि उतराखण्ड में मां नन्दा को बडे ही श्रद्वा के पूजा जाता है , हिमालयी भूमि में मां नन्दा के अनेक पावन पीठ है, जिनके दर्शन मात्र से मानव पापरहित हो जाता है, ’’दर्शनार्थ पापहीनों भवेन्नर’’ सिद्वि की कामना रखने वाले तथा ऐश्वर्य की कामना करने वाले लोग इन्हें भाति.भाति रूपों में पूजते है इन्हें नारायणप्रिया,नित्या,निर्मला,निगुर्णा,निधिः,निराधरा,निरूपमा,नित्यषुद्वा,निरन्जना,नादबिन्दुकलात्मिका,नृसिंहरूपा,नगधरा,नृपनागविभूषिता,नरकक्लेषषमनी,निरविघा,निराकारा,नारदप्रियकारिणी,नानाज्योतिसमाख्याता,निधिदा,निर्मलात्मिका,नवसूत्रधरा,नीतिः,नन्दजा,नवनीतप्रिया,नीलग्रीवा,निषीष्वरी,निषुभ्भघ्नी,नागलोकनिवासिनी,नन्दनवन,में विहार करने वाली, माता पार्वती,पावनी, पुण्या,परमज्योति,सहित अनन्त नामों से भी पुकारा जाता है। रूपों में पूजित भगवती नन्दा के हिमालय में अनेकों देवी पीठ है, सनातन काल से इन पीठों के प्रति गहरी आस्था है, जहां भगवती प्रयागराज में ललिता देवी, गया में मंगला त्रिकूट में रूद्रसुन्दरी,विन्ध्यासिनी वैघनाथ धाम आरोग्या,महाकाल में महेश्वरी तथा विभिन्न पीठों में भाति,भाति नाम व रूपों से पूजित है, वही हिमालय में भगवती नन्दा के नाम से परम पूज्यनीय है, इनकी पूज्यनीयता का विराट स्वरुप बारह साल में एक बार विशेष रुप से देखनें को मिलता है।कहा भी गया हैःः-’’य एवं कुरूते यात्रां श्री नन्दा देव्याः प्रीतमानसः! सहस्त्रकल्प पर्यन्तं ब्रहमालोके महतरे!! जो मानव मां नन्दा देवी के सिद्व पीठों की प्रसन्न मन से यात्रा करता है, उसके पितर हजार कल्वों तक महतर ब्रहम लोक में निवास करते है, मां के ये सिद्व पीठ प्रत्यक्ष ज्ञान स्वरूप तथा मुक्ति क्षेत्र है ’’इमानि मुक्तिक्षेत्राणि’’ कहकर पुराणों ने भी इस ओर मनुष्य का ध्यान आकृष्ट किया है, तथा कहा है बुद्विमान मानव को इसका आश्रय ग्रहण करना चाहिए। देवात्मा हिमालय की गोद में बसे उतराखण्ड में मां नन्दा की पूजा अर्चना समय समय पर बडे ही श्रद्वा के साथ आयोजित होती रहती है, किन्तु प्रत्येक 12 साल में आध्यात्मिक सार से परम ऐतिहासिक ’’श्री नन्दा देवी राजजात ’’ मां नन्दा की अपने भक्तों के लिए अलौकिक सौगात है । 280 किलोमीटर की यह यात्रा एक विराट यात्रा है 12 साल की लम्बी प्रतीक्षा के बाद इस यात्रा में शामिल होने व उसके दर्शन का लाभ देवी भक्तों को प्राप्त होता है, मां नन्दा को शिवा अर्थात शिव पत्नी मां पार्वती के रूप में पूजा जाता हैै कैलाश पर्वत अर्थात भगवान शिव का वास स्थान उनकी ससुराल है, और इसी पर्वत के विराट वैभव में स्थित चमोली जिले के पट्टी चांदपुर और श्री गुरू क्षेत्र को मातेश्वरी माता नन्दा का मैता माना जाता है, कहा जाता है कि एक बार मां अपने मायके आयी और मायके के मोह से महामाया 12 साल तक अपने ससुराल से विमुख रहकर मायके में ही ठहरी रही समय बदला और 12 साल के लम्बे समय बाद जब उन्हें ससुराल को विदा किया गया तो मायके वासी मां के वियोग में ब्याकुल हो उठे भावुक मैतियों अर्थात मायके वालों ने परम आदर सत्कार के साथ मां को सस्नेह विदाई दी रीति रिवाज से दी गयी विदाई अमिट याद बन गई युग युगान्तर के बाद भी यह रस्म निर्मल भावनाओं के साथ  बड़ी श्रद्वा के साथ निभाई जाती रही है, कुमाउ  कुमव गढवाल की सास्कृतिक विरासत की यह महान यात्रा अलौकिक रहस्यों का भी अम्बार है, रोमांचकता इस यात्रा के पग पग पर है, देखा जाए तो यह यात्रा समूचे विश्व में अपने आप में अनूठी है, उतराखण्ड में नंदा राजजात का अत्यन्त महत्व है, प्राचीन काल से ही कुमाऊ व गढवाल के राजाओं द्वारा इस यात्रा का आयोजन किया जाता था सम्पूर्ण प्रदेश की आराध्या मां नन्दा, मां पार्वती का ही एक रूप है कैलाशपति भोलेनाथ से मां पार्वती का विवाह हुआ था देवी पार्वती हिमालय की पुत्री थी अतः पूरे पर्वतीय प्रदेश में मां नन्दा पार्वती को अपनी विवाहिता बेटी के रूप में मानते है, प्राचीन रीति रिवाजों के अनुसार नन्दा को ससुराल भेजने की रस्म के रूप में यह यात्रा की जाती रही है, जिस साल इस यात्रा का आयोजन होता है, उस साल कसुवां ग्राम जनपद चमोली के वासी बंसत पंचमी के दिन मनौती मागते है, गांव वासियों का विश्वास है, कि इस दिन नन्दादेवी कैलाश पर्वत से अपने मायके आ जाती है, यात्रा के आयोजन साल में चार सींग वाला मेढा खाडू अवश्य मिल जाता है जो अपने आप में महान आश्चर्य है, यह चौसिगिंया खाडू ही यात्रा के आगे चलता है, राजजात की आयोजन तिथी को राजवंशी कुवंर खाडु व रिगांल से निर्मित घसौली को नौटी ग्राम के राजगुंरू नौटियालों को सौप दी जाती है, नौटी गांव में उस दिन काफी बडे मेले का आयोजन होता है, विधी विधान के साथ पूजा अर्चना के बाद चौसिेगिया खाडू के पीठ पर उन के दो मुह के झोले में देवी की भेंट व आभूषण सजाकर रख दिए जाते है, नौटी गांव से यात्रा प्रारम्भ होती है, समुद्र तल से 1650 मीटर की उचाई पर स्थित यात्रा तीसरे दिन पुनः नौटी गांव वापस आ जाती है, अगले दिन नन्दा की विदाई होती है, नौटी गांव में श्रदालु चौसिंगियां खाडू और छतौली पर देवी को भेंट स्वरूप अपनी भेंटें प्रदान करते है, और पर्वतीय महिलाए मंगल गीत गाकर अपनी पुत्री को मैत से विदा करती है, और विभिन्न प्रकार की भेंटें देवी को सर्मपित करती है, निष्चय ही मां नन्दा की विदाई का यह दृश्य काफी भावुक होता है, गांववासी अपनी पुत्री को रीति रिवाजों के साथ गांव से कुछ दूर तक विदा करती है, एक ओर नौटी से यात्रा आरम्भ होती है, और दूसरी ओर कुमाऊँ व गढवाल के विभिन्न क्षेत्रों से श्रद्वालु झण्डे निषाण और देवताओं की छतोलियां लेकर अपने गांवों से निकल पडते है, और स्थान स्थान पर यात्रा में सामिल होते है, जिस गांव से यात्रा निकलती है, वहां यात्रियों का जोरदार स्वागत होता है, रात्रि में देवताओं के जागर लगते है, झोडे चांचरी गीत गाये जाते है,गढवाल एवं कुमाउ की कला एवं सस्कृति का यह संगम देखते ही बनता है, यात्रा के 12 वे पडाव वाण गांव के बाद लगभग मानव बस्तियां समाप्त हो जाती इस स्थान से मां नन्दा के भाई गढवाल के प्रसिद्व लोक देवता लाटू यात्रा की अगुवाई करते है, यात्रा रिगणी घाट गैरोली पातल होते हुए 3,354 मीटर की उचांई पर स्थित बेदिनी बुग्याल पहुचती है, यहां पर महाकाली का पूजन विषेश रूप से होता है, यह क्षेत्र पूर्णतया वृक्ष विहीन है, यहां के हरे मखमली घास के बुग्यालों की सुन्दरता देखते ही बनती है, बेदिनी बुग्याल से 10 किमी दूरी पर पातरनौचणियां नामक स्थान है, इस स्थान के साथ कन्नौज के राजा जसधवल की लम्बी कहानी जुडी हुई है, आगे कैलुआविनायक, बगुआबासा चिडियांनाग होते हुए यात्रा 4,061 मीटर की उचाई पर स्थित रूपकुण्ड पहुचती है, इस कुण्ड में लगभग 700 साल पुराने नर कंकाल है, वैज्ञानिकों का अनुमान है, कि ये कंकाल यात्रियों के ही है, जो किसी प्राकृतिक आपदा के कारण दुर्घटना के शिकार हो गये थे इससे आगे समुद्र शिला यात्रा का सुन्दर पडाव है, यहां पर्वतों की उचाई अधिक होने के कारण वायुदाब कम हो जाता है, जिससे सांस लेने में कठिनाई होती है, हिमाच्छादित प्रदेश होने के कारण चट्टानों के टूटने का यहां अक्सर खतरा बना रहता है, कठिन मार्ग को पार कर भाद्रमास की नवमी तिथि को यात्रा होमकुण्ड पहुचती है, त्रिशूली पर्वत की तलहटी पर स्थित होमकुण्ड में पूजा पाठ हेतु एक हवनकुण्ड बना है, पूजा पाठ के पष्चात चौसिगियां खाडू अर्थात चार सीगं वाले भेड को पीठ पर बधी पोटली के साथ त्रिशूूली पर्वत मां नन्दा के धाम को विदा किया जाता है, यहां पर अश्रुधारा के साथ खाडू और यात्री एक दूसरे से जुदा होते है, महान आश्चर्य से भावपूर्ण यह दृश्य संसार में माता पार्वती की अद्भूत लीला का बखान करती है, खाडू को विदा कर यात्रा दूसरे मार्ग द्वारा वापिस आती है, लौटते समय यात्रा चंदनिया घाट सूतोल गांव से रूपगंगा और नंदाकिनी का विहगंम दृश्य देखा जा सकता है, इस गांव में धौसिह देवता का प्रसिद्व मंदिर है, कुल मिलाकर माता नन्दा की महिमा अतुलनीय व अलौकिक है, यात्रा पथ में स्थित तमाम क्षेत्र रहस्य व रोमांच की गाथा को अपने आंचल में समेटे हुए है, ’’सभी मंगलों का मंगल करने वाली, सबका कल्याण करने वाली सभी पुरूषार्थो को सिद्व करने वाली शरणागतजनों की रक्षा करने वाली तथा तीन नेत्रों वाली हे!गौरी हे!नारायणी हे!नन्दा आपको नमस्कार है।साभार

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