हरेला पर्व पर्यावरण के प्रति हमे अपनी जिम्मेदारियों का अहसास कराता है

Pahado Ki Goonj

देहरादून,यूँ तो हिन्दू सनातन धर्म में नवरात्रि के अवसर पर हरियाली बोयी जाती है जो आस्था,विश्वास,उन्नति ,खुशहाली और खुशी का प्रतीक होती है लेकिन उत्तराखण्ड के कुमाऊँ में इसके अलावा आषाढ़ मास के आखिरी 10 दिनों में गुप्त नवरात्रि में हरयाली बोयी जाती है जिसे श्रावण संक्रांति के दिन काटकर प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है,जो हमे हमारी प्रकृति,पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का अहसास भी कराता है,साथ ही हरियाली,स्वच्छ पर्यावरण का भी प्रतीक है हरेला।

हरेला उत्तराखंड राज्य के कुमाऊँ क्षेत्र में हिंदुओं द्वारा मनाया जाने वाला पर्व है जो की श्रावण के महीने में मनाया जाता है। हरेला का मतलब होता है ‘हरियाली का दिन’। क्योंकि ये पर्व मूलतः हरियाली व खेती से जुड़ा है इसलिए प्रमुखतः यह त्यौहार कुमाऊँ के किसानों द्वारा मनाया जाता है। हरेला के दिन किसान भगवान से अच्छी फसल की प्रार्थना करते हैं। हरेला बरसात के मौसम में उगाई जाने वाली पहली फसल का प्रतीक माना जाता है
मान्यता है कि भगवान शिव और देवी पार्वती के विवाह दिवस को ही उत्तराखण्ड के लोग हरेला पर्व के रूप में मनाते हैं।
घर के बड़े, श्रावण महीना लगने से दस दिन पहले एक बर्तन या टोकरी में कुछ मिट्टी भर के सात तरह के अलग-अलग बीज (धान, गेहूँ, जौ, उड़द, गहत, सरसों और भट्ट) बो देते हैं। रोजाना पानी छिड़क कर इसमें पौधे उगने का इन्तेजार किया जाता है। इन पौधों को ही हरेला कहा जाता है और फिर हरेला पर्व के दिन इन पौधों को काटकर भगवान के चरणों में चढ़ा कर पूजा की जाती है व अच्छी फसल की कामना की जाती है। भगवान का आशीर्वाद समझकर कुछ पौधे सिर पर और कान के पीछे रखे जाते हैं।

यह मान्यता है की हरेला (पौधा) जितना बड़ा होगा, फसल भी उतनी ही अच्छी होगी।

इस दिन घर के छोटे, बड़ों का आशीर्वाद लेते हैं और घर की कुंवारी लड़कियां सबको पिठ्या (रोली का टिका) लगाती हैं। जिसके बदले उनको कुछ रूपये आशीर्वाद स्वरूप दिए जाते हैं तथा दीर्घायु और चतुर बनो जैसे आशीर्वाद दिए जाते है। लोग अपने रिस्तेदारों के यहाँ जाते हैं और एक दूसरे को शुभकामनाएँ देते हैं। साथ ही इस दिन अच्छे-अच्छे पकवान बनाये जाते हैं व आस – पड़ोस में बांटे जाते हैं।
हरेला पर्व वर्ष में तीन बार आता है परंतु एक ही हरेला पूर्ण धूम – धाम से मनाया जाता है –
आश्विन महीने में मनाया जाने वाला हरेला मौसम के बदलाव व सर्दी की ऋतु आने का प्रतीक माना जाता है।
चैत्र महीने में मनाया जाने वाला हरेला गर्मी की ऋतु आने का प्रतीक माना जाता है।
श्रावण महीने में मनाया जाने वाला हरेला ही प्रमुख हरेला माना जाता है। इसे वर्षा ऋतु आने का प्रतीक माना जाता है।
इस दिन कुमाऊनी बोली में गीत गाते हुए छोटों को आशीर्वाद दिया जाता है –
“जी रये, जागि रये, तिष्टिये, पनपिये,
दुब जस हरी जड़ हो, ब्यर जस फइये,।
हिमाल में ह्यूं छन तक,
गंग ज्यू में पांणि छन तक,
यो दिन और यो मास भेटनैं रये,
अगासाक चार उकाव, धरती चार चकाव है जये,
स्याव कस बुद्धि हो, स्यू जस पराण हो।”
अर्थ :- तुम जीवन पथ पर विजयी बनो, जागृत बने रहो, समृद्ध बनो, तरक्की करो, दूब घास की तरह तुम्हारी जड़ सदा हरी रहे, बेर के पेड़ की तरह तुम्हारा परिवार फूले और फले। जब तक कि हिमालय में बर्फ है, गंगा में पानी है, तब तक ये शुभ दिन, मास तुम्हारे जीवन में आते रहें। आकाश की तरह ऊंचे हो जाओ, धरती की तरह चौड़े बन जाओ, सियार की सी तुम्हारी बुद्धि होवे, शेर की तरह तुम में प्राणशक्ति हो।
सभी देश प्रदेश वासियों को उत्तराखण्ड राज्य के निवासियों,प्रवासी भाई बन्धुओं को लोकपर्व हरेला और श्रावण संक्रांति ,गुरुपूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं।
चन्द्रशेखर पैन्यूली

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