जाते-जाते पत्रकारों के लिए बड़ा आदेश कर के गये न्यायमूर्ति राजेश शर्मा राजेश शर्मा

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जाते-जाते पत्रकारों के लिए बड़ा आदेश कर के तोफा दे गये न्यायमूर्ति राजेश शर्मा
नैनिताल:उत्तराखंड हाई कोर्ट से सोमवार को स्थानांतरित हो करके गये वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजीव शर्मा जाते-जाते राज्य के पत्रकारों को बड़ा तोहफा दे गए हैं। सोमवार को न्यायमूर्ति राजीव शर्मा व न्यायमूर्ति शरद कुमार शर्मा की खंडपीठ में नैनीताल के वरिष्ठ पत्रकार रविंद्र देवलाल द्वारा दाखिल की गई जनहित याचिका पर संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार को राज्य के श्रमजीवी पत्रकारों को आंध्रप्रदेश , उड़ीसा आदि राज्यों की तर्ज पर सुविधाएं दिए जाने के आदेश दिए हैं । साथ ही पत्रकारों को दी जा रही ₹5000 मासिक पेंशन में बढ़ोतरी करने के आदेश दिए हैं । उल्लेखनीय है कि इस लड़ाई को विगत लंबे समय से उत्तराखंड के पत्रकार लड़ रहे थे। पत्रकार सरकार से मांग कर उत्तराखंड में भी पत्रकारों की पेंशन 5000 से बढ़ाकर कम से कम ₹20000 महीना करने की मांग करते आ रहे हैं । पत्रकार रविंद्र देवलिया ने जो जनहित याचिका दाखिल की थी उसमें उन्होंने कहा था कि कई राज्यों में पत्रकारों को सामाजिक आर्थिक सुरक्षा दी जा रही है। अदालत ने अपने निर्णय में यह भी निर्देशित किया है कि पत्रकारों के कल्याण के लिए आंध्र प्रदेश और उड़ीसा राज्यों की तरह वेलफेयर फंड बनाए जाएं । इसके अलावा पत्रकारों की पेंशन व स्वास्थ्य योजना को राज्य के अपर मुख्य सचिव लोक सूचना व जनसंपर्क विभाग के निदेशक से उत्तर प्रदेश सरकार की भांति तैयार कराने  के लिए सरकार की हाउसिंग योजना में पत्रकारों के लिए कुछ हाउसिंग प्लॉट या फ्लैट आरक्षित करने को भी कहा गया है। 

पहाड़ों की गूंज के सम्पादक एवं संयोजक उत्तराखंड पत्रकार संगठन समन्वय समिति द्वारा पत्रकार संघठनो की  जुलाई 2013से नवंबर 2013 तक 11 बैठकों में संघठनो से मांगे गये सुझावों के अनुसार 20सूत्री मांग  पत्र की संस्तुति विधायकों ,नेता प्रतिपक्ष  की संस्तुति के साथ  विधानसभा अध्यक्ष ने  अपनी संस्तुति उत्तराखंड सरकार को वर्ष 2013  भेजी है।अब उत्तराखंड के शासन में बैठे IAS  अधिकारी साधारण बाबू ओं की भांति कुछ करने की इच्छा न रखते हुए  राज्य हित के लिए स्वस्थ माहौल बनाने का काम कोर्ट को करना पड़ रहा है । इससे अंदाज़ लगाया जा सकता है कि देव भूमि को नर्क भूमि बनाने के लिए उत्तराखंड में पत्रकारों, चुनेहुये प्रतिनधियों के अधिकारों का कितना हनन होरहा है।उत्तराखंड को कंहा लेजाना चाहते हैं।  इसके लिए सुधार करने का समय अभी नेताओं के स्वस्थ चिंतन से  हो सकता है।

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