सरकारी सिस्टम में फंसे रोप-वे प्रोजेक्ट

Pahado Ki Goonj

देहरादून। उत्तराखंड की त्रिवेंद्र सरकार देशी-विदेशी सैलानियों को आकर्षित करने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है। प्रदेश का पर्यटन विभाग बोलिविया के लापॉज और मैक्सिको शहर की तरह उत्तराखंड में भी मास रैपिड ट्रांजिट सिस्टम की रोपवे प्रणाली को बढ़ावा देने को कोशिश कर रहे हैं, ताकि ज्यादा से ज्यादा पर्यटक उत्तराखंड का रुख कर सकें. पर्यटन विभाग देहरादून से मसूरी, केदारनाथ, नैनीताल और यमुनोत्री में भी रोपवे लगाने का खाका तैयार किया जा चुका है। लेकिन धरातल पर कितना काम हुआ है। आइए आपको बताते हैं। उत्तराखंड सरकार ऐसे बड़े रोपवे पर काम रही है जिसमें एक घंटे में एक हजार से ज्यादा लोग आसानी से आ जा सकें। इसके लिए सरकार ने मसूरी-देहरादून रोपवे का टेंडर भी कर दिया है। सारी औपचारिकताएं पूरी होने के बाद भी अभी तक एग्रीमेंट पर साइन नहीं हुआ है। हालांकि, फ्रांस के टेक्नीशियन उत्तराखंड आकर जगहों का सर्वे भी कर चुके हैं। इसके साथ ही टेक्निकल इस्टीमेट भी बना लिया गया है और आगामी 3-4 महीने में इसका कार्य भी शुरू हो जाएगा.करीब 300 करोड़ की लागत से बनने वाले मसूरी-देहरादून रोपवे की लंबाई करीब 5.5 किलोमीटर की है। इस रोपवे को फ्रांस और इंडियन कॉलेब्रेशन कंपनी बना रही है। रोपवे के बनने से बाहर से आने वाले सैलानियों को काफी राहत मिलेगी। इस रोपवे से सैलानी मात्र 16 मिनट में मसूरी पहुंच पाएंगे। इस रोपवे की एक घंटे में एक हजार यात्रियों को ले जाने की क्षमता होगी। प्रोजेक्ट के मुताबिक रोपवे के बने में करीब 2 साल का वक्त लगेगा। दूसरा रोपवे गोविंदघाट से हेमकुंड साहिब के बीच में बनाया जाएगा। यह दो पार्ट में होगा। पहले पार्ट में गोविंदघाट से घांघरिया और दूसरे पार्ट में घांघरिया से हेमकुंड साहिब तक रोपवे बनाया जाएगा। इस रोपवे के बनने से हेमकुंड साहिब जाने वाले तीर्थयात्रियों को काफी सहुलियत मिलेगी। क्योंकि अभी हेमकुंड जाने वाले तीर्थयात्रियों को गोविंदघाट से हेमकुंड जाने के लिए 19 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई चढ़नी होती है। इस रोपवे के बनने से आप आसानी से फूलों की घाटी पहुंच सकते हैं। वर्तमान हालात में गोविंदघाट से फूलों की घाटी जाने के लिए 15 किलोमीटर का पैदल सफर तय करना पड़ता है, लेकिन घांघरिया तक रोपवे जाने के बाद पर्यटकों को मात्र 3 किलोमीटर ही पैदल चलाना पड़ेगा। यह प्रोजेक्ट करीब 311 करोड़ की लागत का है, जिसकी लंबाई करीब 7.08 किमी है.अभी यमुनोत्री धाम जाने के लिए श्रद्धालुओं को जानकीचट्टी से पैदल जाना पड़ता है। यह पैदल मार्ग संकरा और खतरनाक है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए 2011 में तत्कालीन राज्य सरकार ने खरसाली-यमुनोत्री रोपवे बनाने की स्वीकृति दी थी। 70 करोड़ रुपए की लागत से बनने वाले रोपवे के निर्माण का जिम्मा पीपीपी मोड पर मुंबई की टॉपवर्थ इंफ्रा प्राइवेट लिमिटेड कंपनी को सौंपा गया था, जिसकी तमाम औपचारिकताएं पूरी हो चुकी है। बावजूद इसके अभी तक खरसाली-यमुनोत्री रोपवे का निर्माण कर शुरू नहीं हो पाया है। इन सब के बारे में पर्यटन सचिव दिलीप जावलकर ने बताया कि प्रदेश में कई और जगह भी रोपवे के लिए सिस्टम डेवेलप किया गया है। नैनीताल रोपवे को एडवर्टाइज करना है, यमुनोत्री रोपवे के लिए टेंडर प्रक्रिया को प्रकाशित करने की तैयारी चल रही है।
केदारनाथ में रोपवे बनाने के लिए अभी सर्वे की प्रक्रिया पूरी हुई है। इसके साथ ही आगामी कुछ महीनो में सभी रोपवे प्रकाशित कर दिए जाएंगे। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में लोगों की काफी रुचि भी है और सरकार भी पूर्ण रूप से मदद कर रही है, लिहाजा जल्दी इन सभी रोपवे पर काम शुरू हो जाएगा। राज्य में रोप-वे प्रोजेक्ट शुरू न होने से पर्यटकों और श्रद्धालुओं को राहत नहीं मिल पा रही है। जानकारों की मानें तो रोप-वे से न सिर्फ पर्यटकों की संख्या बढ़ेगी, बल्कि देश-विदेश में पर्यटन के क्षेत्र में उत्तराखंड की नई पहचान बनेगी। बशर्ते सरकारी सिस्टम से यह बाहर निकल पाएं।

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