दिल्ली में उत्तराखंड के भाषाविद होंगे सम्मानित:महावीर राणा संयोजक

Pahado Ki Goonj

 

 दिल्ली, पहाडोंकीगूँज,   कार्यक्रम संयोजक  समाज सेवी महावीर सिंह राणा ने कहा कि  उतराखण्ड मानव सेवा समिति दिल्ली (रजि.) द्वारा साहित्य के क्षेत्र में उत्कृष्ट, उल्लेखनीय और साधनारत साहित्यकारों को सम्मानित करने का निर्णय लिया गया है। समाज में  उत्तराखंड एंव अन्य प्रदेशों के निवासियों द्वारा  समाज के लिए अच्छे कार्यक्रम  लगातार कराते हुए  जनता में अत्यंत हर्ष हो रहा है।  उनके द्वारा उत्तराखण्ड समाज के साहित्यकार जो उतराखण्ड से बाहर देश विदेशों में रहकर उतराखण्ड की भाषा गढ़वाली, कुमाऊनी ,जौनसारी के साथ-साथ अन्य भाषाओं में विभिन्न विधाओं पर काम कर रहे हैं उन्हें यह सम्मान दिए जारहा है।
इस संबंध में एक कार्यक्रम दिनांक 06/11/2022 को अपराह्न 03.00 बजे से 06.00 बजे तक हिंदी भवन, विष्णु दिगम्बर मार्ग आईटीओ पर सुनिश्चित किया गया है। जिसमें कुछ मूर्धन्य साहित्यकारों को सम्मानित किया जाएगा।  समिति के संरक्षक  मनवर सिंह  रावत,अध्यक्ष बी एन शर्मा एवं सदस्यों का मत है कि अपनी पहचान देश विदेश में  अपनी भाषा को बोलने से होती है। राजधानी में अपने भाषा को बढ़ाने वाले साहित्यकार का सम्मान के साथ साथ  अनिवासी  की पहचान पुस्तक के माध्यम से करने के लिए है।  इस कार्यक्रम में उत्तराखंड से बाहर रहने वाले साहित्यकारों के कृतित्व एवं व्यक्तित्व पर आधारित एक परिचाइका उतराखण्ड के अनिवासी साहित्यकार  पुस्तक का लोकार्पण भी किया जाएगा।
इस आयोजन में अपनी भाषा-संस्कृति की विभिन्न विधाओं पर वर्षों से निरंतर काम करने वाले मूर्धन्य साहित्यकार मनीषियों के मुखारविंद से प्रेरणादायक बातें सुनने और उन्हें नजदीक से देखने का अवसर मिलेगा।
समिति ने उत्तराखंड वासियों एवं साहित्य प्रेमियों से विनम्र अनुरोधकिया  है कि उक्त निर्धारित कार्यक्रम में समयानुसार अपनी गरिमामयी उपस्थित से अनुग्रहित  करेंगे।

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उत्तराखंड वासियों के लिए गर्व की बात है कि पहाडोंकीगूँज राष्ट्रीय समाचार पत्र की निम्न  खबर 23 नवम्बर2022 को सुप्रीम कोर्ट में गूंजेगीफिर नए सांसद भवन में उत्तराखंड से प्रकाशित होने वाले राष्ट्रीय पत्र सभी मीडिया कर्मियों की सुरक्षा का कवच बनेएगा ।

जिन पत्रकार साथियों ने पत्रकार संगठन समन्वय समिति की जुलाई2013 से अक्टूबर2013 की बैठकों में योगदान दिया है उन्हीं के आशीर्वाद का फल से देश के लोकतंत्र को मजबूत करने का अल्प प्रयास है।

उत्तराखंड खण्ड  एंव देश के प्रत्येक समाचार पत्र   इलेक्ट्रॉनिक ,वेब पोर्टल यूट्यूब चलाने वाले मीडिया  साथियों से अनुरोध है कि देश  लोकतंत्र के चार स्तम्भ में विधाईका का चेहरा संसद ,कार्यपालिका का चेहरा प्रधानमंत्री कार्यालय, न्यायपालिका का चेहरा सुप्रीम कोर्ट है ।हमारा मीडिया का कोई चेहरा नहीं है।इसके लिए पहाडोंकीगूँज राष्ट्रीय पत्र की खबर का संज्ञान सुप्रीम कोर्ट ने लिया है  जिसकी तारीख23 नवम्बर 2022को सुप्रीम कोर्ट में है।

इस ख़बर का संज्ञान सुप्रीम कोर्ट ने लिया है पूरी खबर आगेपढें

आप अपने स्तर से अपने अपने साधनों के माध्यम  के साथ साथ आस पड़ोस के समाज सेवियो के बिचार  लेकर  “पत्रकारों को संवैधानिक अधिकार मिलना चाहिए “की खबर चलाते रहे।

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 👉 इस खबर का प्रस्तुतिकरण ऐसा हैं कि सामान्य तौर पर लगेगा की मीडिया अपनी बुराई खुद कर रहा हैं। परन्तु पुरी खबर पढने के बाद लगेगा कि मीडिया पुरी तरह अधिकारहीन हैं। जो चाहकर भी लोगों को न्याय नहीं दिला सकता और नहीं किसी की मदद कर पा रहा हैं ।
मीडियाकर्मियों की खबरें वाले अखबारों व रिकोडिंग को जनप्रतिनिधि विधानसभाओं व संसद में लहराकर वाहवाही और मेहनताना वसूल रहे हैं। जबकि मेहनत करने वाला पत्रकार सडकों पर ठोकरे खा रहा हैं और अपराधियों से लड रहा हैं ।
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युवा वैज्ञानिक शैलेन्द्र कुमार बिराणी ने अपने असली एडी सिरिंज के आविष्कार का देश दुनिया में मीडिया के प्रसारण में बहुत बडी सच्चाई को देखा जिसे आम लोगों से लोकतन्त्र में दूर कर रखा था।

इसे उन्होंने अपने वैज्ञानिक-विश्लेषण “मीडिया के इस्तेमाल की जंग में जन्तन्त्र का दांव” प्रकाशित करा व बताया भारतीय मीडिया का न तो कोई संवैधानिक चेहरा हैं न उसे कोई कानूनी अधिकार के रूप में जवाबदेही दे रखी हैं ।
इसे अब सुप्रीमकोर्ट के जस्टिस के. एम. जोसेफ और ह्रषिकेश राय की पीठ ने बुधवार 21सितम्बर 2022 को हेट स्पीच पर सुनवाई के दौरान स्वीकार किया की इलेक्ट्रानिक मीडीया, प्रिंट एवं सोशियल में भी कई कोई कंट्रोल की व्यवस्था नहीं हैं । इसके लिए सरकार एक नियामक संस्था बनाये। इस मामले की अगली सुनवाई 23 नवम्बर, 2022 को होगी।

राष्ट्रपति महोदय को 2011 से मालुम हैं –
युवा वैज्ञानिक शैलेन्द्र कुमार बिराणी ने अपने आविष्कार की फाईल के साथ यह सच्चाई देश के राष्ट्रपति को 19 अगस्त, 2011 को ही ग्राफिक्स के साथ भेज दिया था (Letter Ref. No. P1/D/1908110208) इस पर राष्ट्रपति सचिवालय की मोहर व आधिकारिक दस्तावेज उनके पास मौजूद हैं।

कौनसा संवैधानिक चेहरा नहीं हैं –
भारतीय लोकतंत्र के चार स्तम्भ माने जाते हैं पहला विधायीका जिसका चेहरा संसद हैं, दुसरा कार्यपालिका जिसका चेहरा प्रधानमंत्री कार्यालय हैं, तिसरा न्यायपालिका जिसका चेहरा उच्चतम न्यायालय हैं व चौथा स्तम्भ पत्रकारिता जिसका कोई चेहरा नही हैं । इसे धन बल, बाहु बल, सत्ता के डर, बाजारवाद के स्वार्थ के रूप में जो चाहे, जैसा चाहे इस्तेमाल करता हैं ।
मीडियाकर्मियों व विशेष रूप से खबरी चैनलों पर संवैधानिक व कानूनी रूप से देश व देशवासियों के प्रति कोई जवाबदेही नहीं हैं । इस कारण जो जैसा चाहे अपनी मर्जी का राग चलाता हैं । हमने पिछले प्रकाशन में इसको विस्तार से बताया ही नही अपितु किस तरिके से काम लोकतान्त्रिक तरिके से होगा व भी बताया 
इसके आगे क्या?
शैलेन्द्र कुमार बिराणी ने प्रहरी मिमांसा की खबर डिटेल, उनके पास मौजूद दस्तावेज इस मामले की जनहित याचिका लगाने वाले सुप्रीमकोर्ट के वकील अश्वीन उपाध्याय को भेज दी हैं । इसके साथ ही रजिस्टार सुप्रीमकोर्ट को ई-मेल कर सारी जानकारी मुख्य न्यायाधीश व दोनों न्यायाधीशों तक पहुचानें का अनुरोध करा हैं । इसके साथ सुप्रीमकोर्ट बार काउंसिल के सभी वकीलों को जानकारी भेज सहयोग का अनुरोध करा हैं आखिरकार लोकतंत्र देश के सभी नागरिकों का हैं और सभी को उसमें जीना हैं । मुख्य न्यायाधीश यू यू ललित और जस्टिस एस रवींद्र भट हेट स्पीच के ही दुसरे मामले में सुनवाई 1 नवम्बर को करेंगे जिसके याचिकाकर्ता हरप्रीत मनसुखानी हैं ।
भारत सरकार को कोई परेशानी नहीं –
9-10 दिसम्बर, 2021 को अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाईडेन ने लोकतंत्र को लेकर वर्चुअल मीटिंग करी थी जिसमें 110 देशों के प्रमुखों ने भाग लिया था इसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी शामिल हुये व उन्होंने सभी को मीडिया को अधिक अधिकार व शक्तिशाली बनाने की बात कहीं । इस तरह के संवैधानिक चेहरे से सरकार को अधिक खुशी होगी क्योंकि प्रधानमंत्री ने दुनिया को जो बात कहीं उसे उन्होंने करके बताया कोई जुमलेबाजी नहीं करी ।
इसी तरह चले तो आगे मामला कहां तक जा सकता हैं –
हेट स्पीच व मीडिया से सम्बद्धित सभी मामलों का यह एक ही उपाय हैं जिससे पहले मीडियाकर्मियों को ही जवाबदेही बनाकर निष्ठावान लोगों को आगे बढाया जाये । इसके पश्चात् कोई गलती हो तो कार्यपालिका का कानूनी दबाव व अदालतों का दण्डित करने का मार्ग खुल जायेगा ।
यदि अभी के मार्ग पर चलते रहे तो पहले सरकार या अदालत मीडिया श्रेत्र के कुछ विशेषज्ञों का चयन कर एक कमेटी बना देगी जो नियामक संस्था के निर्माण की रूपरेखा देगी जो पूर्णतया कार्यपालिका या सरकार के अधिन होगी । इस रिपोर्ट के आधार पर एक संस्था बनाने से पहले सरकार नानकुर करेगी व बाद में अदालत को ढाल बनाकर स्वीकार कर लेगी ।
इसके बाद राजनैतिक खेल में, पूंजीवाद के चेक से व राजनैतिक पार्टियों से गठित होने वाली सरकारें सबकुछ अपने नियंत्रण मे ले लेगी और पूरी कवायत शून्य पर आ जायेगी । इस बात की सम्भावना की पुष्टि न्यायाधीशों द्वारा सरकार पर करी कठोर टिप्पणी से होती हैं । जब सबकुछ 2011 होने पर भी 2022 खत्म होने के नजदिक आ गया तब जाकर लोकतंत्र व समाज में बुरा असर पडने के कारण डूंडने पड रहे हैं ।
न्यायाधीशों से क्यों उम्मीद हैं –
मुख्य न्यायाधीश यू यू ललित का अल्प समय वाला कार्यकाल पूरा होने आया हैं । इस मामले पर भी यह उनकी आखरी सुनवाई होगी | माननीय राज्यसभा की सदस्यता से बडा उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश का संवैधानिक पद बडा होता हैं व कार्यपालिका और न्यायपालिका के मध्य के फासले को स्पष्ट कर हमेशा के झगडें को खत्म करना चाहेंगे । दूसरे मामले में न्यायाधीश के.एम.जोसेफ हैं जिन्होंने उत्तराखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रहते हुए वहां के राष्ट्रपति शासन को हटाया और सच का आधार बनाया कि राष्ट्रपति कोई राजा नहीं हैं ।इनकी लोकतंत्र पर स्पष्ट ज्ञान को देखते हुए लगता हैं कि परिणाम अवश्य निकलेगा क्योंकि 11 वर्षों के अधिक समय से सच राष्ट्रपति महोदय के पास हैं जो एक व्यक्ति की निरसता से देश का हर नागरिक दुष्परिणाम भोग रहा हैं व दुनिया का सबसे बडा लोकतन्त्र बर्बाद हो रहा हैं ।
दुनिया भर के मीडिया को अपने अपने देश के लोकतंत्र में कौनसा संवैधानिक चेहरा व अधिकार मिलना चाहिए व यह किस तरीके से दैनिक जीवन में कार्य करेगा इसे समझने के लिए आप शैलेन्द्र कुमार बिराणी के इस अगले वैज्ञानिक विश्लेषण को पढे. व राष्ट्रपति को भेजे उस कवर चेहरे को समझे सबकुछ दुध का दुध व पानी का पानी हो जायेगा ।
 मीडिया के इस्तेमाल की जंग में जनतंत्र का दाँव
21वी सदी का दौर है, जो समय की चाल के साथ चला जायेगा परन्तु ईन्सान के सोचने का क्रम वैसा ही रहेगा जो पहले था और आज है | यह तो सिर्फ सोचने के स्तर की सीमा का अन्तर है, जो हमें इस बात का छदम आभास कराता है कि समय के साथ लोगो के आदर्श और सोच बदल रही है ।
 
इसी आदर्श और सोच को आधार मानकर सूचना-तंत्र (अखबार, समाचर चैनल, न्यूज़ वेबसाइट, पत्रिकाएँ, रेडियो इत्यादि-इत्यादि) के माध्यम से पत्र व रिपोर्टो के जरिये वस्तुस्थिति को सबके सामने लाने वाला समूह मीडिया के नाम से प्रचलित है । इस समूह ने ज्ञान और तकनीक के समन्वय से सामाजिक स्तर पर जनता की सोच के स्तर को बढ़ाने का वो अकल्पनीय कार्य किया व कर रहा है जिससे व्यवस्था का प्रत्येक क्षेत्र इससे जुड़ता चला जा रहा है । इसके बिना कोई भी व्यवसाय उच्चाई तक नहीं पहुंच सकता और न ही व्यक्ति धन, वैभव, शोहरत एवं बदलाव के शिखर तक पहुंच सकता है ।
 
इसकी इसी ताकत के कारण आज प्रत्येक व्यक्ति, संगठन, समूह इसके इस्तेमाल के लिए एक से बढ़कर एक योजना बना रहा है । इसके इस्तेमाल की खींचतान को देखकर ऐसा लगता है कि कोई बड़ी जंग चल रही है । इस जंग में नैतिक-अनैतिक, जायज-नाजायज, मित्रता-दुश्मनी, शालीनता-झगड़े, शिष्टता-गालियाँ, मर्यादा-अमर्यादा, क़ानूनी-गैरकानूनी, वास्तविकता-कल्पनाशीलता, प्रथाएँ-कुरुतियां, रैलियां-भीड़, सौन्दर्यता-नग्नता, सामान-कारागार, मालाए-प्रतिकार, असलियत-आडम्बर, सच-झूठ, उपकार-शोषण, चरित्र-अश्लीलता, भाषण-उपदेश, मौन-गाने, कार्टून-फोटुए, दया-क्रूरता, ईनाम-सजा, ईज्जत-बलात्कार, नजाकत-वेश्यावृत्ति, जीवनदान-हत्या, दान-लूट, ईमानदारी-चोरी, हिम्मत-डर, आदि-आदि के दाँव पेच लगाये जा रहे है । यहाँ आकर सही और गलत के फैसले ख़त्म हो रहे है ।
 
व्यवसाहिक तरीको में भी मीडिया के इस्तेमाल के लिए निचे से उप्पर तक श्रृंख्ला बन गई है । इन शृंखलाओ के माध्यम से समूह व संगठन माल बेचने, चुनाव जितने, समाज में उत्थान, अन्याय को ख़त्म करने, झूठ का पर्दा हटाने आदि-आदि कार्यों के लिए मीडिया का सुव्यवस्थित तरीके से प्रयोग करते है । जिसमे मीडिया मैनेजरों, प्रवक्ताओं, सलाहकारों, के माध्यम से चेहरे की भंगिमाओं और बोलने के समय सीमाओं को तय करके अपने पक्ष में माहौल बना रहे है ।
 
इन संगठनों से आगे देश व सभी के लिए इसका इस्तेमाल समय के अनुरूप कैसे हो, इसका तरीका लोकतंत्र में जनतंत्र का दाँव कहलाता है । यह दाँव माननीय राष्ट्रपति महोदय को दस्तावेज के आधार पर प्रमाणित कर सांकेतिक भाषा के रूप में भेजा जा चुका है ।
जनतंत्र के इस दाँव की शुरुवात राजपथ पर नये भवन के साथ होगी । इस भवन को में कार्य के आधार पर “जनसंदेशिका” के नाम से सम्बोधित कर रहा हु परन्तु ये नाम लोगो की राय के अनुरूप कुछ भी हो सकता है । कुछ माह पूर्व ही रायसीना हिल पर एक मीडिया केंद्र की शुरुवात हुई परन्तु इसके कार्य और उद्देश्य को देखे तो सिर्फ इसके कार्यपालिका का एक हिस्सा होने का आभास होता है । जबकि मीडिया के लोकतंत्र में व्यापक योगदान के लिए इसे संवैधनिक चेहरा बनाकर विशेष लोकतान्त्रिक अधिकार देने की आवश्यकता है । ऐसा करना लोकतंत्र के मालिकों में विध्यमान सर्वाधिक ज्ञान, भावना एवं देश के महान लोगो की सोच के अनुरूप पूर्णतया उचित है, जो मीडिया को लोकतंता का चौथा स्तम्भ कहते है ।
 
अनुसंधानिक, गणितीय, तार्किक, वैचारिक और सैद्धांतिक विश्लेषण करे तो यह निष्कर्ष निकलता है कि आजतक मीडिया का कोई चेहरा ही नहीं है । इसका न होना हमेशा हमारे उज्जवल भविष्य के रस्ते को कुंद कर देता है और कई समस्याओ का उपाय होते हुये भी हम मूक दर्शक बने रह जाते है । समय के साथ-साथ दुबारा एक जैसी समस्या का सामना करते है और एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप के चक्रव्यूह में फस जाते है । इस चक्रव्यूह से अंतिम निष्कर्ष यही निकल पाता है कि “व्यवस्था में कमी है इसे बदलना चाहिए” और हम फिर उसी समस्या के इन्तजार में आगे चल पड़ते है कि इस बार हम उसके हरा देंगे । यह तो इतिहास गवाह है कि बिना तैयारी और कर्म के भविष्य कैसे चौपट होता है ।
 
प्रत्येक नई घटना और कार्यवाही के बाद अनुभवी एवं आम लोगो की तरफ से कई सुझाव व समस्याओ के उपाय आते है परन्तु सभी निष्कर्षो को जोड़ने की कोई कड़ी न होने व संवैधानिक अधिकार के अभाव में अधिकांश अखबारों की रद्दी के ढेर व चैनल पर बहस में गुम हो जाते है । जबकि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए यह नये कानून, व्यवस्था, सरकारी प्रक्रिया, न्यायिक प्रक्रिया को प्रेरित कर समय के अनुरूप बदलाव की शुरुवात तक जाने चाहिए जो कागजी प्रक्रिया के आधार पर भी मूर्त रूप से दिखे ताकि प्रत्येक घटना के बाद लोगो को बार -बार सड़को पर न निकलना पड़े। न्याय दिलाने के नाम पर बंद, प्रदर्शन, तोड़फोड़ करके सरकारी सम्पति को नुकसान पहुचाने व उल्टा लोगो को परेशान करने का सिलसिला ख़त्म हो और उच्चतम न्यायालय के आदेशों की पलना हो सके ।
 
हम लोकतंत्र के स्तम्भों की बात करे तो लोग इसके स्तम्भों की संख्या चार बताते है । इसलिए जब विधायिका की बात होती है तो कैमरा संसद की तरफ घुम जाता है । न्यायपालिका की खबर होती है तो कैमरा उच्चतम न्यायालय की फोटो या वीडियो दिखाकर उसकी पुस्टि करता है जबकि कार्यपालिका की बात प्रधानमंत्री कार्यालय की फोटो या वीडियो दिखाकर ख़त्म होती है । जब मीडिया की बात आती है तो कैमरा कुछ नहीं दिखाता वह सिर्फ एक अखबार, चैनल, वेबसाइट, रेडियो चैनल, पत्रिका, संस्था, कंपनी में बट जाता है ।
 
मीडिया में कई एसोसिएशन, संगठन व संस्थाए है परन्तु ये सभी केवल एक क्षेत्र विशेष को इंगित करती है जैसे: अखबारों का संगठन, ख़बरी चैनलों का एसोसिएशन इत्यादि । सामान्य एवं मीडिया से जुड़े लोगो की राय जानी जाये तो सर्वाधिक प्रतिशत इस बात का पक्षधर निकलेगा कि भारतीय पत्रकारिता परिषद् या प्रेस कॉउन्सिल ऑफ़ इण्डिया इसका केंद्र या संवैधानिक चेहरा है । यह सिर्फ एक आभास मात्र है जो तकनिकी आधार पर सही नहीं है । यह परिषद् सिर्फ उतना ही आधार स्पष्ट करती है जितना बार कॉउन्सिल ऑफ़ इण्डिया का न्यायिक प्रक्रिया के लिए है । तकनिकी आधार पर भारतीय परिषद् कार्यप्रणाली का हिस्सा है जो कार्यपालिका के स्तम्भ के अंतर्गत आता है | इसका कार्य मीडिया के क्षेत्र में व्यवस्थाओ को बनाये रखना व उसको मुल उद्देश्य और सिद्धान्तों से भटकने नहीं देना है ।
 
“जनसंदेशिका” के रूप में लोकतंत्र का दाँव तभी सफल हो सकता है जब उसकी कार्यप्रणाली भी उच्चतम स्तर की सोच के अनुरूप हो । यह पुरा तंत्र तथाकथित सरकार से स्वतन्त्र होगा और न्यायपालिका की तर्ज पर एक स्वतन्त्र बॉडी होगी जो मीडिया के सभी हिस्सों को एक श्रृंंख्ला के रूप में जोड़ेगा । जहा कर्म के आधार पर लोगो के सन्देश लाने वाले मीडियाकर्मी द्वारा संकलन का कार्य हो सके ।
 
इस चेहरे के अध्यक्ष की चयन प्रक्रिया व कार्य का निर्धारण मीडियाकर्मियों को ही तय करने देना चाहिए । अभी में इतनी सम्भावना व्यक्त कर सकता हु कि इसके अध्यक्ष को शपथ माननीय राष्ट्रपति महोदय दिलाये और ये प्रतिमाह अपनी रिपोर्ट उन्हें सोपे | इसके अतिरिक्त कई अधिकार और जिम्मेदारियाँ इस संस्था के प्रमुख को मिले इसमें प्रमुख तौर पर इस बात का समावेश हो की वे सीधे तौर पर लोकतंत्र के दूसरे स्तम्भों के प्रमुखों को अपनी संस्था की रिपोर्ट के आधार पर कार्यवाही करने का अनुरोध कर सके । यदि एक समयावधि के दौरान इनके अनुरोध पर आगे कार्यवाही नहीं हो तो राष्ट्रपति महोदय के माध्यम से दुबारा भेज कर कार्यवाही करने का अन्तिम निर्देश समाहित हो | इसका कार्य खबर आ जाने के बाद शुरू हो ताकि अभी चल रही खबर दिखाने की प्रक्रिया बनी रहेगी 

जनसंदेशिका बारह मास कार्य करे और इसके कर्मी तो तरह के प्रतिनिधि के रूप में जुड़े हो | पहले तरह के कर्मी अस्थाई तौर पर हो जिनका चयन पत्रकारों और रिपोर्टरों की प्रकाशित एवं दिखाई गई खबर के आधार पर हो | इस प्रकार एक ही मुद्दे पर कई पत्रकारों का समूह विश्लेषण कर सामूहिक रिपोर्ट बनाये | इसकी समय अवधि एक सप्ताह से अधिक नहीं होनी चाहिए अर्थात इनका कार्यकाल भी एक सप्ताह हो | जो पत्रकार इस सभा में सबसे ज्यादा बार आयेगा उसका चयन आगे एक निर्धारित लम्बे समय के लिए स्थाई सदस्यों की एक अलग फोरम के लिए होगा | यह अलग फोरम अस्थाई सदस्यों की रिपोर्ट को अन्तिम रिपोर्ट देगा | इनका कार्यकाल तीन माह से दो वर्ष के मध्य कुछ भी हो सकता है |
 
फिल्ड में कार्य करने वाले पत्रकारों व संस्थानो के मालिकों और एडमिन करने वाले लोगो के मध्य टकराव ना हो इसलिए इनके सदस्यों की संख्या में तीस प्रतिशत लोग मालिको और एडमिन करने वाले लोग से आये | इससे हर खबर के अन्य सामाजिक पहलू के साथ समन्वय बना रह सके |
 
संवैधानिक दृश्टिकोण से देखा जाये तो यह पूर्णतया संविधान के संरक्षक माननीय राष्ट्रपति महोदय के अनुरूप है | जनसंदेशिका के माध्यम से उन तक लगातार जनता की भावना पहुंचने का एक मार्ग जो कुंद पड़ा है व खुल जायेगा और लोकतंत्र के अन्य स्तम्भों की भांति यह भी राष्ट्र निर्माण में सहयोग करेगा | प्रत्येक माह नये-नये संदेशो और जन भावना का उनके पास पहुंचने व उनके माध्यम से आगे किर्यान्वन के लिए जाने से उनका एक विशेष अतिविशिस्ट संवैधानिक अधिकार संगठनो को सलाह व दिशानिर्देश देने का कार्य विलुप्त होने की कगार पर खड़ा है वो पुनः जीवित हो उठेगा जो इस पद की गरिमा पर रबर स्टेम्प के तमगे को हमेशा के लिए धो देगा |
 
वर्तमान में मीडिया तकनिकी और विश्लेषण करने में इतना सक्षम हो गया है कि वो चुनावी नतीजों से पूर्व परिणाम की सम्भावना बताता है जिसमे त्रुटि की सम्भावना बहुत कम प्रतिशत में रहती है | इस गुण का प्रयोग राष्ट्रपति महोदय जनसंदेशिका के माध्यम से उठा सकते है और कई राष्ट्रीय मुद्दों पर जनता की राय जानकार उन्नति का मार्ग प्रशस्त कर सकते है |
 
सत्य को मिटाया नहीं जा सकता है अब हमारी ईच्छाशक्ति, भावना, सोच, समर्पण, कर्तव्यनिष्ठा, राष्ट्रप्रेम, लोकतंत्र में आस्था व इसको बनाने और अनुमोदित करने वालो में हमारे विश्वास पर निर्भर करेगा की यह कब सामने मूर्तरूप लेकर आता है |
देश हित में
मंच से यह भी घोषणा कर ने की कृपा किजयेगा कि देश मे एक मात्र अखबार पहाडोंकीगूँज दैनिक समाचार पोर्टल एवं साप्ताहिक पत्र ने देश में लोकतंत्र के चौथे स्तंभ मीडिया को संवैधानिक व्यवस्था का अंग मानने के लिए संवैधानिक अधिकार दीयाजना चाहिए का संज्ञान माननीय सुप्रीम कोर्ट ने जनहित याचिका में लिया है। आने वाली 23 नवम्बर 2022 की तारीख सरकार को जबाब देने के लिए लगी है ।स्वस्थ पारदर्शी पत्रकारिता करने के लिए ।आप सभी आयोजक लोग व फेसबुक देखने वाले महान लोगों से निवेदन है कि देश के मीडिया के लिए संवैधानिक अधिकार मिलान चाहिए लिखयेगा । मंच से अपना संबोधन की वीडियो भी वट्सप नम्बर 7983825336 पर 
भेजने की कृपा किजयेगा।

देश में पत्रकारों को संवैधानिक अधिकार दिलाने के लिए देव भूमि उत्तराखंड के नाम एक सम्मान पहाडोंकीगूँज की खबर से जुड़ने जा रहा है। पढें 24×7 www.ukpkg.com हिन्दी न्यूज पोर्टल वेब चैनल और अपना स्वर डिजयेगा। बरिष्ट वकील  अश्विनी कुमार उपाध्याय के फोन न0, 011-27492967,मोबाइल न08010174535,ईमेल: kumar. ashwani@gmail.comएंव vikas singh बरिष्ट उपाध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन मोबाइल न0 9811077353, ईमेल:singh. vikas60@gmail.com उक्त नम्बरों पर समाचार वट्सप ,ईमेल कर भेजडीजयेगा।
जय बदरीविशाल

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भारत का पहला पत्र है जिसकी खबर से भारत के इतिहास में  मीडिया को संवैधानिक अधिकार दिलाने  के लिए सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लिया है

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