श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत -आचार्य आजाद मोहन पैन्यूली

Pahado Ki Goonj

श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत -आचार्य आजाद मोहन पैन्यूली

देहरादून, ऋषिकेश-( 1 ) 11 अगस्त, मंगलवार = अर्धरात्रि – व्यापनी अष्टमी ( गृहस्थियों के लिये )*
*( 2 ) 12 अगस्त, बुधवार = उदयकालिक अष्टमी ( वैष्णव, संन्यासियों के लिये )*
गतवर्षों की भांति इस वर्ष *( विक्रम संवत 2077 में )* श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रतादि का पर्व स्मार्त और वैष्णव भेद से दो दिन आ रहा है.
परंपराया इस व्रत के संबंध में दो मत प्रचलित हैं, स्मार्त लोग *(सामान्य गृहस्थी)* अर्ध रात्रि का स्पर्श होने पर सप्तमी युत्ता अष्टमी में व्रत उपवास करते हैं, क्योंकि इनके अनुसार भगवान श्री कृष्ण का अवतार अर्धरात्रि के समय *(रोहिणी नक्षत्र एवं वृष राशि में चंद्रोदय होने पर )* अष्टमी तिथि में हुआ था.
जबकि वैष्णव मतावलम्बी अर्धरात्रि अष्टमी की उपेक्षा करके नवमी विद्धा अष्टमी में व्रत आदि करने में विश्वास रखते हैं –
*’स्मार्तानां गृहणी पूर्वा पोष्या, निष्काम वनस्थेविधवामि: वैष्णवैश्च परेवा पोष्या ! वैष्णवास्तु अर्द्धरात्रिव्यापिनीमपि रोहिणी सप्तमी विद्धां अष्टमीं परित्यज्य नवमी युतैव ग्राह्या !! ( धर्मसिंधु )*
अधिकांस शास्त्रकारों ने अर्धरात्री व्यापिनी अष्टमी में ही व्रत, पूजन एवं उत्सव मनावे की पुष्टि की है ! *श्रीमद्भागवत*, *विष्णु पुराण*, *वायु पुराण*, *अग्नि पुराण*, *भविष्य पुराण*, आदि भी अर्धरात्रि युक्ता अष्टमी में ही श्री भगवान के जन्म की पुष्टि करते है –
*”गतेअर्धरात्रसमये सुप्ते सर्वजने निशि !! भाद्रेमास्य-सिते पक्षेsष्टम्यां ब्रह्मार्क्षसंयुजि !! सर्वग्रहशुभे काले-प्रसन्नहृदयाशये अविरासं निदेनैव रूपेण हि अवनीपते !!”(भविष्य पुराण )*
धर्मसिंधुकार का भी यहि अभिमत है –
*कृष्ण जन्माष्टमी निशीथ व्यापिनी ग्राह्या !*
*पूर्वदिन एव निशीथ योगे पूर्वा !!*
इस प्रकार सिद्धांत रूप में तत्काल व्यापिनी *(अर्धरात्रि व्यापिनी)* *(अर्धरात्रि व्याप्त)* तिथि अधिक शास्त्र सम्मत एवं मान्य रहेगी ! कुछ आचार्य तो केवल अष्टमी तिथि को ही जन्माष्टमी का निर्णायक तत्व मानते हैं ! रोहिणी से युक्त होने पर तो श्री कृष्ण जन्माष्टमी ‘जयंती’ संज्ञक कहलाती है !
*’कृष्णाष्टम्यां भवेदयत्रकलैका रोहिणी यदि !*
*जयन्ती नाम सा प्रोक्ता उपोष्या सा प्रयतनत: !!(अग्नि पुराण)* ‘ध्यान रहे’ भगवान श्री कृष्ण की जन्मभूमि मथुरा-वृंदावन में तो वर्षों की परंपरानुसार भगवान श्री कृष्ण जन्माष्टमी के जन्मोत्सव को सूर्य उदयकालिक एवं नवमी विद्धा श्री कृष्ण अष्टमी मनाने की परंपरा है ! जबकि उत्तरी भारत में लगभग सभी प्रांतों में सैकड़ों वर्षो से अर्धरात्रि एवं चंद्रोदय व्यापिनी जन्माष्टमी में व्रत आदि ग्रहण करने की परंपरा है ! परंतु केंद्रीय सरकार अर्धरात्रि कालिक अष्टमी की उपेक्षा करके प्रायः उदयकालिक अष्टमी को जिसमें नवमी लग रही हो उसी तिथि को ही सरकारी अवकाश घोषित कर देती है ! तथा मथुरा आदि के मंदिरों में प्राय उदय कालिक वाली श्री कृष्ण जन्माष्टमी दोनों कार्यों *(उत्सव व अवकाश )* के लिए उपयुक्त होती है ! यह तिथि पुर्वाहण् – व्यापिनी तथा दिन के द्वितीय पर व्याप्त अमावस ली जाती है !
आप सभी निश्चय पूर्वक अपनी परम्परानुसार व्रत लें,
11 अगस्त को रात्रि व्रत
12 को वैष्णव व्रत वाली जन्माष्टमी है.

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