साइंटिफिक-एनालिसि चुनाव लोकतंत्र के लिए वरदान या अभिशाप जानिए वैज्ञानिक शैलेन्द्र कुमार बिराणी
संवैधानिक सच्चाई तो यही है कि वोट डालना जनता का अधिकार है व उसी के कारण लोकतंत्र टीका हुआ है जबकि बदली परिस्थितियों व जिस तरह से चुनाव के समय में खबरे आती है, बयानबाजी होती है, मीडिया एवं अन्य संसाधनों के माध्यम से माहौल बना लोगो को भ्रमित किया जाता है, झूठे खयाली पुलाव के जयकारो, बिना योजना व पालिसी के चाँद-तारे तोड़ लाने के दावो, अश्लील, गाली-गलौच व भड़काऊ बयानबाजी व व्यक्तिवादी छीछा-लीदर और सभी अपराधों को चुनाव के नाम पर जिस तरह से ढक दिया जाता है उसे “ग्रहण” के अलावा और क्या कहा जा सकता है ?
मीडिया की बात करी जाये तो सबसे ज्यादा अनपढ़, गवार व सता को जबरदस्ती किसी का गुलाम बनाने का चेहरा इन्ही का नजर आता है | यह किसी स्वार्थ, लालच या इसमें घुसे दो-चार चेहरो, संगठनो या फर्जी वाले नामो की वजह से ही क्यों ना हो परिणाम तो यह नहीं देखता है | आज के दौर में मीडिया के लोगों ने ही इसे गोदी मीडिया से अलंकृत कर मैन मीडिया से अलग कर अपने राष्ट्र के प्रति पत्रकारिता धर्म के बंटवारे की छाप लगाई हैं |
हर बार विधानसभा एवं लोकसभा चुनाव के बाद सरकारों (तथाकथित) का गठन हो जाता हैं परन्तु चिराग लेकर ढूढने पर भी आपको बड़ी मुश्किल से एक आधा ही कोई चैनल, अखबार व पत्रिका मिल पायेगी जिसमे छापा या बताया गया हो की “जनता की सरकार” का गठन हो गया |
इस पार्टी की सरकार, उस पार्टी की सरकार व इससे भी निचे दर्जे की सोच का भौंडा मजाक करते हुये फलाने व्यक्ति की सरकार बन गई को दिखा-दिखा कर व गा-गा कर लोगो के दिमाग में जबरदस्ती घुसाया जाता है जैसे एक झूठ को सच साबित करने के लिए उसे लगातार सौ से ज्यादा बार गाया जाता है | इसी तरह अपहरित व राजनैतिक पार्टियों के माध्यम के माध्यम से बंधी बनी सरकार के नेतागण, चुनाव से पूर्व दलबदलू लोग, हारे हुये प्रत्याशी, आपराधिक तत्व उस एक व्यक्ति का मोखोटा लगाकर पुलिस पर उसकी सरकार का रोप जाड़कर जिस तरह अपनी खोटी-चवनी रोड पर चलाता हुआ दिखता है व किसी गुलामी की झनझनाहट से कम नहीं…….
वर्तमान में पाँच विधानसभा चुनावों का दौर चल रहा हैं इसके खत्म होने के साथ ही राजनैतिक दल की पांचवें दर्जे की सोच वाले व्यक्ति गणितीय विज्ञान को चतुराई की तरह इस्तेमाल करेंगे और वोटों को टुकड़ों-टुकड़ों में बांट वर्तमान की व्यवस्था / तरिके से नाखुश जनता को एंटी-गवर्नमेंट वोट के चद्दर से ढ़क एक या दो-तीन पती वाले व्यक्ति के पीछे छुपा डालना अपने आप में सच्चाई के प्रकाश पर ग्रहण की काली छाया का भविष्य पर प्रश्न चिन्ह है ? चुनाव में वोटिंग से पूर्व जो लोग एक एक-दूसरे पर जुबानी बाण चलाते हैं, जानवरो की पदवियाँ देते हैं व आपस में एक-दूसरे को समस्याओं की जड़ बताते हैं वे ही चुनावी परिणाम के बाद जिस तरह से मिलते है व मीडिया में मुस्कराती फोटो खिंचवाते है जो व्यक्तिवाद के रंजिश, सत्तालोलुपता, स्वार्थ के दृस्टिकोण से सही है परन्तु जो दोषारोपण हुये उन्हें गड्ढो में डालना मतलब पूरी लोकतान्त्रिक व्यवस्था को गढे में धकेलने जैसा है | इस वोट डालने वाली जनता के उप्पर यह कहावत चरितार्थ करना होता है कि वक्त आने पर “गधे को बाप” कैसे बनाया जाता है |
सोशियल मीडिया की बात करे तो यहॉ प्रोफेशनल rrके रूप में खडी हुई व्यक्तिवादी सेना ने संदेशो की भाषा का प्रारूप ऐसा बना डाला की ….. गलती से आप ने एक को भी लाईक, फॉरवर्ड या शेयर कर दिया तो आप के उप्पर जबरदस्ती किसी एक राजनैतिक या व्यक्ति का सिपेसालार होने का कीचड़ पुरे प्रोफाइल के उप्पर चुनावी
⅞स्याही के रूप में चिपका दिया समझो |
वोट देने वाली जनता के पैसे जो सरकारी खजाने में जाते हैं उन्हें बन्दरबांट करके साईकिल, स्कूटी, टेलिविज़न, साड़ी, सहायता रकम, बरोजगारी भत्ता, अनुदान राशि, सबसीडी, मुफ्त का राशन, चारधाम यात्रा, धार्मिक अनुष्ठान व चढावा, टैक्स में छूट, 5-10 रूपये वाले भोजन, कार्ड के सहारे जिन्दगी लटकाकर होने वाले ईलाज इत्यादि-इत्यादि के रूप में कुड़की बाजार की बोली की तरह सभी दलों के लोग उसी जनता के आंखों व मानसिक सोच के ऊपर व्यक्तिवाद, भेदभाव, जात-पात व धर्म-संप्रदाय के झाले लपेटकर पांच साल के लिए जनता की लोकतांत्रिक सरकार की चांबी पर हाथ साफ कर जाते हैं |
21वी सदी व राजनैतिक लूट-खसोट, मारामारी, छीना-छपटी के दौर में असली प्रशन तो यह हैं जिन पर जवाब चुनाव से पहले दिया जाना चाहिए | जैसे – वोटिंग मशीन में नोटा के मत ज्यादा हुये तो चुनाव वापस होंगे या राष्ट्रपति-शासन के रूप में प्रशासन काम करेगा? उम्मीदवारों ने आवेदन में जो आपराधिक मामलें भरे उस पर फास्ट ट्रैक कोर्ट बैढाकर चुनाव से पहले फैसला होगा ? चुनावी खर्चे में जितनी सम्पत्ति बताई उतनी सम्पत्ति व पांच साल की सरकारी आय को छोड़कर सबकुछ कार्यकाल के पुरा होने पर जब्त होगी ? जनप्रतिनिधि जीतने के बाद जनता से राय लेकर विधानसभा / संसद में न रखता हैं और वोट करता हैं तो उसे वापस बुलाने का तरीका क्या होगा ? जीतने के बाद राजनैतिक खेमेबाजी बदल, इस्तीफा / निलम्बित होकर वापस चुनाव लादता हैं तो उससे वर्तमान चुनाव का पूरा खर्च ब्याज सहित वसूला जायेगा ? राजनैतिक दल दलबदलू, बदमाश लोगों का चयन करके वापस जनता को समय, पैसा, कामधन्धा छोडकर असमय चुनाव के लिए मजबूर करते हैं तब ऐसी परिस्थिति में उनसे वसूली के साथ कानूनी कार्यवाही क्या होगी ? चुनावी घोषणा-पत्र व उसके दांवे संविधान व कानून के आधार पर सही हैं या गलत उसकी एन.ओ.सी. (नो आब्जेक्शन सर्टिफिकेट) चुनाव पूर्व न्यायपालिका से लेना अनिवार्य होगा
शैलेन्द्र कुमार बिराणी
युवा वैज्ञानिक