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साइंटिफिक-एनालिसिस धरने, विरोध-प्रदर्शन व आन्दोलनों मे “गठबंधन” का दौर शुरू हुआ…

Pahado Ki Goonj

साइंटिफिक-एनालिसिस

धरने, विरोध-प्रदर्शन व आन्दोलनों मे “गठबंधन” का दौर शुरू हुआ…

“गठबंधन” की बात आते ही लोगों के दिल व दिमाग में सर्वप्रथम विवाह/शादी की बात आती हैं जो कालान्तर में अटूट रिश्ते व सामाजिक जीवन जिने के साथ सार्वजनिक सत्ता, परिस्थितियों और प्रकृति के बदलाव में जीवन जीने को दो अलग-अलग इंसानों की एकता व परस्पर संयोग कहते हैं |

यह “गठबंधन” हर कार्यक्षेत्र में लागू होते चले गये जिससे उत्पादन के क्षेत्र में कारखानों, शिक्षा के क्षेत्र में स्कूलों व विश्वविद्यालयों, क्रीड़ा के क्षेत्र में खेल आयोजनों, वर्तमान सत्ता/शासन के विरोध में आन्दोलनों, आस्था व निष्ठा के क्षेत्र में धर्मों एवं सम्प्रदायों का निर्माण हुआ हैं | राजाओं के मैत्रिक गठबंधनों द्वारा कई बडी लडाईया, सत्ता मिटाने/हथियानें/बदलने की लाखों घटनाएं हम हर रोज इतिहास की किताबों में पढते हैं |

आजादी के बाद देश में लोकतंत्र आया और नई सरकारों का प्रादुर्भाव हुआ जो जनता की सरकार से धीरे-धीरे इसी “गठबंधन” के कारण राजनैतिक दल की सरकार के अन्दर बोलचाल व मीडिया प्रकाशन/प्रसारण से खिसक गई | वर्तमान में इन्हीं मीडिया के सहारे व्यक्तिगत आदमी की सरकार का मुखौटा लगा दिया गया जबकि कानूनी व संवैधानिक रूप से इसका कोई आधार नहीं हैं | जब यह “गठबंधन” अलग-अलग विचारधारा, श्रेत्र-विशेष, जाति-विशेष, भोगोलिक-विशेष, भाषा-विशेष इत्यादि-इत्यादि वाले राजनैतिक दलों के बिच आया तो वाममोर्चा, संयुक्त पार्टी गठबंधन, संयुक्त मोर्चा, राष्ट्रीय मोर्चा, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA), संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) की सरकारें देश में स्थापित हुई जबकि राज्य स्तर पर ऐसे गठबंधनों की लाईन लगी पडी हैं |

यही “गठबंधन” जब किसी एक कानून, नियम, व्यवस्था में बदलाव व मांग करने वालों के मध्य हुआ तो उसने देश में बड़े आन्दोलन को जन्म दिया जिसमें केरल का शांति घाटी आंदोलन, उत्तराखंड का चिपको आन्दोलन, बिहार का जंगल बचाओ आंदोलन, कई राज्यों (मध्यप्रदेश-छतीसगढ, गुजरात, महाराष्ट्र व राजस्थान) का नर्मदा बचाओं आंदोलन, CAA, NPR और NRC (नागरिकता संसोधन अधिनियम) के खिलाफ आन्दोलन, तीन कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए किसानों का आन्दोलन प्रमुख हैं |

अब यह “गठबंधन” व्यक्तिगत कारणों, अन्याय, न्यायिक असमानता, भेदभाव, शोषण, तिरस्कार, अपमान, कलंक, ईज्जत-मर्यादा भंग के साथ-साथ अपराध के अन्दर भी पैर पसार रहा हैं | जंतर-मंतर शुरू से ऐसा स्थान रहा हैं जहां व्यक्तिगत विरोध वाले हमेशा धरने पर बैठे रहते हैं | इस बार अन्तर्राष्ट्रीय मेडल विजेता पहलवान खिलाड़ियों द्वारा यौन शोषण के खिलाफ एक व्यक्ति पर कानूनी कार्यवाही व न्यायोचित सजा दिलाने का धरना इस “गठबंधन” के आयाम में नई गाथा व स्वर्णिम इतिहास लिखने की दिशा में आगे जा रहा हैं |

पहलवानों के व्यक्तिगत आन्दोलन में परिवार, समाज, जाति व गांव के सहयोग एवं उनके गठबंधन से एक बड़े आंदोलन की आहट दिखाई दे रही हैं | सत्ता की ताकत, अहंकार, घमण्ड, व एक छोटी सी समस्या व शिकायत से शीर्ष नेतृत्व को पलट देने की संविधान में व्यवस्था न होने के कारण आंदोलनों को लम्बा खींच खत्म करने की जो गलत/कलंकित/अनैतिक/अमर्यादित/श्रापित/कुप्रथा किसान आंदोलन के साथ थोपी गई वो एक अलग तरह के “गठबंधन” को लोकतंत्र में पैदा करने जा रही हैं |

एक छोटे से कानून, नियम, परेशानी, समस्या के लिए महिनों तक सड़कों पर आम आदमी को बैठना पड़े, उसके समर्थन में खाने-पीने, पकाने, रहने-पहने का समान साथ लेकर आना पडे तो क्या होगा? जब एक ही परिवार के पांच सदस्य हो व पांचों की समस्या अलग-अलग हो तो संविधान के अनुसार अपनी ही सरकार में आम नागरिक रोड पर खुले आसमान में जीने को विवश कर दिया जाये |

राजनैतिक दलों ने इस “गठबंधन” को धर्म का जामा पहना कामन मिनिमम प्रोग्राम की लम्बी लिस्ट वाली डोरी से लपेट सत्ता और शासन को हासिल करने का जो तरिका सफलतापूर्वक स्थापित किया वो अब आन्दोलनों में भी होने जा रहा हैं | अब व्यक्तिगत आन्दोलन परिवार की सुरक्षा व संवैधानिक कानूनों के पक्के डोरों से सामान्य मानवीय सोच का मिनिमम प्रोग्राम बना “गठबंधन” को नया आयाम देते दिख रहे हैं |

जंतर-मंतर पर पहलवान खिलाड़ियों ने विरोध में पुरूष-स्त्री का आपसी गठबंधन पहले कर लिया, परिवार के सदस्य पहुंच कर संगे रिश्तों का गठबंधन कर दिया, एक विशेष रहन-सहन, खानपीन, त्यौहार/शौक/दुख बनाने के रिवाज से सहयोग के रूप में जातिगत गठबंधन कर लिया | क्षेत्र-विशेष, भू-भाग व राजनैतिक नक्शे से राष्ट्रीय गठबंधन देर-सवेर हो ही जायेगा | अब ये उद्देश्य प्राप्ति तक धरने पर एक साथ बैठे रहने का “गठबंधन” करने के मुकाम पर अग्रसर होते दिख रहे हैं |

आप इसे वर्तमान मामले के उदाहरण से इस साधारण तरिके से समझे पहलवान खिलाड़ियों व किसानों ने “गठबंधन” करा कि पहला मुद्दा महिला खिलाडियों के यौन शोषण का व दुसरा मुद्दा किसानों के फसल बेचने की मिनिमम प्राइज रेट (MSP) के कानून बनाने का होगा | यदि खिलाडियों के धरने का उद्देश्य पहले पुरा हो गया व किसानों का नहीं हुआ तब भी धरना चलता रहेगा और पहलवान उसमें शामिल रहेंगे | इसी तरह किसानों का उद्देश्य पहले हो गया और खिलाडियों का नहीं हुआ तो किसान धरना छोडकर नहीं जायेंगे | जीवन जीने व आंदोलन की जरूरतों को पुरा करने के लिए अभी लगातार एक-एक करके खाप पंचायतों का लगातार आंदोलन में जुडना व फिर एक आह्वान पर एक साथ आजाने के वादे के साथ लौट जाना बहुत अच्छा उदाहरण हैं |

इस प्रकार देश का हर तरह व हर समस्या से जुडा छोटे, बिखरे, बंटे हुए आन्दोलन का सहयोग पहलवान खिलाडी इस “गठबंधन” के आधार पर हासिल कर लेंगे | इसमें आन्दोलन के नाम का हर रोज बदलना आम लोगों के लिए चुटकी बजाने जितना काम हैं क्योंकि यहां तो एक चुटकी बजाते ही नया बच्चा जन्म ले लेता हैं और नाम संस्कार में उसने दक्षता प्राप्त कर ली हैं | कानूनन इसे असंवैधानिक बताकर रोका भी नहीं जा सकता हैं क्योंकि राजनैतिक दल ऐसी समस्याओें को संगठित कर उन्हें दूर करने के नाम पर चुनावी घोषणा पत्र बना सत्ता हासिल करते हैं |

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[12/05, 12:17 pm] Virsnsari: साइंटिफिक-एनालिसिस

अंधेरी नगरी चौपट राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा …

महाराष्ट्र सरकार की उठा-पटक पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सहित पांच न्यायाधीशों की बैंच का फैसला सुन महाराष्ट्र नहीं देश की जनता को भी इसी कहावत का सत्यापन लगता हैं |

सुप्रीम कोर्ट नें फैंसले में सबकुछ “नैतिकता” व “मर्यादा” के इर्द-गिर्द रखा व इसी के नाते भूतपूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को न्यायपालिका में श्रृद्धा व बिना मुख्यमंत्री की कुर्सी के बैठने का सब्र/सबूरी रखने का मार्ग दिखाया, इसके साथ ही वर्तमान मुख्यमंत्री शिंदे की “नैतिकता” व “मर्यादा” पर विश्वास रखा की वो सदन के स्पीकर द्वारा शिंदे गुट की ओर से प्रस्तावित स्पीकर गोगावले को चीफ व्हिप नियुक्त करना अवैध फैसला जानकर स्वयं सरकार का इस्तीफा दे देंगें और सुप्रीम कोर्ट ने अपनी नैतिकता व मर्यादा को बताते हुए मामला सात जजों की बड़ी बैंच को सौंप दिया |

सरकार बदलने के पूरे घटनाक्रम को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल की भूमिका पर भी सवाल उठाए। कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल के पास विधानसभा में फ्लोर टेस्ट बुलाने के लिए कोई पुख्ता आधार नहीं था। फ्लोर टेस्ट को किसी पार्टी के आंतरिक विवाद को सुलझाने के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकते। राज्यपाल के पास ऐसा कोई संचार नहीं था जिससे यह संकेत मिले कि असंतुष्ट विधायक सरकार से समर्थन वापस लेना चाहते हैं। राज्यपाल ने शिवसेना के विधायकों के एक गुट के प्रस्ताव पर भरोसा करके यह निष्कर्ष निकाला कि उद्धव ठाकरे अधिकांश विधायकों का समर्थन खो चुके हैं।

इस टिप्पणी के साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल द्वारा नियुक्त सरकार को ईशारों में ही असंवैधानिक बता दिया और स्वयं द्वारा राज्यपाल को सजा न दे पाने व विधायकों की सदस्यता रद्द न कर सकने कि विवशता बताते हुए राज्यपाल स्वयं सरकार बर्खास्त कर अपना इस्तीफा दे देने का नैतिकता व मर्यादा वाला मार्ग बता गये |

इसके लिए उस समय वर्तमान राज्यपाल पद पर थे या नहीं यह सार्वजनिक रूप से इस पद की मर्यादा बनाये रखने के लिए मायना नहीं रखते | वर्तमान राज्यपाल की तरफ से उनके वकील भी सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भागीदार थे | राज्यपाल को अपने इस्तीफे में इस बात का जीक्र करते हुए पद की मर्यादा के लिए ऐसा त्याग बताते हुए राष्ट्रपति को सौंप देते | इसके ऊपर महामहिम राष्ट्रपति क्या निर्णय लेते जिससे असली अपराधी को दण्ड मीलता व संविधान की गरीमा के लिए पद त्याग देने वाले के साथ अन्याय न हो | इसे हमें भी संविधान संरक्षक राष्ट्रपति की नैतिकता व मर्यादा पर छोड़ देना चाहिए |

जहां तक हमे ज्ञात हैं सुप्रीम कोर्ट किसी भी मामले की सुनवाई करने से पहले जांचता हैं कि वो मामला कानूनी तौर पर सुनने लायक हैं या नहीं और उसके दायरे में आता हैं या नहीं …… जबकि उच्चतम अदालत ने 17 फरवरी को महाराष्ट्र राजनीतिक संकट से संबंधित याचिकाओं को सात-सदस्यीय संविधान पीठ के सुपुर्द करने का आग्रह ठुकरा दिया था। अब फैसले में अपने दायरे से बाहर का मामला बताकर सात-सदस्यीय संविधान पीठ को भेजना “नैतिकता” व “मर्यादा” को ही कटघरे में खडा कर दिया प्रतीत होता हैं |

यदि मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पांच जनों की पीठ यह कहती कि हमने सुनवाई कर ली हैं और राज्यपाल व स्पीकर को दोषी पाया है परन्तु इन्हें सजा देना व कार्यवाही करना हमारे अधिकार श्रेत्र के बाहर हैं इसलिए हम इस मामले को सभी 15 न्यायाधीशों की संविधान पीठ को भेज रहे हैं | यदि उन्हें हमारी सुनवाई को दुबारा चलाने की जरूरत लगती हैं तो चलाये अन्यथा राष्ट्रपति के सर्वोच्च संवैधानिक पद की मर्यादा रखते हुए नैतिकता के तहत उन्हें ही राज्यपाल व स्पीकर की सजा तय करने का अनुरोध कर देते जिससे न्यायपालिका की न्याय देने की मर्यादा कलंकित न हो व अपराधी खुला छूट कर देश व समाज में ऐसे अपराध करने की नई परम्परा शुरु करने की जनता के मध्य मिसाल न बन सके |
राष्ट्रपति स्वयं इस मामले को नहीं देखेगी व उनकी संवैधानिक कुर्सी मीडिया के संवैधानिक चेहरे के अभाव में लगंडी हैं इसलिए अखबारों के प्रकाशन व टीवी प्रसारण का कोई औचित्य नहीं हैं | यदि राजनेता स्वयं जाकर राष्ट्रपति से मुलाकात कर अवगत कराये तो अलग बात हैं |

संविधान के अनुसार राष्ट्रपति के अतिरिक्त सुप्रीम कोर्ट की फुल संविधान पीठ को ही संरक्षक का दर्जा प्राप्त हैं | यदि राष्ट्रपति किसी कारण वश राज्यपाल, स्पीकर व असंवैधानिक सरकार पर समय की मर्यादा रखते हुए फैसला न ले पाये तो उच्चतम न्यायालय की फुल संविधान पीठ स्वयं सजा निर्धारित कर दे | इसे संविधान के अनुसार राष्ट्रपति भी न बदल सकते हैं और निरस्त कर सकते हैं |

यदि ऐसा कदम न उठाया गया तो देश के अन्दर अन्याय का बोलबाला हो जायेगा और सभी अपराधी, स्वार्थी, लालची व विदेशी लोग असंवैधानिक सरकार के पीछे छुप कर जनता का जीवन दुर्भर कर देंगे और वह सिर्फ कागज पर बेआबरू हुई संविधान की प्रस्तावना को कौसते – कौसते विधी द्वारा स्थापित विधान को अलविदा करेंगे |

शैलेन्द्र कुमार बिराणी
युवा वैज्ञानिक
[13/05, 4:50 pm] Virsnsari: 🔭 साइंटिफिक-एनालिसिस🔬

सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को सदैव सत्ता पक्ष व उससे सम्बन्धित राजनैतिक दल के लाभ-हानि के रूप में देखे जाते हैं | इससे आगे याचिकाकर्ता के फायदे या नुकसान के रूप में समझे जाते हैं |

पहली बार सुप्रीम कोर्ट के महाराष्ट्र सरकार के राजनैतिक उथल-पुथल पर आये फैसले का विज्ञान के सिद्धांत के नजरिये से पुरा विश्लेषण समझे जो व्यवस्था को लेकर करा गया हैं |

इसमें राष्ट्रपति, मुख्य न्यायाधीश सहित सभी जजों, राज्यपाल, विधानसभा स्पीकर, मुख्यमंत्री, मीडीया, कार्यपालिका इत्यादि- इत्यादि को सच की कसौटी पर तौला हैं |

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