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उत्तराखण्ड़ जल विद्युत निगम में ईआरपी के नाम पर हो रहे घोटाले पर जांच शुरू

Pahado Ki Goonj

उत्तराखण्ड़ जल विद्युत निगम में ईआरपी के नाम पर हो रहे घोटाले पर जांच शुरू
पूर्व समाजवादी नेता राकेश बड़थ्वाल की मेहनत रंग लायी
देहरादून। उत्तराखण्ड़ जल विद्युत निगम में ईआरपी के नाम पर हो रहे घोटाले पर समाजवार्दी पार्टी के निष्कासित नेता राकेश बड़थ्वाल के पत्रा का संज्ञान लेते हुये जांच की कारवाई शुरू कर दी है।
गौर हो कि समाजवादी पार्टी के पूर्व प्रदेश सचिव राकेश बड़थ्वाल ने उक्त मामले का खुलासा कर मामले की जांच की मांग की थी। बड़थ्वाल के पत्रा का संज्ञान लेते हुये उप सचिव प्रकाश चन्द्र जोशी ने उत्तराखण्ड़ जल विद्युत निगम के प्रबंध् निदेशक को मामले की जांच कर जल्द रिपोर्ट भेजने को कहा है।
विदित हो कि सपा के पूर्व प्रदेश सचिव राकेश बड़थ्वाल ने उर्जा सचिव राध्किा झा को पत्रा प्रेषित किया था जिसमें उत्तराखण्ड़ सरकार के जीरो टालरेंस के दावों को जल विद्युत निगम में ईआरपी घोटाले की वजह से झटका लगा है। उन्होंने पत्रा में सरकार से मांग की थी कि उक्त घोटाले की जांच की जाये। बड़थ्वाल ने अपने पत्रा में कहा था कि टेडर प्रक्रिया में करीब 4.75 करोड़ से उफपर की निविदा करने वाली पफर्म एसेन्चर्स को कार्य आवंटित कर दिया गया। साथ ही इस पूरी प्रक्रिया में जानबूघ् कर ऐसे मानक अपनाये गये 4.75 करोड सेउफपर निविदा करने वाली फर्म को ही कार्य
आवंटित किया जा सके। इस दौरान टेंडर प्रक्रिया की नियमावली को पूरी तरह से बदल दिया गया। जोकि उत्तराखण्ड़ प्राक्यूरमेंट एक्ट 2008 का खुला उल्लघंन है।
राकेश बड़थ्वाल ने कहा कि निविदा में भी अनुमानित लागत को कई गुना जानबूझ कर बढ़ाया गया। जबकि उत्तराखण्ड़ प्राक्यूरमेंट एक्ट 2008 एवं सीवीसी दिशा निर्देश के अन्तर्गत क्वालिटी कम कोस्ट बेस्ड प्रणाली केवल कन्सल्टेंसी सेवाओं के लिये ही अपनायी जाती है। चूंकि यह कन्सल्टेंसी कार्य नही था क्योंकि ईआरपी कन्सल्टेंसी का कार्य उज्जवल ने विप्रो को आवंटित कर दिया और वहां भी क्वालिटी कम कोस्ट बेस्ड प्रणाली नही अपनायी गई।
बड़थ्वाल के अनुसार यहां पर कार्य ईआरपी के क्रियान्वयन से संबंध्ति है तो उज्जवल ने किस आधर पर ईआरपी के क्रियान्वयन से संबंध्ति कार्य के टेंडर में क्वालिटी कम कोस्ट बेस्ड प्रणाली अपनाया जो कि उत्तराखण्ड़ प्राक्यूरमेंट एक्ट 2008 के तहत कन्सल्टेंसी कार्य के अलावा अन्य कार्यो में प्रतिबंध्ति है। उन्होंने कहा कि ईआरपी के क्रियान्वयन के कार्य को यदि कन्सल्टेंसी कार्य मान भी लिया जाये, जो कि सही है, तो भी उत्तराखण्ड़ प्राक्यूरमेंट एक्ट 2008 के अन्तर्गत सबसे पहले एक्सप्रेशन आपफ इंट्रेस्ट निकाल जाता है जिसकेे बाद फर्मो को शार्टलिस्ट किया जाता है। तभी
आरएपफपी इश्यू किया जाता है ताकि निविदा प्रतिस्पर्धत्मक रहे। लेकिन इस कार्य में सीध आरएपफपी इश्यू किया गया। जिससे किसी विशेष पफर्म को लाभ पहुंच सके। बड़थ्वाल के पत्रा का संज्ञान लेते हुये अब शासन ने जांच शुरू कर दी है। हालांकि इस मामले का खुलासा करने की समाजवादी पार्टी के पूर्व प्रदेश सचिव राकेश बड़थ्वाल को कीमत भी चुकानी पड़ी। उन्हें समाजवादी पार्टी केकार्यालय में इस विषय पर प्रैस वार्ता करने से पाटभर्् के प्रदेशाध्यक्ष द्वारा रोका गया। ऐसे में बड़थ्वाल ने अपने पद से इस्तापफा दे दिया। जब वे दबाव में नही आये तो उन्हें सपा प्रदेश अध्यक्ष ने पार्टी से 6 साल क ेलिये निष्कासित कर दिया। लेकिन राकेश बड़थ्वाल ने इन सबकी परवाह नही की।

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