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दलाली का अड्डा बनादिया सूचना निदेशालय सलाहकार और कोआरडिनेटर लूट में शामिल ” पत्रकार कल्याण कोष “से नही मिली बीमार पत्रकार को एक भी फूटी कौड़ी

Pahado Ki Goonj

-तीन सालों से अस्वस्थ है पत्रकार सुभाष त्यागी

चंद्र प्रकाश बुड़ाकोटी
देहरादून। पत्रकारों की दुर्घटना में असामयिक मृत्यु एवं गंभीर बीमारी के इलाज,परिवार की आर्थिक सहायता हेतु समय पर सहायता राशि मिले इस उद्देश्य से पत्रकार कल्याण कोष की स्थापना की गई थी जिससे पत्रकार व उनके परिवार को तत्काल सहायता राशि उपलब्ध करवाई जा सके।लेकिन उतराखंड में बिगत दो सालों से कल्याण कोष समति की बैठक ही नही हुई जिस कारण दर्जनों पत्रकारो की पत्रकार कल्याण कोष की फाइलें सूचना बिभाग की अलमारियों में कैद है। जिस उद्देश्य से इस कोष को बनाया गया वह शायद उद्देश्य से भटकता जा रहा है। राज्य में दर्जनों पत्रकार जो या तो बीमार है या सड़क दुर्घटना में चोटिल है कार्य करने में असमर्थ है उनके परिवार आज आर्थिक संकट से जूझ रहे है।तीन सालों से अस्वस्थ चल रहे पत्रकार सुभाष त्यागी कहते है परिवार में पत्नी, तीन बेटियां 70 साल की बूढ़ी मां है कमाने वाले कोई नही घर की स्थिति दिनों दिन बिगड़ती जा रही है।पत्रकार कल्याण कोष में एक फाइल लगाई उसपर भी आज तक एक फूटी कौड़ी नसीब नही हुई।सरकार कहती है कि कई योजनाएं बनी है लेकिन हकीकत यह है कि योजनाओ में काम हो ही नही रहा। पत्रकार कल्याण कोष की दो सालों से एक भी बैठक नही हुई जबकि इस समिति के अध्यक्ष स्वयं सीएम है। हजारो करोड़ के कर्ज के बोझ तले दबे उतराखंड में सेटिंग अच्छी हो तो कुछ भी हो सकता है। यह हम नही खुद यहाँ की सरकार औऱ उसके अफसरों की कार्यशैली बताती है। सरकारी सिस्टम का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उत्तराखंडी एक अस्वस्थ पत्रकार को बारह हजार व दिल्ली लखनऊ के सेटिंगबाजो को उन्नीस लाख, दस लाख का विषेषांक विज्ञापन सरकार द्वारा जारी गया। आरटीआई से मिली जानकारी के बाद राज्य में पंद्रह सालो से पत्रकारिता कर रहे एक सफ्ताहिक समाचार पत्र के स्वामी प्रकाशक राज्य के मान्यता प्राप्त पत्रकार सुभाष त्यागी कहते है,मेरी सेटिंग नही थी इसलिए बीमार होने का पता होने के बाबजूद मुझे नियम कानून का पाठ पढ़ाया गया। लेकिन आरटीआई में जो दस्ताबेज मिले है वह चौकाने वाले तो है ही साथ ही मन दुखी करते है। दरसल पत्रकार सुभाष त्यागी तीन साल पहले अचानक बीमार हो गए एक हाथ,पांव ने काम करना बंद कर दिया आवाज भी बड़ी मुश्किलों में निकली। कर्ज लेकर इलाज करवाया लेकिन फिर कुछ ही माह बाद दुबारा अटैक पड़ गया।परिवार में कोई आर्थिकी का जरिया नही। सर पर इलाज को लिया गया लाखो कर्ज और परिवार को पालने की चिंता एक पत्रकार के लिए इससे बड़ा दुःखद क्या हो सकता। त्यागी कहते है जब वे थोड़ा सा चलने फिरने लायक हुए तो पहले सूचना बिभाग में पत्रकार होने के नाते पत्रकार कल्याण कोष में एक आवेदन किया लेकिन यह फाइल भी छह माह से सूचना बिभाग की अलमारियों में जंक खा रही है। सूचना महानिदेशक से अपनी कथा व्यथा सुनाई अपने समाचार पत्र चूड़ामणि संदेश को विषेषांक ही दिए जाने की मांग की उनके द्वारा अस्वाशन दिया गया लेकिन जब विज्ञापन मिला तो भीख के जैसे।अब दुखी मन से कहना पड़ रहा कि मेरा दुर्भाग्य ही है कि मेरा जन्म उतराखंड में हुआ। यहाँ पर जरूरत मंदो की नही सेटिग बाजो की चलती है। सुभाष त्यागी कहते है राज्य के पत्रकारों के साथ भेदभाव किया जा रहा है।मेरे विषेषांक विज्ञापन के आवेदन पर बारह हजार छ सौ का विज्ञापन और दिल्ली लखनऊ कर्नाटक की मैगजीनों को लाखों का विज्ञापन दिया गया। इस सरकार के दो सालों में
सिर्फ दिल्ली की आउट लुक को दो बार 10770 बर्ग सेंटीमीटर 280 की दर से,इंडिया टुडे को दोबार 5400 बर्ग सेंटीमीटर 655 रुपए की दर से,वही कर्नाटक की असीमा मंगलोर मैगजीन को 408 बर्ग सेंटीमीटर 1225 रुपये की दर से, नई सदी को 450 बर्ग सेंटीमीटर 266 रुपये की दर से,शुभ यात्रा को 864 बर्ग सेंटीमीटर 810 रुपये की दर से दिल्ली की,एयरपोर्ट इंडिया को दो बार 2300 बर्ग सेंटीमीटर 421 रुपये की दर से,इसके साथ ही पांचवा स्त,म्भ,लोक सम्मान लखनऊ,वीक दिल्ली सहित दैनिक समाचार पत्रों चैनलों पर भी दिल खोलकर मेहरवानी की गई।
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