अल्मोड़ा, धर्म संस्कृति सहिष्णुता का प्रतीक डोल आश्रम धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के साथ-साथ लोगो के शैक्षिक जीवन को शिक्षित और उत्थान करने के लिए अपना अलग स्थान रखता है ।
यह बात प्रदेश के महामहिम राज्यपाल डा0 के0के0 पाल ने आज कल्याणिका देवस्थानम आश्रम डोल में श्री ध्यान पीठ और यहाॅ स्थापित होने जा रहे सबसे बड़े श्रीयंत्र की प्राण प्रतिष्ठा और लोकार्पण के अवसर पर कही। उन्होंने कहा कि यह श्रीयंत्र दुनिया का सबसे बड़ा श्रीयंत्र है।
डोल में स्थित कल्याणिका देवस्थानम आश्रम के संत कल्याणदास द्वारा किये जा रहे इस प्रयासो की सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि इस ध्यानपीठ की स्थापना होने से आध्यात्म से जुड़े लोगो का जुड़ाव इस आश्रम से ज्यादा होगा। उन्होंने कहा कि इस श्रीयंत्र के लगने से यहा पर पर्यटको की संख्या बढ़ावा होगा।
महामहिम राज्यपाल ने यहा की सुन्दरता से अभिभूत होकर कहा कि हमारे पर्वतीय क्षेत्र जहा एक ओर हमें घने जंगलों से पानी की उपलब्धता बनाये रखने में सहायक है वहीं दूसरी ओर यहाॅ शान्त वातावरण को देखकर बाहर से आने वाले पर्यटकों को अपनी ओर बरबस आकर्षित करते है। उन्होंने कहा कि यहां पर वास्तुकला का ध्यान रखने के साथ-साथ नवग्रहों की स्थापना भी यहां पर की गयी है। उन्होंने कहा कि अक्षयतृतीया जैसे पावन पर्व आज यहां पर श्रीयंत्र की स्थापना हुयी है। चारधामों की तरह यहां पर भी अवस्थापना विकास कर इसे पवित्र धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में जाना जायेगा और उत्तराखण्ड का यह 5वां धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में जाना जायेगा। यहां पर राजराजेश्वरी देवी की मूर्ति की भी स्थापना की गयी है। महामहिम राज्यपाल के साथ उनकी धर्मपत्नी ओमिता पाॅल भी उपस्थित थी साथ ही परिसहाय डा0 योगेन्द्र सिंह रावत थे।
महामहिम राज्यपाल ने कहा कि संत कल्याण दास द्वारा यहा पर जो भी मानव हित के लिए कार्य कराये जा रहे है वह हम सब के लिए प्रेरणा के स्रोत है। उन्होंने युवाओं से अधिकाधिक संख्या में इस तरह के कार्यक्रमों से जुड़ने की अपील की। महामहिम राज्यपाल ने अपने सम्बोधन में कहा कि प्रदेश में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए जहा एक ओर चारधाम यात्रा रोडो को सड़क सुविधा जैसी अन्य सुविधाओं से जोड़ा जा रहा है वहीं दूसरी ओर अनेक नये पर्यटन स्थलों को भी विकसित करने की ओर कदम बढ़ाये जा रहे है। जनपद के विकासखण्ड लमगड़ा में स्थित डोल आश्रम आज दुनिया के महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों व पर्यटन स्थलों से जुड़ गया है जो हम सब के लिए गौरव की बात है। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि यहाॅ पर डोल आश्रम में संस्कृत की शिक्षा को भी बढ़ावा देने के प्रयास किये जा रहे है जो हम सब के लिए गौरव की बात है। भारतीय सभ्यता व संस्कृति विश्व व्यख्यात है आज समकालीन सभ्यता में परिवर्तन आ रहा है इसके लिये हमें सजग रहना पडे़गा और सारे देश को एकजुटता में बाधें रखना हो, देश को जोड़ने वाली भारतीय सभ्यता, संस्कृति पुरानी परम्पराओं को हमें अक्षुण बनाये रखना है इन परम्पराओं का ह्यस न हो इसका हमें ध्यान देना होगा।
इस अवसर पर संत कल्याण दास ने अपने विचार रखते हुये रामायण के उद्धरणों पर विस्तृत चर्चा करते हुये साधन को नकारा नही जा सकता है और साध्य को छोड़ा नही जा सकता है। अर्थ के बगैर मानव जीवन का महत्व नहीं है इसलिये हमें साधन व साध्य को बनाये रखना होगा। उन्होंने कहा कि वह जीवन व्यर्थ है जिसमें संस्कारों को महत्व नहीं दिया जाता है। जनपद मुख्यालय से लमगडा वाली सड़क से लोहाघाट तक की सड़क के किनारें अनेक धार्मिक व पर्यटन स्थल है जिनको विकसित किया जा सकता है इसमें जनसहभागिता जरूरी है। उन्होंने कहा यहां की चिकित्सा व्यवस्था को ध्यान में रखते हुये आश्रम द्वारा दो संचल चिकित्सा वाहनों को लोगांे की सेवाओं के लिये दिया जा रहा है।
इस अवसर पर पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गोविन्द सिंह कुंजवाल, राज्य सभा सांसद प्रदीप टम्टा और मध्यप्रदेश के सत्यनारायण ने अपने विचार रखते हुये कहा कि हमें दलगत राजनीति से ऊपर उठकर इस क्षेत्र के विकास के लिये संकल्प लेना होगा। डोल आश्रम के स्वामी विवेश्वरनन्दन ने आश्रम की स्थापना से लेकर वहां पर संचालित गतिविधियों के बारे में प्रकाश डाला। इस अवसर पर जिलाधिकारी इवा आशीष, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक पी0रेणुका देवी, अपर जिलाधिकारी कैलाश सिंह टोलिया, उपजिलाधिकारी सदर विवेक राय, ए0के0सिंह, प्रशिक्षु मनीष बिष्ट, उप पुलिस अधीक्षक कमलराम, तहसीलदार पी0डी0 सनवाल, पूर्व विधायक मनोज तिवारी, सुभाष पाण्डे, रमेश बहुगुणा, पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष मोहन सिंह महरा, केवल सती, दिनेश कुंजवाल, तारू जोशी, दिनेश सतवाल, पीताम्बर पाण्डे सहित अन्य गणमान्य लोग, विभिन्न स्थानों से आये संत जगतगुरू श्यामदेवानन्द, आत्माराम राजगुरू, महामण्डलेश्वर निगुण दास के साथ ही उत्तरभारत, बनारस,नर्मदा, हरिद्धार सहित अन्य स्थानों के आचार्य व अधिकारी उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन महामण्डलेश्वर हरिचितानन्द व स्वामी विरेन्द्र पाल ने संयुक्त रूप से किया। इस अवसर पर संस्कृत विद्यालय के बच्चों व अन्य बालिकाओं ने रंगारंग कार्यक्रम किये।