साइंटिफिक-एनालिसिस
हेट-स्पीच के दलदल में फंसता न्यायपालिका का लोकतांत्रिक स्तम्भ
भारतीय लोकतंत्र के कहे जाने वाले चार स्तम्भों को हम परिभाषित व वास्तुस्थिति के रूप में लगातार अभिव्यक्त व अन्य मामलों को समझाते आये हैं | इसमें न्यायपालिका वाला स्तम्भ बिखर कर ध्वस्त होने की स्थिति में जाता दिख रहा हैं | अब यह संसद में पैदा हुई हेट-स्पीच के दल-दल में फंस चुका हैं | यह इससे बाहर निकलने की जितनी कोशिश करता हैं, उतना नीचे की तरफ धंसता चला जाता हैं |
हेट-स्पीच जिसको आज तक भारत में एक सम्पूर्ण परिभाषा में व्याखित नहीं किया जा सका व दुनिया के अलग-अलग देश अपने तरीके से अलग-अलग परिभाषा रखते हैं उसे खत्म करने की जहदोजद चल रही हैं | इसी मेहनत में पसीने की बुंदों के रूप में हेट-सीन व हेट-इशारे टपकने शुरु हो गये हैं | उच्चतम न्यायालय में बड़ी तेजी के साथ सुनवाई शुरु हुई तो उस पर भी हमले शुरु हो गये | सुप्रिम कोर्ट के नाम पर फर्जी वेबसाइट बनना व मुख्य न्यायाधीश के नाम से गलत संदेश वायरल करना इसके ताजा उदाहरण हैं | तारीख पर तारीख देने के लिए बदनाम अदालत को भी इसके फैलाव की तीव्रता को देख समय पर स्पष्टीकरण जारी करना पडा़ |
इसमें दोषी आजतक पकडे नही गये व अदालत देर-सवेर सजा भी देदे तब भी जो छवि को नुकसान व आम लोग में जो इसका शिकार हो गये उनके साथ न्याय असम्भव हैं | यही बात हम अपने एडी-सिरिंज वाले आविष्कार के माध्यम से समझा रहे हैं कि वायरस व समस्या को पैदा ही मत होने दो, एक बार पैदा होने पर खत्म करने के लिए दिन-रात एक करके सारे संसाधन झोंख देने पर भी नुकसान व बिखराव के साथ विघटन होना निश्चित है |
कानून व्यवस्था बनाये रखना राज्य सरकार का काम हैं अदालत का नहीं यह कहकर मणिपुर में चल रही जातिगत हिंसा को रोकने के लिए आये मणिपुर वासियों को दो बार उल्टा पैर लौटा देने पर भी अदालत ने मुख्य चुनाव आयुक्त के मामले में आगे बढ़ उसके चयन की एक प्रक्रिया बनाई | इस व्यवस्था का आदेश तथाकथित सरकार को हेट-स्पीच लगा और तुरन्त नया कानून लाकर मुख्य न्यायाधीश को ही बाहर निकाल फेंकने का इंतजाम कर दिया | इस तरह अपनी भद्द पिटवाने के बाद भी अदालत पुन: अपने दायरे से बाहर निकल हेट-स्पीच रोकने नहीं जांचने के लिए एक नई व्यवस्था या प्रक्रिया बनाने में लगी हैं | कार्यपालिका व तथाकथित सरकार का काम है जांच आयोग/कमेटी/दल बनाना, अपराधी को सजा दिलवाना होने के बावजूद वह उस दिशा में अपनी भद्द और अच्छे से पिटवाने को आतुर हो रही हैं | हम शुरू से यह समझाते आ रहे हैं कि कार्यपालिका और सरकार में बहुत बड़ा अंतर होता हैं | यह भ्रम व झूठ ही हेट-स्पीच की उत्पति का केन्द्र बिन्दु हैं | इसलिए हम कार्यपालिका को स्पष्ट करने के लिए सरकार के आगे तथाकथित जोडकर एक लक्ष्मण रेखा खिंचते आये हैं |
यही हालत खबरिया चैनलों की बहस का हैं जहां राजनैतिक ऐजेंट कब प्रधानमंत्री के संवैधानिक पद का चोला ओढ़ ले और कब उतार कर फेंक दे वो अपनी बात व पूर्व निर्धारित एजेंडे को सही साबित करने के आधार पर तय करता हैं | प्रधानमंत्री व प्रधानमंत्री पद पर नौकरी कर रहे व्यक्ति के मध्य इस महिन लक्ष्मण रेखा को आगे सभी लांघ शुद्ध व गरिमापूर्ण शब्दों को भी हेट-स्पीच में परिवर्तित कर रक्तबीज की तरह दो से चार, चार से सौलह की तर्ज पर बढाते रहते है | यहां समय की मर्यादा बिच में आ जाती हैं इसलिए हेट-स्पीच का खूनी बवंडर आने से रूक जाता हैं |
अदालत का काम सिर्फ कानून के आधार पर लोगों को न्याय देना हैं | अदालत हेट-स्पीच के एक मामले की एक सुनवाई करके आगे की तारिख देकर दुबारा लगती हैं तब तक चार नये मामले दर्ज हो जाते हैं | इस तरह तो आने वाले समय में न्यायपालिका का पुरा स्तम्भ ही इस दलदल में पूरा धंस कर खत्म हो जायेगा | हेट-स्पीच के दलदल से न्यायपालिका के बचने का उपाय हम पहले ही मुख्य न्यायाधीश के संज्ञान में अधिकांश राज्य के हाईकोर्ट के प्रमुख न्यायाधीशों को सुचित करते हुए ला चुके हैं | राष्ट्रपति ने तो इस उपाय पर संविधान के नियम अनुसार फैसला व कार्य न करते हुए स्वास्थ्य मंत्रालय के सचिव को भेज हेट-स्पीच बना दिया | यदि राष्ट्रपति को आगे भेजना ही था तो हमारी फाईल के इस हिस्से को संविधान के भाग 5 में अनुच्छेद 143 की शक्ति का इस्तेमाल करते हुए उच्चतम न्यायालय को भेजना था ताकि राष्ट्रपति की लंगडी संवैधानिक कुर्सी ठीक हो सके | अब क्या स्वास्थ्य मंत्रालय संवैधानिक पदों की कुर्सीयां रिपेयर करने व उनके विघटन को रोकने के लिए टीके का आविष्कार करेगा क्या? सचिव महोदय यही कर रहे हैं इसलिए 6 माह से आधिकारिक जवाब नहीं आया हैं |
न्यायपालिका के स्तम्भ को हेट-स्पीच के दलदल में धंसकर खत्म नहीं होना हैं तो उसे कार्यपालिका यानि तथाकथित सरकार पर आश्रित होने से बचकर अपनी आत्मीय शक्ति पर विश्वास करके स्वयं आगे बढना होगा | हेट-स्पीच के सभी मामलों को उसमें कोमन मीडिया को मुख्य आधार बना केन्द्रित करना होगा क्योंकि मीडिया (प्रिंट, इलेक्ट्रोनिक ल सोशियल) के माध्यम से ही सभी हेट-स्पीच प्रसारित होकर फल-फूलते हैं व हिंसा, झगडों, दंगे, तोडफोड को आमंत्रित करते हैं व आजकल महिलाओं को नग्न करके सामुहिक दुष्कर्म भी करते हैं और खुलेआम परेड भी निकलवाते हैं | मणिपुर का मामला अदालत खत्म नहीं कर पाई तब तक बंगाल, त्रिपुरा व राजस्थान में महिलाओं को निवस्त्र करने की घटनाएं सामने आ गई | भारतीय मीडीया का संवैधानिक चेहरा व कानूनी जवाबदेही न होने से वह क्षेत्र-विशेष, भाषा-शैली, शाब्दिक अर्थों के आधार पर जांचकर कानून व्यवस्था व संवैधानिक व्यवस्था से जोड नहीं पाती हैं इसलिए तिल का पहाड बन जाता हैं | इस पहाड को देख व सुनकर निकले शब्द हेट-स्पीच का बवंडर बना देते हैं |
मीडिया का संवैधानिक चेहरा न होना सीधे संविधान से जुडा मामला हैं | इसलिए इसे सभी न्यायाधीशों वाली सम्पूर्ण संविधान पीठ को भेजना चाहिए | इससे संविधान के तहत एक बार यह व्यवस्था हो गई तो फिर संसद सैकडों कानून व कार्यपालिका हजारों गाईडलाइन चुटकीयों में बना देगी | अदालत हर मामले में जांच कमेटी बनाने में लगी रही तो आने वाले समय में इन कमेटियों के जांच अधिकारियों में पुरा ब्यूरोक्रेट समा जायेगा और कर्मचारीयों के लिए एलियन की खोज पर निगाहें व उम्मीद टिकानी पडेगी | तारीखों की बैसाखियों के सहारे समय की बर्बादी कर व्यक्तिगत जवाबदेही से बचा जा सकता हैं परन्तु पुरी न्यायिक व्यवस्था को दलदल मे समाकर ध्वस्त होने से नहीं बचाया जा सकता ।
शैलेन्द्र कुमार बिराणी
युवा वैज्ञानिक