महात्मा गांधी काविद्यापीठ बनारस के प्रांगण में हमारा बचपन बीता स्वदेशी शिक्षा के उध्येश्य से गांधी जी की प्रेरणा से बाबू शिवप्रसाद गुप्त जी ने कुछ शिक्षित नौजवानो के सहयोग से यह संस्था शुरु की ।सुप्रसिद्ध समाजशास्त्री स्वाधीनता सेनानी सांसद रहे राजाराम शास्त्री जी कुलपति थे ! हमारा घर मुख्य द्वार से सटा हुआ था अतः सभी प्रमुख घटना हमलोगो के दिनचर्या में शामिल होती थी काशी विद्यापीठ में देश दुनिया के विभूतियों का आना होता था और उनको कौतुहल सम्मान और बड़े के कहे आतिथ्य सत्कार में हम सब भाई बहन जुट जाते थे गांधीवादी ,समाजवादी कांग्रेसी सभी का आत्मीय भाव से आना जाना होता था !एकदिन अचानक छात्रों का बड़ा सा समूह गोलबंद होकर गुलमोहर के पुराने पेड़ के चबूतरे आकर कुलपति मुर्दाबाद के नारे लगाने लगा ।तेज़ शोर सुनकर हमलोग भी घर से बाहर आ गये कुलपति आवास आने जाने का वही एक रास्ता था किसी ने शास्त्री बाबा को घटना की सूचना दी कुलपति जी को कुछ लोगों ने छात्र उत्तेजित हैं कुछ ग़लत व्यवहार भी होने की आशंका है पुलिस बुला ली जाए की सलाह दी शास्त्री ने पुलिस बुलाने से इनकार कर दिया और छात्रों के बीच में पहुँच गये !अचानक कुलपति को अपने बीच पाकर छात्रों का उत्साह बढ गया और मुर्दाबाद के नारा तेज़ हो गये थोड़ी देर बाद नारे का स्वर धीमा हो गया शास्त्री जी ने पूछा तुम लोग क्या चाहते हो ? नौजवान एक स्वर में चिल्लाये हमलोग आपके ख़िलाफ़ धरना देगे ।कुलपति जी मुस्कुराते हुए कहे मैं तुम्हारा कुलपति तुमलोगों का अभिभावक अगर तुम धरना दोगे तब मेरा फ़र्ज़ हैं की मैं तुम्हारा साथ दूँ और वो वही विद्यार्थियों के बीच बैठ गये तब तक कुछ वरिष्ठ अध्यापक भी शामिल हो गये विद्यार्थी अभिभूत से इस परिस्थिति की तो उन्होंने कल्पना भी नही थी आंदोलन गोष्ठी में बदल गया एक घंटे तक बच्चों और वरिष्ठ जनो केबीच समस्याओं पर विचारविमर्श हुआ अन्त में छात्र कुलपति जी ज़िंदाबाद महात्मा गांधी अमर रहे का नारा लगाते हुए अपनी कक्षाओं में चले गये
सत्याग्रह ,अहिंसा ,आत्मबल और प्रेम की जीत का प्रयोग हमलोगो ने अपनी आँखों से देखा !और अब मक्कारो की मक्कारी भी देख रहे हैं ………,……..
#BHU# … श्रीमती अंजना प्रकाश की वाल सॆ …..