अब आबादी के आधार पर पहले अनुसूचित जनजाति महिला के लिए आरक्षित किया जाएगा
लखनऊ । उत्तर प्रदेश सरकार ने आगामी निकाय चुनाव-2022 के लिए वार्डों के आरक्षण का फार्मूला तय कर दिया है। नए और सीमा विस्तारित होने पर 50 फीसदी से अधिक जनसंख्या बढ़ने पर इन वार्डों का आरक्षण नया मानते हुए किया जाएगा। इस सूत्र के आधार पर आबादी के आधार पर इन्हें पहले अनुसूचित जनजाति महिला के लिए आरक्षित किया जाएगा। अब आबादी के आधार पर पहले अनुसूचित जनजाति महिला के लिए आरक्षित कियाजाएगा
पुराने वार्डों का आरक्षण चक्रानुक्रम व्यवस्था के आधार पर ही किया जाएगा।प्रमुख सचिव नगर विकास अमृत अभिजात ने वार्डों के आरक्षण को लेकर शासनादेश जारी करते हुए जिलाधिकारियों को निर्देश भेज दिया है। इस शासन के आदेशमें स्पष्ट कहा गया है कि वार्डों का आरक्षण करते हुए इसकी जानकारी तीन सेटों के साथ पेनड्राइव में साफ्ट कापी के साथ 4 नवंबर 2022 तक नगर विकास विभाग के अनुभाग एक में अनिवार्य रूप से उपलब्ध कराना होगा।
आरक्षण फार्मूले के आधार पर पहले अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति, अन्य पिछड़ा वर्ग की महिलाओं के लिए वार्ड आरक्षित किए जाएंगे। इसके बाद इसी वर्ग के पुरुषों के लिए श्रेणीवार वार्ड आरक्षित होंगे। इसके बाद वार्डों को अनारक्षित रखा जाएगा। पुराने निकायों में चक्रानुक्रम के आधार पर वार्डों का आरक्षण किया जाएगा।
शासनादेश में कहा गया है कि नगर निकाय निर्वाचन वर्ष 2017 के बाद प्रदेश में कुछ नए निकाय बनाए गए हैं और कुछ का सीमा विस्तार भी किया गया है। इनमें वार्डों का परिसीमन वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर करने का निर्देश निकायों को दिया गया था। परिसीमन के दौरान कुछ पुराने के भाग मिलाए गए होंगे। इसलिए इनके आरक्षण के दौरान इसका ध्यान रखा जाएगा।
दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं
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पहाड़ों की गूंज पर माननीय न्यायाधीश का सत्यापन अब सुप्रीमकोर्ट में गूंजेगी
अपील कर्ता साथियों का पत्र
आदरणीय जीतमणि पैन्यूली
प्रमुख सम्पादक
पहाडों की गूंज
आपको व आपके अखबार के पाठकों को दिपावली पर बहुत बडा तौफा पहले ही भेज रहा हूँ ताकि समय पर सभी को जानकारी हो जाये |
मैंने अपनी तरफ से पुरी खबर हेडलाईन व डिटेल के साथ आपको भेज रहा हूँ और साथ में पहले प्रकाशित करी (कीगई)खबरों की कापी भी ताकि आप खबर के साथ उनका प्रमाण के तौर पर इस्तेमाल कर सके |
इसके प्रमाण के रूप में मैं अन्य दो और ई-मेल फोर्वड कर सकता हूँ एक मैंने सुप्रीमकोर्ट को भेजा हैं और दुसरा जनहित याचिका लगाने वाले वकील अश्वीन कुमार उपाध्याय को भेजा हैं ।
आप इनको मोबाइल (8010174535) पर काल कर अपनी रिकार्डिंग के साथ रश्म अदायगी कर सकते हैं कि उन्हें यह ई-मेल मिल गया होगा । आप अपना ई-मेल आईडी मुझे भेजे |
आपसे अनुरोध हैं कि यह खबर 01 नम्बर 2022 से पहले प्रकाशित करे ताकि सुप्रीमकोर्ट की सुनवाई से पहले न्यायाधीशों को विश्लेषण करने का समय मील जाये |
इसके साथ प्रकाशन की एक कापी मुझे जरूर भेजे ताकि आगे और भी प्रक्रिया में जोड सकू ।
आप हेडलाइंस व मेटर को अपने हिसाब से व्यवस्थित करने के लिए पूर्णतया स्वतंत्र व अन्तिम निर्णायक हैं ।
आपको दिपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ
शैलेन्द्र कुमार बिराणी
युवा वैज्ञानिक
मित्रों डॉक्टर कितना अच्छा है दवा खराब है तो मरीज ठीक नहीं हो सकता?, इन्जियर अच्छा मटीरियल खराब तो पुल, भवन नहीं टिक सकता?
नेतृत्व करने वाले कितने अच्छे हो कानून कमजोर है तो कुछ नहीं कर सकते हैं? इसलिए अब दूसरी आजादी कानून शक्त बनाने के लिए लड़ने की आवश्यकता है ।
आने वाली खबरों में आंदोलन करने का इंतजार किजयेगा
आप देश के लोकतंत्र चौथे स्तंभ सभी प्रकार के मीडिया को संवैधानिक व्यवस्था का अंग बनाने लिए लाइक एंव शेयर किजयेगा। जीतमणि पैन्यूली
सम्पादक
दे4पहाड़ों की गूंज पर न्यायाधीश का सत्यापन अब गूंजेगी सुप्रीमकोर्ट में
आपका दैनिक अखबार सदैव सच्चाई को बिना डर व राग लपेट के अखबारों को आप तक पहुचां रहा हैं । इसी कडी के रुप में शुक्रवार 04 जुलाई, 2021 के प्रकाशन में शैलेन्द्र कुमार बिराणी के वैज्ञानिक-विश्लेषण “मीडिया के इस्तेमाल की जंग में जन्तन्त्र का दांव” प्रकाशित करा व बताया भारतीय मीडिया का न तो कोई संवैधानिक चेहरा हैं न उसे कोई कानूनी अधिकार के रूप में जवाबदेही दे रखी हैं ।
इसे अब सुप्रीमकोर्ट के जस्टिस के. एम. जोसेफ और ह्रषिकेश राय की पीठ ने बुधवार 21सितम्बर 2022 को हेट स्पीच पर सुनवाई के दौरान स्वीकार किया की इलेक्ट्रानिक मीडीया, प्रिंट एवं सोशियल में भी कई कोई कंट्रोल की व्यवस्था नहीं हैं । इसके लिए सरकार एक नियामक संस्था बनाये | इस मामले की अगली सुनवाई 23 नवम्बर, 2022 को होगी |
राष्ट्रपति महोदय को 2011 से मालुम हैं –
युवा वैज्ञानिक शैलेन्द्र कुमार बिराणी ने अपने आविष्कार की फाईल के साथ यह सच्चाई देश के राष्ट्रपति को 19 अगस्त, 2011 को ही ग्राफिक्स के साथ भेज दिया था (Letter Ref. No. P1/D/1908110208) इस पर राष्ट्रपति सचिवालय की मोहर व आधिकारिक दस्तावेज उनके पास मौजूद हैं।
कौनसा संवैधानिक चेहरा नहीं हैं –
भारतीय लोकतंत्र के चार स्तम्भ माने जाते हैं पहला विधायीका जिसका चेहरा संसद हैं, दुसरा कार्यपालिका जिसका चेहरा प्रधानमंत्री कार्यालय हैं, तिसरा न्यायपालिका जिसका चेहरा उच्चतम न्यायालय हैं व चौथा स्तम्भ पत्रकारिता जिसका कोई चेहरा नही हैं । इसे धन बल, बाहु बल, सत्ता के डर, बाजारवाद के स्वार्थ के रूप में जो चाहे, जैसा चाहे इस्तेमाल करता हैं ।
मीडियाकर्मियों व विशेष रूप से खबरी चैनलों पर संवैधानिक व कानूनी रूप से देश व देशवासियों के प्रति कोई जवाबदेही नहीं हैं । इस कारण जो जैसा चाहे अपनी मर्जी का राग चलाता हैं । हमने पिछले प्रकाशन में इसको विस्तार से बताया ही नही अपितु किस तरिके से काम लोकतान्त्रिक तरिके से होगा व भी बताया |
इसके आगे क्या?
शैलेन्द्र कुमार बिराणी ने पहाडों की गुंज खबर डिटेल, उनके पास मौजूद दस्तावेज इस मामले की जनहित याचिका लगाने वाले सुप्रीमकोर्ट के वकील अश्वीन उपाध्याय को भेज दी हैं । इसके साथ ही रजिस्टार सुप्रीमकोर्ट को ई-मेल कर सारी जानकारी मुख्य न्यायाधीश व दोनों न्याया
धीशों तक पहुचानें का अनुरोध करा हैं । इसके साथ सुप्रीमकोर्ट बार काउंसिल के सभी वकीलों को जानकारी भेज सहयोग का अनुरोध करा हैं आखिरकार लोकतंत्र देश के सभी नागरिकों का हैं और सभी को उसमें जीना हैं । मुख्य न्यायाधीश यू यू ललित और जस्टिस एस रवींद्र भट हेट स्पीच के ही दुसरे मामले में सुनवाई 1 नवम्बर को करेंगे जिसके याचिकाकर्ता हरप्रीत मनसुखानी हैं ।
भारत सरकार को कोई परेशानी नहीं –
9-10 दिसम्बर, 2021 को अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाईडेन ने लोकतंत्र को लेकर वर्चुअल मीटिंग करी थी जिसमें 110 देशों के प्रमुखों ने भाग लिया था इसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी शामिल हुये व उन्होंने सभी को मीडिया को अधिक अधिकार व शक्तिशाली बनाने की बात कहीं | इस तरह के संवैधानिक चेहरे से सरकार को अधिक खुशी होगी क्योंकि प्रधानमंत्री ने दुनिया को जो बात कहीं उसे उन्होंने करके बताया कोई जुमलेबाजी नहीं करी |
इसी तरह चले तो आगे मामला कहां तक जा सकता हैं –
हेट स्पीच व मीडिया से सम्बद्धित सभी मामलों का यह एक ही उपाय हैं जिससे पहले मीडियाकर्मियों को ही जवाबदेही बनाकर निष्ठावान लोगों को आगे बढाया जाये | इसके पश्चात् कोई गलती हो तो कार्यपालिका का कानूनी दबाव व अदालतों का दण्डित करने का मार्ग खुल जायेगा ।
यदि अभी के मार्ग पर चलते रहे तो पहले सरकार या अदालत मीडिया श्रेत्र के कुछ विशेषज्ञों का चयन कर एक कमेटी बना देगी जो नियामक संस्था के निर्माण की रूपरेखा देगी जो पूर्णतया कार्यपालिका या सरकार के अधिन होगी | इस रिपोर्ट के आधार पर एक संस्था बनाने से पहले सरकार नानकुर करेगी व बाद में अदालत को ढाल बनाकर स्वीकार कर लेगी |
इसके बाद राजनैतिक खेल में, पूंजीवाद के चेक से व राजनैतिक पार्टियों से गठित होने वाली सरकारें सबकुछ अपने नियंत्रण मे ले लेगी और पूरी कवायत शून्य पर आ जायेगी । इस बात की सम्भावना की पुष्टि न्यायाधीशों द्वारा सरकार पर करी कठोर टिप्पणी से होती हैं । जब सबकुछ 2011 होने पर भी 2022 खत्म होने के नजदिक आ गया तब जाकर लोकतंत्र व समाज में बुरा असर पडने के कारण डूंडने पड रहे हैं ।
न्यायाधीशों से क्यों उम्मीद हैं –
मुख्य न्यायाधीश यू यू ललित का अल्प समय वाला कार्यकाल पूरा होने आया हैं । इस मामले पर भी यह उनकी आखरी सुनवाई होगी | माननीय राज्यसभा की सदस्यता से बडा उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश का संवैधानिक पद बडा होता हैं व कार्यपालिका और न्यायपालिका के मध्य के फासले को स्पष्ट कर हमेशा के झगडें को खत्म करना चाहेंगे | दूसरे मामले में न्यायाधीश के.एम.जोसेफ हैं जिन्होंने उत्तराखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रहते हुए वहां के राष्ट्रपति शासन को हटाया और सच का आधार बनाया कि राष्ट्रपति कोई राजा नहीं हैं | इनकी लोकतंत्र पर स्पष्ट ज्ञान को देखते हुए लगता हैं कि परिणाम अवश्य निकलेगा क्योंकि 11 वर्षों के अधिक समय से सच राष्ट्रपति महोदय के पास हैं जो एक व्यक्ति की निरसता से देश का हर नागरिक दुष्परिणाम भोग रहा हैं व दुनिया का सबसे बडा लोकतन्त्र बर्बाद हो रहा हैं |
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