त्यूणी : रूढ़िया टूट रही हैं और भारतीय विवाहोत्सव का तौर-तरीका धीरे-धीरे बदल रहा है। फिजूलखर्ची और दिखावे से लोग बचने लगे हैं। इससे जहां लोगों को शांति और सुकून मिल रहा है तो पैसों की बर्बादी भी बच रही है। कहीं तीन-तीन दुल्हन बरात लेकर पहुंच रही हैं, तो कहीं साल भार के सभी विवाह आयोजनों का एक ही सामूहिक भोज दिया जा रहा है।
आमतौर पर कई परिवार विवाह समारोह को भव्य बनाने में लाखों-करोड़ों की रकम पानी की तरह बहा देते हैं। उनके लिए उत्तराखंड का जनजातीय क्षेत्र जौनसार-बावर एक नजीर देता दिखता है। यहां विवाह समारोह में दिखावे के नाम पर होने वाली फिजूलखर्ची को सामाजिक बुराई माना जाता है। यहां दहेज रहित शादी व फिजूलखर्ची रोकना संस्कृति का प्रमुख हिस्सा है। जौनसार-बावर के ज्यादातर ग्रामीण इलाकों में परंपरा के अनुसार दुल्हन बरात लेकर दूल्हे के घर पहुंचती है।
जनजातीय परपंरा के अनुसार देहरादून जिले के इस ग्रामीण इलाकों में आज भी दुल्हन गाजे-बाजों के साथ दूल्हे के घर बरात लेकर पहुंचती है। इसी परपंरा को कायम रखते हुए अटाल के प्रधान ने अपने तीन भाइयों का विवाह जौनसारी रिवाज से एक ही दिन कराने का फैसला किया है। विवाह समारोह आगामी छह मार्च को आयोजित किया गया है। जिसकी तैयारी में ग्रामीण अभी से जुट गए हैं। इस दिन तीन दुल्हन एक साथ बरात लेकर प्रधान के घर पहुंचेंगी। विवाह में करीब दो हजार लोग शामिल होंगे।