HTML tutorial

*Brief introduction of Pujyapad Anantashree Vibhushit Uttaramnaya Jyotishpeethadhishwar and Paschimannaya Dwarka Shardapeethadhishwar Jagadguru Shankaracharya Swami Swaroopanand Saraswati Ji Maharaj

Pahado Ki Goonj

ब्रम्हलीन द्विपीठाधीश्वर जगदगुरु शंकराचार्य का मनाया गया 100वां अवतरण दिवस*

वाराणसी,18.9.23।

काशी के शंकराचार्य घाट स्थित श्रीविद्यामठ में आज सुबह 9 बजे से ब्रम्हलीन द्विपीठाधीश्वर जगदगुरु शंकराचार्य जी महाराज का 100वां अवतरण दिवस मनाया गया।सर्वप्रथम पूज्यपाद ब्रम्हलीन शंकराचार्य स्वरूपनान्द सरस्वती जी महाराज के चरण पादुका का पूजन किया गया।जिसके अनन्तर वैदिक विधि से उनका पूजन अर्चन व आरती किया गया।

पूजन अर्चन के पश्चात धर्मसभा का आयोजन किया गया।जिसमें विचार व्यक्त करते हुए वक्ताओं ने कहा कि। ब्रम्हलीन प्रातः स्मरणीय ज्योतिष एवं द्वारकाशारदा द्विपीठाधीश्वर ब्रम्हलीन जगदगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी थें।उन्होंने स्वतन्त्रता संग्राम में दो बार कठोर करावास की सजा झेली व अकेले के दम पर एक पूरा गांव अंग्रेजों से खाली करा दिया था।अंग्रेज उन्हें क्रांतिकारी साधु के नाम से पहचानते थे।चौदह वर्ष की अवस्था मे सन्यास ग्रहण करने के पश्चात ब्रम्हलीन द्विपीठाधीश्वर स्वरूपानंद जी महाराज अपना पूरा जीवन सनातनधर्म हेतु समर्पित कर दिया था।सनातनधर्म को पुष्ट करने हेतु उनके द्वारा किये गए कार्यों का वर्णन करना ऐसे तो आसान नही है।फिर भी पूज्यपाद ब्रम्हलीन महाराज जी द्वारा सनातनधर्म के संवर्धन हेतु किये गए कुछ कार्यों पर प्रकाश डालना अत्यंत आवश्यक है।

पूज्यपाद ब्रम्हलीन द्विपीठाधीश्वर जगदगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज ने राजीव गांधी से कहकर राम मंदिर का ताला खुलवाया और राम मंदिर हेतु रामालय ट्रस्ट का गठन करके राष्ट्र के समस्त धर्माचार्यों को एक मंच पर लाकर राम मंदिर हेतु ऐतिहासिक संघर्ष किया।अपने अधिवक्ता श्री पी.एन. मिश्रा के माध्यम से राम जन्म भूमि व राम मंदिर का मुकदमा लड़कर व वर्तमान ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगदगुरु शंकराचार्य स्वामिश्री: अविमुक्तेश्वरानंद: सरस्वती से अकाट्य गवाही दिलवाकर राम जन्मभूमि व राम मंदिर का फैसला हिदुओं के पक्ष में करवाया।

रामसेतु को टूटने से बचाने हेतु ब्रम्हलीन द्विपीठाधीश्वर जी महाराज ने कठिन संघर्ष किया।राष्ट्र के समस्त धर्माचार्यों को दिल्ली के जंतर मंतर में एकत्र कर ऐतिहासिक धर्मसभा का आयोजन किया।जिसमें सभी शंकराचार्यों सहित सभी प्रमुख धर्माचार्य व धर्मप्राण सनातनी जनसमुदाय उपस्थित था।

ब्रम्हलीन द्विपीठाधीश्वर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज के ईक्षा व आदेश से गंगा जी को राष्ट्रीय नदी घोषित कराने हेतु राष्ट्रव्यापी ऐतिहासिक धर्मान्दोलन की बिगुल फूंका गया।जिसकी कमान वर्तमान परमाराध्य परमधर्माधीश अनंतश्रीविभूषित ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगदगुरु शंकराचार्य स्वामिश्री: अविमुक्तेश्वरानंद: सरस्वती जी महाराज ने संभाली। अनेकों बलिदान के पश्चात माता गंगा राष्ट्रीय नदी घोषित हुई।

धर्मसम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज जब दिल्ली में गौरक्षा आंदोलन किये थे।उस समय उस आंदोलन में द्विपीठाधीश्वर स्वामी स्वरूपानंद जी महाराज में मुख्य भूमिका का निर्वहन किया था उस आंदोलन में ब्रम्हलीन गोवर्धन पीठाधीश्वर जगदगुरु शंकराचार्य निरंजन देव तीर्थ जी महाराज भी उपस्थित थे।

धरती पर 74 चातुर्मास व्रत अनुष्ठान पूर्ण करने वाले एक मात्र संत थे पूज्यपाद ब्रम्हलीन द्विपीठाधीश्वर स्वामी स्वरूपानंद जी महाराज।

धर्मान्तरण के विरुद्ध भी मिल का पत्थर स्थापित किया था पूज्यपाद स्वरूपानंद जी महाराज ने।केवल झारखण्ड के पश्चिमसिंह भूम जिले में धर्मान्तरण कर चुके 35 हजार लोगों को गंगा जल से संकल्प दिलाकर व तुलसी का माला पहनाकर वापस सनातनधर्म में लाये व करीब करीब धर्मान्तरण को झारखण्ड में रुकवा दिया था।छत्तीसगढ़ सहित अनेकों प्रदेशों में लाखों लोगों को स्वरूपानंद जी महाराज वापस सनातनधर्म में लाये व आजीवन धर्मान्तरण के विरुद्ध लड़ते रहे।

पूज्यपाद ब्रम्हलीन द्विपीठाधीश्वर जगदगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी महाराज की कृपा से राष्ट्र में अनेकों निःशुल्क चिकित्सालय,वेद विद्यालय,वृद्धाश्रम सहित अनेकों प्रकल्प चलते हैं।जो निःस्वार्थ भाव से सनातनधर्मियों की सेवा करते हैं।साथ ही राष्ट्र में ब्रम्हलीन स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज की कृपा से सैकड़ों मठ,मंदिरों व आश्रमों से सनातनधर्मियों की हर सम्भव मदद की जाती है।ब्रम्हलीन द्विपीठाधीश्वर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज द्वारा शुरू किये गए अधितकतर धर्मन्दोलनों का कमान वर्तमान ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगदगुरु शंकराचार्य स्वामिश्री: अविमुक्तेश्वरानंद: सरस्वती जी महाराज ने ही सम्भला व उनके दिव्य मार्गदर्शन में शुरू किया गया हर धर्मान्दोलन ने सफलता का वरण किया।

पूज्यपाद ब्रम्हलीन स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज का शिवलिंकार मुख देखकर पापियों का पाप नष्ट हो जाता था।ऐसे अद्भुत सनातनधर्म के सर्वोच्च धर्मगुरु ब्रम्हलीन द्विपीठाधीश्वर जगदगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज का भाद्रपद शुक्ल तृतिया तदानुसार आज 18 सितम्बर को 100वां जयंती हैं और अश्विन कृष्ण द्वितीया को उनका वार्षिक समाराधना अनुष्ठान है।साथ ही इसी दिन वर्तमान परमाराध्य परमधर्माधीश अनंतश्रीविभूषित ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगदगुरु शंकराचार्य स्वामिश्री: अविमुक्तेश्वरानंद: सरस्वती जी महाराज एवं पूज्यपाद द्वारकाशारदा पीठाधीश्वर जगदगुरु शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती जी महाराज का पट्टभिषेक दिवस भी है।

कार्यक्रम में प्रमुख रूप से सर्वश्री-अभिषेक दुबे,दिपेश कुमार दुबे,बालेंदु नाथ मिश्रा,किरण कुमार,सावित्री पाण्डेय,लता पाण्डेय,अजित मिश्रा, रमेश पाण्डेय,शिवकांत मिश्रा,रविन्द्र मिश्रा,अभिषेक राव आदि लोग सम्मलित थे।

उक्त जानकारी ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगदगुरु शंकराचार्य स्वामिश्री: अविमुक्तेश्वरानंद: सरस्वती जी महाराज के मीडिया प्रभारी संजय पाण्डेय ने दी है।

पूज्यपाद अनन्तश्रीविभूषित उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर एवं पश्चिमाम्नाय द्वारका शारदापीठाधीश्वर जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती जी महाराज का संक्षिप्त परिचय*

*उडुप तितीर्षा*- भारत की पवित्र तपोभूमि में वसुन्धरा ने समय-समय पर अनेक महान् पुरुषों को जन्म दिया है जिनसे स्वयं भारत और इसका प्राण सनातन वैदिक धर्म उत्तुंग हिमालय की तरह स्थिर व स्थित हैं। धार्मिक अनुष्ठानों एवं अध्यात्मज्ञान के तत्त्वों का पोषक हमारा भारत संसार के समक्ष इतरदेशों की अपेक्षा अपना मस्तक ऊँचा किये हुए खड़ा है। ऐसे अध्यात्मराज्य के राजा महापुरुषों का आदर्श स्वीकार कर हमें अपने जीवन को उन्नत बनाना चाहिए।

माननीय अध्यक्ष जी

गढ़वाल हितैषिणी सभा नई दिल्ली 

मान्यवर सादर अभिवादन आप लोगो को पावन पर्व 100 वर्ष के समारोह सफल बनाने के लिए हृदय से बहुत बहुत हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं ।आपको जानकारी देते हुए उत्तराखंड वासियों के लिये हर्ष और सम्मान बढ़ाने के लिए, भारतीय भाषाओं में देश का पहला पहाड़ों की गूँज राष्ट्रीय साप्ताहिक समाचार पत्र है । गढवाल उत्तराखंड का मान-सम्मान बढ़ाया है।जिस की खबर का असर ने केंद्र सरकार से 140 करोड़ जनता को और आजादी के लिए बलिदान देने वाले महान देश भगत्तों के मान-सम्मान दिलाने का काम किया है पहली बार देश में हुआ है कि शिलान्यास उद्घाटन के बाद तीसरा कार्यक्रम सरकार को राष्ट्रध्वज फहराने का कार्यक्रम करना पहाड़ों की गूँज दिल्ली को गुंजा कर हुआ है। यहीं पर विचार विमर्श पत्र के सुधी पाठको ने किया है कि उत्तराखंड के अख़बार को सम्मानित करने के लिए प्रदेश के समाज सेवी संस्था, संघठन को अवश्य बिचार कर पत्र को सम्मानित किसी भी सूक्ष्म तरह करने के लिए अपना योगदान देना चाहिए।ताकि देश के लोकतंत्र की रक्षा करने वाले बिना संवैधानिक अधिकार के 4 स्तंभ है, काम करने वाले चौथे स्तंभ अभाव में जीवन बिताने के बाद भी देश हित के लिए अपने धर्म का पालन करते रहे।

ग्रन्थों को पढ़ने से भी न मिल पाने वाला अलभ्य ज्ञान संत महापुरुषों की सेवा से सहज ही प्राप्त हो जाता है, क्योंकि संतों का ज्ञान ही आचरण है। भगवान् आदि शङ्कराचार्य द्वारा स्थापित चार पीठों में से दो पीठों (शारदापीठ द्वारका एवं ज्योतिष्पीठ, बदरिकाश्रम) को सुशोभित करने वाले स्वामी श्री स्वरूपानन्द सरस्वती जी महाराज जैसी दिव्य विभूति का संक्षिप्त परिचय दिया जाना छोटी सी नाव लेकर सागर को पार करने जैसी दुःसाहसी चेष्टा है.. जिसे महाकवि कालिदास ने *उडुप-तितीर्षा* कहा है। पर उनके चरणों में समर्पित हम भक्तों के लिए इसके अलावा कोई और चारा भी तो नहीं है कि हम अपने आराध्य की लीलाओं का अनुचिन्तन कर सकें !

जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामी श्री स्वरूपानन्द सरस्वती जी महाराज करोड़ों सनातन हिन्दू धर्मावलम्बियों के प्रेरणापुंज और उनकी आस्था के ज्योतित स्तम्भ हैं; लेकिन इससे भी परे वे एक उदार मानवतावादी सन्त हैं। परमवीतराग, निःस्पृह और राष्ट्रीय भावनाओं से ओत-प्रोत एक परमहंस साधु, जिनके मन में दलितों-शोषितों के प्रति असीम करुणा है। उनके विषय में सम्पूर्णता के दावे के साथ कुछ भी लिख पाना किसी के लिए भी असम्भव है। आप जरा उनके जीवन पर, उनके कार्यों पर एक नजर तो डालिये, कहीं भी किसी तरह के अभाव का अनुभव, आपको नहीं होगा । अब इसे भला आप अभिव्यक्ति दे सकेंगे ? पूर्णता को अभिव्यक्त नहीं किया जा सकता । हाँ, असम्पूर्ण से उसकी ओर संकेत अवश्य किया जा सकता है। वैसे ही जैसे कोई अपने दोनों हाथ फैलाकर महाकाश के महत्त्व को अभिव्यक्त करे। आदि शंकराचार्य जी ने जो किया वह तब की परिस्थिति में असाधारण था। आज समय वह नहीं है, परिस्थितियाँ भी वह नहीं है, फिर भी आदि शंकर के स्थान में प्रतिष्ठित होकर पूज्य श्रीचरणों ने जो कुछ किया वह उनके महिमामय सम्पूर्ण व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति के लिये पर्याप्त है।

*आविर्भाव*
पूज्य महाराजश्री का जन्म संवत् 1980 के भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि (तदनुसार 2 सितम्बर, 1924 ई.) के शुभ दिन भारत के हृदयस्थल माने जाने वाले मध्यप्रदेश के सिवनी जिले के दिघौरी गाँव में सनातन हिन्दू परम्परा के कुलीन ब्राह्मण परिवार में पिता श्री धनपति उपाध्याय एवं माता गिरिजा देवी के यहाँ हुआ। माता-पिता ने विद्वानों के आग्रह पर इनका नाम पोथीराम रखा। पोथी अर्थात् शास्त्र, मानो यह शास्त्रावतार हों । ऐसे संस्कारी परिवार में पूज्यश्री के संस्कारों को जागृत होते देर न लगी और मात्र नव वर्ष की कोमल वय में आपने गृह त्याग कर धर्म यात्राएँ प्रारम्भ कर दीं।

*अध्ययन*-
भारत के प्रत्येक प्रसिद्ध तीर्थस्थानों और संतो के दर्शन करते हुए आप काशी पहुँचे । वहाँ आपने पहले गाजीपुर की रामपुर पाठशाला में और फिर काशी आकर ब्रह्मलीन धर्मसम्राट् स्वामी करपात्री जी महाराज एवं स्वामी महेश्वरानन्द जी जैसे तल्लज विद्वानों से वेद-वेदांग, शास्त्र-पुराणेतिहास सहित स्मृति एवं न्याय ग्रन्थों का विधिवत् अनुशीलन किया और अपनी प्रतिभा और विद्या के बल पर स्वल्पकाल में ही विद्वानों में अग्रणी बन गए।

*स्वातन्त्र्य सेनानी*-
यह वह काल था जब भारत को अंग्रेजों से मुक्त करवाने की लड़ाई चल रही थी। महाराजश्री भी इस पक्ष के थे, इसलिये जब 1942 में ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो’ का घोष मुखरित हुआ तो महाराजश्री भी स्वतन्त्रता संग्राम में कूद पड़े और मात्र 19 वर्ष की अवस्था में ‘क्रांतिकारी साधु’ के रूप में प्रसिद्ध हुए। पूज्य श्रीचरणों को इसी सिलसिले में वाराणसी और मध्यप्रदेश की जेलों में क्रमशः 9 और 6 महीने की सजाएँ भोगनी पड़ी। महापुरुषों की संकल्प शक्ति से 1947 में देश स्वतन्त्र हुआ । अब पूज्यश्री में तत्त्वज्ञान की उत्कण्ठा जागी ।

*दण्ड-संन्यास*-
भारतीय इतिहास में एकता के प्रतीक सन्त श्रीमदादिशङ्कराचार्य द्वारा स्थापित अद्वैत मत को सर्वश्रेष्ठ जानकर, आज के विखण्डित समाज में पुनः शङ्कराचार्य के विचारों के प्रसार को आवश्यक जान और तत्त्वचिन्तन के अपने संकल्प की पूर्ति हेतु ईसवी सन् 1950 में ज्योतिष्पीठ के तत्कालीन शङ्कराचार्य स्वामी श्री ब्रह्मानन्द सरस्वती जी महाराज से कोलकाता में गंगा तट पर विधिवत् दण्ड संन्यास दीक्षा लेकर आप ‘स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती’ नाम से प्रसिद्ध हुए।

*धार्मिक नेतृत्व*-
जिस भारत की स्वतन्त्रता के लिए आपने संग्राम किया था, उसी भारत को आजादी के बाद भी अखण्ड, शान्त और सुखी न देखकर एवं भारत के नागरिकों को दैहिक, दैविक एवं भौतिक तापों से मुक्ति दिलाने हेतु पू. स्वामी करपात्री जी महाराज द्वारा स्थापित ‘रामराज्य परिषद्’ पार्टी के अध्यक्ष पद से सम्पूर्ण भारत में रामराज्य लाने का प्रयत्न किया और हिन्दुओं को उनके राजनैतिक अस्तित्व का बोध कराया ।

*सर्वोच्च आचार्यत्व*-
ज्योतिष्पीठ के शङ्कराचार्य स्वामी कृष्णबोधाश्रम जी महाराज के ब्रह्मलीन हो जाने पर सन् 1973 में द्वारकापीठ के तत्कालीन शंकराचार्य स्वामी अभिनव सच्चिदानन्द तीर्थ जी महाराज एवं पुरीपीठ के तत्कालीन शङ्कराचार्य स्वामी निरंजनदेवतीर्थ जी महाराज, श्रृंगेरी पीठ के तत्कालीन शंकराचार्य स्वामी अभिनव विद्यातीर्थ जी महाराज के प्रतिनिधि सहित देश के तमाम संतों, विद्वानों द्वारा आप ज्योतिष्पीठ पर विधिवत अभिषिक्त हुए और ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शङ्कराचार्य के रूप में हिन्दू धर्म को अमूल्य संरक्षण देने लगे।

*विश्व कल्याणकृत्*-
आपका संकल्प है ‘विश्व का कल्याण’ इसी शुभ भावना को मूर्तरूप देने के लिए आपने तत्कालीन बिहार (अब झारखण्ड) प्रान्त के सिंहभूम जिले में ‘विश्व कल्याण आश्रम की स्थापना की। जहाँ जंगल में रहने वाले आदिवासियों को भोजन, औषधि एवं रोजगार देकर उनके जीवन को उन्नत बनाने का प्रयास किया। सम्प्रति दो करोड़ की लागत से एक विशाल एवं आधुनिक अस्पलाल वहाँ निर्मित हो चुका है, जिससे क्षेत्र के तमाम गरीब आदिवासी लाभान्वित हो रहे हैं और यहीं से स्वधर्मानयन अभियान चलाकर लाखों आदिवासियों को पुनः सनातन धर्म में प्रतिष्ठित कराया।

*आध्यात्मिकोन्नतिदाता*-
पूज्य महाराजश्री ने समस्त भारत की आध्यात्मिक उन्नति को ध्यान में रखकर ‘आध्यात्मिक उत्थान मण्डल’ नामक संस्था स्थापित की। जिसका मुख्यालय भारत के मध्यभाग में मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर जिले के उस स्थान में रखा जहाँ के जंगलों में उन्होंने आरम्भ में उग्र तप किया था और अब जहाँ पूज्य महाराजश्री ने ही राजराजेश्वरी त्रिपुरसुन्दरी भगवती का विशाल मन्दिर बनाया है। सम्प्रति सारे देश में आध्यात्मिक उत्थान मण्डल की 1200 से अधिक शाखाएँ लोगों में आध्यात्मिक चेतना के जागरण एवं ज्ञान तथा भक्ति के प्रचार के लिये समर्पित है।

*द्विपीठाधीश्वरत्व*-
द्वारका-शारदापीठ के जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामी श्री अभिनव सच्चिदानन्द तीर्थ जी महाराज के ब्रह्मलीन होने पर उनके इच्छापत्र के अनुसार 27 मई, 1982 ईसवी को आप द्वारकापीठ की गद्दी पर अभिषिक्त हुए और आदिशङ्कराचार्य द्वारा स्थापित चार पीठों की परम्परा में एक साथ दो पीठों पर विराजने वाले शङ्कराचार्य के रूप में प्रसिद्ध हुए। ध्यातव्य है कि द्वारका शारदापीठ के ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वामी अभिनव सच्चिदानन्दतीर्थजी ने अपने इच्छापत्र में पूज्य महाराजश्री को ‘आदर्श सन्यासी’, ‘शांकरपीठों की योग्यता का परम धारक’ और ‘ज्योतिष्पीठाधीश्वर के रूप में संबोधित किया था।

*गोसेवाग्रणी*-
सन् 1985 से 1988 तक गुजरात और राजस्थान में तीन वर्ष तक अकाल पड़ा, जिससे वहाँ का पशुधन विशेषकर गोवंश चारे के अभाव में समाप्तप्राय हो जाने की स्थिति में आ गया, तब पूज्य महाराजश्री ने 5 मालगाड़ियों से प्रभूत चारा देश के अन्य भागों से एकत्र कर भिजवाया था और स्वयं भी उन क्षेत्रों का महीनों तक दौरा कर लोगों को इस हेतु आगे आने को प्रेरित किया था। आपने गोरक्षा आन्दोलनों में भी निरन्तर भाग लिया और अनेक जेलयात्राएँ कीं । आपका एक भी ऐसा आश्रम नहीं है जिसमें किसी न किसी रूप में गोसेवा न हो रही हो ।

*रामालयोद्धारक*-
रामजन्मभूमि के प्रश्न पर पूज्यश्री ने हिन्दुओं की अस्मिता एवं धार्मिक अधिकारों को केन्द्र बनाकर ‘रामजन्मभूमि पुनरुद्धार समिति के तत्त्वावधान में एक आन्दोलन खड़ा किया। इसी प्रश्न पर पूज्य महाराजश्री को गिरफ्तार भी होना पड़ा और चुनार के किले में घोषित अस्थायी जेल में 9 दिनों तक निवास करना पड़ा। चित्रकूट, झोंतेश्वर, काशी, अयोध्या और फतेहपुर के विराट साधु-महात्मा सम्मेलनों के द्वारा आपने राममन्दिर निर्माण के विचार को सन्त समाज का व्यापक समर्थन व ठोस आधार प्रदान कराया । अन्ततः श्रृंगेरी में चतुष्पीठ सम्मेलन के द्वारा आपने इस चिन्तन को संकल्प के रूप में गठित कर सनातन धर्म के व्यापक समर्थन की आधार भूमि खड़ी कर दी।
महाराजश्री का प्रारम्भ से ही मानना था कि राम जन्मभूमि के मुद्दे को आस्था से हटाकर राजनीतिक मुद्दा न बनाया जाए। इसलिए आपने चारों शंकराचार्यों सहित ऐसे सन्तों को लेकर राम जन्मभूमि रामालय न्यास का गठन किया जो राजनीति से दूर हटकर राम मन्दिर निर्माण हेतु तत्पर है। आपने 30 नवम्बर 2006 को अयोध्या में आपने अपने लाखों अनुयायियों के साथ श्रीराम जन्मभूमि की परिक्रमा की। आज भी अयोध्या के लोग उस यात्रा का स्मरण करते हैं और कहते हैं कि अयोध्या में इतने लोग आए और शान्ति बनी रही हो ऐसा यह एकमात्र अवसर है।
*गंगासेवाव्रती*-
पूज्य महाराजश्री ने गंगा में बढ़ रहे प्रदूषण पर अपनी चिन्ता ईसवी सन् 2003 के माघ मेले से ही प्रकट कर दी थी जब उन्होंने लाखों कल्पवासियों के साथ स्वयं भी एक दिन का उपवास किया था। तत्कालीन रूप से तो उस समय समस्या का समाधान हो गया था पर बाद में स्थिति फिर जस की तस बन गई। महाराजश्री ने इस हेतु कार्य करने वाले अनेक लोगों और संस्थाओं को अपना समर्थन एवं मार्गदर्शन दिया परंतु बात ना बनती देख दिनांक 17 जून 2008 ई. को बदरीनाथ मंदिर प्रांगण में आयोजित अपनी अभिनन्दन सभा में महाराजश्री ने राष्ट्रव्यापी गंगा सेवा अभियानम् आरम्भ करने की घोषणा की। इसके बाद से महाराजश्री ने अपने लगभग सारे कार्यक्रम स्थगित कर दिए और गंगा के कार्य में लग गए । आन्दोलन पूरे देश में फैला और अनेक स्थानों पर प्रदर्शन होने लगे जिनमें हरिद्वार में 38 दिनों का आमरण अनशन और काशी का 112 दिनों का हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाइयों का धरना उल्लेखनीय हैं। प्रयागादि अनेक स्थानों पर गंगा सेवा अभियानम् की इकाइयों ने कार्य किया। स्वयं पूज्य महाराजश्री प्रतिनिधि मंडल के साथ 16 अक्टूबर 2008 ई. को प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह जी से मिले और गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित करने के साथ-साथ सहायक नदियों सहित अविरल और निर्मल बनाने का अनुरोध किया। यह महाराजश्री के तपोबल का प्रभाव था कि 4 नवम्बर 2008 ई. को माननीय प्रधानमंत्री जी ने गंगा को राष्ट्र नदी घोषित करते हुए गंगा घाटी प्राधिकरण बनाने की घोषणा की। वर्ष 2012 में गंगा आन्दोलन अपने चरम पर पहुँचा जब कुल 9 गंगा तपस्वियों ने वर्तमान ज्योतिष्पीठाधीश्वर जी महाराज के नेतृत्व में अन्न-जल का त्याग कर कठोर तपस्या की।

*रामसेतुसंरक्षक*-
सेतु समुद्रम् परियोजना की पूर्ति हेतु त्रेतायुग में भगवान् श्रीरामचन्द्र द्वारा रामेश्वरम् से लंका जाने हेतु बनवाये गये महान् सेतु को तोड़ने के समाचार मिलते ही महाराजश्री सक्रिय हुए और उन्होंने पूरे देश में श्रीसेतुबन्ध रामेश्वरम् रक्षा मंच का गठन कर तत्काल कार्य को रोकने का आह्वान किया। महाराजश्री ने इस हेतु माननीय उच्चतम न्यायालय में याचिकाएं दायर करवाई और विशाल रैलियाँ आयोजित कीं। यह महाराजश्री का ही प्रयास था कि युगों-युगों से गौरवान्वित करने वाला हम सनातनधर्मियों का महान् पौराणिक सेतुतीर्थ आज भी सुरक्षित है ।

*चतुष्पीठसम्मेलक*-
आदि शंकराचार्य जी ने भारत की चार दिशाओं में चार वेदों को आधार बनाकर चार आम्नाय पीठों की स्थापना की थी। और इन मठों के संचालन के लिए बनाए गए अपने संविधान में यह निर्देश किया था कि चारों पीठों के आचार्य मिल-जुलकर धर्मनिर्णय प्रदान करते रहें। परन्तु कालान्तर में परस्पर व्यवस्था की यह मर्यादा शिथिल होने लगी थी। पूज्य महाराजश्री ने अपने ज्योतिष्पीठाधिरोहण के अनन्तर ही इसका वातावरण निर्मित किया और परिणामस्वरूप ईसवी सन् 1979 में श्रृंगेरी में चतुष्पीठ-सम्मेलन सम्पन्न हुआ । तब से अब तक अनेकशः यह अवसर सनातनधर्मी प्रजा को प्राप्त हो चुका है। अभी विगत 19 मई 2007 ईसवी को बेंगलोर में रामसेतु की रक्षा के लिए चतुष्पीठ सम्मेलन सम्पन्न हुआ था ।
*अभिनव श्रीविद्योपासक*-
शंकराचार्य परम्परा में दश महाविद्याओं में षोडशी की उपासना पूज्य महाराजश्री को परम्परया प्राप्त है। यह विद्या अधिकारिता का आग्रह रखती है। एतावता वर्तमान समय में इस अति गुह्यतम विद्या का प्रसार अवरुद्ध सा हो गया था। इस सन्दर्भ में ठीक वही दशा विद्यमान हो गई थी जो आदि शंकराचार्य जी के समय में वेदान्त विद्या की थी । गुरु गोविन्दपादाचार्य जी वेदान्त विद्या के अधिकारी शिष्य की प्रतीक्षा में गुहावास कर रहे थे। आदि शंकराचार्य जी ने जिस तरह गोविन्दपादाचार्य जी से प्राप्त वेदान्त विद्या का प्रसार किया था उसी तरह पूज्य महाराजश्री ने श्रीविद्या का प्रचार-प्रसार किया है। आपने अनेक अधिकारी शिष्यों को श्रीविद्या प्रदान की है जिनमें अनेक का पूर्णाभिषेक भी सम्पन्न हुआ है। पराम्बा की आराधना के लिए पूज्य महाराजश्री ने देश भर में पचास से अधिक राजराजेश्वरी मन्दिरों का निर्माण कराया है साथ ही अनेक का जीर्णोद्धार भी सम्पन्न कराया है। पूज्यपाद महाराजश्री द्वारा प्रतिष्ठापित मन्दिरों की विशेषता यह है कि उनमें प्रतिदिन राजोपचार पूजा के समस्त नियमों का पालन किया जाता है।

*मातृशक्ति के संवर्धक*-
जहाँ महाराजश्री ने दलितों, शोषितों, आदिवासियों के उत्थान हेतु कार्य किए हैं वहीं उन्होंने मातृशक्ति के संवर्धन के भी अनेक उपक्रम स्थापित किए। देवी के चरणों में अनन्य आस्था रखने वाले आचार्यों के द्वारा ऐसे प्रयास स्वाभाविक हैं। उन्होंने पूरे देश में आध्यात्मिक उत्थान महिला मण्डलों की स्थापना के साथ-साथ माताओं की ऊर्जस्विता के जागरणार्थ हिंगलाज सेना, वैदुष्य संवर्धनार्थ श्रीकाशी विदुषी परिषद् और उनमें आत्मविश्वास के जागरण के लिए अखिल भारतीय उभय भारती महिला आश्रम की स्थापना की।

*वेदोद्धार व्रती*-
वेद धर्म के मूल हैं। उनकी रक्षा का मतलब है सनातन धर्म की रक्षा । इस सत्य को प्रकट करते हुए पूज्य महाराजश्री ने अनेक वेद पाठशालाओं की स्थापना द्वारा वेदविद्या के संरक्षण के अपने दायित्व को निभाया। देश भर में महाराजश्री द्वारा अनेकों बाल विद्यालय, आयुर्वेद औषधालय, अनुसंधानशाला, आश्रम, आदिवासी शाला और अन्नक्षेत्र जैसी प्रवृत्तियाँ संपादित हो रही हैं तथा आप स्वयं भी अनवरत भ्रमण करते हुए संस्थाओं का सम्यक् संचालन व धर्मप्रचार करते रहे हैं।

*इहलीला संवरण*
पूज्यपाद महाराजश्री ने विगत 11 सितम्बर 2022 ई. को परमहंसी गंगा आश्रम में अपनी इहलीला का संवरण किया। उन्होंने अपने सभी कार्यों के सम्यक् संचालन के लिए अपने जीवनकाल में ही अपने इच्छा-पत्र को लिखकर अपने प्रिय शिष्य एवं निजी सचिव ब्रह्मचारी सुबुद्धानन्द जी के पास सुरक्षित रखवा दिया था और उनको अपनी इच्छा प्रकट करते हुए कह दिया था कि उनके ब्रह्मलीन हो जाने के बाद उनके पार्थिव शरीर के सामने ही समाधि से पूर्व वे उनका विधिवत् अभिषेक करें। महाराजश्री की प्रत्येक इच्छा की भाँति ब्रह्मचारी जी ने उनकी इस अन्तिम इच्छा को समस्त सनातनी जनता के समक्ष दिनांक 12 सितम्बर 2022 ई. को विधिवत् सम्पन्न कराया। आज सनातनी जनता सहित समस्त विश्व ब्रह्मलीन द्विपीठाधीश्वर जी महाराज के दो अमूल्य उपहार दो पीठों के वर्तमान शङ्कराचार्य के रूप में प्राप्त कर धन्यता का अनुभव कर रहा है क्योंकि अब सनातन धर्माकाश में सूर्य और चन्द्र की भाँति पूज्यपाद अनन्तश्रीविभूषित पश्चिमाम्नाय द्वारका शारदापीठाधीश्वर स्वामी श्री सदानन्द सरस्वती जी महाराज और ‘परमाराध्य’ परमधर्माधीश उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती ‘1008’ देदीप्यमान हो रहे हैं।
।। हर-हर महादेव ।।

Next Post

Government ready for CBI investigation on Pakhro Tiger Safari episode Officer under investigation over illegal construction and tree cutting Government took decision after High Court order There was panic among the officers of the department

पाखरो टाइगर सफारी प्रकरण पर सीबीआई जांच को तैयार सरकार अवैध निर्माण-पेड़ कटान पर जांच के घेरे में अफसर हाईकोर्ट के आदेश के बाद सरकार ने लिया निर्णय विभाग के अफसरों में मचा हडकंप देहरादून। कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में पाखरो टाइगर सफारी के नाम पर हुए अवैध निर्माण और पेड़ […]

You May Like