अल्मोड़ा। सांस्कृतिक नगरी के नाम से प्रसिद्ध अल्मोड़ा में इन दिनों बैठकी होली की धूम मची हुई है। यहां देर रात तक होली गायन की महफिलें जम रही हैं। इसमें देर रात तक शास्त्रीय रागों पर आधारित होली के गीतों का गायन किया जा रहा है। सांस्कृतिक नगरी में बैठकी होली का आनंद लेने के लिए रंगकर्मियों, कलाकारों और स्थानीय लोगों का जमावड़ा लगा है। अल्मोड़ा में इस बैठकी होली का इतिहास 150 साल से भी अधिक समय का है।
अल्मोड़ा में बैठकी होली काफी प्रसिद्ध है। यहां बैठकी होली की शुरुआत पौष महीने के प्रथम रविवार से हो जाती है। इस बैठकी होली की विशेषता यह है कि यह होली शास्त्रीय रागों पर गायी जाती है। इसमें ईश्वर की आराधना के निर्वाण गीत गाए जाते हैं। वसंत के शुरू होते ही श्रृंगार रस के गाने शुरू हो जाते हैं, जबकि शिवरात्रि के बाद होली अपने पूरे उफान पर होती है। बैठकी होली शुद्ध शास्त्रीय गायन है, लेकिन शास्त्रीय गायन की तरह एकल गायन नहीं है। होली में भाग लेने वाला मुख्य कलाकार गीतों का मुखड़ा गाते हैं और श्रोता होल्यार भी बीच-बीच में साथ देते हैं, जिसे भाग लगाना कहते हैं। इस होली की एक विशेषता यह भी है कि यह होली शिवरात्रि तक बिना रंगों के साथ सिर्फ संगीत की होली होती है। शाम होते ही संगीत प्रेमियों द्वारा अपने-अपने घरों में शास्त्रीय रागों पर आधारित बैठकी होली का गायन शुरू हो जाता है। जानकारों के अनुसार कुमाऊं में बैठकी होली गीतों के गायन की परंपरा सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा से शुरू हुई। जानकार बताते हैं इस होली की शुरुआत अल्मोड़ा में 1860 में हुई थी। होली में गायी जाने वाली बंदिशें विभिन्न रागों पर आधारित होती हैं, जो समय के अनुसार गायी जाती हैं। बैठक में होली को गाये जाने का एक तरीका है। बैठकी होली में राग काफी, जंगला, खम्माज, साहना और जैजेवन्ती समेत कई राग गाए जाते हैं। राग धमार से शुरू होकर पहली होली श्याम कल्याण में गायी जाती है। जबकि, समापन राग भैरवी पर होता है। बीच में अलग-अलग रागों पर होलियां गायी जाती हैं।