गढ़वाल क्षेत्र में दीपावली के ठीक ग्यारह दिन बाद इगास बग्वाल के रुप में गढ़वाली दिवाली मनाई जाती है। दीपावली मर्यादा पुरुषोत्तम राम की लंका विजय का प्रतीक प्रकाश पर्व हैं, लेकिन दिवाली के समय ही चार सौ वर्ष पूर्व गढ़वाल के वीर माधो सिंह भंडारी भड़ के नेतृत्व में गढ़वाल सेना ने दापाघाट का युद्ध जीतकर तिब्बतियों पर विजय प्राप्त की थी ।और दिवाली के ठीक ग्यारहवें दिन गढ़वाल सेना अपने घर पहुंची थी। जिसके बाद से प्रतिवर्ष दिवाली के ग्यारहवें दिन गढ़वाली दिवाली के रूप में ‘इगास बग्वाल’ मनाया जाता है। इस दिन परिवार के लोग एक साथ एकत्रित होकर चीड़, भीमल या बाज की लकड़ी से मालू के टहनी की छाल ,तार एंव टार के अभाव में बैल के गले की सांकल से बांधकर उसमें आग लगाकर हवा में घुमाते हैं, जिसे भैलों खेलना कहा जाता है। इसके साथ ही पकौड़ी, पकवान, स्वाला ,भांग की पकोड़े ,पालक आदि बनाते हैं और पारंपरिक वाद्य ढोल, दमाऊ की थाप पर नाचकर इगास मनाते हैं। वीर भड़ माधो सिंह उतराखंड में कृषि को बढ़ावा देने के लिये अपना योगदान दिया ।उन्हीं वीरों की याद में
एक सिंह रेन्दू बण । एक सिंह गायका, (गायका सिंह एक भड़ था ) । एक सिंह माधो सिंह और सिंह कायका सींघ रण का, एक सींघ गाय का, एक सींघ माधो सिंह, बाकी काहे का’ आदि गीत भी गाए जाते हैं।