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उत्तरकाशी :- कुवां कफनौल मोटर मांर्ग पर शिमलसारी पुल के पास मिली प्राचीन शिव गुफा।

Pahado Ki Goonj

कुवां कफनौल मोटर मांर्ग पर शिमलसारी पुल के पास मिली प्राचीन शिव गुफा
(मदन पैन्यूली)
बडकोट :- सीमान्त जनपद उत्तरकाशी के नौगांव विकासखण्ड अन्र्तगत सिमलसारी गांव के बच्चों ने गांव के पास के ही जंगल में जमीन के भीतर एक गुफानुमा आकार में कई शिवलिंग देखे है। बच्चों ने गांव पंहुचते ही अपने-अपने मां-बाप को इसकी जानकारी दी है। लोग इस जगह को देखने एकत्रित हुए तो यहां जमीन के भीतर एक गुफा है जिसके अन्दर कई शिवलिंग स्थापित हैं।
अगले दिन से इस गुफा को देखने के लिए लोगो का तांता लगना आरम्भ हो गया है। लोग गुफा के भीतर सीधा नही जा पाते है, सिर झुकाकर या शरीर का अगला हिस्सा अथवा पांव अन्दर डालकर लेटते हुए गुफा में प्रवेश किया जा सकता है। इस गुफा के भीतर दो तरह के दृश्य चौकाने वाले है। पहला यह कि गुफा के भीतर जो शिंवलिग है वे ऐसे लगते हैं कि मानो किसी ने यहां इन्हे स्थापित किया हो। शिवलिंग की आकृतियां छोटी बड़ी सभी प्रकार की है। दूसरा यह कि इस गुफा के भीतर यानि गुफा को कवर करने वाला धातु/पत्थर पर जैसे आप चोट मारते है, इसकी आवाज कांस के जैसे बजती है। अब यह दृश्य क्षेत्र में कौतुहल का विषय बना हुआ है। कुछ लोग इस गुफा का प्रसंग लाखामण्डल से जोडते है। हालांकि जिस क्षेत्र में यह गुफा निकली है और जहां पर है वहां के नाम भी ऐसे है कि दरअसल ऐसी धरोहरो का यहां मिलना लाजमी है। यह गुफा सिमलसार के पास के जंगल तियां वीट के अन्र्तगत और गैर गांव को जाने वाले पुराने रास्ते पर है। जहां का नाम स्थानीय लोग खाणी खाव (खाणी खाला) कहते है। इससे आगे लगभग 3-4 किमी की खड़ी चढाई चढकर एक जगह घाण्डुवा ओडार (घण्टीयों की गुफा) है। इस क्षेत्र में ऐसे कई नाम हैं जो किसी न किसी खास नाम का उचारण करवाते है ,आम तौर पर देखा जाय तो खाणी खाव का सीधा अर्थ है कि यहां पर कभी किसी प्रकार की विशेष खान रही होगी, वह चाहे मूर्तीकला की हो या कोई अन्य। वैसे भी इस क्षेत्र के गांव गांव में पुरातत्विक और स्थापत्यकला के जीवित नमूने दिखाई देते है, जिन्हे लोग देवतुल्य मानते हैं और इनकी किसी न किसी देवता के रूप में पूजा होती है। वही ग्राम तिया के पंडित प्रदीप थपलियाल का कहना है कि यहाँ पर स्थानीय गाँव तियां, बजलाड़ी, धारी-कलोगी, हिमरोल, दारसौं आदि गांव की स्थानीय समिति भी बन चुकी है जिसके माध्यम से इस स्थान को धार्मिक स्थल का स्वरूप बनाने का काम करेगी ।
कुल मिलाकार स्थानीय लोग अब इस स्थल को धार्मिक स्वरूप के तौर पर पूजने लग गये है। जैसे इस गुफा की सूचना अगल-बगल गांव में पंहुची लोग यहां माथा टेकने आ रहे है। क्षेत्र के जागरूक लोग भी इस स्थान को अब धार्मिक महत्व का बताने लग गये है। वही जनप्रतिनिधियों का कहना है कि यह क्षेत्र पहले से ही धार्मिक महत्व का रहा है, जिसके संबन्ध में कई दन्त कथाऐं लोक में मौजूद है। उनका कहना है सरकार को ऐसे स्थानो को पर्यटन, और धार्मिक पयर्टन के रूप में विकसित करना चाहिए। जो स्थानीय स्तर पर रोजगार पैदा कर सकता है। कहा कि इस हिमालय राज्य में धार्मिक पर्यटन की अकूत संभावनाऐं है ,विकासखण्ड मुख्यालय नौगांव से मात्र 25 किमी के फासले पर तियां वीट के अन्र्तगत खाणी खाव नामक सथान पर एक प्रकृतिक गुफा सिमलसारी के कुछ बच्चो को मिली। उन्होने इस गुफा के भीतर शिवलिंग देखे। सूचना पंहुचने पर यहां लोग माथा टेकने पंहुच रहे हैं। गुफा के भीतर शिवलिंग है, कुछ पत्थरो के टुकड़े हैं जिन्हे छूने मात्र से कांसे जैसे धातु की आवाज आती है। इसी गुफा के भीतर मिट्टी का एक विशाल दीपक भी है। ऐसे कई आकृतियां और सामग्री दिखाई दे रही है,जहां पर चुना की मात्रा या चूने के पहाड़ हो वहां इस तरह की आकृतियों का मिलना कोई अचम्भा नहीं है। यहां पूरा पहाड़ ही चूना पहाड़ है जो यहां की पत्थरो की बनावट बताती है। वही कुछ लोगों का मानना है कि प्राकृतिक विध्वंश के सहस्रो वर्ष बाद उतराखण्ड हिमालय में पुरातत्विक महत्व के अंश मिलना लाजमी है। इतिहास गवाह है कि इस क्षेत्र में प्रकृति ने कई बार ऊथल-पुथल की है। इस तरह से यहां जमीन के अन्दर और शिवलिंग दबे संभावना होगी। वैसे भी उत्तराखण्ड हिमालय धार्मिक पर्यटन के लिए ही जाना जाता है। इस तरह से यहां धार्मिक पर्यटन को ही बढावा मिलना चाहिए। इधर जिला प्रशासन उत्तरकाशी ने पुरातत्व विभाग को इसकी जानकारी प्रेषित कर दी है। क्षेत्र के लोगो का मानना है कि इस जगह की वैज्ञानिक जांच व पुरातत्व सर्वेक्षण होना ही चाहिए।

 

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