उत्तराखंड छोटा राज्य है यहां संसाधनों की अपार संभावनाएं विद्यमान हैं जैसे उत्तराखण्डीयो ने इगास के बारे में सुना होगा, दरअसल आजकल के पहाडी बच्चों को भी इगास का पता नहीं है कि इगास नाम का कोई त्यौहार भी है । अन्य थौलों मेंंलो से रोजगार मिलने लगेेगे।परंतु हम अपने स्वार्थ के चकर, लापरवाही इच्छा शक्ति के अभाव के कारण उसके उपयोग करने में असफल साबित करने में जानबूझकर लगें हैं।हमारा पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश अपनी संस्कृति को बढ़ावा देने से बढ़ा है वहां अपने मेले थौलों के साथ साथ अन्य उधोगों बढ़ा चढ़ाकर उसका समय पर प्रचार प्रसार पर्यटकों को तीर्थ यात्रियों को सही सूचना देकर स्थानीय छोटे अखबारों ,पत्र पत्रिकाओं के माध्यम से गावँ गावँ तक पहुचाने का काम समय से किया जाता है।चाहे लोक पर्व हो या अन्य संसाधनों को आमदनी बढ़ाने के लिए उपयोग किया जाता है।वहाँ विकास की बात करते हैं तो स्थानीय लोगों को साथ साथ जोड़कर उठाने कार्य किया है । उत्तराखंड में विकास के लिए बाहर से ठेकेदार लाकर खड़ा किया जाता है ।और उसके गुलाम बनाने के लिए अपने राज्य के नागरिकों को दोयम दर्जे का नागरिक बनाने का काम इन उन्नीस सालों में नेताओं के स्वार्थ से हुआ है। जबकि वहां पर स्थानीय लोगों को व उनको विकसित करने के लिए प्रोसाहित किया गया है। कर्मचारियों का ज़िक्र करना आपके लिए नसीहत देने के लिए काफी है कि पौंटा साहिब के किसानों को यू पी की डोई वाला चीनी मिल से काफी परेशानी होती थी तो वहां के कृषि निदेशक स्वतंत्र अलोक ने जुलाई 1982 में निर्णय लिया था कि नवम्बर से हिमाचल प्रदेश के किसान परेशान नहीं होंगे। उन्होंने 9 जुलाई को भूमि अधिग्रहण कराई प्रोजेक्ट में क्या क्या आवश्यकता होती है टीम भवना से पूरा कर
बनाया और 19 नवम्बर 1982 को उस मिल का उदघाटन लोक निर्माण मंत्री गुमान सिंह ने किया था। जलपान में स्थानीय व्यजन फल रखें थे ताकि लोकल को लाभः हो किसान उसमें भागदारी कर सके।और अपने आप निदेशक इसबीच अमेरिका प्रशिक्षण में रहे । किसानों के चेहरे पर मुस्कान रही। अब जरूरी है खेल भावना से उत्तराखंड के कर्मचारियों के संघठनो व उत्तराखंड के शासन में बैठे लोग सोच बदलने के लिए की उत्तराखंड में 122 दिन के रिकार्ड में कोई फैक्ट्री या प्रोजेक्ट से उत्पादन करा सकते हैं?यहाँ तो आलम यह है कि 2013की आपदा के समय गढ़वाल मंडल विकास निगम के गेस्ट हाउस ऊखीमठ रुद्रप्रयाग एवं अन्य जगह में शासन के उच्च अधिकारियों के भ्र्ष्टाचार को बयां कर रहा है। जनता का कहना है कि इसका संज्ञान अब मा न्यायालय लेकर कार्यवाही करें कि 6 साल में गेस्ट हाउस क्यों नहीं बन पाये ? वहां विद्युत उत्पादन के छोटे छोटे नाले गधेरों को उपयोग में लाया गया है।अपनी भोगलिक स्थिति को देखते हुए आल्वेदर रोड़ की चौड़ाई का विरोध किया गया है।वहां के कार्यक्रम को चलाने वाले शासन के लोग गावँ से जुड़े रहने का प्रयास करते हैं ।यहां शहर में बसने का है ।उनको अपने छेत्र के लोगों के विकास की पीड़ा है।जैसे ज्यादा लोगों को रोजगार पशुपालन , कृषि विभाग ,उद्यान विभाग से है वहाँ फल की पेटियों,खाद बीज की सब्सिडी किसानों को सीधे देती है वह कम कीमत पर पड़ जाती है। और अच्छी गुणवत्ता के पशुओं,समान की पूर्ति करने के साथ साथ अन्य अपने मतलब की जनकारी उनको बाजार से हो जाती है। इगास पर्व सेे हमारे प्रदेश के लोगों को सप्ताह भर का रोजगार मिल सकता है इगास गावँ गावँ में मनाई जाती है वहाँ होम स्टे के लिए संसाधन विकास करने की जरूरत है। इसका प्रचार प्रसार दीपावली के पहले से करने की जरुरत है।ताकि दूरदराज से आने वाले स्थानीय,प्रवासी लोगों आने में सुभिधा हो सकती है। तो रोजगार के अबसर बढेंगें। इसके लिए हमारे सरकार के मुख्यमंत्री जी के सलाहकार लोगों को एवं मंत्री गणों ,शासन में बैठे लोगों की इच्छा शक्ति को बढ़ाने की आवश्यकता है। क्योंकि हम घरों से बाहर पलायन करते हुए अपने सब रीति रिवाज रोजीरोटी के चक्कर में भूलगये हैं उनको अपने उत्तराखंड में आने के अबसर मिलने लगेंगे।दुनिया भर के लोग उत्तराखंड में आएंगे ।रोजगार के साथ साथ पलायन रोकने के लिए रीबर्स के लिए जमीन तैयार होगी।अमर वाद्य यंत्र की जनकारी सबको होगी।भाई चारा बढ़ेगा । कुमाऊं मण्डल में बूढ़ी दिवाली ,गढ़वाल मण्डल में इगास ओर जौनसार में नई दिवाली के रूप में मनाई जाती है।यह पर्व जहां भाई चारा बढ़ाने का त्यौहार है वहीं मनोरंजन के साथ साथ डिप्रेशन को दूर करने का भी साधन है। इस पर्व को मनाया जाने से देश की सुरक्षा की इनर लाइन में आवादी की आवाजाही बढ़ेगी।
पहाड़ी राज्य वासियों की असली दीपावली
दरअसल हम पहाडीयों की असली दीपावली इगास ही है, जो दीपोत्सव के ठीक ग्यारह दिन बाद मनाई जाती है, दीपोत्सव को इतनी देर में मनाने के दो कारण हैं पहला और मुख्य कारण ये कि – भगवान_श्रीराम के अयोध्या वापस आने की खबर सूदूर पहाड़ निवासीयों को ग्यारह दिन बाद मिली, और उन्होंने उस दिन को ही #दीपोत्सव के रूप में हर्षोल्लास से मनाने का निश्चय किया,बाद में छोटी दीपावली से लेकर गोवर्धन पूजा तक सबको मनाया लेकिन ग्यारह दिन बाद की उस दीवाली को नहीं छोडा,पहाडों में दीपावली को लोग दीये जलाते हैं,गौ_पूजन करते हैं,अपने ईष्ट और कुलदेवी कुलदेवता की पूजा करते हैं,नयी उडद की दाल के पकौड़े बनाते हैं और गहत की दाल के स्वांले (दाल से भरी पुडी़) , दीपावली और इगास की शाम को सूर्यास्त होते ही औजी हर घर के द्वार पर ढोल_दमाऊ के साथ बडई ( एक तरह की ढोल विधा) बजाते हैं फिर लोग पूजा शुरू करते हैं, पूजा समाप्ति के बाद सब लोग ढोल दमाऊ के साथ कुलदेवी या देवता के मंदिर जाते हैं वहां पर मंडाण ( पहाडी नृत्य) नाचते हैं, चीड़ की राल और बेल से बने भैला ( एक तरह की मशाल ) खेलते हैं, रात के बारह बजते ही सब घरों इकट्ठा किया सतनाजा ( सात अनाज) गांव की चारो दिशा की सीमाओं पर रखते हैं इस सीमा को दिशाबंधनी कहा जाता है इससे बाहर लोग अपना घर नही बनाते। ये सतनाजा मां काली को भेंट होता है ।
इगास मनाने का दूसरा कारण है गढवाल नरेश महिपति शाह के सेनापति वीर माधोसिंह भंडारी गढवाल तिब्बत युद्ध में गढवाल की सेना का नेतृत्व कर रहे थे, गढवाल सेना युद्ध जीत चुकी थी लेकिन माधोसिंह सेना की एक छोटी टुकडी के साथ मुख्य सेना से अलग होकर भटक गये सबने उन्हें वीरगति को प्राप्त मान लिया किन्तु वो जब वापस आये तो सबने उनका स्वागत बडे जोर-शोर से किया ये दिन दीपोत्सव के ग्यारह दिन बाद का दिन था इसलिए इस दिन को भी दीपोत्सव जैसा मनाया गया, उस युद्ध में माधोसिंह गढवाल तिब्बत की सीमा तय कर चुके थे जो वर्तमान में भारत चीन सीमा है ।