टिहरी गढ़वाल /पुरानी टिहरी खुद में सदियों का इतिहास समेटे हुए है, टिहरी झील का निर्माण हुआ तो पुरानी टिहरी झील के पानी में गुम हो गई, लेकिन टिहरी रियासत की पुरानी निशानियां आज भी यहां देखी जा सकती हैं, जिनसे लोगों का गहरा जुड़ाव है। इन दिनों टिहरी झील का जलस्तर कम हो गया है, जिसके बाद पुरानी टिहरी के भवन के अवशेष नजर आने लगे हैं। यही नहीं गढ़वाल में राजशाही का प्रतीक रहा राजमहल भी दिखने लगा है, जिसे देखने के लिए यहां लोगों की भीड़ उमड़ने लगी है। टिहरी रियासत के राजमहल को देखकर यहां के ग्रामीणों की आंखें छलक आईं, एक वक्त था जब ये भवन टिहरी की आन-बान और शान हुआ करता था, पुराने टिहरी शहर की सुंदरता के चर्चे दूर-दूर तक सुनाई देते थे, लेकिन वक्त के साथ सब खत्म हो गया। आज बचे हैं तो बस पुरानी टिहरी के खंडहर, जब भी टिहरी झील का जल स्तर कम होता है तो डूबे हुए खंडहरों के अवशेषों को देखने के लिए लोग दूर-दराज से यहां आते हैं। बड़े बुजुर्ग इन खंडहरों को देखकर पुरानी यादों में डूब से जाते हैं ।
पुरानी टिहरी की स्थापना 28 दिसंबर 1815 को राजा सुदर्शन शाह ने की थी। केदारखंड में भी टिहरी की सुंदरता का वर्णन मिलता है, पौराणिक काल में इस क्षेत्र को त्रिहरी के नाम से जाना जाता था, क्योंकि टिहरी के तीन तरफ गंगा बहती थी। यहां पर भागीरथी, भिलंगना और घृतगंगा का संगम होता था, जिसमें नहाने के लिए ब्रह्मा, विष्णु और महेश आते थे। टिहरी झील में आज भी राजमहल के अवशेष मिलते हैं। आपको बता दें कि टिहरी डैम की जांच का काम 1961 में पूरा हो गया था, सालों तक चले निर्माण कार्य के बाद साल 2006 में निर्माण कार्य पूरा हुआ। उस वक्त यहां के लोगों को दूसरी जगहों में बसा दिया गया। अब स्थानीय लोग सरकार से मांग कर रहे हैं कि वो झील से राजमहल तक पहुंचने के लिए बोटिंग सेवा शुरू करे, ये मांग काफी हद तक जायज भी है। इससे राजमहल का संरक्षण होगा साथ ही क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा भी मिलेगा, जिससे यहां के लोगों की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी।