खासकर उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणाम तो यही दास्तां कह रहे हैं. उत्तराखंड वासियों में तो भाजपा और मोदी के प्रति लगाव है ही, इसलिए वहां भाजपा की भारी जीत अप्रत्याशित नहीं लगी। लोकसभा चुनाव में भी उत्तराखंड वासियों ने सभी सातों सीटें भाजपा की झोली में डाल दी थी, लेकिन उत्तर प्रदेश की राजनीति तो जाति और धर्म से बुरी तरह प्रभावित है। जातिवाद और धर्म के नाम पर पिछले 15 सालों से प्रदेश में कभी बसपा की सरकार रही तो कभी सपा की।
यह बात अलग है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 42.3 प्रतिशत वोट मिला था और अब घटकर 39.7 प्रतिशत हो गया है। लेकिन यदि भाजपा के सहयोगियों का वोट भी जोड़ दिया जाए तो यह आंकड़ा फिर 42 फीसद हो जाता है। बसपा का वोट प्रतिशत 19.9 से बढ़कर 22.2 हुआ और सपा का वोट प्रतिशत लगभग 22 प्रतिशत का आंकड़ा बरकरार रहा है।
भाजपा को दो राज्यों में तो बम्पर जीत मिली लेकिन गोवा और पंजाब में मोदी मैजिक नहीं चला। मणिपुर में भाजपा ने पहली बार में भी जीत के नजदीक पहुंचकर अपनी धमाकेदार उपस्थिति दर्ज कराई है। गोवा और मणिपुर में भाजपा को सबसे अधिक वोट मिले लेकिन सीटें कांग्रेस की झोली में गई। उत्तर प्रदेश में भाजपा की छप्परफाड़ जीत की तरह-तरह से समीक्षा हो रही है। एक बात तो साफ तौर पर उभरी है कि मोदी का जादू बरकरार है।
मुसलमानों के वोट बंटने का फायदा भाजपा को मिला है और यदि राष्ट्रीय लोकदल भी सपा-कांग्रेस गठबंधन में शामिल होती तो तीनों का वोट प्रतिशत करीब 30 प्रतिशत होता और इस गठबंधन को कुछ सीटें और मिल जातीं। लेकिन विशेषज्ञ सभा बड़ा आकलन नोटबंदी को लेकर कर रहे हैं।