*वैलेंटाइन डे के बहाने संघी ब्रिगेड भगत सिंह राजगुरु सुखदेव की शहादत दिवस से संबंधित अफवाहें फैला रही है। इन तीनों को ना तो फांसी 14 फरवरी को दी गई थी और ना ही 14 फरवरी को फांसी सुनाई गई।
*प्रेम के बारे में भगत सिंह के यह विचार सुखदेव को लिखे एक पत्र में अभिव्यक्त किए गए हैं।*
पत्र के कुछ अंश
मैं पुरज़ोर कहता हूँ कि मैं आशाओं और आकांक्षाओं से भरपूर जीवन की समस्त रंगीनियों से ओतप्रोत हूँ, लेकिन वक़्त आने पर मैं सबकुछ क़ुर्बान कर दूँगा। सही अर्थों में यही बलिदान है। ये वस्तुएँ मनुष्य की राह में कभी भी अवरोध नहीं बन सकतीं, बशर्ते कि वह इन्सान हो। जल्द ही तुम्हें इसका प्रमाण मिल जायेगा। किसी के चरित्र के सन्दर्भ में विचार करते समय एक बात विचारणीय होनी चाहिए कि क्या प्यार किसी इन्सान के लिए मददगार साबित हुआ है? इसका जवाब मैं आज देता हूँ – हाँ वह मेजिनी था, तुमने अवश्य पढ़ा होगा कि अपने पहले नाकाम विद्रोह, मन को कुचल डालने वाली हार का दुख और दिवंगत साथियों की याद – यह सब वह बरदाश्त नहीं कर सकता था। वह पागल हो जाता या ख़ुदकशी कर लेता। लेकिन *प्रेमिका के एक पत्र से वह दूसरों जितना ही नहीं, बल्कि सबसे अधिक मज़बूत हो गया।*
जहाँ तक प्यार के नैतिक स्तर का सम्बन्ध है, मैं यह कह सकता हूँ कि यह अपने में एक भावना से अधिक कुछ भी नहीं और यह पशुवृत्ति नहीं बल्कि मधुर मानवीय भावना है। *प्यार सदैव मानव चरित्र को ऊँचा करता है, कभी भी नीचा नहीं दिखाता बशर्ते कि प्यार प्यार हो।* इन लड़कियों (प्रेमिकाओं) को कभी भी पागल नहीं कहा जा सकता है जैसाकि हम फ़िल्मों में देखते हैं – वे सदैव पाशविक वृत्ति के हाथों में खेलती हैं। सच्चा प्यार कभी भी सृजित नहीं किया जा सकता। यह अपने ही आप आता है – कब, कोई कह नहीं सकता