उच्चतम न्यायालय से टकराव को बढ़ाते हुए न्यायमूर्ति कर्णन ने कहा कि आठ न्यायाधीशों ने ‘संयुक्त रूप से 1989 के अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति अत्याचार रोकथाम अधिनियम और 2015 के संशोधित कानून के तहत दंडनीय अपराध किया है।’ उन्होंने शीर्ष अदालत के सात न्यायाधीशों के पीठ के सदस्यों के नाम लिए जिनमें प्रधान न्यायाधीश, न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति जे चेलमेर, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर, न्यायमूर्ति पिनाकी चंद्र घोष और न्यायमूर्ति कुरियन जोसफ हैं।
न्यायमूर्ति कर्णन ने चार मई को उच्चतम न्यायालय के आदेशानुसार मानसिक स्वास्थ्य जांच कराने से इनकार कर दिया था। उन्होंने डॉक्टरों के एक दल से कहा कि वह पूरी तरह सामान्य हैं और मानसिक रूप से स्थिर हैं। न्यायमूर्ति कर्णन ने कहा कि शीर्ष अदालत के आठों न्यायाधीशों ने जातिगत भेदभाव किया है। उन्होंने कहा, उन्हें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार अधिनियम, 1989 के तहत दंडित किया जाएगा। उन्होंने कहा कि आठ न्यायाधीशों ने एक सार्वजनिक संस्थान में मुझे अपमानित करने के अलावा एक दलित न्यायाधीश का उत्पीड़न किया है। उनके आदेशों से सभी संदेह से परे यह साबित हो गया है।
न्यायमूर्ति कर्णन ने यहां न्यू टाउन में रोजडेल टॉवर स्थित अपने आवास पर अस्थाई अदालत से जारी अपने आदेश में कहा, इसलिए इस मामले में अदालत का फैसला जरूरी नहीं है। उन्होंने अपने आदेश में प्रत्येक के लिए पांच-पांच साल कैद की सजा सुनाई और एससी-एसटी कानून की धारा 3 की उपधाराओं (1) (एम), (1) (आर) और (1) (यू) के तहत तीन आधार पर एक लाख रुपए का जुर्माना लगाया। न्यायमूर्ति कर्णन ने निर्देश दिया कि तीनों सजाएं साथ-साथ चलेंगी और यदि जुर्माना अदा नहीं किया गया तो उन्हें छह महीने की कैद और काटनी होगी।