देहरादून, दिल्ली, पहाड़ों की गुंज पिछले लम्बे समय से युवा वैज्ञानिक शैलेन्द्र कुमार बिराणी के साइंटिफिक-एनालिसिस को प्रकाशित करता आ रहा हैं | आपके द्वारा 2011 में ही अपने आविष्कार की फाईल के साथ प्रमाण सहित राष्ट्रपति को भेजे सिस्टम यानि लोकतांत्रिक व्यवस्था के एक विकसित प्रारूप की फोटो अब पुन: सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के साथ सत्यापित हो गई |
चुनाव आयुक्त के चयन प्रक्रिया की सुनवाई के बाद उच्चतम न्यायालय ने पाया की आजादी के बाद से अब तक कोई ठोस व्यवस्था ही नहीं हैं सिर्फ तथाकथित सरकार यानि कार्यपालिका के प्रमुख प्रधानमंत्री ही यह निर्धारित करते आये हैं | मुख्य न्यायाधीश ने संसद कानून न बनाये तब तक एक नई प्रक्रिया या विकसित व्यवस्था लागू करी जो CBI (सीबीआई) प्रमुख की चयन प्रक्रिया के समान होगी |
अब आगे से चुनाव आयुक्त का चयन मुख्य न्यायाधीश (न्यायपालिका), प्रधानमंत्री (कार्यपालिका) और विपक्ष के नेता या विपक्ष की सबसे बड़े राजनैतिक दल का नेता (विधायिका) मिलकर करेंगे और अन्तिम फैसले की मोहर के लिए राष्ट्रपति महोदय/महोदया को भेजेंगे |
लोकतंत्र के चारों स्तम्भ व उसके शीर्ष पर राष्ट्रपति-भवन की फोटो जो विकसित व्यवस्था के रूप में साइंटिफिक-एनालिसिस ने बताई वो हुबहु व्याखित हो गई | इसमें लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ यानि मीडीया के संवैधानिक चेहरे का न होना बताया इसलिए चुनाव आयुक्त के चयन प्रक्रिया में मीडीया का कोई प्रतिनिधि शामिल नहीं किया गया | इस कारण से भविष्य में जब भी कोई उम्मीदवार कोई सच्चाई छुपायेगा या गलत जानकारी देगा तो वह इस चयन प्रक्रिया के सामने नहीं आयेगा और यदि आयेगा तब तक चयन प्रक्रिया पुरी हो जायेगी व व्यक्ति शपथ लेकर कुर्सी पर शोभायमान हो चुका होगा |
वर्तमान नागालैंड चुनाव से पहले एक राष्ट्रीय प्रतिष्ठित मीडीया समूह संगठन ने एक ही आदमी डाल रहे हैं पूरे परिवार के वोट व भी रूपये लेकर खबर प्रमाणिकता के साथ प्रकाशित कर दी परन्तु यह सब सच्चाई चुनावी शौरगुल में गायब कर दी गई व मुख्य चुनाव आयुक्त ने भी नहीं पढी या उन्हें पढने ही नहीं दी गई | इस कारण मुख्य न्यायाधीश की भावना में पूरी चुनावी प्रक्रिया ही पानी की तरह बह गई तो लोकतंत्र बर्बादी के मार्ग पर आगे ही बढेगा |