दिल्ली। जब नेहरू ने 2 सितंबर, 1946 को अंतरिम सरकार में शामिल होने का फैसला किया जो उन्हें 17 यॉर्क रोड पर 4 बेडरूम का एक बंगला एलॉट किया गया, यॉर्क रोड को अब मोतीलाल नेहरू मार्ग के नाम से जाना जाता है।
वे उस घर से काफी खुश थे लेकिन जब गाँधी की हत्या हुई तो नेहरू की सुरक्षा बढ़ा दी गई और उनके घर के बाहर पुलिस के तंबू लगा दिए गए. हर तरफ से माँग उठने लगी कि नेहरू को किसी और घर में रहना चाहिए जहाँ सुरक्षा व्यवस्था में कोई सेंध न लगा सके. लॉर्ड माउंडबेटन ने सलाह दी कि नेहरू को कमांडर-इन-चीफ के निवास पर शिफ्ट कर जाना चाहिए. नेहरू इसके प्रति कोई खास उत्साहित नहीं थे।
सरदार पटेल ने उनसे कहा कि वो अभी तक इस दुख से नहीं उबर पाए हैं कि वो गाँधी की सुरक्षा नहीं कर पाए। माउंटबेटन की पहल पर मंत्रिमंडल ने नेहरू के कमांडर-इन-चीफ के निवास में जाने पर मुहर लगा दी । नेहरू इस कदम से बहुत खुश नहीं थे.
नेहरू के असिस्टेंट रहे एमओ मथाई अपनी किताब रेमिनिसेंसेज ऑफ नेहरू एजश् में लिखते हैं, जब नेहरू इस घर में आए तो उन्होंने प्रधानमंत्री को मिलने वाला इंटरटेनमेंट 500 रुपये महीने का भत्ता लेने से इनकार कर दिया।
कुछ मंत्रियों ने जिसमें गोपालास्वामी अयंगार प्रमुख थे, सलाह दी कि प्रधानमंत्री का वेतन दूसरे मंत्रियों की तुलना में दोगुना होना चाहिए लेकिन नेहरू ने उसे स्वीकार नहीं किया। आजादी के समय प्रधानमंत्री का वेतन 3000 रुपये प्रति माह तय किया गया था। लेकिन नेहरू उसे पहले 2250 और फिर 2000 रुपये प्रति माह पर ले आए।
1946 के बाद से नेहरू अपनी जेब में हमेशा 200 रुपये रखते थे. लेकिन जल्द ही ये पैसे समाप्त हो जाते थे क्योंकि वो परेशानी में पड़े लोगों को पैसे बाँट देते थे। मथाई कहते हैं कि मैंने नेहरू की जेब में 200 रुपये रखने पर रोक लगा दी लेकिन तब नेहरू ने उन्हें धमकी दी कि वो लोगों से उधार लेकर जरूरतमंद लोगों को पैसे देंगे।
मथाई लिखते हैं, मैंने आदेश जारी करवाया कि कोई भी अधिकारी नेहरू को दिन में 10 रुपये से अधिक उधार न दे. फिर मैंने नेहरू के सचिव के पास प्रधानमंत्री सहायता कोष से कुछ पैसे रखवाने शुरू कर दिए। नेहरू अपने ऊपर बहुत कम धन कर्च करते थे. यहाँ तक कि उन्हें कंजूस भी कहा जा सकता था। लेकिन सैस ब्रुनर की गाँधीजी पर बनाई गई एक पेंटिंग को खरीदने के लिए उन्होंने 5000 रुपये खर्च करने में एक सेकेंड का भी समय नहीं लिया था।
वे लिखते हैं, जब 27 मई, 1964 को नेहरू का निधन हुआ तो उनके पास उनका पुश्तैनी घर आनंद भवन था और उनके बैंक अकाउंट में सिर्फ उतने पैसे थे कि वो हाउस टैक्स चुका पाएं। एक बार नेहरू के पुराने दर्जी उमर ने एक बार उनसे फरमाइश की कि वो उन्हें एक सर्टिफिकेट दे दें। नेहरू जानते थे कि उमर ने ईरान के शाह और सऊदी अरब के बादशाह के कपड़े सिले थे। इन शाहों ने भी उन्हें प्रशंसा पत्र दिए थे। मोहम्मद यूनुस अपनी किताब पर्सन्स, पैशंस एंड पॉलिटिक्स में लिखते हैं, नेहरू ने अपने दर्जी से मजाक किया, आपको मेरे सर्टिफिकेट की क्या जरूरत? आपको तो बादशाहों से सर्टिफिकेट मिल चुके हैं। दर्जी ने कहा कि लेकिन आप भी तो बादशाह हैं। इसपर नेहरू बोले मुझे बादशाह मत कहिए. बादशाह वो लोग होते हैं जो लोगों के सिर कटवा देते हैं।
उमर ने तब एक जबरदस्त पंचलाइन बोली, वो तो तख््त पर बैठने वाले बादशाह हैं। आप तो दिलों के बादशाह हैं। आपका उनसे क्या मुकाबला।