देहरादून, उत्तराखंड में कुछ मास्टर लोग अपनी मर्ज़ी से की सालो से एक जगह जमे है उनके आका सरकार के साथ हैं या सरकार में हैं वह यह नहीं समझते कि हमे बेतन जनता के ऊपर कर्जा करके दिया जारहा है कर्जे के वेतन पारहरे कर्मचारियों को मन मर्जी सार्वजनिक अवकाश जिला मण्डल प्रदेश में कराना गौण बात है। लोकतंत्र लाखों लोगों के बलिदान से प्राप्त हुआ है उसके प्रताप हम निर्भय होकर सांस ले रहे हैं उसको जिंदा रखने के लिए देश मे समय समय पर चुनाव होते हैं उनसे सरकार छोटी बड़ी बनती है गावँ पंचायत के चुनाव में पिटासीन अधिकारी अपनी जुमेदारी नहीं समझते हैं तो जनता के बहुमत को वह व्यक्ति विशेष का भी भविष्य चौपट करते हैं।इस समय पीठासीन अधिकारी यों ने मत पत्र पर हस्ताक्षर नहीं किये जिससे कि प्रत्यासी चुनाव हार गए।वह राजनीतिक दलों व अपनी यूनियन के बदौलत लोकतंत्र को खतरे डाल रहे हैं।ऐसे कर्मचारियों को सेवा में रखने की आवश्यकता नहीं य नहीं है यह विचारणीय है।जो जनता के पैसे से पगार ले रहा है वह जनता के लिए नहो तो उसका व्यबहार से समाज देश कमजोर होने लगता है। ये सब प्रदेश देश ,सरकार एवं लोक का भविष्य चौपट कर रहे है। ऐसे कर्मचारियों ने सरकार के एक्शन लेने की छमता को ललकारा है।
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