सिलक्यारा सुरंग के शुरू होने के बाद कहानियों का हिस्सा बन कर रह जायेगी राड़ी घाटी ।
उत्तरकाशी / बड़कोट । (मदन पैन्यूली)
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सिलक्यारा सुरंग आज आर पार हो गयी है, हालांकि, इसका कार्य पूरा होने और वाहनों के लिए खुलने में अभी वक्त लगेगा लेकिन सुरंग का आर पार होना एक महत्वपूर्ण चरण है। उम्मीद है अगले साल तक यह सुरंग आम लोगों की आवाजाही के लिए खोल दी जाएगी। सिलक्यारा टनल के मुख्यद्वार पर बाबा बौखनाग का मंदिर न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि उस अद्भुत साहस, समर्पण और सामूहिक प्रयास की स्मृति भी है, जिसने 41 श्रमिकों को नया जीवन प्रदान किया। माना जा रहा हैं कि बाबा बौखनाग का यह धाम आने वाले समय में श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए प्रेरणा एवं आस्था का केंद्र बनेगा। सिलक्यारा सुरंग यमुनोत्री और गंगोत्री के बीच की दूरी 25 किलोमीटर कम तो करेगी ही साथ ही इससे साल भर यमुना घाटी और गंगा घाटी के बीच वाहनों की आवाजाही बनी रहेगी। रॉड़ी टॉप तक मोटर मार्ग इतना संकरा और घुमावदार है कि यहां वाहन चलाना भी जोखिम भरा रहता है। सुरंग के शुरू होने के बाद रॉड़ी टॉप जैसी जगह भी, कहानियों, व किस्सों का हिस्सा बन रह जायेगी । रॉडी टॉप जैसी दीवार गंगा और यमुना घाटी को ही अलग नहीं करती थी बल्कि बोली, भाषा, संस्कृति में भी विविधता की सीमा थी। गंगा घाटी से रॉडी टॉप जैसे ही पार करते तो आपका वास्ता एक अलग बोली, एक अलग संस्कृति, एक अलग माहौल से पड़ता। जनपद उत्तरकाशी में रॉडी टॉप के दोनों तरफ दो अलग तरह का रहन सहन, संस्कृति, बोली भाषा है।, इस सुरंग से यमुना घाटी, पुरोला, मोरी आराकोट के लोगों के लिए जिला मुख्यालय पहले के मुकाबले पहुंचना ज्यादा आसान होगा। 12 नवंबर 2023 सुबह 5:30 बजे दीपावाली के दिन उत्तरकाशी की निर्माणाधीन सिलक्यारा सुरंग में 41 श्रमिक अंदर फस गए थे ।सिलक्यारा टनल रेस्क्यू ऑपरेशन
दुनिया का सबसे जटिल और लंबा रेस्क्यू ऑपरेशन था। इससे जुड़े प्रत्येक व्यक्ति ने मानवता और टीम वर्क की एक अद्भुत मिसाल कायम की।आखिरकार 17वें दिन
श्रमिको को सुरंग से बाहर निकालने में सफलता मिल गयी थी । अभियान के 17वें दिन 41 श्रमिक सुरक्षित बाहर आ गए थे । सुरंग से बाहर निकलते ही
श्रमिक भाइयों का साहस और धैर्य का नजारा एक अद्भुत देखने लायक था ।
श्रमिकों का जोरदार जयघोष और फूल मालाओं से स्वागत का कबरेज मेरी जिंदगी के
यादगार पलो में शामिल है । इस ऐतिहासिक घटना के चलते सुरंग के निर्माण में देरी तो हुई लेकिन यहा रेस्क्यू ऑपरेशन भी इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया।