देहरादून। जैव विवधिता के हिसाब से समृद्ध उत्तराखण्ड वन्यजीवों के लिए महफूज नही रह गया है। उत्तराखण्ड में पिछले 19 सालों में 1 हजार 715 हाथी, टाइगर और लेपर्ड की मौत हो गई। इनमें से सिर्फ 809 जानवर ही अपनी मौत मरे. शेष 906 हाथी, लेपर्ड और टाइगर या तो मार दिए गए या फिर बढ़ते
शहरीकरण की भेंट चढ़ गए। इन दिनों उत्तराखंड में वाइल्ड लाइफ वीक चल रहा है, जिसका 7 अक्टूबर को समापन होगा। मकसद है वाइल्ड लाइफ के प्रति आम लोगों में जागरूकता पैदा करना। सालों से मनाया जाने वाला ये कार्यक्रम अब सिर्फ रस्म अदायगी तक सीमित हो गया है. वाइल्ड लाइफ के नाम पर आलीशान सभागारों में बैठक कर फाइलें अपडेट कर दी जाती हैं।
सरकारी प्रयास सूअर, हाथी रोधी दीवार बनाने और इंसानी मौत हो जाने पर मुआवजा देने से बाहर नहीं दिखाई देते। वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन सोसाइटी ऑफ इंडिया के उत्तराखंड प्रभारी राजेंद्र अग्रवाल कहते हैं कि धरातल पर विभाग का कोई काम नजर नहीं आता. लोग लेपर्ड से लेकर बंदरों के आतंक से परेशान हैं। हर साल बैठकें सिर्फ खानापूर्ति के लिए होती हैं।
मनुष्य और वन्य जीवों के बीच टकराव की बात होती है, लेकिन जमीन स्तर पर लोग जंगली जानवरों से परेशान हैं।
एक उदाहरण से समझिए कि किस तरह वाइल्ड लाइफ मैनजमेंट के नाम पर उत्तराखंड में पैसों की बर्बादी की जाती है. पिछले 4 सालों में सिर्फ वाइल्ड लाइफ मैनजमेंट के नाम पर उत्तराखंड में 40 करोड़ रुपए खर्च कर दिए गए। इसमें 5 करोड़ रुपए बंदरों की नशबंदी पर खर्च दिखाए गए। 23 करोड़ की लागत से 36 किलोमीटर लंबी हाथी रोधी दीवार बनाई गई। साढ़े पांच करोड़ की लागत से सूअर रोधी दीवारें, हाथियों के लिए खाइयां खोदने और सोलर फेंसिग लगाने का काम किया गया। ये काम वास्तव में हुए भी या नहीं इसका कोई प्रमाण विभाग के पास नहीं है। कैंपा के सीईओ आईएफएस डॉ. समीर सिन्हा इस बात को स्वीकार करते हैं।
हालत यह है कि उत्तराखंड बनने के बाद इस साल मार्च तक उत्तराखंड में हाथी, लेपर्ड और टाइगर की मौतों का आंकड़ा किसी को भी विचलित कर देगा। इन 19 सालों में 399 हाथी, 137 टाइगर और 1179 लेपर्ड की मौत हो गई। इनमें से 213 जानवर सड़क दुर्घटना में मारे गए। 52 जानवर शिकारियों ने मार डाले. हरिद्वार, ऋषिकेश और देहरादून से लगा राजाजी टाइगर रिजर्व (त्ंरंरप ज्पहमत त्मेमतअम) का मोतीचूर इलाका मनुष्य और जानवर के बीच टकराव का हॉट स्पॉट बना हुआ है। पिछले कुछ सालों में यहां 27 से अधिक लोग लेपर्ड का शिकार हो गए। उत्तराखंड बनने के बाद पिछले 19 सालों में 399 हाथी, 137 टाइगर और 1179 लेपर्ड की मौत हो गई है।