साइंटिफिक-एनालिसिस
कानून चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति अधिनियम – 2023 का साइंटिफिक-एनालिसिस
संविधान निर्माताओं ने चुनाव आयोग किसे कह
उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने इसके लिए व्यवस्था कर दी परन्तु संसद ने इस व्यवस्था को हटा एक अलग कानून बना दिया | अब यह कानून दुबारा संविधान पीठ के विचाराधीन हैं | भारत का संविधान एक किताब रूप में हैं इसलिए पदासीन लोग अपनी बुद्धि व अपने फायदे एवं स्वार्थ के अनुरूप उसका अलग-अलग अर्थ समझाते है |
युवा वैज्ञानिक शैलेन्द्र कुमार बिराणी ने अपने पेटेंटेड आविष्कार असली ए. डी. सिरिंज की फाईल जो करीबन 3 किलो 500 ग्राम व 10 पेज की संकलन सूचि वाली थी, जो भारत ही नहीं पूरी दुनिया के दस्तावेजों को समाहित करे हुए थी, उसे महामहिम राष्ट्रपति को भेजा तो उन्होंने इन्ही दस्तावेजों को संकलन करने के आधार पर राष्ट्रपति के सम्मान में एक ग्राफिक्स इमेज बनाई और इस फाईल के कवर पेज पर लगाया | यह फोटो ही भारत की लोकतान्त्रिक व्यवस्था या सिस्टम की पहली बार बना ग्राफिक्स प्रारूप हैं | इस तरह दुनिया के किसी भी लोकतान्त्रिक देश की व्यवस्था या सिस्टम का ग्राफिक्स रूप आज तक नहीं बना |
लोकतन्त्र की व्यवस्था के इस ग्राफिक्स रूप पर राष्ट्रपति-सचिवालय की मोहर हैं व आधिकारिक हस्ताक्षर हैं। यह फाईल आधिकारिक रूप से दर्ज हुई | आज लोकतान्त्रिक व्यवस्था के इसी ग्राफिक्स रूप से भारत के मुख्य चुनाव आयोग व आयुक्तों की चयन प्रक्रिया को व्याखित करते हैं |
इस पूरे ग्राफिक्स में संवैधानिक पदों, राष्ट्रिय इमारतों व दस्तावेजों का इस्तेमाल करा हैं | इसमें कोई व्यक्ति विशेष का नाम इस्तेमाल नहीं करा हैं | सबसे ऊपर राष्ट्रपति-भवन वाला राष्ट्रिय ध्वज हैं | संविधान के अनुसार लोकतन्त्र के चार स्तम्भ हैं और संविधान में किसी भी स्तम्भ को बड़ा व छोटा नहीं बताया गया हैं अर्थात् चारों लोकतान्त्रिक स्तम्भ बराबर हैं | इसमें प्रत्यक्ष रूप से मीडीया के चौथे स्तम्भ की संरचना नहीं हैं परन्तु अप्रत्यक्ष रूप से स्पष्ट करा हैं इसलिए वर्तमान में हर व्यक्ति मीडिया को लोकतन्त्र का चौथा स्तम्भ कहता हैं |
इसके निचे धरातल पर पहला स्तर व्यवसाहिक ढांचे का हैं, दुसरा स्तर संविधान व कानून का हैं | धरातल के सबसे निचले स्तर पर समय-चक्र को दर्शाया हैं जो सभ्यताएं, वंशों, पूर्वजों का जीवन सार इन्सानों की राष्ट्रीयता व नैतिकता की धुरी पर घुमाता हैं | इस पूरे लोकतन्त्र के ग्राफिक्स के चारों तरफ एक घेरा हैं जो स्वायक्त संस्थाओं से बनता है। इसको साधारण भाषा में एक भवन की स्तम्भों वाली भाषा में दीवारे कह सकते हैं |
चुनाव आयोग एक स्वायत संस्था हैं जो प्राकृतिक न्याय की नैतिकता में पूरी तरह फिट बैठता हैं क्योंकि इसे विधायक से लेकर राष्ट्रपति तक का चुनाव करवाना हैं अत: इनमें से किसी का चुनाव कार्य में प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष दबाव नहीं होगा | संविधान के अनुसार मुख्य निर्वाचन आयुक्त को शपथ राष्ट्रपति दिलायेंगे अर्थात् यह राष्ट्रपति के अधीन रहेगा | संविधान ने संसद को चुनाव आयुक्त के मेहनताना व कार्यकाल तय करने का अधिकार दिया हैं वो भी अन्य नियमों को ध्यान मे रखते हुए लेकिन वो लागू राष्ट्रपति की स्वीकृति से ही होंगे | इसका सीधा तात्पर्य चुनाव आयोग संसद यानि विधायिका और कार्यपालिका के अधीन नहीं होगा |
लोकतन्त्र के ग्राफिक्स में सभी स्वायत्त संस्थाओं को चारों तरफ एक सुरक्षा चक्र से प्रदर्शित किया हैं इसलिए चुनाव आयोग का स्थान संविधान के अनुसार ग्राफिक्स में यही हैं |
वर्तमान में एक मुख्य चुनाव आयुक्त और दो चुनाव आयुक्त हैं | हम इसे यही लेकर चलेंगे क्योंकि आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति के माध्यम से हुई और संविधान भी यही कहता हैं | मुख्य चुनाव आयुक्त को राष्ट्रपति शपथ दिलाते हैं जो कार्यक्षेत्र के आधार पर पुरी तरह सही हैं | इसका सीधा अर्थ भारत-सरकार के प्रमुख से अधिकार मील रहे हैं |
चुनाव आयोग में चुनावों को पुरा कराने के लिए पूरे देश में निचे से लेकर ऊपर तक पदों की एक पूरी श्रृंखला हैं | जो जिले के स्तर से चालू होती है। सबसे निचले स्तर पर कर्मचारियों का चयन अन्य विभागों के कर्मचारियों की चयन प्रक्रियाओं की तरह होगा |
इसके ऊपर प्रथम स्तर पर अधिकारीयों का चयन सिविल सर्विस परीक्षा के माध्यम से होगा | जिन्हें आप सामान्य भाषा में जिला स्तर के चुनाव अधिकारी कह सकते हैं |
इसके आगे के स्तर पर हर राज्य के नक्शें के आधार पर चार अलग-अलग जोन होंगे | यहां पर सिनियर चुनाव अधिकारी होगा | इस स्तर के लोगों का चयन सभी जिलों कि चुनाव अधिकारीयों मे से होगा | इसके लिए केन्द्रिय स्तर का चुनाव आयोग एक चयन प्रक्रिया चलायेगा जिसमें कार्य के अनुरूप सभी मापदण्डों को शामिल करेगा |
इससे आगे हर राज्य के प्रादेशिक चुनाव आयोग का स्तर होगा | जिसका चयन देश के सभी जोन के सिनियर चुनाव अधिकारीयों मे से ही होगा | केन्द्रिय स्तर पर मुख्य चुनाव आयुक्त व चुनाव आयुक्त मिलकर एक चार्ट बेस अपडेट चयन प्रक्रिया बनायेंगे | यह प्रक्रिया संसद के माध्यम से अन्य कानूनों को ध्यान में रखते हुए विधि का रूप लेंगे और राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद लागू होंगे | यह अपडेट प्रक्रिया पांच वर्षों में एक बार होनी चाहिए |
इस चार्ट में शारीरिक, कार्यक्षमता, उपल्बधियां, शिकायतों की लिस्ट, व्यवसाहिक ज्ञान इत्यादि-इत्यादि कालम होंगे | प्रत्येक कॉलम के अधिकतम अंक निर्धारित होंगे जो सभी मिलकर सौंपे अंकों का अधिकतम चयन स्कैल बनायेंगे | कॉलमों का अपडेट एक के बाद एक चलता रहेगा व हर कॉलम की दुबारा पुनरावृत्ति छ महीने के बाद होनी चाहिए | इन सभी कॉलमों में जोन के सिनियर चुनाव अधिकारी जितने अंक प्राप्त करते हैं उन सभी अंकों का योगफल लगातार चार्ट में सर्विस कोड सहित मुख्य बेबसाइट व केन्द्रिय आफिस बोर्ड पर उपलब्ध रहेगा | जैसे ही किसी प्रादेशिक चुनाव आयोग का पद खाली होता हैं उस समय चार्ट में जो शीर्ष पर होगा उसका चयन नये प्रादेशिक चुनाव आयोग के रूप में माना जायेगा | विज्ञान के अनुसार एक श्रृंखला में चयन इसी तरह होता हैं | अधिकारियों का ट्रांसफर, पदोंअवन्नति, स्वैच्छिक सेवानिवृति व दण्डात्मक स्वरुप अस्थाई व स्थाई निलम्बन के लिए एक अलग प्रक्रिया होगी जो चयन प्रक्रिया को क्रास नहीं करेगी |
अब श्रृंखला चुनाव आयुक्तों के चयन पर आती हैं | चुनाव आयोग की संविधान में दी स्वायत्तता को बनाये रखने व कर्मचारियों के अनुभवों व नैतिक एवं ईमानदार कर्तव्यनिष्ठा को सर्वोपरी मानते हुए इनका चयन प्रादेशिक चुनाव आयुक्तों में से ही होगा | संविधान के अनुसार चुनाव आयुक्तों की संख्या राष्ट्रपति समय-समय पर निर्धारित कर सकती हैं | विज्ञान के अनुसार देश को भौगोलिक दिशाओं के अनुसार अलग-अलग जोन में बांटने पर जितने जोन बने उतने चुनाव आयुक्त बनने चाहिए | हर जोन 5 – 10 राज्यों से मीलकर बनेगा | यह जोन सामान्य तौर पर पांच होने चाहिए, उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम व मध्य | वर्तमान में दो चुनाव आयुक्त हैं इसलिए हम दो को लेकर ही आगे बढेंगे | इनकी चयन प्रक्रिया में भी प्रादेशिक चुनाव आयुक्तों की तरह एक चार्ट बेस चयन प्रक्रिया होगी |
अब मामला आता हैं भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त की चयन प्रक्रिया का | यहां भी संवैधानिक स्वायत्तता व ईमानदार कर्तव्यनिष्ठा को बनाये रखते हुए चयन चुनाव आयुक्तों मे से ही होगा न की किसी अन्य विभागों से | अब यह मामला भारत के चुनाव आयुक्त का हैं इसलिए इसके लिए चयन समिति का गठन करना पडेगा | इस चयन समिति के सदस्य भारत-सरकार के संवैधानिक पदों पर कार्यरत माननीय होंगे |
लोकतन्त्र के ग्राफिक्स प्रारूप को देखे तो उसके चार स्तम्भ हैं इसलिए हर स्तम्भ का प्रमुख भारत के मुख्य चुनाव आयोग की चयन समिति का सदस्य होगा | इसका सीधा-सीधा तात्पर्य न्यायपालिका वाले स्तम्भ के प्रमुख मुख्य न्यायाधीश, विधायिका वाले स्तम्भ से ऊपरी सदन राज्यसभा के सभापति, कार्यपालिका वाले स्तम्भ के प्रधानमंत्री व मीडिया वाले स्तम्भ के प्रमुख होंगे | मीडिया वाले स्तम्भ को संवैधानिक चेहरा व जवाबदेही वाला अधिकार नहीं दे रखा हैं इसलिए इस स्तम्भ के प्रमुख का स्थान रिक्त रहेगा | जैसे ही मीडिया के चौथे लोकतान्त्रिक स्तम्भ का प्रमुख बनता हैं व स्वत: भारत के मुख्य चुनाव आयोग की चयन समिति का सदस्य होगा |
लोकतन्त्र के ग्राफिक्स प्रारूप को देखे तो उसके चार स्तम्भ हैं इसलिए हर स्तम्भ का प्रमुख भारत के मुख्य चुनाव आयोग की चयन समिति का सदस्य होगा | इसका सीधा-सीधा तात्पर्य न्यायपालिका वाले स्तम्भ के प्रमुख मुख्य न्यायाधीश, विधायिका वाले स्तम्भ से ऊपरी सदन राज्यसभा के सभापति, कार्यपालिका वाले स्तम्भ के प्रधानमंत्री व मीडिया वाले स्तम्भ के प्रमुख होंगे | मीडिया वाले स्तम्भ को संवैधानिक चेहरा व जवाबदेही वाला अधिकार नहीं दे रखा हैं इसलिए इस स्तम्भ के प्रमुख का स्थान रिक्त रहेगा | जैसे ही मीडिया के चौथे लोकतान्त्रिक स्तम्भ का प्रमुख बनता हैं व स्वत: भारत के मुख्य चुनाव आयोग की चयन समिति का सदस्य होगा |
़़इस चयन समिति का प्रमुख वर्तमान में भारत के मुख्य न्यायाधीश होंगे क्योंकि संवैधानिक रूप से उनका पद बड़ा है | यह बाद में परिवर्तित हो जायेगा क्योंकि इससे भी बड़ा संवैधानिक पद इस चयन समिति में आयेगा |
मीडिया के स्तम्भ का प्रमुख इस चयन समिति में आ जाने पर सदस्यों की संख्या सम हो जायेगी | इससे सम्भावना बन जाती हैं कि 2 – 2 की बराबरी से चयन ही नहीं हो पायेगा | इसके लिए चयन-समिति में पांचवा सदस्य होगा | यह कौन होगा वो लोकतन्त्र के ग्राफिक्स से स्पष्ट हैं |
आपको जानकारी के लिए बता दूं कि यह पांचवा सदस्य महामहिम राष्ट्रपति नहीं होंगे व दो में से किसी एक का चयन इनके विवेक पर भी नहीं छोड सकते क्योंकि संविधान राष्ट्रपति को इस तरह फैसला लेने का अधिकार नहीं देता है।
वर्तमान कानून चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति अधिनियम 2023 के अनुसार मुख्य चुनाव आयुक्त व चुनाव आयुक्तों के पदों पर विचार करने के लिए पहले खोज/सर्च समिति की स्थापना का प्रस्ताव हैं | इस खोज/सर्च समीति की अध्यक्षता कैबिनेट सचिव करेंगे और इसमें सचिव के पद से निचे के दो सदस्य भी होंगे जिनके पास चुनाव से सम्बन्धित मामलों का ज्ञान और अनुभव होगा |
यह खोज/सर्च समिति पूरी तरह असंवैधानिक हैं क्योंकि संविधान के अनुसार चुनाव आयोग को जो स्वायत्तता दी गई उसे पुरी तरह खत्म करती हैं व कार्य के आधार पर ईमानदार, अनुभवी, निष्ठावान वर्तमान कर्मचारियों पर कुठाराघात करती हैं | इसके साथ यह सिस्टम यानि व्यवस्था में भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, चयनीत व्यक्ति का शोषण, अवसरवाद व व्यक्तिवाद को सैद्धान्तिक रूप से संवैधानिक शक्तियों के विकेन्द्रीयकरण को तबाह कर केन्द्रिकरण करने के चोर दरवाजे को खोलती है |
चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति अधिनियम 2023 में चयन समिति का नियम हैं इसमें अध्यक्ष के रूप में प्रधानमंत्री, सदस्य के रूप में लोकसभा में विपक्ष के नेता यदि लोकसभा में विपक्ष के नेता को मान्यता नहीं दी गई तो लोकसभा में सबसे बडे विपक्षी दल का नेता यह भूमिका निभायेगा | इसमें तिसरा सदस्य प्रधानमंत्री द्वारा नामित एक केन्द्रिय कैबिनेट मंत्री होगा |
अब लोकतन्त्र के ग्राफिक्स रूप से इस चयन समिति का साइंटिफिक-एनालिसिस करते हैं | इसमें अध्यक्ष प्रधानमंत्री हैं जो कार्यपालिका के प्रमुख हैं जबकि चयन भारत के मुख्य निर्वाचन आयुक्त का हैं इसलिए चयन भी भारत-सरकार से होना चाहिए | अत: यह पूर्णतया संवैधानिक मर्यादाओं का उल्लंघन हैं |
इसमें कार्यपालिका वाले स्तम्भ से दो पदासीन हैं एक अध्यक्ष हैं व दुसरा उसके अधीन पद हैं | अत: बहुमत के आधार पर इसमें व्यक्तिवाद का अवगुण प्रभावी हैं |
अब उच्चतम न्यायालय द्वारा चयन समिति में भी तीन संवैधानिक पदों को रखा गया है। भारत के मुख्य न्यायाधीश, प्रधानमंत्री व लोकसभा में विपक्ष के नेता को | इसमें मुख्य न्यायाधीश न्यायपालिका के स्तम्भ से हैं, प्रधानमंत्री कार्यपालिका वाले स्तम्भ से व लोकसभा में विपक्ष के नेता विधायिका के स्तम्भ से हैं | यह कमेटी पुरी तरह से लोकतान्त्रिक स्तम्भों के स्थायित्व व संवैधानिक पदों की प्राथमिकता वाली मर्यादा का पालन नहीं करती हैं | वर्तमान की परिस्थिति, कही संवैधानिक लूपपोल व व्यवस्था के ढांचागत रूप से सैद्धान्तिक तौर पर व्यवस्थित नहीं होने के कारण कुछ हद तक उचित हैं |
वर्तमान राजनैतिक परिस्थितियों व भारतीय तिरंगे के चक्र की गतीशीलता बनी रही व समय की मर्यादा भंग न हो इसके लिए उच्चतम न्यायालय की चयन समिति को प्रभावी करा जा सकता हैं परन्तु इसे समय चक्र की गतिशीलता व संविधान में लिखी गई बातों के गूंढ ज्ञान को समझने व लागू करने के साथ-साथ समय-समय पर अपडेट करना पड़ेगा अन्यथा इस चयन समिति के खिलाफ विरोध उत्पन होता रहेगा व उच्चतम न्यायालय में मुख्य चुनाव आयोग व चुनाव आयुक्तों के चयन को लेकर याचिकाएं दायर होती रहेगी व नई-नई संवैधानिक पीठ गठन का सिलसिला जारी रहेगा व आम लोगों के मुंह के निवाले पर से टैक्स के रूप में वसूला गया पैसा यूहि बहकर बर्बाद होता रहेगा |
शैलेन्द्र कुमार बिराणी
युवा वैज्ञानिक