पितृपक्ष में अपने पूर्वजों को याद करें
पितृपक्ष अपने पूर्वजों और दिवंगत प्रिय लोगों का स्मरण करने का एक अवसर है। मरने के बाद हमारे शरीर और आत्मा का क्या होता है यह सवाल मानवता को सदा से परेशान करता रहा है। इसका निश्चित उत्तर किसी के पास नहीं है।
विज्ञान कहता है कि शरीर का मृत्यु के बाद सब कुछ यहीं समाप्त हो जाता है। शरीर से अलग किसी आत्मा या सूक्ष्म देह का अस्तित्व ही नही है लेकिन अध्यात्म कहता हैं कि मृत्यु के बाद देह तो मिट्टी में मिल जाता है लेकिन आत्मा का विनाश नहीं होता है। जो आत्माएं अनुराग व्देश से परे होती हैं वो संसार के बंधनों से मुक्त होकर पारव्रम्ह परमेश्वर में समाहित हो जाती हैं।लेकिन राग विराग, मोह माया,सुख दुःख और हज़ारों ख्वाहिशों में जकड़े हमारे जैसे लोग प्रेत बनकर अपनी काम्य वस्तुओं, प्रिय लोगों और स्थानों के गिर्द भटकते हुए किसी पुनर्जन्म की प्रतीक्षा करते हैं।
तर्क तो यह कहता है कि हमारी इच्छाओं, अतृप्तियों, विचारों और संस्कारों से निर्मित हमारी कोई सूक्ष्म देह है भी तो श्राद्ध या पितृपक्ष में अर्पित की जानेवाली तिलांजलि, भोजन और कपड़ों की उसे ज़रुरत नहीं होगी। जब भौतिक शरीर ही नहीं तो भौतिक उपादानों की क्या आवश्यकता ? मृत्यु के बाद किये जाने वाले पितृपक्ष जैसे आयोजन व्यर्थ के कर्मकांड के सिवा कुछ नहीं है
लेकिन इन कर्मकांडों का एक भावनात्मक सच भी है। अगर ये भी न हों तो इस व्यस्त और उलझे जीवन में भला कौन किसको याद करता रहेगा? मेरी समझ से आस्था और तर्क के बीच का रास्ता तो यह होना चाहिए कि पितृपक्ष के कर्मकाण्डीय पक्ष को मानते हुए परिवार के लोग इस अवधि में कुछ देर मिलकर बैठें और अपने प्रिय दिवंगतों की स्मृति में दीपक जलाकर उन्हें याद करें। मृत्यु के बाद अगर हमारे पूर्वजों की कहीं उपस्थिति है तो उन्हें यह देखकर खुशी मिलेगी कि उनके अपने सम्मान के साथ उन्हें याद करते हैं। देह से अलग ऐसा कोई अभौतिक अस्तित्व नहीं भी है तब भी पितरों के प्रति हमारी यह श्रद्धा हमें भावनात्मक रूप से समृद्ध तो करती ही है।
पितृपक्ष के अवसर पर अपने और संसार के समस्त पूर्वजों को नमन ।