देहरादून। बीते रोज राजधानी दून में दिनदहाड़े एक बीकृफार्मा की छात्रा की एक युवक द्वारा गोली मारकर हत्या कर दी गई। वही आज नैनीताल में एक युवक की गोली मारकर हत्या का सनसनीखेज मामला सामने आया है। यह दोनों ही हत्याएं अवैध हथियारों से की गई है। सवाल यह है कि चुनाव आचार संहिता के दौरान लाइसेंसी हथियारों को पुलिस प्रशासन द्वारा जमा कराए जाने का क्या औचित्य रह जाता है, जब बदमाश अवैध तमंचे लेकर घूमते रहे और हत्यायें करते रहे।
राजधानी दून में बीकफार्मा की पढ़ाई करने वाली हरिद्वार की छात्रा वंशिका की हत्या का आरोपी सुबह से ही तमंचा लेकर कालेज परिसर और आसकृपास के क्षेत्रों में घूम रहा था, जिसकी जानकारी वंशिका सहित तमाम लोगों को थी। लेकिन यह जानकारी पुलिस को नहीं हो सकी और एक होनहार छात्रा को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। चुनाव के दौरान अपराधों को रोकने के लिए आचार संहिता लागू होने से पूर्व ही पुलिस द्वारा आम लोगों के सभी लाइसेंसी हथियार जमा करा लिए जाते हैं, ऐसे में आम आदमी की जान माल की सुरक्षा की जिम्मेवारी और भी अधिक बढ़ जाती है लेकिन यह हैरान करने वाली बात है कि पुलिस इन अवैध तमंचा धारियों को न तो पकड़ पाती है न अपराध करने से रोक पाती है और वह जब चाहे जहां चाहे किसी को भी मौत के घाट उतार देते हैं।
दून ही नहीं नैनीताल के तल्लीताल क्षेत्र में जिस राजस्थान के युवक का शव सड़क पर पड़ा मिला है उसके पास ही एक 315 बोर का तमंचा और खाली खोखा भी बरामद हुआ है। जो यह बताता है कि इस युवक की हत्या भी अवैध तमंचे से की गई है। गोली युवक के सीने में लगी है जिसे हत्या और आत्महत्या में उलझाने का प्रयास किया जा रहा है। हत्या हो या आत्महत्या लेकिन सवाल इसमें प्रयोग उस तमंचे का है जिससे इस घटना को अंजाम दिया गया। इन दोनों ही हत्याओं में गैर लाइसेंसी तमंचे का प्रयोग यह बताने के लिए काफी है कि पुलिस की नजर सिर्फ लाइसेंसी हथियारों पर ही रहती है। चुनाव आचार संहिता के दौरान भले ही बदमाश अवैध तमंचे लेकर घूमते रहे और हत्या जैसी वारदातों को अंजाम देते रहे पुलिस इन बदमाशों से लापरवाह बनी रहती है।
चुनाव आचार संहिता के नियम कानूनों के अनुसार भले ही लाइसेंसी हथियारों को एककृदो महीने के लिए जमा कर लिया जाता हो लेकिन इन अवैध तमंचा धारियों में शिकंजा कसने की क्या कोई जिम्मेवारी पुलिस की नहीं होती है। अगर होती है तो फिर यह हत्याएं कैसे हो गई। जबकि सीनियर सिटीजनों को अपनी सुरक्षा के लिहाज से अपने लाइसेंसी हथियारों की ज्यादा जरूरत होती है। लेकिन चुनाव आचार संहिता में उन्हें भी जान का जोखिम उठाना पड़ता है परंतु अवैध हथियारों पर पुलिस पाबंदी नहीं लगा पाती।