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भाग -2 भगवान श्रीरामचन्द्र जी का अवतरण और श्रीनाम की महिमा का माहात्म्य में कोरोना के उपाय 

Pahado Ki Goonj

उत्तरकाशी पहाडोंकीगूँज  

राम चरितमानस मुनि भावन ।
*बिरचेउ  संभु सुहावन  पावन ॥*

*भावार्थ  

*श्री रामचरितमानस मुनियों को अति पावन प्रिय है। इस सुहावने और पवित्र मानस की भगवान श्री आशुतोष काशी विश्वनाथ शिव शंकर भोलेनाथ महादेव जी ने स्वयं अपने कर कमलों से रचना की थी।*

*रचि महेश निज मानस राखा ।*
*पाई सुसमय सिवा सन भाषा ॥*
*ताते  रामचरित  मानस  बर ।*
*धरेउ नाम हितों हेरि हरषि हर ॥*

*भावार्थ  ÷

*आदिदेव श्री महादेव जी ने इसको रचकर अपने मन में रखा और शुभ अवसर पाकर आदिदेवी भगवती पार्वती जी से इसका बखान किया था, भगवान शिवजी ने इसको अपने हृदय में सहेजकर प्रसन्न  होकर इसका सुंदर नाम श्रीरामचरितमानस रखा गया है।*
*गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज जी आप धन्य है, आपने इस अविश्वसनीय ज्ञानेन्द्रिय को झकझोर कर जागृत करने वाले महाकाव्य के प्रति किये गये अविस्मरणीय कर्त्तव्य का तनिक भी श्रेय नहीं लिया, अपितु  देवाधिदेव शिव शंकर जी को ही यह श्रेय सम्रगता से दिया हैं। इस दृष्टि से जब हम गोस्वामी तुलसीदास जी को समझेंगे, तभी हम श्री रामचरितमानस का सही मूल्यांकन कर पाने में समर्थ होंगे।*
*आप सभी मानस-प्रेमियों ने इसे हृदयंगम किया, इसके लिए आप सभी आत्मीयजनों को कोटि-कोटि प्रणाम करते हुए 👏 अंतर्मन की  गहराईयों से बहुत-बहुत आभार प्रकट करने के साथ स्वागतयोग्य धन्यवाद प्रेषित करता हूँ।*

*श्री रामचन्द्र जी की दिनोंदिन आयु में बढ़ोतरी होने के साथ-साथ गुणों में भी निरन्तर सत्तत प्रज्जवलित और उज्ज्वलित वृद्वि होने लगी, वह अपने तीनों भाइयों से बहुत अधिक प्रतिभाशाली और शालीनता से परिपूर्ण होने के फलस्वरूप प्रजा में अत्यंत लोकप्रिय होने लगे, वह चहुंमुखी विलक्षण प्रतिभा के धनी थे, जिसके परिणामस्वरू अल्पकाल में ही वे समस्त विषयों में पारंगत हो गये। उन्हें सभी प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों को चलाने तथा हाथी, घोड़े एवं सभी प्रकार के वाहनों की सवारी में उन्हें असाधारण निपुणता प्राप्त हो गई। वे निरन्तर माता-पिता और गुरुजनों की सेवा में लगे रहते थे। उनका अनुसरण शेष तीन भाई भी करते थे। गुरुजनों के प्रति जितनी श्रद्धा भक्ति इन चारों भाइयों में थी उतना ही उनमें परस्पर प्रेम, स्नेह और सौहार्द भी कायम था। महाराज दशरथ जी का हृदय अपने चारों पुत्रों को देख कर गर्व से फूला न समाता और आनन्द से पल्लवित और पुष्पित्त्त होकर हिलोरें मारता था।*

*श्रीरामचरितमानस में लिखा है कि-*

*स्याम गौर सुंदर दोउ जोरी।*
*निरखहिं छबि जननीं तृन तोरी॥*
*चारिउ सील रूप गुन धामा।*
*तदपि अधिक सुखसागर रामा॥*

*भावार्थ  :-*

*श्याम और गौर शरीर वाली दोनों सुंदर जोड़ियों की शोभा को देखकर माताएँ तृण तोड़ती हैं (जिसमें दीठ न लग जाए), यों तो चारों ही पुत्र शील, रूप और गुण के परमधाम हैं, तो भी सुख के समुद्र श्रीरामचन्द्र जी में सबसे अधिक व्यापय हैं।*

*राम तेज बल बुधि बिपुलाई।*
*सेष सहस सत सकहिं न गाई॥*
*सक सर एक सोषि सत सागर।*
*तव भ्रातहि पूछेउ नय नागर॥*
*तासु बचन सुनि सागर पाहीं।*
*मागत पंथ कृपा मन माहीं॥*

*भावार्थ  ÷*

*भगवान श्रीराम जी तेज, बल और बुद्धि की महिमा लाखों शेषनाग भी अपने मुख से नहीं गा सकते हैं। वे एक ही बाण से सैकड़ों समुद्रों को सोख सकते हैं। परन्तु नीति निपुण श्रीराम जी ने आपके भाई से उपाय पूछा, उनके वचन के अनुसार श्रीराम जी समुद्र से मार्ग पूछ रहे हैं। उनके मन में कृपा भरी हुई है, इसलिए समुद्र को सोखते नहीं है।*

*यह बात लंकाधीश रावण के गुप्तचर शुक ने राजा रावण से कही थी, जो विभीषण जी के पीछे-पीछे गुप्त रूप से आया था। उसने  भगवान श्रीराम जी के  पौरुष, बल और बुद्धि की प्रशंसा करने के साथ-साथ यह भी कहा था कि श्रीराम जी बहुत नीति निपुण हैं।*

*मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जी की पहली नीति निपुणता तो यह थी कि उन्होंने इस समस्या का समाधान अपने दोनों मित्र राजाओं से पूछा था, दूसरी बात यह थी कि विभीषण जी ने उनको जो सलाह दी थी, वह उन्होंने तत्काल स्वीकार कर ली थी, हालाँकि उसकी सफलता में स्वयं उनको संदेह था।*

*भगवान श्रीराम जी तीसरी नीति निपुणता यह थी कि उन्होंने भ्राता लक्ष्मण जी की इस सलाह को तत्काल स्वीकार नहीं किया कि बाण से समुद्र को सोख लीजिए, यदि वे ऐसा करते, तो लाखों करोड़ों समुद्री जीवों की हत्या हो जाती और दयामय श्रीराम जी इससे बहुतायत अपयश मिलने की संभावना बन जाती इसीलिए शुक ने अपने महाराज रावण को बताया था कि कृपालु श्रीराम जी के हृदय में बहुत कृपा भरी हुई है।*

*जिन्ह कर नामु लेत जग माहीं।*
*सकल अमंगल मूल नसाहीं॥*
*करतल होहिं पदारथ चारी।*
*तेइ सिय रामु कहेउ कामारी॥*

*भावार्थ  ÷*

*जिनका नाम लेते ही जगत् में सारे अमंगलों की जड़ कट जाती है और चारों पदार्थ (अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष) मुट्ठी में आ जाते हैं, ये वही (जगत के माता-पिता) सीताराम जी हैं, काम के शत्रु आदिदेव शिव शंकर जी ने ऐसा कहा है।*

*उमा कहऊँ मैं अनुभव अपना।*
*सत हरि भजन जगत सब सपना॥*

*पूज्यपाद संत  शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस की एक चौपाई में भगवान शिव माँ पार्वती से कहते हैं ‐*

*उमा कहऊँ मैं अनुभव अपना।*
*सत हरि भजन जगत सब सपना॥*

*भावार्थ
*हे  देवी उमा मैं तुमको अपना यह अनुभव बताता हूँ कि हरि का निरंतर स्मरण ही एक मात्र सत्य है बाकी इस जगत में सभी कुछ केवल स्वप्न के समान है।*

*जैसे अर्ध निद्रा की अवस्था में जब आप कोई स्वप्न देखते हैं तो स्वप्न की स्थिति के अनुसार आप सुख या दुःख की अनुभूति करते हैं, किन्तु जैसे ही आप जाग्रत अवस्था में आते है तो वह सभी सुख और दुःख की अनुभूति समाप्त हो जाती हैI*

*ठीक इसी प्रकार जब आप भगवान जी के “श्रीनाम” जाप के महत्व को समझ जाते हैं तो आप इस स्वप्न के संसार की वास्तविकता को समझ जाते हैं और आपका हृदय एक ऐसे आनन्द की अनुभूति की ओर अविरलता से निरन्तरता के साथ अग्रसर होते है जिसका कभी अंत नहीं हो सकता है।*

*ऐसा नहीं है कि इस जगत के क्षणिक होने के आभास हमें अपने जीवन में नहीं होता है लेकिन हम वास्तविकता की और अपना ध्यान केन्द्रित ही नहीं करते हैं, जिस दिन यह विश्वास आपके हृदय में अपनी पैठ बना लेगा की “ईश्वर अंश जीव अविनाशी” और इस अंश का वास्तविक लक्ष्य उस अंश से मिलना है तो आपके हृदय में बैठा मृत्यु का भय आपसे कोसो दूर होगा, जिस दिन आप प्रभु के उस मनोहारी रूप सौंदर्य में खो जाएंगे और निरंतर उसका स्मरण करते रहेंगे तो आप उस आनंद की ओर अग्रसर होगे जिसको सचिदानंद सत चित आनन्द कहा गया है।*

*मेरे राघवेंद्र सरकार तो बिना कारण ही अपनी करुणा बरसाते ऐसे में यदि उनकी कृपा मिल जाए तो जीवन में कुछ भी अप्राप्त नहीं रह जाएगा।*

*गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज ने श्रीरामचरितमानस में लिखा है कि जो प्रभु श्रीराम जी का नाम दुर्भावना के साथ भी लेता है, उसका भी प्रभु कल्याण करते हैं, अजामिल ने जीवन भर दुष्कर्म किए किन्तु यमदूतों को देख कर भय वश अपने पुत्र नारायण को पुकारने लगा तो केवल इतने पर ही प्रभु ने उसको अपना लोक प्रदान कर दिया था।*

*ऐसे करुणामय प्रभु का एक क्षण भी विस्मरण क्या उचित है ? सोचिए समय तीव्र गति के साथ भागा जा रहा है; ऐसा न हो कि जब आपकी चेतना जाग्रत हो तब तक समय के साथ सब कुछ समाप्त हो चुका हो।*
*इसलिए “ उठत बैठत सोवत जागत जपो निरंतर नाम हमारे निर्बल के बल प्रभु श्रीराम”।*

*एहिं कलिकाल न साधन दूजा।*
*जोग जग्य जप तप ब्रत पूजा॥*
*रामहि सुमिरिअ गाइअ रामहि।*
*संतत सुनिअ राम गुन ग्रामहि॥*

भावार्थ   :-

गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं- इस कलिकाल में योग, यज्ञ, जप, तप, व्रत और पूजन आदि कोई दूसरा साधन नहीं है। बस श्रीराम जी का ही सत्तत स्मरण करना, भगवान श्रीराम जी के “श्रीनाम” के गुण का अविरल व्याख्यान करना और निरंतर श्रीराम जी के ही गुण समूहों को हृदय से भावपूर्ण मनन, चिंतन और स्मरण करना चाहिए तभी आपको मेरे करुणानिधान भक्त वत्सल भगवान श्रीराम जी के वैभवशाली शरणों और पावन श्रीचरणों में स्थान पाकर सद्गति से प्रभु का परम धाम प्राप्त होता है।

!!  सियाराम जी की जय !! 

श्री आदर्श रामलीला समिति 

*भूपेश कुड़ियाल ( श्रीरामचरणानुरागी)*
*”प्रबंधक”*

आगेपढें कोरोना महामारी के लिये विदेशियों ने हमारे ग्रन्थ पढ़ कर हमारे मारने के लिए वाइरस बनाये उसका समाधान भी इसी में है।

 Read next: For the corona epidemic, foreigners read our texts and made viruses to kill us, its solution is also on this.

Uttarkashi ,pahadon ki goonj,
* Ramcharitmanas Muni Bhavan.*
* Bircheu, Sambhu pleasant, holy *

*meaning *

Shri Ramcharitmanas is very dear to the sages. This pleasant and holy mind was created by Lord Shri Ashutosh Kashi Vishwanath Shiv Shankar Bholenath Mahadev ji himself with lotus tax.

* Rachi Mahesh Nij Manas Rakha.*
*Pi good time except Sun language *
* Tate  Ramcharit Manas Bar.*
*Dhareu name interests hari harshi har *

*meaning *

* Adidev Shri Mahadev ji composed it and kept it in his mind and after getting an auspicious occasion, had described it to Adidevi Bhagwati Parvati ji, Lord Shiva was pleased to save it in his heart and has named it as Shri Ramcharitmanas.
* Goswami Tulsidas Ji Maharaj ji, you are blessed, you have not taken even the slightest credit for the unforgettable duty you have done towards the epic that awakened this incredible sense of senses, but gave this credit to Devadhidev Shiv Shankar ji only. From this point of view, when we understand Goswami Tulsidas ji, then only we will be able to properly evaluate Shri Ramcharitmanas.
* * all of you psyche-lovers have made it heartwarming, for this, I send a welcome thank you to all of you soulmates, while expressing many thanks from the depths of innermost soul.* . . . . . . . . . 

* As the age of Shri Ramchandra ji increased day by day, there was a continuous blazing and bright increase in his qualities, he became very popular among the subjects as a result of being very talented and full of decency than his three brothers, he was all-round. He was rich in extraordinary talent, as a result of which he became proficient in all subjects in a short span of time. He acquired extraordinary proficiency in wielding all kinds of weapons and riding elephants, horses and all kinds of vehicles. He was constantly engaged in the service of parents and teachers. The remaining three brothers also followed him. As much reverence and devotion towards the gurus was in these four brothers, there was also mutual love, affection and harmony between them. The heart of Maharaj Dasaratha ji, seeing his four sons, could not swell with pride and swelled with joy and swelled with joy.

It is written in Shri Ramcharitmanas that-*

*Syam Gaur Sundar Do Jori.*
*Nirkhahim Chhabi Janani Trina Tori*
* Chariu Seal Roop Gun Dhama.*
*However more Sukhsagar Rama॥*

*gist :-*

Mothers break the grass after seeing the beauty of both the beautiful pairs of black and gaur bodies (in which the heart does not get stuck), although all the four sons are the supreme abode of modesty, form and virtue, yet the ocean of happiness is most widespread in Shri Ramchandra ji. Huh.*

* Ram Tej Bal Budhi Bipulai.*
*Sesh Sahas Sat Sahin did not sang॥*
*Sak sir one Soshi Sat Sagar.*
*Tav bharathi askew nay nagar*
* Tasu Bachan listened to the ocean.*
* Magat sect please mind *

*meaning *

* Even lakhs of Sheshnag cannot sing the glory of Lord Shri Ram ji’s speed, strength and intelligence with his mouth. They can soak up hundreds of oceans with a single arrow. But the morally accomplished Shri Ram ji asked your brother the remedy, according to his word, Shri Ram ji is asking the way from the ocean. His heart is full of grace, so he does not soak up the ocean.*

This thing was told by the detective of Lankadish Ravana, Shuka to King Ravana, who came secretly after Vibhishana. Along with praising the man, strength and intelligence of Lord Shri Ram, he had also said that Shri Ram ji is very skillful.

The first policy skill of Maryada Purushottam Shri Ram ji was that he had asked the solution of this problem from both his friend kings, the second thing was that he had accepted the advice given to him by Vibhishan ji immediately, although his He himself had doubts in success.*

* Lord Shri Ram ji’s third policy skill was that he did not immediately accept the advice of brother Lakshman ji to soak the sea with arrows, if he had done so, then lakhs of crores of sea creatures would have been killed and merciful Shri Ram ji would have got abundance from this. There would have been a possibility of getting failure, that is why Shuka had told his king Ravana that there is a lot of grace in the heart of the merciful Shri Ram.

* Those who do Namu Lat Jag Mahi.*
*gross bad luck original *
* Kartal hohin padarath chari.*
*Tei Siya Ramu Kaheu Kamari*

*meaning *

* Whose name is taken, the root of all the evils in the world is cut off and the four substances (arth, dharma, kama, salvation) come in a fist, they are the same (parents of the world) Sitaram ji, the enemy of Kama, Adidev Shiva. Shankar ji has said so.*

* Uma tell me my experience.*
*Sat Hari Bhajan Jagat all Sapna*

* Revered saint, Lord Shiva says to Mother Parvati in a quatrain of Shri Ramcharitmanas composed by Shiromani Goswami Tulsidas ji.

* Uma tell me my experience.*
*Sat Hari Bhajan Jagat all Sapna*

*gist
* O Goddess Uma, I tell you my experience that the constant remembrance of Hari is the only truth, everything else in this world is just like a dream.*

Like when you see a dream in the state of semi-sleep, you feel happiness or sorrow according to the state of the dream, but as soon as you come to the state of waking, all that feeling of happiness and sorrow ends.

Similarly, when you understand the importance of chanting “Shri Naam” of Lord ji, then you understand the reality of this dream world and your heart moves continuously and continuously towards the feeling of such bliss, which There can never be an end.*

It is not that we do not feel the moment of this world in our life, but we do not focus our attention on the reality, the day this belief will make its entry in your heart that “God is part of the soul indestructible”. And the real goal of this part is to meet that part, then the fear of death sitting in your heart will be far away from you, the day you will get lost in that beautiful form of God and keep remembering it continuously, then you will move towards that bliss. Which has been called Sachidanand Sat Chit Anand.

* * My Raghavendra Sarkar showers his compassion without any reason, in such a situation, if he gets his grace, then nothing will be left unattended in life.

* Goswami Tulsidas ji Maharaj has written in Shri Ramcharitmanas that the Lord blesses those who take the name of Lord Shri Ram ji even with malicious intent, Ajamil committed misdeeds throughout his life, but after seeing the eunuchs, he started calling his son Narayan out of fear. So only on this the Lord had given him his world.*

Is it appropriate to forget even a moment of such a compassionate Lord? Think time is running fast; lest everything is over in time by the time your consciousness is awakened.*
* Therefore ” wake up, sit awake, chant the name continuously, Lord Shri Ram on the strength of our weak”.

*Ehm Kalikal nahi instrument duza.*
*jog jagya chanting tapa brat worship*
* Ramhi sumiriya sing Ramhi.*
*Santat Suniya Ram Gun Gramahi*

gist :-

Goswami Tulsidas ji says – There is no other means like yoga, yagya, chanting, austerity, fasting and worship etc. in this Kalikal. Just remembering Shri Ram ji continuously, continuously giving lectures about the quality of “Shri Naam” of Lord Shri Ram and constantly contemplating, contemplating and remembering the qualities of Shri Ram ji from the heart, then only you, my Karunanidhan devotee Vatsal Lord Shri Ram ji The supreme abode of the Lord is attained through salvation by getting a place in the splendid shelters and holy feet of God.

!! Jai siyaram ji !!

Shri Adarsh ​​Ramlila Committee

*Bhupesh Kudiyal (Sri Ramcharanuragi)
“The Manager”

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